मैं शुभा परिहार परिवार की बड़ी बहु.. शादी के कितने साल गुजर गए इसकी गवाही मेरे चेहरे की सलवटें और बालों में आई सफेदी घुटने की तकलीफ और बहुत सी बीमारियां चीख चीख के देती है..
गिनने लायक जीवन के गुजरे वर्ष कहां थे जो याद रखती.. कोमल भावनाएं आत्मसम्मान इच्छाएं सब कुछ तो# बड़ी बहु #होने की सजा के रूप में ससुराल की वेदी पर हवन कर दिया.. आज पीछे मूड कर देखने की इच्छा भी नहीं होती. जख्मों को कुरेदने से घाव हीं हरे होंगे…
बीस साल की नवयौवना अल्हड़ सी संस्कारी लड़की जब इस परिवार की बड़ी बहु बनकर आई तो दो छोटे देवर दो छोटी ननदें दादी सास सास ससुर चाची सास चाचा विधवा बुआ सास इतने लोगों की अपेक्षाओं पर मुझे खरा उतरना था.…रसोई घर के बगल के छोटे से कमरे में रहने की जगह मिली… कमरे का दरवाजा रसोई घर में हीं खुलता था ..
बाद में समझ में आया ससुराल वालों की सेवा में कोई कमी न हो इसलिए रसोई के बगल में बड़ी बहु नाम की फुल टाइम मेड का कमरा यानि आउट हाउस बना था… कमरे में वेंटिलेशन की सुविधा भी नहीं थी… खैर आगे बढ़ते हैं.. घर में जैसे भंडारा चौबीस घंटे चलते रहता था… बीमार पड़ने पर हर तरह की दवाईयां आ जाती थी ब्रेड के पैकेट के साथ….
पर आराम करने की सुविधा नहीं थी… आराम करना घोर अपराध की श्रेणी में आता था… रात में ग्यारह बजे के बाद बारी बारी से सभी के पैर दबाने का काम होता था.. दादी सास से शुरू होकर दोनों छोटी ननदों पर आ कर खत्म होता.. साथ में कमेंट्री चालू रहता..
जवान हो ताकत लगा कर नहीं दबाती… मां ने ये सब नहीं सिखाया है.. कोई कहता हिलते रहती है पैर पर ठीक से दबाती नहीं.
और दर्द बढ़ जाता है.. जाड़े के दिन में भी पसीने पसीने हो जाती..
अपनी पूरी ताकत लगा देती पर वहीं ढाक के तीन पात.. नाश्ते में ज्यादातर रोटी सब्जी बनती… दोनो छोटी ननद टीवी में गप्प करने में लगी रहती…. रोटी बनाती भी और सभी के थाली में पहुंचाते नाश्ता खतम होते बेदम हो जाती… फिर नाश्ते के बाद गरम चाय का दौर चलता साथ साथ सब्जी में नमक कम तो मिर्ची ज्यादा
चाय में चीनी ज्यादा अदरक तो डाला हीं नहीं है… ये तो रोज की बात थी.. अपने नाश्ते का टाइम आता तो मोटी सी एक रोटी बना किसी तरह निगलकर फिर दोपहर के खाने की तैयारी में लग जाती.. ससुर जी के दोस्तों का आना जाना वक्त बेवक्त जारी रहता… अक्सर सासू मां पति से मेरी शिकायत कर देती देखो ये बड़ी बहु है जैसा करेगी छोटी जो आयेगी वही सीखेगी..
फिर शुरू हो जाता पति रूपी श्रवण कुमार के गुस्से का दौर… खरी खोटी सुनाते कभी कभी धक्का देकर हाथ में तकिया लिए अपनी मां के कमरे में सोने चले जाते.. सासूजी व्यंग से मुस्कुरा देती मुझे देखकर… इसी बीच निधि और नमन का जनम हुआ… एक सप्ताह में हीं घर में त्राहिमाम मच गया..
छठी की विधि खतम होते हीं फिर से रसोई की जिम्मेदारी सौंप दी गई… बच्चे रोते तो बॉटल में दूध भरकर सासू मां पकड़ा देती.. धीरे धीरे नहीं पिलाने के कारण दूध भी सुख गया… बेबसी के आसूं मेरी आंखों से निकल जाते जब बच्चे को छाती से लगाती.. पति को सिर्फ शरीर से मतलब था…और घरवालों की तुष्टिकरण नीति का एक हथियार थी मै.…
धीरे धीरे मै मशीन बन गई.. छोटी बहन की शादी में हल्दी के दिन पति लेकर गए और विदाई के दिन शाम को लेकर आ गए… मां बाबूजी ने बहुत रोका पर नहीं माने.. मेरे घरवाले बच्चों के बिना नहीं रह पाते इसलिए आते समय पिताजी ने कहा है जल्दी आना घर सुना हो जाएगा…
पहली बार जब मायके गई थी तो छोटे भाई बहन चाट गुपगुप खाने की जिद करने लगे… पैसे तो मेरे पास थे हीं नहीं… मां से कहा मां मेरा पैसा वाला पर्स गलती से छूट गया है मां ने झट से पैसे निकाल कर दिए… मायके जाती तो पति और सास मेरे कपड़े गिन कर अटैची में रखते कहीं ज्यादा दिन रह न जाए….
