असलियत – लखविंद्र सिंह संधू

मैंने जैसे ही आफिस की पार्किंग में कार पारक की । हररोज की तरह मेरा सेवादार सामने मेरा बेैग पकड़ने के लिए खड़ा था । 

“सर आपसे कोई मिलने आया है” बैग पकड़ते ही उसने कहा ।

मैं जल्दी से अपने ऑफिस में पहुंचा तो सामने मेरा दोस्त गुरबक्श और उसकी बेटी रिम्पी खड़े थे । गुरबख्श मेरे डिपार्टमेंट में ही काम करता था। और उसकी बेटी रिम्पी स्कूल टीचर थी । रिम्पी की पोस्टिंग बहुत दूर वाले स्कूल में थी। अभी कुछ महीने पहले ही हमने भागदौड़ करके उसकी बदली पास के गांवों में करवा दी थी।

अब वो अपने स्कूटर पे हररोज स्कूल जाती थी । इस तरह सुबह सुबह उन दोनों का आना काफी हैरानी जनक था । मैंने उन्हें आने का कारण पूछा तो गुरबख्श ने बताया “तू तो जानता ही है के रिम्पी जिस स्कूल में जाती है वो यहां से थोड़ी दूर है। वे अपने स्कूटर पर रोज स्कूल जाती है ।उसके स्कूल का दो किलोमीटर रास्ता बिल्कुल सुना है ।

” मैंने कहा हाँ वो तो मुझे पता है “

“मगर हुआ कया”

गुरबक्श बोला “अब तक तो सब ठीक था ।मगर पिछले तीन चार दिनों से एक मुश्किल खड़ी हो गई”

“एक हमारी उम्र का आदमी इसके रास्ते में खड़ा होने लग गया। वै इसे कहता तो कुछ नहीं लेकिन खड़ा इसी के लिए होता है “।

“रिम्पी ने शीशे में पीछे देखा वह इसी को घूर रहा था । कल जब रिम्पी ने उसकी तरफ देखा तो उसने इसको स्माइल दी।

” ये तो बिल्कुल डर गई आज इसने स्कूल से छुट्टी की है ।और हम तेरे पास आ गए”



काफी गम्भीर मामला था मैंने रिम्पी को समझाया कि कल हम दोनों जब तेरे को छुट्टी होगी हम वही मिलेंगे। अगले दिन छुट्टी से 10 मिनट पहले ही हम उस सड़क पर पहुंच गए । दूर तक सड़क खाली थी दूर से हमें वो आदमी घूमता हुआ नजर आया। इतनी देर में रिम्पी का स्कूटर भी आता हमें दिखाई दिया। उसने दूर से स्कूटर की लाइट जगागर हमें इशारा कर दिया के यही आदमी है।

और वो हमारे पास से गुजर गई ।अब वह आदमी वापस गांव की ओर जा रहा था । मैंने कार तेज करके उसके साथ जाकर कार को रोक दिया और शीशा खोलकर उसे गांव के बारे में पूछा। उसने कहा “हां यही गांव है आपको किसके घर जाना”

मैंने कहा “हमने किसी के घर नहीं जाना हमने गांव के बिजलीघर जाना” मुझे बिजलीघर के बारे में पता था। इसीलिए मैंने बिजलीघर का नाम लिया। उसने हमें रास्ता समझाने की कोशिश की मैंने कहा अगर आप गांव की ओर जा रहे हों तो हमारे साथ कार में बैठ जाओ । और रास्ता बता देना वह थोड़ा हिचकचाया लेकिन फिर कार में बैठ गया। वह नौकरी पेशा आदमी लग रहा था ।

हमने बातों बातों में उसे यह बता दिया कि हम हर रोज बिजलीघर की चेकिंग करने के लिए आएंगे । जैसे ही हम गांव में पहुंचे उसने हमें रास्ता समझा दिया और वो कार से उतर गया। गुरबक्श लोहा लाखा हो गया 

“अरे हमने इसको कहा भी कुछ नहीं और तूने उल्टा उसको कार में बिठा लिया”

मैंने उसे समझाया लड़की का मामला है बड़े सोच समझकर काम करना पड़ेगा ।रिम्पी ने हर रोज यहां आना है पहले हम इसकी असलियत जाननी है । उसके बाद कोई एक्शन करेंगे। दूसरे दिन फिर यही हुआ वो हमारे साथ कार में बैठ गया । उसने हमें बताया कि वो आर्मी से रिटायर हो गया है ।मैंने पूछा “यहां आपके खेत हैं जो आप रोज़ धूप में यहां खड़े मिलते हों”

उसने कहा नहीं उसके पास अब कोई खेत नहीं है दो खेत थे उसने बेच दिए थे। मैंने उससे पूछा 

“फिर आप यहाँ धूप में क्या करते हो रोज”

