और उसूल बदल गए – विमला गुगलानी : Moral Stories in Hindi

सुबह से तीन बार माँ का फ़ोन आ चुका था, लेकिन राशि बात नहीं कर सकी। जाहिर है, सुबह सुबह काम ही इतने

होते है कि किसी से बात करनी तो क्या ढ़ग से बैठ कर एक कप चाय पीने की भी फ़ुरसत नहीं होती। पराग को

आफिस और शान को स्कूल भेजकर ही वो चैन से सांस लेती है, तब तक काम वाली बाई भी आ जाती है। तब वो दो

कप चाय बनाती है, एक उसे देती है और दूसरा स्वंय लेकर बाहर बालकनी में पौधों के पास बैठकर इत्मिनान से चाय

पीती है, और अखबार पढती है।और आज ये माँ को क्या हो गया, उसे पता है, राशि की दिनचर्या का। उनका फ़ोन

हमेशा ग्यारह बारह बजे के बाद ही आता है या जब वो करती है तो इसी समय करती है, तब माँ बेटी बैठ कर

इत्मिनान से बातें करती है। वैसे भी जब तक जरूरी न हो दोनों की बात दस बारह दिन में एक बार ही होती है।राशि

को हर समय फ़ोन से चिपकना पंसद नहीं और फिर उसे आन लाईन काम भी करना होता है।

अभी परसों ही मां से काफी देर बात हुई थी इसलिए आज माँ की तीन मिस्ड काल देखकर राशि को

थोड़ी चिंता भी हो रही थी। सब ठीक ठाक हो। वैसे चितां की बात तो क्या होगी, अगर ऐसा होता तो मां उसे मैसेज

डाल देती। फरी हो कर उसने माँ को फ़ोन लगाया तो झट से उनकी चहकती सी आवाज़ आई, क्या बिट्टो , तुझे

कब से फ़ोन लगा रही हूँ । वो माँ आपको तो पता है, सुबह सुबह कितना काम—-। चल छोड़ , माँ ने उसकी बात को

बीच में ही काटते हुए अपनी बात शुरु की। दरअसल तुझे एक ख़ुशख़बरी देनी थी, मुझसे रहा नहीं जा रहा था। मीनू

की शादी की बात पक्की हो गई है, जल्द ही 'रोके" की रस्म करनी है, इसी इतवार को शुभ मुहूर्त है। तूं अभी से

तैयारी शुरू कर दे और हाँ शनिवार को ही पराग और शान के साथ पहुँच जाना। बहुत से काम तो तुझे ही करने है।

मीनू मेरी छोटी बहन है। उसकी शादी की बात दो तीन जगह चल रही थी, लेकिन अभी तक कुछ फाईनल नहीं हुआ

था। फिर परसों तो माँ ने कुछ बताया नहीं था।

चलो , बहुत खुशी हुई, उसे कोई तो पंसद आया, कबसे तलाश चल रही थी , लेकिन मैडम हाँ

भी तो करे, दो तीन रिशते तो पराग की जानकारी में भी थे ,लेकिन उसे तो न जाने कौनसे सपनों के राजकुमार की

तलाश थी। मगर अब रिशता हुआ कहाँ , उस नकचढ़ी का, कानपुर, लखनऊ या फिर देहली में ही रहना है उसे अरे

नहीं, हम सब तो फालतू में ही भटक रहे थे, दूल्हा तो घर में ही था। याद है वो तेरी आगरा वाली मौसी , वो मेरी

चचेरी बहन, उसका बेटा सनम , अभी पिछले साल ही अमेरिका से आया है। किसी बहुत बड़ी कम्पनी में नौकरी करता

है। आजकल दिल्ली में ही है, अकसर घर में आता जाता था, बस हो गई प्रेम कहानी शुरू। हमें तो पता भी नहीं चला,

ऐसे ही यहाँ वहाँ ढूँढकर समय बरबाद किया। माँ ऐसे बोल रही थी जैसे वो मीनू की माँ न होकर कोई ख़ास मुंहलगी

