बेटी – श्यामला संभारा

बेटी अपने पापा से पिछले तीन, चार दिनों से उसके साथ कॉलेज चलने के लिए कह रही थी कॉलेज में एडमिशन लेने के समय उसे लगता था कि उसके पापा उसके साथ में तो अच्छा रहेगा ऑफिस मे काम की अधिकता के कारण वे समय नहीं निकाल पा रहे थे। बेटी ने रात में अपने पापा से बताया कि कल अंतिम दिन है एडमिशन का, पापा थोड़ा उदास हुए, क्योंकि वे उसे समय नहीं दे पा रहे थे और कल ऑफिस के काम से दूसरी जगह जाना था

रात में यह तय हुआ कि बेटी के साथ मैं चली जाऊंगी बिटिया उदास हो गई क्योंकि मैं हिंदी मीडियम से पढ़ी लिखी हूं और मुझे अंग्रेजी अच्छी नहीं आती है जैसा कि तय हुआ था अपनी बेटी के साथ उसके कॉलेज एडमिशन कराने मैं अपनी बेटी के साथ चली गई। उसन अपना फॉर्म लियाऔर भरने लगे फॉर्म भरते हुए बेटी को याद आया कि उसे अपने मार्कशीट की झेरोक्स करवाने हैं अतमुझे एक जगह खड़ा होने को कहकर मेरी बेटी चली गई।

अचानक एक लड़की मेरे पास आई, और कहने लगी मैडम आप मेरे साथ आइये। मैंने सोचा कि शायद विजिटिंग रूम में ले जाएगी मैं उसके पीछे- पीछे गई वह मुझे एक कमरे में ले गई और पंखा चालू करके पूछा” पानी चाहिए मैंने हां में जवाब दिया वह स्वयं अपने हाथों से ठंडा पानी लेकर आई गर्मी बहुत थी और काफी समय से मैं खड़ी थी इसलिए बहुत सुकून महसूस कर रही थी,तब वह लड़की फिर मेरे पास आकर बोली आप सरिता




मैडम है मैंने  कहा हाँ पर? वह हंसते बोली आप कैसे पहचानेगी आज से कुछ साल पहले आप मुझे आठवीं कक्षा में हिंदी पढ़ाती थी और तब  उसने अपना नाम बताया कि वह आराध्या है इतने में बेटी का फोन आया वह पूछने लगी कि मैं कहाँ हूँ मुझे ढूंढ रही थी मैंने धीरे से बताया और जैसे ही पीछे मुड़कर देखा तो बेटी खड़ी है मैंनें  एक दूसरे का परिचय कराया तब उसने बताया कि वह इसी  कॉलेज में 2 साल से पढ़ा रही है उसने एडमिशन में हमारी काफी मदद की ।

कॉलेज के एडमिशन फॉर्म को भर कर सबमिट करने में भी उसने मेरी बहुत मदद की उसके पश्चात हम कॉलेज से निकलकर बस में जा रहे थे जैसे ही बस में बैठे तो मेरी बेटी अपना फोन लेकर बैठ गई और मैं पुरानी यादों में चली गई मुझे याद आया जब मैं एक अंग्रेजी प्राइवेट स्कूल में हिंदी पढ़ाती थी तब उस स्कूल  के बहुत से छात्रों कि यह धारणा थी कि हिंदी क्या पढ़ना,  दसवीं के बाद इसकी कोई जरूरत ही नहीं है और इसमें सिर्फ पास हो जाए तो ठीक है इसलिए पढ़ाते समय भी ठीक से ध्यान भी नहीं देते थे। छात्रों में से कुछ थे जो मन लगाकर सभी विषय को पढ़ा करते थे ।न पढने वालो में से एक आराध्या भी थी  हमेशा इधर-उधर देखना बातें  करना ।एक बार मैनें उसे अकेले में बुलाकर समझाया, तब से मैनें उसमें काफी परिवर्तन देखा 

और  वह परिवर्तन रूपी परिणाम मेरे सामने था।

घर पहुँचने के बाद मैं अपने कामों मे लग गई ,देर रात को जब बेटी के पापा आए तो बेटी ने सारी बात  अपने पापा को बताई कि किस तरह माँ कि छात्रा ने उनकी मदद की।तब मुझे अपने आप पर निर्भर होने पर और थोड़ा गर्व हुआ। 

#पछतावा 

श्यामला संभारा

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