इससे पहले कि वो कुछ बताता गांव आ गया और वो उतर गया।

आज फिर गुरबक्श का गुस्सा देखने वाला था ।

 “ऐसा हम कितने दिन करेंगे यार” गुरबख्श ने गुस्से से पूछा ।



मैंने समझाया सब्र से काम लो जल्दी ही हम किसी नतीजे पर पहुंच जाएंगे । तीसरे दिन वह हमारा इन्तजार ही कर रहा था । कार रुकते ही वो कार में बैठ गया और हम गाँव की ओर चल पड़े। इस बार उसने दूसरे रास्ते पर कार ले जाने को कहा । मैंने कहा “इस तरफ़ क्यों” वह कहता “चलिए तो सही”

हम उस तरफ चल पड़े थोड़ी दूर जाने के बाद एक दरवाजे के सामने आकर उसने कहा रोकिये रोकिए। मैंने कार रोक दी उतरते ही उसने कहा “यह मेरा घर है आप अंदर आओ ना प्लीज” हमने मना किया लेकिन उसने बहुत जिद की तो हमें कार से उतरकर उसके घर जाना पड़ा । जैसे ही हम उसके ड्राइंग रूम में पहुंचे तो सामने दीवार पर रिम्पी की फोटो देखकर हमारे पैरों के नीचे से जमीन निकल गई । लेकिन जब हमने ध्यान से देखा ये फ़ोटो रिम्पी की नहीं थी। स्पेस लगे होने के कारण उसकी शक्ल रिम्पी से थोड़ा मिलती थी। हम सोफे पे बैठ गए और वो हमारे लिए कुछ लेने चला गया।

थोड़ी देर में वो ठंडे लेकर आया हम उसी फोटो को देख रहे थे। उसने फ़ोटो दीवार से उतारी और अपनी गोदी में  रख कर बोला “सरदार साहब ये मेरी बेटी कुलवंत है ।बहुत पड़ना चाहता था मेरा बच्चा” उसका गला भर आया था। उसने अपनी बात जारी रखी “गांव के स्कूल से बारहवीं पास करने के बाद मेरी बेटी ने शहर के कॉलेज में दाखिला ले लिया ।और अपने स्कूटर से रोज कालेज जाने लगीं । मेरी पोस्टिंग असम में थी  ।

वहां आतंकवादियों के इलाके में हमारी ड्यूटी थी। मैं तीसरे दिन ही घर फोन कर सकता था। आप जिस रास्ते से आते हो मेरी बेटी स्कूटर से इसी रास्ते से कॉलेज जाती थी । ये रास्ता बहुत सुना है। एक दिन जब मेरी बेटी दोपहर को अपने स्कूटर पर वापस आ रही थी । तो दो कार सवार बदमाशों ने मेरी बेटी को कार में उठा लिया और उसे बर्बाद कर दिया ” वो रो रहा था। “फिर उन्होंने उसे बेहोशी की हालत में स्कूटर के पास फेंक दिया और भाग गए। पीछे से कोई गांव का आदमी आ रहा था उसने समझा के बेटी का एक्सीडेंट हो गया ।

वह उठाकर उसे हॉस्पिटल ले गया। जब बेटी को हॉस्पिटल में होश आई तो उसने अपनी मां को सारी कहानी बताई। उसकी मां ने कहा मुंह बंद रख गांव में बदनामी हो जाएगी । सभी यही समझते हैं कि  एक्सीडेंट हुआ है तू चुप रह । वह मेरे से बात करना चाहती थी मगर हमारी बात न हो सकी । उसने मेरे नाम खत लिखा। उसके साथ जो हुआ उसने खत में लिख दिया और खुद जहर की गोलियां खा लीं । में 4 दिन के बाद पहुंच सका तब तक उसका शव हॉस्पिटल में रखा गया था ।



मैंने अपने हाथों के साथ उसका क्रियाक्रम किया। उसको विदा करके मैं दो महीने के बाद यूनिट पहुंचा। जाते ही मुझे उसका खत मिला पढ़ कर शरीर में आग लग गई। मैंने रोते हुए वो खत अपने अफसर को दिखाया । उन्होंने मुझे तुरंत वापस भेजा और कहा कि पुलिस कार्रवाई करो। मैंने आते ही पुलिस में रिपोर्ट लिखाई पर अब बहुत देर हो चुकी थी। उन बदमाशों का कोई पता नहीं लग सका। पिछले साल में आर्मी से रिटायर हो गया।” वह अपनी बेटी की फोटो को साफ कर रहा था
और बुरी तरह रो रहा था। मैं और गुरबख्श भी भावुक हो गए। फिर वह कुछ संभला और बोला “सरदार साहब आप इत्तफाक  देखिये बिल्कुल मेरी कलवंत जैसी एक बेटी हमारे स्कूल में टीचर है। वह भी हर रोज अपने स्कूटर पर उसी सूने रास्ते से जाती है।”

मैं घर में फ्री होता हूं इसीलिए मैं उस सूने रास्ते पर चला जाता हूँ ।जब वो बेटी दूर निकल जाती है तो मैं वापस आ जाता हुं” । मैं और गुरबक्श एक दूसरे की तरफ़ देख रहे थे । उसकी असलियत जानने के बाद हम उसे सलूट करने पर मजबूर हो गए ।

लखविंद्र सिंह संधू

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