सहेली हो। सनम और उसके परिवार की प्रशसां में माँ ने न जाने कितने क़सीदे गढ़ दिए, लेकिन राशी से तो खड़ा भी

नहीं हुआ जा रहा था, मुशकिल से कुर्सी तक पहुँची, मुँह से इतना ही निकला, लेकिन माँ देखा जाए तो वो हमारा भाई

हुआ, मौसी का बेटा। " अरी छोड़ ना, तूं भी किन चक्करों में पड़ गई, आजकल कौन मानता है , इन बातों को। देखे

परखे लोग है, राज करेगी तेरी बहन।" माँ तो अपनी ही रौ में न जाने क्या क्या बोले जा रही थी, काम का बहाना

करके राशी ने फ़ोन काट दिया, और धम्म से बिस्तर पर गिर गई। आँसू थे कि रूकने का नाम ही नहीं ले रहे थे।

मीनू की शादी के सपने तो उसने भी सँजोए थे, आख़िर बहन है उसकी और दोनों बहनों में

प्यार भी बहुत है। आंसूओं का कारण मीनू नहीं बल्कि माँ थी। जमाना इतना भी नहीं बदला कि छ: सात सालों में ही

इतने उसूल बदल जाएँ। कितना चाहती थी वो निखिल को। किसी भी तरह से वो राशी से कम नहीं था। सारे नज़ारे

उसकी आखों के सामने किसी फ़िल्म की तरह आ जा रहे थे। सब कुछ उसकी आसूं भरी आखों में गडमड हो रहा था।

कामवाली बाई भी काम करके जा चुकी थी। जाते वक़्त वो उसको बोल कर गई होगी, लेकिन अपने ही ख़यालों में खोई

उसने ही नहीं सुना होगा। उठ कर उसने दरवाज़ा बंद किया। उसके आन लाईन काम करने का समय भी हो गया था,

लेकिन उसकी हालात काम करने वाली नहीं थी तो उसने मैसेज डाल दिया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो बहन

की खुशी का जश्न मनाएँ या अपने सपने बिखरने का मातम।

पढाई में ज़हीन राशि हर क्लास में प्रथम ही रहती। कालिज मे उसकी मुलाक़ात निखिल से

हुई। निखिल माँ की दूर की रिशतेदारी में था, उनके गाँव से था। रिशतेदारी भी दूर की और आनाजाना भी नहीं था। वो

तो जब निखिल का दाख़िला उसके शहर में हो गया तो आनाजाना भी शुरू हो गया। इत्तिफ़ाक़ से दोनों का कालिज भी

एक था। पढाई में दोनों अव्वल । क्लासें अलग अलग थी, लेकिन आते जाते कैंटीन में कभी लाईब्रेरी में दोनों में हैलो

हाय होती रहती थी। प्यार मुहब्बत जैसी चीज का राशि की जिंदगी में कोई स्थान नहीं था। उसका तो सारा ध्यान

पढाई में ही रहता । दूसरा घर का माहौल भी ज्यादा खुला नहीं था। एक आम मध्यमवर्गीय परिवार , दो बहनें और

एक छोटा भाई।पिताजी की अच्छी सरकारी नौकरी थी। बढ़िया गुजारा चल रहा था। चूँकि निखिल जानकारी में था तो

कभी कभार उनके घर भी आ जाया करता।वैसे तो वही गाँव चला जाता था लेकिन दो तीन बार उसके माँ बाप भी

शहर में आए तो एक दिन के लिए रूक गए। वो तो होटल में ही रूकने वाले थे लेकिन राशि की माँ ने उनहें घर पर

ही ठहराया। पुराने रिशतों में नज़दीकियाँ बढ़ी तो सभी को अच्छा लगा। निखिल के घर वाले सम्पन्न लोग थे, अपनी

खेतीबाड़ी थी, लेकिन परिवार वाले ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे। गाँव में बारहवीं तक का ही स्कूल था सो उसकी दोनों

बहने और भाई उतना ही पढ़े। किसी ने ज्यादा पढाई में रूचि ही नहीं दिखाई।बड़ा भाई तो पिताजी के साथ ही खेती के

