डोरबेल की आवाज़ सुनकर मैंने दरवाजा खोला तो सामने पड़ोसन की बेटी खड़ी थी। मैंने कहा “आओ बेटा बैठो, माधुरी तो अभी पार्क से खेल कर नहीं आई है। क्या तुम खेलने नहीं गईं थी?” “ नहीं आंटी मेरी तबियत ठीक नहीं है इसलिए खेलने नही गई। वैसे मै माधुरी से मिलने नहीं आई हूँ। माँ को गुजिया बनाना था तो उन्होंने आपको मदद के लिए बुलाया है,यही कहने आई हूँ” रीना ने कहा। “ठीक है बेटा माँ से कहना कि बच्चों के खेलकर आ जाने के बाद उन्हें कुछ खाने को देकर आंटी आ जाएंगी।
” मैंने कहा। कुछ ही देर मे बच्चे खेलकर आए। मैंने उनसे कहा “तुम दोनों हाथ मुँह धोकर कपड़े बदल लो और मैंने खाने के लिए दुध बिस्किट रख दिया है उसे खा लेना फिर पढ़ने बैठ जाना। तब तक मै रीना के घर से आती हूँ, उसकी माँ ने बुलाया है। हाँ, और खाने के बाद चुपचाप होमवर्क बनाने बैठ जाना, टी.वी मत देखने लगना। होमवर्क खत्म होने के बाद जब मै आउंगी तो टी.वी देखना।” अभी तक तो आप समझ ही गए होंगे कि मेरे दो बच्चे है। अब मै उनका परिचय कराती हूँ।
बेटी जिसका नाम माधुरी है,वह ग्यारह वर्ष की है, उसे टी.वी देखना खास पसंद नहीं है, पर उसे कुछ भी खाने में बहुत ही देर लगती है, दुध तो उसे बिल्कुल ही पसंद नहीं है। मैं बहुत ही मनुहार से, या डांट कर पिलाती हूँ। उसके विपरीत बेटा जो अभी छह वर्ष का है, वह अपना खाना तुरंत खत्म कर लेता है। फिर टी.वी खोलने की ज़िद करता है। चुकि बहन का खाना ही जल्द खत्म नहीं होता तो उसका होमवर्क भी देर से होता है, इसलिए वह टी.वी चलाने नहीं देती है। बस इसी बात पर कभी-कभी उनका झगड़ा हो जाता है नहीं तो उम्र में ज्यादा फासला होने के कारण उनमे झगड़ा नहीं के बराबर होता है।
झगड़े के डर से ही मैंने उन्हें टी.वी खोलने को मना किया था। उन्हें अच्छे से समझाकर मैं पड़ोस में चली गईं। बेटा तुरंत ही खा लिया। वह क्लास वन मे था, इसलिए उसका होमवर्क भी जल्द बन गया पर बेटी का खाना ही पूरा नहीं हुआ था। अभी होमवर्क तो बाकी था ही। बेटा अपना काम पूरा करने के बाद टी.वी खोलने लगा। बेटी ने मना किया और बोली माँ ने मना किया है। बेटे ने कहा “माँ ने कहा था खाना और होमवर्क खत्म करने के बाद टी.वी खोल सकते हो।” “माँ ने ऐसा कुछ नहीं कहा था और मेरा होमवर्क भी पूरा नहीं हुआ है।
तुम टी.वी खोलोगे तो मैं होमवर्क कैसे बनाउंगी?” बेटी ने कहा। “तो मैं क्या करू? तुम तो कितना देर तक खाती ही रहती हो, तो होमवर्क तो देर होगा ही। मैं टी.वी कब देखूंगा?” बेटे ने तुरंत जवाब दिया। अभी इनकी लड़ाई चल ही रही थी कि मैं आई। मैं डोरबेल बजाने जा रही थी कि इनके झगड़े की आवाज़ सुनाई दी। बेटी कह रही थी, “माँ जब आयेंगी तो मैं माँ से कह दूंगी, तुमने टी.वी चलाकर मुझे पढ़ने नहीं दिया। बेटे ने कहा “मैं भी बता दूंगा, तुमने, रीना दीदी ने और मानसी दीदी ने मिलकर कैसे अपनी-अपनी माँ को बुद्धू बनाया।
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” मुझे यह जानने की उत्सुकता हुई कि बच्चियों ने हमें बुद्धू कैसे बनाया। मैंने डोरबेल बजाया, बच्चों ने दरवाजा खोला और फिर चुपचाप पढ़ने बैठ गए। मैंने पूछा पढ रहे हो? अभी तक तुम दोनों का होमवर्क पूरा नहीं हुआ? बेटे ने कहा “मेरा हो गया। मैं अभी कविता याद कर रहा हूँ।” बेटी ने कहा “मेरा कुछ बाकी है मैं भाई की मदद कर रही थी, इसलिए पूरा नहीं हुआ।” मैंने फिर पूछा कहीं तुम दोनों ने टी.वी तो नहीं खोल लिया था? मैं तो बहुत देर से आई हूँ,अभी तक तो तुम दोनों का होमवर्क पूरा हो जाना चाहिए था।
