फूल मुसकराए – देवेंद्र कुमार Moral Stories in Hindi

वे दोनों फूलों के पौधे बेचते थे। एक का नाम था रामू और दूसरा था फूलसिंह। दोनों ठेलों में रखकर मोहल्ले में चक्कर लगाते थे। कभी-कभी तो वे साथ-साथ बस्ती में आ पहुँचते थे। तब दोनों में कहासुनी होने लगती थी। कहासुनी होने का कारण था-दोनों के पौधों की बिक्री का कम-ज्यादा होना। वैसे फूलसिंह … Read more

बाबा का स्कूल – देवेंद्र कुमार Moral Stories in Hindi

निशि अपनी प्रिय पुस्तक पढ़ रही थी,तभी एक चीख सुनाई दी।वह भाग कर दूसरे कमरे में गई तो देखा-काम वाली प्रीतो फर्श से उठने की कोशिश कर रही है और आस पास किताबें बिखरी हुई हैं। निशि ने सहारा देकर उठाया और पूछा-‘ क्या हुआ,कैसे गिर गई। चोट तो नहीं लगी?’ प्रीतो ने जो कुछ … Read more

भाई– बहन – देवेंद्र कुमार Moral Stories in Hindi

आखिर क्या हुआ था रचना को? बाज़ार में इस बारे में कई लोगों ने पूछा पर रामदास ने हाथ हिला दिया और ठेले को तेजी से धकेलता हुआ आगे चला गया। ठेले पर उसकी बेटी रचना बैठी थी। उसके माथे से खून निकल रहा था। रामदास बेटी को जल्दी से जल्दी डाक्टर के पास पहुँचाना … Read more

मिट्टी में क्या – देवेंद्र कुमार Moral Stories in Hindi

जीतू कबाड़ी ठेले पर कबाड़ ले जा रहा था। टूटे हुए गमले, पुराना फर्नीचर और वैसा ही दूसरा सामान। तभी एक ठेला पास आकर रुक गया। ठेले पर पौधे और गमले रखे थे। ठेले वाले का नाम शीतल था। उसने जीतू से कहा-‘ मुझे टूटे गमले दोगे?’ जीतू ने हैरान स्वर में कहा—‘ ऐसा आदमी … Read more

मेरी बन्नो – देवेंद्र कुमार Moral Stories in Hindi

उसका नाम था रामदास, लेकिन अब लोग उसे सिर्फ ‘एक बूढ़ा आदमी’, ‘बुढ्ढा’ जैसे नामों से पुकारते थे। वह दुनिया में अकेला था। एक दुर्घटना में पत्नी और बच्चों की मृत्यु हो गई थी। उनके दुख में पागल की तरह इधर-उधर घूमता रहता था। धीरे-धीरे उसके घर का सामान गायब होने लगा। फिर एक दिन … Read more

निमंत्रण – देवेंद्र कुमार Moral Stories in Hindi

उस शाम राजेश दफ्तर से आए तो बहुत खुश थे| उन्होंने अनुज से कहा, “हम लोग तुम्हें एक सरप्राइज देने की सोच रहे हैं।” फिर अनुज की मम्मी जया को कमरे बुलाया और धीरे धीरे कुछ कहने लगे। अनुज ने देखा पापा मम्मी को एक कागज दिखा रहे हैं। फिर मम्मी की हँसी सुनाई दी। … Read more

मीठी मास्टरनी -मेरा बचपन – देवेंद्र कुमार Moral Stories in Hindi

उम्र के इस पड़ाव पर खड़े होकर देखता हूँ -कितना कुछ पीछे चला गया है,लेकिन बचपन की स्मृतियाँ अभी तक मुझसे चिपकी हुई हैं या यह कहूं कि ऐसा कोई दिन नहीं होता जब मन भाग कर बचपन की गलियों में न पहुँच जाता हो। कैसे थे वे खट्टे मीठे अबोध दिन! समृतियों का कोलाज … Read more

कितनी गहरी नींव – देवेंद्र कुमार Moral Stories in Hindi

बड़े बाजार में एक शानदार हवेली बनाने की तैयारियाँ हो रही थीं। खबर थी यहाँ एक सेठ जी संगमरमर का सतखण्डा महल बनवाएँगे। लाखों रुपये खर्च होंगे। पूरा होने पर उस जैसी शानदार हवेली शहर में दूसरी कोई नहीं होगी। पूरे शहर में इस बात की चर्चा होने लगी। मुहूर्त निकला, भूमि पूजा हुई और … Read more

नया महल – देवेंद्र कुमार Moral Stories in Hindi

मौसम सुहावना था। राजा महल के उद्यान में मंत्री से बातें कर रहे थे। नगर से दूर, हरी-भरी घाटी में नया महल बनवाने की योजना थी। उसी बारे में विचार हो रहा था। एकाएक राजा ने कहा, “मन करता है आज उस स्थान को देखा जाए।‘’ तुरंत रथ तैयार करने का आदेश दिया गया। आगे-आगे … Read more

सुनो बाबा – देवेंद्र कुमार Moral Stories in Hindi

चिडि़यों की टोली उतरती है दोपहर में दो बजे। स्कूल बस ग्लोरी अपार्टमेंट्स के सामने रुकती है। सबसे पहले रजत की आवाज गूंजती है, ‘‘दादी, हम आ गए।’’ हम यानी ग्लोरी अपार्टमेंट्स के फ्लैटों में रहने वाले बच्चे भले ही अलग-अलग हैं, पर दादी सबकी एक हैं। उन्होंने ही बच्चों को नाम दिया है-चिडि़यों की … Read more

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