कामों में लग गया और बहनों की अच्छे परिवारों में शादियाँ हो गई ।

निखिल को बचपन से ही पढ़ने का शौक़ था , सबसे छोटा , घर भर का लाड़ला पहले तो पास वाले

क़सबे में ही कालिज जाता रह, लेकिन फिर उसकी एडमिशन एम़ बी ऐ के लिए देहली में हो गई। इस तरह राशि के

परिवार से मिलना हुआ। निखिल के पिता तीन चार पीढ़िया दूर के रिशते में राशि की माँ के शायद मौसेरे भाई थे। पर

इत्तफ़ाक़ से दोनों का गोत्र  एक था।इतनी दूर के रिशतों को तो आजकल लोग पहचानते भी नहीं, लेकिन अपने गाँव

के लोगों से कई बार अपनापन होता है तो दोस्ती भी हो जाती हूँ। निखिल वैसे तो उनके घर नहीं आता था लेकिन जब

भी गाँव से आता तो माँ गाँव से कई चीजे राशि के घर के लिए भी बाँध देती। और तो और घर की भैंसों का ताज़ा

दूध भी दे देती। कार से तीन घंटे का रास्ता , निखिल सीधा राशी के घर पर ही आता , सामान दे कर ही होस्टल

जाता। एक दो बार माँ ने ज़बरदस्ती चाय के लिए रोक लिया तो रूकना ही पड़ा। जाते वक़्त माँ ने राशि को भी साथ

ही कालिज जाने को बोल दिया, वैसे तो वो बड़े आराम से मैट्रो से जाती थी। रास्ते में दोनों ने पढाई लिखाई की ही दो

चार बातें की। वैसे भी राशि आजकल की लड़कियों की तरह नहीं थी। न ही बहुत फ़ैशन वाले उटपटांग कपड़े पहनना

और न ही देर रात पार्टियों में जाना। लेकिन सुंदर बहुत थी, लबां कद, काले घने बाल, सुबह की लालिमा जैसा रंग,

बड़ी बड़ी बोलती सी आँखे, सुतवां नाक और गुलाब की पंखुड़ियों से नरम पतले होंठ।

दिल्ली जैसे शहर में रहकर भी वो ज्यादातर सूट ही पहनती। आजकल जबकि लड़कियां तो छोड़ो बडी उमर

की औरतों ने भी दुपट्टों से दूरी बना ली है, राशि जरूर चुन्नी लेती। उसके पास हर तरह के सुंदर सुंदर दुपट्टे थे, जो

कि उसके रूप की शोभा को दुगना कर देते थे। कभी कभार जीन्स भी पहन लेती। आधुनिक कपड़े भी थे उसके पास ,

मगर शालीनता के घेरे में। बदन दिखाऊ कपड़ो से उसे सख़्त नफ़रत थी। दूसरी तरफ निखिल भी गाँव में पला बड़ा

शरमीले स्वभाव का युवक था । गाँव के बाद वो क़सबे में भी पढा, लेकिन सड़क छाप मजनूँओं जैसी ओछा हरकतों से

कोसों दूर। सब कुछ जानते हुए भी वो अनजान बना रहता। मित्र मंडली में हर प्रकार के लोग शामिल थे, उसे ग़लत

हरकतों के लिए उकसाते भी थे, मगर वो उत्तर में सिर्फ मुस्करा भर देता। आख़िर संस्कार भी तो कोई चीज है। तभी

तो कहते है कि संस्कारी व्यक्ति कहीं भी हो, अपना इमां नहीं खोता, वरना तो इस जहाँ में क्या नहीं होता।

समय अपनी गति से चला जा रहा था। निखिल का पहला साल लगभग खत्म होने को था। कुछ समय

बाद परीक्षाएं थी लेकिन उससे पहले कालिज का ट्रिप राफ़्टिंग के लिए जाने वाला था। इसके इलावा घूमना फिरना मौज

मस्ती तथा और भी बहुत सी एक्टीविटिज होनी थी। आख़िर एक हफ़्ते का ट्रिप था। कालिज के लड़के लड़किया ख़ूब