” इतना सुनते ही बेटी ने कहा – हाँ माँ, भाई ने टी.वी खोल लिया था, जिसके कारण मै पढ नहीं पाई। अपना नाम लगते ही बेटा ने कहा – नहीं माँ, दीदी झूठ बोल रही है। मैं तो टी.वी खोलने की बात ही कह रहा था कि आप आ गईं। दीदी खाना ही बहुत देर से फिनिस की तो उनका होमवर्क पूरा कैसे होता?” मैंने कहा ऐसा नहीं कहते बेटा, दीदी झूठ क्यों बोलेंगी? बेटे ने कहा “माँ आप नहीं जानती दीदी झूठ बोलती है, उन्होंने और रीना दीदी और मानसी दीदी ने आपसे और आंटियों से झूठ बोला था। यह सुन कर बेटी ने उसका मुंह दबाने की कोशिश की और कहा “बुद्धू लड़के, तू कुछ भी बोलता रहता है।
मेरी बेटी की आँखों में खौफ़ साफ झलक रहा था। तब तक बेटे ने कहा “ मैं क्यों झूठ बोलूँगा भला? मैं तो अच्छा बच्चा हूँ।” यह सुन मैंने जवाब दिया “ऐसा नहीं बोलते बेटा, दीदी भी अच्छी है वो झूठ नहीं बोलती। यह सुन कर बेटी की जान मे जान आई और उसने बात को टालने की कोशिश की मगर मुझे इसके पीछे का पूरा सच जानना था क्योंकि मेरा बेटा नादानी में अक्सर बातें बता दिया करता है बस दीदी के डर से कभी-कभी चुप रह जाता है। मुझे इतना तो आइडिया लग गया था कि शायद आज ये दोनों अपने अपने बचाव में एक दूसरे का कोई न कोई भेद तो खोलेंगे
ही तो भला मैं कैसे इन्हें छोड़ कर अन्य काम में लग जाती। मैंने भी पूरी दिलचस्पी दिखाते हुए दोनों से कई सवाल कर डाले। तभी बेटे ने कहा “ यह तीनों दीदियाँ आप सब से झूठ बोलकर पिंकी दीदी के पार्टी मे गईं थी। बेटी ने बचाव करते हुए कहा “इसमें झूठ क्या है मैं तो माँ से पूछकर ही पार्टी मे गई थी। अपनी बात बोलो ना माँ से। रोज तुम्हारा होमवर्क तुरंत कैसे बन जाता है? जानती है माँ रोज मुझसे अपना होमवर्क बनवाता है इसीलिए तो उसका जल्दी से बन जाता है और मेरा पूरा नहीं हो पाता है।
” बेटे ने कहा “तो क्या मुफ़्त में मेरा होमवर्क बनाती हो ? इसके बदले मैं रोज़ तुम्हारे हिस्से का दुध फिनिश करता हूँ। “अच्छा तो मै भी तो तुम्हारी सब्जी खत्म करने मे मदद करती हूँ, बेटी ने भी जबाब दिया। दोनों इसी तरह से एक दूसरे का कच्चा चिठ्ठा खोल रहे थे और मैं सोच रही थी कि अब मैं इन्हें कैसे पीटू कि तब तक मुझे मेरे प्रतीक्षित प्रश्न का उत्तर मिला और मैं हैरान हो गई। मेरी बेटी और उसकी सहेलियों ने हम माँओं को बुद्धू बनाया और वो भी बहुत चतुराई से।
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मुझे याद आया वो दिन जब मेरी बेटी और उसकी सहेलियाँ मेरे पास आईं और मुझसे कहा कि रीना और मानसी की माँ उन्हें पिंकी की पार्टी में भेज रहीं है। यह सुन कर मैंने भी कह दिया की फिर तुम भी चली जाओ। लेकिन मुझे उस समय यह नहीं मालूम था कि इन बच्चों ने यही सेम बात अन्य दोनों माँओं से भी कही है। बड़ी ही चतुराई से इन्होंने बारी-बारी तीनों माँ को अन्य माँओं से
पर्मिशन मिलने की बात कही और अपने लिए भी पर्मिशन ले लिया। बाकी का कच्चा-चिट्ठा तो पता चला पर यह वाला जान कर मैं अपनी हंसी ना बर्दास्त कर पाई और गुस्सा करने की जगह ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगी। आज मुझे मालूम चला कि इस पीढ़ी के बच्चों से सावधान रहना ज़रूरी है और जहां तक बच्चों के राज़ खुलने की बात है तो वो तो बच्चें नादानी में एक दसूरे की बात बताएंगे ही बस आपको सही से संचार करना होगा।
मुहावरा – # कच्चा चिठ्ठा खोलना
लतिका पल्लवी