‘ दीदी ‘ – विभा गुप्ता

#एक_टुकड़ा

         नीता ने नहा-धोकर अपनी नित्य-पूजा को समाप्त किया और अपने पति प्रमोद की तस्वीर की माला बदलकर दीपक जलाया।उन्हें प्रणाम करके साथ लगी तस्वीर की भी उसने माला बदल दी।तस्वीर प्रणय की थी जो अचानक ही उसकी ज़िंदगी में आया और अचानक ही एक दिन …..।

            चार बरस पहले की ही तो बात है जब उसने अपने माता-पिता को बताये बिना ही अपने कॉलेज के दोस्त प्रमोद से विवाह कर लिया था।दोनों बहुत खुश थें।साल भर बाद नित्या का जन्म हुआ तो उनकी खुशी दोगुनी हो गई है।प्रमोद एक प्रतिष्ठित लेदर कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत थें।अच्छी सैलेरी और बोनस के साथ-साथ उन्हें रहने के लिये दो कमरों का एक फ्लैट भी मिला हुआ था।सबकुछ बहुत अच्छा चल रहा था कि एक दिन नित्या को बहुत उल्टियाँ होने लगी।वह बेटी को लेकर डाॅक्टर के पास गई और वहाँ से वापस आई तो घर का दरवाज़ा खुला देखकर उसका माथा ठनका।अंदर जाने पर जो देखा तो उसकी साँस ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे रह गई।प्रमोद ड्राइंग रूम के पंखे से लटक कर आत्महत्या कर लिये थे।

                उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि प्रमोद ने ऐसा कदम क्यों उठाया? रह-रहकर यह सवाल उसे परेशान करता था।कंपनी की तरफ़ से मुआवजे में उसे एक मोटी रकम के साथ-साथ कंपनी में सुपरवाइज़र का जाॅब भी मिल गया था लेकिन उसके जीवन के खालीपन का क्या..?

             कुछ दिनों तक तो वह बेटी को अपने साथ ही ऑफिस में रखी,फिर पास के ही डे केयर में छोड़ने लगी।नित्या के साथ आना,उसे डे केयर में ड्राॅप करना, ऑफिस जाना और वापसी में बेटी के साथ घर आना उसकी दिनचर्या बन गई थी।दिन तो कट जाता लेकिन रात में बेटी के सो जाने के बाद वह घंटों प्रमोद के ख्यालों में खोई रहती।अतीत का वर्तमान पर हावी होना खतरनाक साबित हो सकता है,यह जानते हुए भी वह खुद को अतीत में जाने से रोक नहीं पाती थी।

              ऐसे ही ख्यालों में गुम एक दिन वह बेटी के साथ ऑफिस से घर लौट रही थी कि एक कार से उसकी टक्कर हो गई।भाग्यवश दोनों ही बच गए पंरतु पैर में हल्की मोच आ जाने से उसे चलने में काफ़ी तकलीफ़ हो रही थी,तभी सिग्नल पर खड़ा एक लड़का आया और उसे सहारा देकर सड़क पार करा दिया।उसने कहा, “यहाँ तक लाये हो तो घर तक भी पहुँचा दो ,पास में ही है।” पहले तो वह हिचकिचाया, फिर तैयार हो गया।


           उस दिन के बाद से वह उसे रोज सिग्नल पर खड़े देखती तो समझ नहीं पाती।एक दिन उसने पूछ ही लिया तो बोला कि दीदी, मैं…कहते हुए थोड़ा वह सकुचाया।उसने कहा, ” हाँ-हाँ , बताओ।मैं क्या?” 