खुश थे। वैसे तो आजकल लड़के लड़कियाँ खुले आम मिलते है, लेकिन बहुत से परिवारों में आज भी पांबदिया है।पहले

तो राशि की माँ ने भी थोड़ी आपत्ति जताई लेकिन और लड़कियां भी जा रही थी और फिर निखिल भी जा रहा था तो

वो आश्वस्त सी थी। राशि के मना करने पर भी उसने निखिल को फ़ोन पर राशि का ध्यान रखने की हिदायत दे ही

डाली। उसे ये नहीं पता था कि निखिल की जगह राशि को ही उसका ध्यान रखना पड़ेगा। हुआ यूँ कि दो दिन तो हँसी

खुशी गुज़र गए, तीसरे दिन राफ़्टिंग का प्रोग्राम था। सबको तो ये आती नहीं, कुछ को तो पानी से दूर से भी डर

लगता है। राशि भी उन्हीं में ही थी।उस दिन दो गरूप बन गए। राफ़्टिंग करने वाले एक तरफ चले गए जबकि बाकी

पास के ही किसी कैफ़े में बैठकर अंताक्षरी खेलने लग गए। बढ़िया समय और बिना किसी सामान के बिताना हो तो

इससे उतम कुछ भी नहीं। ज्यादातर लड़कियां इसी गरूप में थी, बहुत कम को राफ़्टिंग में रूचि थी, हाँ कुछ देखने

और चीयरस अप करने कि लिए भी गई हुई थी। अंताक्षरी का ख़ूब दौर चल रहा था कि किसी को फ़ोन आया कि वहाँ

कुछ अनहोनी हो गई है। किसी लड़के को बहुत गहरी चोट लगी है। सब भागकर वहाँ पहुँचे तो देखा कि निखिल बेसुध

पड़ा है और उसका एक पैर बुरी तरह ज़ख़्मी था। कालिज स्टाफ़ के लोगों ने डाक्टर को फ़ोन कर दिया था। फ़र्स्टएड

देकर उसे ठहरने वाले स्थान पर शिफ़्ट कर दिया गया। जब राशि को पता चला तो वो भी भागकर वहाँ पहुँची।

निखिल की हालत देखकर एकबारगी तो उसके भी होश उड़ गए।

तीनचार घंटे बाद निखिल को होश आ गया। डाक्टर ने कहा कि , घबराने की बात नहीं, लेकिन शहर जाकर चैक अप

करवाओ, यहाँ पर इतना इंतज़ाम नहीं है। हो सकता है प्लास्टर लगवाना पड़े । अब क्या किया जाए, उसके घर वालों

को फ़ोन करें, लेकिन दिल्ली ही वहाँ से पाँच घंटे की दूरी पर थी और उसका गाँव तो और भी तीन चार घंटे दूर।

सिरफ राशि की ख़ास दोस्त शिखा ही जानती थी कि निखिल का राशि के घर आना जाना है। कालिज के रजिस्टर

में तो लोकल गार्डियन के तौर पर राशि के घर का ही एड्रैस दिया हुआ था, लेकिन इस समय स्थिति और थी। राशि ने

बताया कि वो उसे जानती है। तुरंत ही टैक्सी बुला कर राशि , शिखा और निखिल दिल्ली के लिए रवाना हो गए। राशि

ने शिखा को मना किया कि वो चली जाएगी, लेकिन शिखा नहीं मानी। वैसे तो निखिल के एक दो दोस्त भी तैयार थे

जाने के लिए। राशि ने घर पर फ़ोन कर दिया था। उन्होनें निखिल के घर भी इतला कर दी थी। इंजेक्शन के कारण

निखिल पूरे रास्ते शिखा की गोद में सिर रखकर सोया रहा। जब तक वो घर पहुँची , निखिल का परिवार भी आ चुका

था।

तीन दिन हस्पताल रह कर उसे डिस्चार्ज मिल गया। लेकिन गाँव जाने की इजाज़त डाक्टर ने नहीं दी।

प्लास्टर लगा था, बीच बीच में चैक अप के लिए भी आना था। परीक्षाएँ भी आने वाली थी। होटल में रहने की सोची