अपने प्रति उदासीन.. फिर देवर की शादी हुई…. देवर अनुभवी हो चुके थे… अपनी बदली दूसरे शहर में करवा कर सवा महीने बाद पत्नी को लेकर चले गए… सासूजी बोली बड़ी बहु क्या किस्मत लेकर आई हो राज करो पूरे घर पर.. एक छत्र राज है तुम्हारा.. मंझली बहु चली गई अपने पति के साथ और मै रह गई एक क्षत्र राज करने के लिए…
दोनो ननद का बच्चा पीहर में हीं हुआ… बच्चा पोसा गया तब लेकर गई…. इतना ज्यादा काम बढ़ जाता की दो दो दिन बाल में कंघी करने की फुर्सत नहीं होती… शरीर का पोर पोर दुखता… लगता कैसे बिस्तर पर जाऊं… बिस्तर से उतरने नहीं देती सासू जी ननद को… मसाले बना लो बड़ी बहु मिनी के लिए…
जचगी के बाद बहुत कमजोर हो गई है… मुझे याद आ गया बाबूजी मुझे दोनो बच्चों के जनम के बाद लेने आए पर उन्हें प्यार से मीठी मीठी बातों से समझा कर वापस भेज दिया.. हमलोग पूरा ख्याल रखते हैं बड़ी बहु का.. आपको भरोसा नहीं है तो ले जाइए… बच्चे बड़े हो गए हैं.. शायद मेरी व्यथा का अंत हो…
निधि की शादी हो गई है… निधि बैंक ऑफ इंडिया में जॉब कर रही है और दामाद पेट्रोल पंप चलाते हैं… सास ससुर बूढ़े हो चुके हैं.. अभी भी बड़ी बहु का फर्ज निभा रही हूं..
नमन की नौकरी भी लग गई है.. पिछले साल छह महीने के अंतराल पर सास ससुर दोनो गुजर गए.. नमन अपने पसंद की लड़की से शादी करेगा..
पति का व्यवहार वैसा हीं है… अंशुल हमारे घर की बहु बनकर आ गई है… वक्त गुजर रहा है… मेरे पति का मेरे प्रति तिरस्कार पूर्ण रवैया देखकर उसका भी व्यवहार बदलता जा रहा है…. जीने की इच्छा तो वर्षों पहले खतम हो सीचुकी थी अब मन करता है कुछ खा कर…. बेटा भी धीरे धीरे अंशुल की भाषा बोलने लगा है… आज तो हद हो गई जब अंशुल ने कहा अब हम साथ नहीं रह सकते… तभी निधि अपने पति के साथ आ गई और मुझे वापस अपने साथ ले गई अपने घर…
संयुक्त परिवार की बड़ी बहु थी निधि.. सुबह में नींद खुली तो सुना निधि अपने पूरे परिवार के सामने बोल रही थी मेरी मां अब हमेशा यहीं रहेगी.. इस घर की बड़ी बहु होने के नाते मैने ये फैसला लिया है… मेरी मां को वही मान सम्मान और इज्जत मिलनी चाहिए जो मै आपको देती हूं मम्मी जी…
पापाजी मम्मी जी राहुल रश्मि सोनल आप लोग को अगर मंजूर हो तो ठीक है एतराज हो तो मैं यहां से दूसरे जगह घर लेकर रहूंगी… सभी ने एक स्वर में सहमति जताई.. निधि की सास ने कहा मुझे तो कंपनी मिल जाएगी..हम दोनों खूब मस्ती करेंगे…. निधि मुझे लेकर बाजार गई.. साड़ी शूट खरीदा मेरे लिए मेरी पसंद से..
फिर ब्यूटीपार्लर ले जाकर तीन घंटे तक न जाने क्या क्या करवाया .. मैं अपने को देखकर दंग रह गई .. निधि ने इस बड़ी बहु को जीवन के इस इंद्रधनुषी रंग से मिलवाया… सुबह रोज पार्क जाती हूं टहलने समधी समधिन के साथ…. अब खाने का स्वाद घूमने की खुशी सुंदर कपड़े पहनने का चाव सब महसूस करने लगी हूं…. #परिहार परिवार की#बड़ी बहु की ओर से ढेर सा धन्यवाद प्यार आशीर्वाद राठौर परिवार की बड़ी बहु निधि को….
Veena singh