           ” दीदी, मैं आपलोगों जैसा नहीं हूँ।” वह बोला। “दिखाई दे रहा है मुझे, तुम लड़की नहीं, लड़का हो।लेकिन यहाँ रोज क्यों खड़े रहते हो?” उसने कड़ककर पूछा तो वह नीता को एक तरफ़ ले जाकर बोला, ” दीदी, आप समझी नहीं, मैं आप जैसा नहीं, मतलब कि किन्नर हूँ और यहाँ ग्राहक के लिये…” कहते हुए उसने अपनी आँखें झुका ली।सुनकर वह सकते में आ गई।सोचने लगी,सड़क पर छोटे-बड़े, जितने भी किन्नर खड़े हैं, उन्हें अपना पेट भरने के लिए ऐसा काम करना पड़ता है।रोज न जाने कितने लोग इन मासूमों के देह को नोचते-खचोसटे होंगे और तब जाकर इनके पेट में अन्न का दाना जाता होगा।हे भगवान! वह तो प्रमोद के चले जाने के दुख को ही बड़ा दुख समझ बैठी थी लेकिन यहाँ तो…। “नहीं-नहीं, मैं तुझे अब यहाँ नहीं रहने दूँगी।तुझे पढ़ा-लिखा कर अपने पैर पर खड़ा करूँगी। तू अभी चल।” नीता उसका हाथ पकड़कर उसे ले जाने के लिए तत्पर हो गई। ” लेकिन मेरी बात तो सुनिए..।”  ” क्या सुनूँ , दीदी भी कहता है और..”  ” आपका सम्मान करता हूँ, इसलिए नहीं चल रहा हूँ।मेरी वजह से आपकी जग-हँसाई होगी और मेरे जैसे तो बहुत हैं ,आप कहाँ तक..।कहकर वह चला गया।

               उस रात नीता को नींद नहीं आई।रात भर वह यही सोचती रही कि वह उन सबको नरकीय जीवन से छुटकारा कैसे दिला सकती है? जहाँ चाह हो वहाँ राह भी मिल ही जाता है।सुबह उठकर उसने सबसे पहले ऑफिस में तीन दिनों की छुट्टी का एप्लीकेशन दे दिया,बेटी को डे केयर छोड़कर सिग्नल पहुँची।वहाँ पूछने पर पता चला कि तबीयत ठीक न होने के कारण वह नहीं आया था।पता पूछकर जब वह वहाँ पहुँची तो वहाँ की हालत देखकर उसका कलेजा मुँह को आ गया।

              एक छोटे-से तंग कमरे में दस लोग,सब कुछ बिखरा-बिखरा था।उस दिन नीता ने उसे प्रणय नाम दिया था। उसने प्रणय और उसके जैसे सभी लोगों का जीवन संवार कर उनके दिशाहीन जीवन को एक दिशा देने का निश्चय किया।


        ऑफिस से आकर वह उन सभी को पढ़ाने लगी।किन्नरों को उसके घर आते देख जब लोगों ने आपत्ति जताई तो वह कोर्ट से ‘नो ऑब्जेक्शन ‘ का सर्टिफिकेट ले आई और पूरे तन-मन से अपने मिशन को पूरा करने में जुट गई।पढ़ाई के साथ-साथ वह उन्हें सिलाई-बुनाई और पेपर वर्क भी सिखाने लगी।देखते-देखते दो वर्ष बीत गए, कुछ ने अपना अलग काम शुरू कर लिया तो कुछ उसके साथ ही रह गए।प्रणय भी एक शू शाॅप में काम करने लगा था।खाली समय में वह नीता का हाथ बँटाता।उन सभी को आत्मनिर्भर बने देख उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता।

         एक दिन शू शाॅप में काम करते-करते प्रणय को चक्कर आ गया।नीता उसे लेकर अस्पताल गई तो डाॅक्टर ने बताया कि कई लोगों के संसर्ग में आने के कारण उसे ‘एड्स ‘ हो गया है।तब प्रणय ने उसका हाथ पकड़कर कहा था, ” दीदी, अभी तो मैंने तुम्हारे साथ जीना शुरू किया था और …।” कहकर वह फूट-फूटकर रोने लगा था।

                जाने से एक दिन पहले उसने नीता से कहा था, ” दीदी, मेरे जाने के बाद तो फिर से सब ….।” तब नीता ने उसे वचन दिया था कि उसके जीते जी अब कोई भी सिग्नल पर गंदा काम नहीं करेगा और न ही कोई उन्हें ‘हिंजरा’ कहकर हँसी उड़ायेगा।जैसे मैं तुम्हारी दीदी थी वैसे ही मैं सबकी दीदी बनकर हमेशा रहूँगी।

             प्रणय चला गया लेकिन उसे दिया हुआ वचन नीता अभी भी निभा रही है।जब भी समय मिलता,प्रणय के किन्नर परिवार से मिलने जाती,उनकी समस्याओं को सुनती और उन्हें दूर करने का हर संभव प्रयास करती।किन्नरों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ना ही तो उसका मुख्य उद्देश्य था।

                     ——- विभा गुप्ता 

 

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