लेकिन राशि के माता पिता ने अपने घर पर रहने का सुझाव दिया। पहले तो वो नहीं माने, इतना बोझ किसी पर

डालना और वो भी दिल्ली जैसे शहर में, लेकिन परिस्थितियों और निखिल की सेहत और पढाई का ध्यान रखते हुए

वो मान गए। चार बेडरूम का अच्छा घर था राशि का इसलिए कोई दिक़्क़त नहीं हुई। वैसे भी अगर दिल में जगह हो

तो सब मैनेज हो जाता है। एक केयर टेकर सुबह शाम आता था। बीच बीच में राशि का भाई भी मदद कर देता। छड़ी

के सहारे निखिल अपनी दिनचर्या कर लेता। कुछ दिनों बाद वो लैपटॉप पर और किताबों से पढाई भी करने लग गया।

कुछ मदद दोस्त आन लाईन कर देते और कुछ नोट्स वगैरह राशि के हाथों भिजवा देते।

निखिल के खाने इत्यादि का ज्यादातर ध्यान मां ही रखती थी या फिर दिन में मेड भी होती। उस

दिन माँ की तबियत ठीक नहीं थी, मेड भी नहीं आई। बाकी सब अपने अपने काम पर निकल गए। राशि घर पर रही।

वैसे उस दिन उसकी क्लासें भी कम थी। सुबह निखिल को चाय देने गई तो वो सो रहा था। घुंघराले बाल उसके चेहरे

पर अजब छटा बिखेर रहे थे। भोला सा चेहरा , मासूम बच्चे की तरह लग रहा था। राशि ने पहली बार निखिल को

इतने क़रीब से देखा। समझ नहीं आ रहा था कि उसे जगाए तो कैसे, या फिर चाय वापिस ले जाए। इसी सोच में थी

कि डोरबैल बजी, शायद मेड थी। घंटी की आवाज़ से निखिल भी उठ गया। राशि के हाथ में चाय देखकर वो भी

एकबार सकपका गया।बैड का सहारा लेकर जल्दी से उठने की कोशिश करने लगा, लेकिन उठ नहीं पाया। राशि ने

इशारे से उसे लेटे रहने के लिए कहा और दरवाज़ा खोलने चली गई। वापिस आई और सहारा देकर निखिल को उठाया।

शर्मिंदा सा होते हुए निखिल ने कहा," माफ करना , आज आँख ही नहीं खुली। लगता है दवाइयों का

नशा हो जाता है। कोई बात नहीं आप फ़्रेश हो जाईए, तब तक मैं और चाय बना कर लाती हूँ। थोड़ी देर में राशि दो

कप चाय बना कर लाई। तब तक निखिल फ़्रेश होकर कुर्सी पर बैठ गया था। दोनों ने मिलकर चाय पी और कुछ

कालिज की बातें की। चाय पकड़ाते समय राशि का हाथ निखिल के हाथ से कुछ इस तरह छुआ कि उसके सारे बदन

में झुरझुरी सी हो गई। परंतु उसने अपने आप को संयत करते हुए चेहरे पर आए भावों को छुपा लिया। निखिल का भी

राशि को इतने क़रीब से देखने का पहला अवसर था। इस प्रकार पजामा सूट और बिखरे से बालों में तो वो अप्रतिम

लग रही थी। कोई मेकअप नहीं, फिर भी चेहरा कैसे दमक रहा था। वैसे तो वो बहुत कम मेकअप करती थी, लेकिन

ऐसा नेचुरल रूप, कोई बनावटीपन नहीं। फ़िल्मी भाषा में कहा जाए तो दोनों के दिमाग की घंटियाँ बज गई।दिल के

तार झंकरित हो उठे। प्यार, इश्क़ , मुहब्बत जैसे शब्दों का मज़ाक़ उड़ाने वाली राशि आज ख़ुद इस गिरफ़्त में थी।

शिखा से उसकी कई बार बहस हो चुकी इस विषय पर। जब भी कहीं ख़बरों में ये पढती सुनती कि कोई लड़का लड़की

