अवरोध – संजय मृदुल

ये क्या है मम्मी। कुछ भी पोस्ट कर देती हो फेसबुक पर। कोई शर्म लिहाज है या नही, शादी के इतने साल बाद अब किसीकी कमी फील हो रही है। आप न बन्द करो अपना अकॉउंट। जब देखो कुछ न कुछ ऊलजुलूल पोस्ट करती रहती हो। मेरे फ्रेंड्स जानने वाले क्या सोचते होंगे।

बेटा फोन पर गुस्से में सब बोले जा रहा था और मैं चुपचाप सुन रही थी। और भी जाने क्या क्या बड़बड़ाए जा रहा था मगर मेरे कानों में कोई आवाज नही जा रही थी। आंख भर गई थी, मन रुंआसा और लगा फूटकर रो लूं। मैंने कॉल काटा और चुपचाप बैठ गयी।

क्यों ऐसा होता है कि औरत की हर बात जो लीक से हटकर हो गलत समझी जाती है। क्यों उसकी इक्छा उसकी रुचि को सब नजरअंदाज कर देते हैं। क्यों कोई लड़की वो सब नही कर सकती जिसकी वो इक्छा रखती है। बस वही करना है जो जमाने के हिसाब से सही हो, जिस पर उंगली न उठे किसी की। बचपन मे माँ बाप के हिसाब से जीना शादी हो गयी तो फिर पति के अनुसार, और फिर बच्चे बड़े हो जाएं तो उनकी मर्जी से। हम अपनी मर्ज़ी से कब जी पाते हैं। कोई पल कोई लम्हा कोई दिन ऐसा होता है क्या हमारा अपना। बस सबके लिए जीना। 




मैंने अपनी माँ को देखा फिर सास को देखा ऐसे ही जीते। सारा जीवन बस सबकी खुशी के लिए खटती हुई। कब सुबह हुई कब रात उन्हें पता ही नही चलता था। फिर मैं भी कब इसी कड़ी का हिस्सा बन गयी पता ही न चला। विरासत में मिलता है ये सब औरतों को शायद। वो महिलाएं और होती होंगी जो अपनी मर्जी से चलती हैं अपनी पसन्द का पहनती हैं, अपनी पसन्द की जगह घूमती हैं। अपनी पसन्द से जीती हैं। वो निश्चित ही और दुनिया की होती हैं। हम जैसी महिलाएं तो अमूमन हर घर मे होती हैं। जिन्हें चाय भी पीनी हो तो इंतज़ार करती है कोई और पिये तो साथ मे अपने लिए बना लें, कभी पति कभी सास ससुर कभी बच्चे। जो अपनी मर्जी से चाय भी न पी सकें वो क्या आसमान छुएंगी। कभी कभी नारी मुक्ति जैसे संगठनों पर बहुत गुस्सा आता है, बाहर जो नारी मुक्ति का झंडा उठाये फिरती है कभी उनके घर का हाल पूछिये। आजादी के फेर में क्या क्या खो चुका होता है वो नही बताएंगी कभी। मैं भी क्या क्या सोचने लगी।

कहाँ एक पोस्ट की बात थी। थोड़ा लिखने का शौक है शुरू से तो यूँ ही डायरी पे उतार लेना पसंद है। जब से सोशल मीडिया से जुड़ी हूं यूँ ही कभी कभी वहां किसी अच्छी तस्वीर के साथ लिख देती हूं। बस सुकून के लिए। ये कोई क्यों नही समझता,क्या हर लिखे का कोई अतीत होता है, कोई पर्सनल रिश्ता होता है। फिर हर कवि लेखक अपना अनुभव ही लिखते होंगे। इश्क मोहब्बत टूटन जैसे।




बेवकूफ बच्चे। जरूरी है क्या जो लिखा है वो किसी अतीत से जुड़ा हो। बस भावना भी तो हो सकती है। इतना समझना चाहिए। थोड़ी देर में माथा ठंडा हो गया, मन शांत हुआ तो सोचा चलो डिलीट करूँ पोस्ट। बेवजह बात का बतंगड़ बनता जाएगा घर मे। फिर यह भी कह रहा है दिल की क्यों डिलीट करूँ। क्या मेरी भावनाओं का कोई मोल नहीं? क्या मेरी रुचियों की कीमत नहीं?

#विरोध 

संजय मृदुल

रायपुर

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!