बात सस्कांरों की – विमला गुगलानी : Moral Stories in Hindi

 रीवा और शुभम पिछले दो साल से प्यार की पीगों पर झूल रहे थे, लेकिन मुकाम तक पहुंचन बाकी था। मुकाम यानि कि शादी, शुभम की तरफ से तो कोई अड़चन नहीं थी और रीवा भी अपने  परिवार की और से निशचिंत थी कि उसके मां बाप भी अपनी बेटी की पंसद पर कोई एतराज नहीं करेगें,

क्योंकि शुभम को नकारने की कोई वजह ही नहीं थी। खूब पढ़ा लिखा, सुदंर कद काठी, खाता पीता घर और जात बिरादरी भी एक ही थी। अच्छी मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी, कई बार कंपनी की तरफ से ही विदेश यात्रा कर चुका था। परतुं रीवा अभी सही से फैसला नहीं कर पा रही थी कि शुभम से शादी करे या ना। कारण था शुभम का गांव में घर और सयुंक्त परिवार। शुभम के दो बड़े ब्याहता भाई और उसकी छोटी बिनब्याही बहन। दोनों भाईयों के तीन बच्चे, सब इकटठे ही रहते थे।

     यहां तक भी होता तो रीवा कुछ सोचती, शुभम के चाचा का परिवार भी साथ ही था, उन्के बेटे बेटी की शादी हो चुकी थी। वह उन्का पुशतैनी गांव था। अच्छी जिमींदारी थी। एक आढ़त की दुकान भी थी। शुभम को छोड़कर सबका काम वहीं पर था। आजकल गांव कहां गांव रह गए हैं। खूब बड़ा हवेलीनुमा घर और हर सुख सुविधा। 

      शहर में पली बड़ी रीवा को तो गांव के नाम से ही डर लगता था, बहुत चिढ़ती थी। बचपन में कभी एक बार परिवार के साथ किसी शादी में गई थी।वहां की कच्ची गलियां, गोबर के ढ़ेर, यहां वहां घूमते जानवर और बिजली पानी की भी तंगी, और शादी के रीति रिवाज भी उसे बड़े अजीब से लगे।

उसके मन में गांव की छवि अच्छी नहीं थी। परंतु अब शुभम से प्यार के बाद वो दोराहे पर खड़ी थी। शुभम ने रीवा को अपने परिवार के बारे में स्पष्ट रूप से बता दिया था। साथ में रीवा की मानसिक स्थिति को देखते हुए ये भी समझाया कि उसके परिवार के लोग बहुत ही अच्छे, मिलनसार और खुले विचारों वाले हैं। और आजकल हर जगह सब मिलता है। और वैसे भी उन्हें तो शहर में ही रहना है, लेकिन त्यौहारों पर या पारिवारिक समारोहों में तो जाना पड़ेगा और कुछ रीति रिवाजों, पहनावे इत्यादि का ध्यान भी रखना होगा। 

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          दिल के हाथों मजबूर रीवा शुभम को किसी भी हालत में खोना नहीं चाहती थी। शुभम की इच्छा का ध्यान रखते हुए शादी शहर में ही आयोजित की गई। बहुत से अपने रीति रिवाज तो वो गांव पर ही कर आए थे। शहर में तो दो दिन के लिए होटल बुक कर लिया गया था। सब हंसी खुशी निपट गया।

दो दिन गांव में रहकर वो हनीमून के लिए मसूरी चले गए और वहां से सीधे अपने शहर आ गए। शुभम का अपना फ्लैट था, जो कि उसे पापा ने पहले ही खरीद कर दे दिया था। शुभम की ममी एक हफ्ते के लिए आई थी , सब सैट करवा कर वापिस चली गई। शुभम की ममी ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थी परतुं बहुत ही समझदार और सुलझी हुई औरत थी। परिवार को जोड़कर रखना उसे खूब आता था। रीवा एकदम मार्डन , नए जमाने की लड़की थी। वो ‘वर्क फराम होम’ करती थी। हफ्ते में एक दो बार आफिस जाती थी। चार कमरे का फलैट था। सास कौशल्या से उसने कम ही बात की थी। 

    बच्चों की खुशी में ही मां बाप की खुशी होती है। कौशल्या को विशवास था कि धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा। दीवाली पर मजबूरी से वो गांव गई। सब बढ़िया था। उपरली मजिंल पर उन्का अलग कमरा, लेकिन घर में सारा दिन चहल पहल उसे अच्छी न लगती। उसकी जेठानियां , सास, चचिया सास,  उसकी बहू सब किसी न किसी काम में लगे रहते। दीवाली के लिए मिठाईयां , पकवान भी घर पर बन रहे थे। गाय , भैसें का बाड़ा घर से कुछ दूरी पर था। दूध, दही, मक्खन की कमी न थी। खेतों से आई सब्जियों  के इलावा आम , गन्ने, बेर और भी न जाने क्या क्या आता रहता। 

          काम के महरी और एक नौकर हमेशा रहता, परतुं बड़ा परिवार होते सामान तो इधर उधर बिखरता ही है। सफाई पंसद रीवा को ये सब कहां पंसद था। त्यौहार मना कर हो गई वापसी। पिछले तीन सालों में वो दो बार ही गई। इसी बीच उसके भाई की भी शादी हो गई। शुभम को एक महीने के लिए कंपनी के काम से अमेरिका जाना पड़ा। अभी दो दिन ही बीते थे कि रीवा का बाथरूम में पैर फिसला और उसे बुरी तरह चोट आई। वो तो कामवाली उस समय घर पर थी, ममी पापा को खबर कर दी। पांव में फ्रैकचर हो गया था। गांव में जब पता चला तो चार लोग दौड़े चले आए और उसे डाक्टर की इज्जात से गांव ही ले गए। उसकी ममी ने भी ज्यादा नहीं रोका क्यूंकि उसकी बहू का प्रसव नजदीक था।

     रीवा का बिल्कुल मन नहीं था गांव जाने का परतुं मजबूरी थी। वहां उसे नीचे ही कमरा दे दिया गया। उसकी सेवा में सबने दिन रात एक कर दिया। वो छोटी ननद जिसने शादी के बाद पेटी खुलाई की रस्म में उसकी मनपंसद साड़ी ले ली थी, तब उसे बहुत गुस्सा आया था, वो ही उसकी पक्की सखी बन गई। पहले जब वो जाती तो उसे किसी से मिलना जुलना पंसद नहीं था, अब कोई न मिलने आता तो उसका मन ही न लगता, और घर के बने पकवानों और दूध वगैरह का ऐसा चस्का लगा कि उसे चिंता हो आई कि शहर जाकर फिर से पैकेट का दूध पीना पड़ेगा। दिन में जेठ की बेटी नीति को भी वो पढ़ाती रहती जो कि गांव के सरकारी स्कूल में सातवीं में पढ़ती थी। पलास्टर खुलने का दिन भी आ गया और शुभम भी लौट आया।अब वो समझ गई थी कि सस्कांर होने चाहिए, गांव हो या शहर। रीवा वापिस जा रही थी लेकिन शुभम के ममी पापा तो कुछ दिन के लिए लेकिन नीति तो साथ शहर में पढ़ने जा रही थी। जिद करके रीवा उसे साथ ले गई ताकि उच्च शिक्षा प्राप्त कर सके। सयुक्तं परिवार का फायदा वो समझ चुकी थी।

विमला गुगलानी

चंडीगढ़

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