भाग गए या किसी ने सुआसाईड कर लिया या कोई ऐसी और बात तो वो जमकर मज़ाक़ उड़ाती।

उसने ये तो कभी नहीं कहा कि वो शादी नहीं करेगी, लेकिन उसके अनुसार प्यार तो शादी के बाद

हो ही जाता है। उसके परिवार में अरेंज मैरिज का ही रिवाज चला आ रहा था। लेकिन अब तो स्थिति बदल चुकी था।

प्यार की कोंपले दोनों और फूट चुकी थी। निखिल के पास न फटकने वाली राशि उसके कमरे में जाने का बहाना

ढूँढती, कभी नोट्स देने के बहाने तो कभी चाय पानी के बहाने। अगली बार जब डाक्टर को दिखाने गए तो राशि भी

साथ ही चली गई। प्यार का इज़हार किसी ने नहीं किया लेकिन कहते है न कि" इश्क़ और मुश्क छुपाए नहीं छुपता

राशि की माँ तो घर के कामों में ही उलझी रहती और बहन अपनी पढाई और अपनी दुनिया में। मगर पिताजी की

अनुभवी आखों से यह सब छुप न सका, मगर कभी उनहें यह वहम लगता और कभी सच। मगर वो चुप रहे, उनहें

भरोसा था अपनी परवरिश पर कि जो भी हो राशि कोई ग़लत कदम नहीं उठाएगी।

निखिल का प्लास्टर खुल गया। वो बिलकुल ठीक था। उसके माँ बाप ने कई बार हाथ जोड़ जोड़

कर राशि के परिवार का धन्यवाद किया। निखिल की माँ ने तो यहाँ तक भी कह दिया कि आज के जमाने में कोई

बहुत पास का सगा रिशतेदार भी इतना नहीं करता जितना उन्होने किया है। निखिल वापिस होस्टल चला गया।

फ़ाइनल एग्ज़ाम शुरू हो चुके थे। सब पढ़ने में व्यस्त मगर फ़ोन पर बातें चलती रहती। दोनों के कान जो सुनने के

लिए बेताब थे , वो पहल अभी तक किसी तरफ से नहीं हुई थी। वो दिन भी आ गया जब कालिज बंद हो गए और

निखिल को अपने गाँव जाना था। वो राशि के घर सबको मिलने आया। सभी घर पर थे। दोनों एक दूसरे को देखते

और पिताजी उन दोनों की निगाहों को पढ़ते। लब भले ही झूठ बोल दे मगर नज़रें कभी झूठ नहीं बोलती।कोई कुछ

नहीं बोला। हाँ, जाते जाते निखिल ने एक अंग्रेज़ी नावल जरूर राशि को लौटाया जो शायद बीमारी के वक़्त पढ़ते

पढ़ते वो साथ ले गया था। दिल की बात दिल में ही रह गई, ये तो वही हो गया, पहले आप, पहले आप

राशि को बहुत निराशा हुई। एग्ज़ाम के बाद भी वो दो दिन रहा। दोनों मिले भी , लेकिन निखिल

ने कुछ नहीं कहा। उसकी आँखो में कुछ तो था, लेकिन होंठ भी तो हिले। नारी सुलभ लज्जा के चलते राशि भी कुछ

न कह पाई। निखिल को गए एक हफ़्ता हो गया था। फ़ोन भी आता, लेकिन बात हालचाल पूछने पर ही खत्म हो

जाती। राशि को लगता कि वो कुछ कहना चाहता है, मगर कुछ कहे भी तो। एक रात खाने के बाद जब वो लेटी तो

उसे बिलकुल नींद नहीं आ रही थी। उसने कुछ पढ़ने को लिए वही नावल उठाया और खोला, तभी कोई काग़ज़ सा नीचे

गिरा। झुककर उठाया तो एक सफेद लिफ़ाफा, शायद उसके अंदर कोई काग़ज़ था। खोल कर देखा तो निखिल का पत्र।

बड़ी ही सादगी से उसने अपने प्यार का इज़हार किया हुआ था। शिखा का अंग अंग खिल उठा। जी कर रहा था कि

