बड़ी अम्मा -रणजीत सिंह भाटिया

       शाम होने वाली थी सुधा ने जल्दी से घर में ताला लगाया और और अपनी तीन साल की बेटी सपना को लेकर मंडी की ओर भागी,..शाम को मंडी बंद होने से पहले बचा खुचा  सामान सस्ता मिल जाता है l वह अभी भाव- ताव करके खरीदारी कर ही रही थी,कि अचानक मंडी में भगदड़ मच गई लोग डरे- डरे इधर उधर भाग रहे थे किसी ने बताया कि शहर में दंगे शुरू हो गए हैं जगह-जगह पर आगजनी , विस्फोट और गोलीबारी हो रही है l सब अपनी अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे, सारी मंडी बंद हो गई सुधा को कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या करें,… वह बहुत ही घबरा गई, बच्ची सपना भी रोने लगी सुधा उसे लेकर मंडी के पीछे एक छोटी सी बस्ती की ओर दौड़ी… कई घरों के दरवाजों को दस्तक दी पर किसी ने दरवाजा नहीं खोला, इतने में एक घर का दरवाजा खुला और किसी ने सुधा को और उसकी बच्ची को घर के अंदर खींच लिया वह बहुत ही घबरा गई थी, वह घर एक किन्नर का था मोटी सी आवाज में उसने सुधा से कहा  ” डरो मत बेटा तुम यहां सुरक्षित हो  ” तब कहीं जाकर सुधा की जान में जान आई l उस किन्नर ने दोनों को पानी पिलाया सुधा ने उसका और ईश्वर का धन्यवाद किया और उस किन्नर की ओर देखा…, दिखने में एक साधारण सी औरत जो एक मामूली सी साड़ी पहने थी,.. घर भी बिल्कुल साधारण सा था सिर्फ एक कमरा था, उस किन्नर ने कहा  ” मेरा नाम सितारा है… मैं किन्नर हूं कहीं मेरे घर का पानी पीने से तुम्हारा धर्म तो भ्रष्ट नहीं हो गया ना ? “.. सुधा ने कहा  “नहीं..नहीं आप ऐसा क्यों सोचते हैं इतने में बाहर से स्पीकर पर आवाज़ आने लगीं  “..शहर में अनिश्चितकाल के लिए कर्फ्यू लगा दिया गया है….और कोई  भी घर से बाहर ना निकले….”!!


          तब सितारा ने कहा ” कोई बात नहीं तुम लोग यहाँ कर्फ्यू खुलने तक आराम से रह सकते हो l घर में जो भी रुखा सुखा है मिल बांट कर खा लेंगे ”  इतने में सपना भी थोड़ी सी शांत हो गई थी, तोते के पिंजरे के पास जाकर उसके साथ खेलने लगी सितारा ने कहा ” बेटा..इस से बातें करो..यह बोलता भी है, इसका नाम गंगाराम है ” इतने में तो तोता बोल उठा   ” गंगाराम….गंगाराम ” सपना बहुत खुश हो गई सितारा सुधा की ओर मुड़ी और पूछने लगी अपने बारे में बताओ कहां रहती हो यहां कैसे पहुंच गई हो तब सुधा ने बताया बताना शुरू किया,   “..मैं यहां से थोड़ी दूर पुल के उस पार रहती हूं, यहां शाम को मंडी में बचा खुचा सामान बहुत सस्ता मिल जाता है,तो सोचा  सब्जियां और घर का थोड़ा सामान ले आऊँ पर यहां आकर फस गई, घर में, और मेरी बच्ची सपना ही है l एक वर्ष हुआ पति ने आत्महत्या कर ली और हम बेसहारा हो गए..सुधीर मेरे पति बहुत अच्छे थे बहुत अच्छी नौकरी थी, सब ठीक-ठाक चल रहा था फिर पता नहीं कहाँ से  बुरी संगत में पड़ गया..दोस्तों के साथ शराब पीकर नशे में धुत देर रात आता,.. गाली गलौज करता,..मारपीट करता, कर्जा भी ले रखा था l एक दिन ऐसा सोया तो फिर उठा ही नहीं l पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में पता चला कि उसने कोई जहरीली वस्तु खाली थी, ससुराल वाले मुझे ही दोषी ठहराते हैं l  आज तक समझ नहीं पाई कि उसने आत्महत्या क्यों की…???. मायके में सिर्फ माता-पिता थे जो अब नहीं रहे जब बुरा समय आता है तो जमाना भी अपनी निगाहें फेर लेता है.. माता-पिता ने एक छोटा सा जमीन का टुकड़ा दिया था उसी पर जैसे तैसे करके घर बना लिया और बैंक का लोन अभी हर महीने देना पड़ता है l सुधीर की पेंशन से  बड़ी मुश्किल से खींचतान के घर का गुजारा होता है… कहते कहते सुधा की  आंखों से आंसुओं की अविरल धारा बह निकली मेरा सब कुछ ये मेरी बच्ची सपना ही है l कहीं काम मांगने जाती हूँ तो लोगों की बुरी निगाहों का सामना नहीं कर पाती, जहां जाती हूं लोग जिस्म का सौदा करते हैं l छोटी सी बच्ची को  लेकर कहाँ जाऊं कुछ समझ में नहीं आता…सारे गहने भी बिक गए अब आगे  क्या होगा पता नहीं…!! यह सब सुनकर  सितारा की आँखों भी भर आई,  अपने आंसू पूछते हुए सुधा ने सितारा से पूछा तुम अपने बारे में बताओ l


