आशा की किरण – डा. मधु आंधीवाल

सीमा प्रतिदिन कालिज से आते जाते एक छोटे बच्चे की पीठ पर बहुत छोटी बच्ची को गले से बंधा देखती । बच्चा पीछे बच्ची का बोझ उठाता और आगे एक टोकरी में पान और पान लगाने का सामान रख कर पान बेचता । सीमा को अपना बचपन याद  आगया । मां पापा एक हादसे में उसे और उसकी छोटी सी बहन को छोड़ कर भगवान के पास चले गये । घर में एक बूढ़ी दादी थी । बेचारी कुछ घरों में काम करके दो समय की रोटी जुटा पाती थी । सीमा भी छोटी बहन को लेकर दादी के साथ काम पर जाने लगी ।

 काम के साथ वह पढा़ई भी करती रही और ट्यूशन भी पढ़ाती रही । धीरे धीरे करके वह बी.ए में आगयी दादी अब भी काम करती बस एक इच्छा थी कि सीमा कहीं नौकरी करले तो वह छोटी बहन को पढ़ा लेगी और वह काम करना छोड़ देंगी । आज उस बच्चे को देख कर वह रुक गयी और उसने पूछा छोटे भाई तुम टूटी चप्पल पहने हो पीठ पर अपनी बहन को लेकर पान बेचते हो ऐसी क्या मजबूरी है। उसने कहा दीदी मेरा नाम पिन्टू है मेरी मां बीमार है। मां कहती हम दोनों उसके पाप का नतीजा है। 

हमारे पिताजी कोई बहुत बड़े अमीर आदमी हैं मेरी मां बहुत सुंदर हैं। उस अमीर आदमी ने मां को शादी का वायदा किया था मां उसकी बातों में आगयी जब तक उसका मतलब निकला मां को रखा उसके बाद हम दोनों को पैदा करके वह चला गया । मां उसे ढूंढ कर उसके आलीशान बंगले पर गयी । वहाँ वह अपनी पत्नी के साथ था उसने मेरी मां मुझे और मेरी छोटी बहन को धक्के मार कर निकाल दिया । 

मां सदमे से अर्द्ध विक्षिप्त होगयी । मै और कोई काम नहीं कर सकता था पान वाले मामा मुझे सुबह यह पान का सामान देदेते हैं और शाम को अपने सामान के पैसे लेलेते और बाकी बचे पैसे मुझे देते हैं। सीमा उस छोटे बच्चे के स्वर की दृढ़ता देख कर दंग रह गयी पर उसकी आवाज का दर्द महसूस करती रही । वह बोली मेरे छोटे भाई कल से शाम को तुम मेरे पास आकर एक घन्टा पढ़ाई करोगे शायद मै इसी से तुम्हारी मदद कर सकूं । पिन्टू की आँखों में एक नयी आशा की किरण दिखाई दे रही थी ।

#सहारा 

स्व रचित

डा. मधु आंधीवाल

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