ज़ोर ज़ोर से नाचे, लेकिन रात का सन्नाटा, सब सो रहे, चारों और ख़ामोशी। पर उसे बहुत हँसी आ रही थी निखिल

पर। आज के युग में पत्र कौन लिखता है और वो भी प्रेम पत्र। बुद्धू कहीं का। पर कहीं न कहीं उसे उसका ये अंदाज

बहुत अच्छा लगा।

मन में आया कि मोबाईल उठा कर अभी हाँ बोल दे,मगर फिर रूक गई। सोचा चलो थोड़ा तड़पाते है। निखिल के

सुंदर सपने देखती न जाने वो कब नींद के आग़ोश में पहुँच गई। अगली सुबह उसे कुछ बदली बदली सी लग रही थी,

कई दिनों से चुपचाप रहने वाली राशि ख़ूब चहक रही थी। शाम को उसने शिखा से मिलने का प्रोग्राम बनाया। वही

उसकी एकमात्र अन्तरंग सखी थी। जब उसे पता चला तो वो भी बहुत खुश हुई। राशि के लाख मना करने पर भी

उसने निखिल को फ़ोन लगाया और शरारत से बोली क्या हाल है, मेरे होने वाले जीजूये सुनकर एक बार तो

निखिल हकला सा गया , उसके कंठ से आवाज़ ही न निकली। क्यों चौंक गए, हो गया न सरप्राइज़ , लो बात करो

अपनी उससे और मोबाईल राशि के कानों पर लगा दिया। हज़ारों बातें करने वाली राशि के मुँह से बड़ी मुशकिल से  हैलौ निकली, और दोनों ज़ोर से हंस पड़े । बाद में बात करते है, कह कर राशि ने मोबाईल बंद कर दिया।

बाकी दिन तो दोनों के मज़े से गुज़रे। फिर से कालिज शुरू हुए। निखिल का आख़री

साल था, और राशि की भी पोस्ट ग्रेजुएशन पूरी होने को थी। दोनों ने पढाई के साथ साथ सुखद भविष्य के सपने देखे।

एक साथ जीने मरने की क़समें खाई मगर किसी को भनक तक नहीं हुई। सिरफ शिखा ही उनके प्यार की एकमात्र

राज़दार थी। दोनों को घर वालों की और से तो लेशमात्र भी आशंका नहीं थी, लेकिन काश कि ऐसा हो पाता। पढाई

खत्म हो गई, इसी बीच कैंपस इंटरव्यू में निखिल की नौकरी भी लग चुकी थी। तय हुआ कि निखिल अपने घर पर

बात करेगा। उसने अपनी भाभी को शर्माते हुए बताया तो वह छेड़ते हुए बोली वाह लल्ला , तुम तो बड़े छुपे रूस्तम

निकले।बात बड़ो तक पहुँची , सब बड़े खुश। उसके पिता की खुशी का ता पारावार ही न रहा। पहले सोचा फोन करे,

फिर मन में आया कि ऐसी बातें आमने सामने ही अचछी लगती है। कुछ दिनों बाद पहले ही की तरह बहुत सा घर का

बना सामान लेकर दोनों दिल्ली गए। चाय पानी के बाद निखिल की माताजी ने सबके सामने ही रिशते का प्रस्ताव यह

कहते हुए रखा कि ,;आज तो हम आपसे निखिल के लिए राशि बिटिया का हाथ माँगने आए है

लेकिन हमारी तो रिशतेदारी है, ऐसा कैसे हो सकता है, मेरा और भाई साहब का गौत्र एक है, मेरा

गाँव भी वही है,इस नाते निखिल और राशि भाई बहन हुए;पहली बात तो ये कि मैं आपके भाई सामान जरूर हूँ,

लेकिन मैं आपका सगा भाई तो नहीं हूँ ,जमाना बदल गया है , लोग तो अपने ही गोत्र में रिशते कर लेते है, ननिहाल

वाले गोत्र को कौन मानता है। निखिल के पिता ने कहा। दो चार बातें करने के बाद वो चले गए। माहौल कुछ अजीब

सा हो गया था। राशि के पिता उनहें विदा करने गए तो कहा कि वो सोच कर बताऐगें । राशि के पिता को तो कोई