         तब सितारा ने कहा  ”  हमारा क्या है… ” हमारा जीवन एक अभिशाप है..हम लोग एक श्रापित जीवन जीते हैं, और मौत पर कोई आंसू बहाने वाला भी नहीं होता, मेरी उम्र साठ साल के करीब हो चली है, पहले तो दर-दर जाकर नाच- गाकर अपना गुजारा कर लेते थे,पर उम्र ढलने के बाद वह सब भी नहीं कर पाती साथी थे कुछ इधर उधर चले गए और कुछ परलोक सिधार गए अब घरों में या बाजार में कुछ मांग कर अपना गुजारा करना होता है यह झोपड़ा  भी किराए का है बस  अब ऊपर वाले से यही प्रार्थना है कि जल्दी से इस घिनोने जीवन से मुक्ति दे दे.. ” सितारा की बातें सुनकर सुधा की आँखों भी भर आई… I

             दोनों का मन थोड़ा हल्का हुआ तो सितारा ने कहा  ” “दिया- बत्ती का टाइम हो गया है मैं थोड़ी सी खिचड़ी बना लेती हूँ…”  शहर में अभी भी कोहराम मचा हुआ था l

           इसी तरह 3 दिन बीत गए और 3 दिनों में सपना, सितारा के साथ खूब घुल -मिल गई थी,  वह सितारा को बड़ी अम्मा कहती थी l चौथे दिन माहौल थोड़ा सा शांत हुआ तो सुधा अपनी बेटी के साथ  घर लौट आई l अब कभी-कभी सितारा और सुधा एक दूसरे के घर आने जाने लगे, आसपास के लोगों ने बहुत बातें बनाना शुरू कर दिया, पर धीरे-धीरे सब ने  ने ध्यान देना छोड़ दिया l

         सितारा जिस बस्ती में रहती थी उस बस्ती को तोड़कर वहाँ पर फाइव स्टार होटल बनाने का सिलसिला चल रहा था, तब सुधा ने कहा कि “तुम मेरे साथ आकर रह जाओ ”  सितारा उनके साथ रहने लगी, सपना को स्कूल छोड़, आती पार्क में घुमाने ले जाती आसपास के सारे बच्चे भी सितारा से बहुत घुल मिल गए थे,और सब उसे बड़ी अम्मा कहने लगे वह मोहल्ले की  चहिती बन गई, सब के सुख दुख में साथ देना ही अब उसका काम था l 

             घर के आर्थिक हालात कुछ ठीक नहीं चल रहे थे, सपना भी अब बड़ी होने लगी थी,उसकी पढ़ाई भी थी, और सुधा चाहती थी कि उसे पढ़ा लिखा कर किसी काबिल बनाए l कोई राह नहीं सूझ रही थी, कि क्या करें कोई दिशा नजर नहीं आ रही थी, अब सितारा ने ” कहा तुम  पढ़ी लिखी हो कुछ काम ढूंढ लो या घर में ही कुछ काम शुरु कर लेते हैं मैं सपना को और घर को संभाल लूंगी  कोशिश करने से क्या नहीं हो सकता… “

             

रणजीत सिंह भाटिया 

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