असमंजस – कमलेश राणा

वीणा शुरू से ही बहुत नाजुक सी थी उसकी माँ कभी भी भारी भरकम काम उससे नहीं करवाती थी।शादी होकर ससुराल आई तो वहाँ भी जो भी मिलने आता यही कहता… कितनी प्यारी बहू लाये है आप… पतली पतली नाज़ुक सी।

समय के साथ वह तीन बच्चों की माँ बन गई फिर भी उसकी कमनीयता में कोई कमी नहीं आई।जब तीन बच्चों की माँ होते हुए भी लोग कहते…

अरे, शादी हो गई तुम्हारी??

सुनकर वह खुशी से फूली नहीं समाती।

समय की धारा ने उसके शरीर पर प्रभाव डालना शुरू कर दिया था जिम्मेदारियों के बीच खुद के बारे में सोचने का वक्त ही नहीं था उसके पास।सबको संभालते संभालते वह कब और कैसे बेडौल होती चली गई,जान ही न पाई।

वह सोच भी नहीं सकती थी कि बमुश्किल 50 किलो की वीणा कभी 75 किलो की भारी भरकम भी हो सकती है।

एक दिन किटी में जाने के लिए बन संवर कर खुद को आईने में निहार कर अपने रूप पर इठला रही थी। कभी इधर कभी उधर मुड़ मुड़ कर विभिन्न कोणों से परख रही थी खुद को ।बहुत दिनों बाद खुद को ही देखकर मोहित हो गई वह,दिल ने कहा… अभी भी बहुत प्यारी लगती हो और वह मुस्कुरा उठी।

तभी पतिदेव ने प्रवेश किया।

अनायास ही पूछ बैठी.. कैसी लग रही हूँ??

उन्होंने मुस्कुराते हुए बड़े ही फिल्मी अंदाज़ में कहा… रूप तेरा ऐसा दर्पण में न समाए और हँसते हुए तेजी से कमरे से बाहर निकल गये।

खुशी से झूम उठी वह आज पहली बार विनय ने इस अंदाज़ में उसकी तारीफ की थी पर विश्वास नहीं कर पा रही थी यह तारीफ ही थी या कुछ और… विनय की हँसी कुछ खटक रही थी।

शब्दों पर एक बार फिर ध्यान गया उसका और दिमाग में विनय की मुस्कान … ओह तो यह बात है रूप की तारीफ नहीं.. बढ़ते वज़न पर ताना दे गये थे जनाब

स्वरचित

कमलेश राणा

ग्वालियर

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