आपत्ति नहीं थी लेकिन उसकी माँ तो जैसे फट पड़ी। क्या क्या लांछन नहीं लगाए उस पर।पता नहीं उसे किस बात पर

चिढ़ थी , प्रेम विवाह करने पर,या रिशतेदारी पर । नया तो कुछ भी नहीं था। सदियों से प्रेम विवाह होते आए है।

माना कि इन दिनों दोनों परिवार बहुत नज़दीक आ गए लेकिन बच्चों पर ज़बरदस्ती का रिश्ता क्यूँ थोपा जाए। उनकी

मर्ज़ी मुताबिक नई शुरूआत भी तो की जा सकती है।

राशि के पिता ने उसकी माँ को समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वो टस से मस नहीं हुई।

मरने तक की धमकी दे डाली। राशि आजतक समझ नहीं पाई कि वो ग़लत कहाँ थी। आख़िर संस्कारों से बंधी राशि

पराग की दुल्हन बन कर ससुराल आ गई। सब ठीक था, लेकिन अंदर ही अंदर उसके टीस सी उठती। समय अपनी

गति से चल रहा था। दोनों परिवारों का प्यार तो वहीं खत्म हो गया। शिखा की निखिल से कभी कभी बात हो जाती

थी। उसी ने बताया कि निखिल की कंम्पनी ने उसे अमेरिका भेज दिया। अभी तक उसने शादी नहीं की। यही नियती

मान कर धीरे धीरे राशि अपनी गृहस्थी में रमने लगी थी।वह बहुत कम मायके जाती। पिताजी चाहते हुए भी कुछ

कर न पाए।

आज माँ के फ़ोन ने उसे बुरी तरह हिला दिया। इतन जल्दी उसूल बदल गए। जहां कोई रिशता नहीं था,

वहाँ नाक कटने की दुहाई दी और जहाँ सच में रिशतेदारी है वहाँ सब भुला दिया। और अब प्रेम विवाह भी मान्य हो

गया। राशि को शादी में तो जाना ही था, मगर कोई बहाना बना कर वो ' रोके' पर नहीं गई। शादी में भी बेमनी सी

घूम रही थी। शादी से पहले पराग ने कई बार कुछ नया ख़रीदने की सलाह दी, लेकिन उसने कुछ नहीं ख़रीदा। शादी

के अगले दिन ही शान की पढाई का बहाना करके वो वापिस आ गई। उसे यह देखकर बहुत दुख हुआ कि माँ के चेहरे

पर लेशमात्र भी पश्चात्ताप नहीं। कैसे भाग भाग कर मेहमानों का स्वागत कर रही है। वही फ़र्स्ट कज़न मौसी जिसे वो

अपनी सगी बहन समान समझती थी, आज समधन कह कह कर उसके आगे पीछे झूल रही है। और इस प्रेम विवाह

को इस तरह स्वीकार कर लिया जैसे कुछ हुआ ही न हो। पिताजी के सिवाय कोई उसके दर्द को नहीं समझ सका।

वापिस आते वक़्त जब वो पिताजी से मिलने गई तो उनकी आखों में दर्द और नमी थी। सिर पर हाथ रखते हुए इतना

ही बोले, मुझे माफ कर देना बिटिया, मैं तेरे लिए कुछ न कर सका, मीनू ने तो जिद् करके अपनी बात मनवा ली ,

काश कि तब तूं भी अड़ गई होती

गाड़ी में बैठते ही निखिल का मासूम चेहरा उसकी आखों के आगे आ गया। निखिल ने तो उसके सामने

कोर्ट मैरिज का भी प्रस्ताव रखा था, लेकिन वो नहीं मानी।माँ ने संस्कार और उसूलों की दुहाई जो दी थी। पराग तो

समझ रहा था कि राशि की आखों में बहन की शादी की खुशी गमी के मिलेजुले आसूं है , वो बेचारा क्या जाने कि ये

आसूं तो राशि अपनी माँ के उसूल बदलने पर या अपनी कायरता पर बहा रही थी?

विमला गुगलानी

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