अपशगुनी – डॉ. पारुल अग्रवाल : moral stories in hindi

moral stories in hindi : सुमित्रा जी अपने छोटे बेटे के पास बैंगलोर आई हुई थी। आज उन्हें अपने बड़े बेटे अमन और उसकी पत्नी प्राची के साथ किए गए अपने बुरे बर्ताव पर आत्मग्लानि हो रही थी। आज उनका मन बार बार प्राची को अपशगुनी बोलने पर कचोट रहा था। असल में सुमित्रा जी बड़े बेटे अमन ने अपनी मर्ज़ी से प्राची से शादी की थी।

सुमित्रा जी उन दोनों की शादी से बिल्कुल खुश नहीं थी। अमन के प्राची से शादी करने से इस कदर नाराज़ हो गई थी कि वो अपना दिल्ली वाला घर छोड़कर अपने छोटे बेटा बहु के पास बैंगलोर आ गई थी। यहां भी पूरे समय उनके मन में प्राची के लिए गुस्सा ही भरा रहता।

बीच-बीच में बाकी रिश्तेदार भी उनको फोन करके प्राची के विषय में कुछ बोलकर उनके गुस्से को बढ़ा देते थे। हालांकि प्राची बहुत ही प्यारी और रिश्तों की कद्र करने वाली लड़की थी पर कहीं ना कहीं सुमित्रा जी को लगता था कि उसने चालाकी से उनके बेटे अमन को अपने जाल में फंसाया है।

इन्हीं सब बातों की वजह से वो यहां आ तो गई थी पर छोटी बहू उनसे घर के सारे काम लेती थी। ऐसे ही आज उसने सुमित्रा जी को घर में पार्टी होने की बात कहकर बहुत सारे काम में लगा दिया था। सुमित्रा जी की वैसे भी तबियत आज थोड़ा ठीक नहीं थी।उनका ब्लड प्रेशर थोड़ा ज्यादा था पर वो ये सोचकर कि अब हर जगह तो गुस्से से काम नहीं चलाया जा सकता,काम में लगी रही।

वो रसोई घर में शाम की पार्टी के लिए कुछ तैयारी कर ही रही थी कि चक्कर खाकर गिर गई। कामवाली ने उनको उठाया और तुरंत उनके पति अनिल जी को खबर दी। उनके चोट तो उनके बहुत अधिक आई थी,वो बुरी तरह कराह रही थी। अनिल जी को यहां के डॉक्टर्स के विषय में जानकारी नहीं थी।

उन्होंने तुरंत छोटे बेटे को खबर दी। उसके आने पर वो सुमित्रा जी को सबसे पहले डॉक्टर के क्लिनिक पर लेकर गए। सुमित्रा जी दर्द से कराह रही थी, सारे एक्सरे और टेस्ट होते-होते शाम हो गई थी। डॉक्टर ने सारी रिपोर्ट्स देखने पर बताया कि उनके बाएं हाथ की हड्डी टूट गई है और दाएं पैर की ऐड़ी के पास के लिगामेंट्स टूट गए हैं। डॉक्टर ने हाथ पर तो प्लास्टर चढ़ा दिया पर पैर पर प्लास्टर तो नहीं पर रोजाना सिकाई और मालिश के लिए बोला।

जब वो पति और छोटे बेटे के साथ उसके घर पहुंची तब छोटी बहू ने सिर्फ एक बार उनका हाल-चाल पूछा और चली गई। उसका व्यवहार सुमित्रा जी को आहत कर गया। फिर भी उन्होंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया क्योंकि अभी वो अपने ही दर्द से बेहाल थी। वो अपने कमरे में आराम के लिए पहुंची ही थी पर नींद उनकी आंखो से कोसों दूर थी। तभी उनके कानों में छोटी बहू के तेज़ स्वर टकराए।

छोटे बेटे और बहू में उनकी  देखभाल को लेकर झगड़ा चल रहा था। छोटी बहू कह रही थी कि नौकरी और छोटे बच्चे के साथ वो सुमित्रा जी की देखभाल नहीं कर सकती और ना ही छुट्टी ले सकती है।छोटा बेटा उसे समझाने की कोशिश कर रहा था पर वो कुछ सुनने को तैयार नहीं थी। सुमित्रा जी ने बेबसी और लाचारी से पति की तरफ देखा। आज उन्हें यहां आना अपनी सबसे बड़ी गलती लग रहा था वैसे भी उनके पति ने तो काफ़ी मना भी किया था।

विवशता से सुमित्रा जी आंखें मूंद कर लेट गई अब उन्हें याद आने लगा कि किन परिस्थितियों में उनके बड़े बेटे अमन और प्राची की शादी हुई थी। असल में अमन की प्राची के साथ दूसरी शादी थी। अमन की पहली पत्नी थी ऋचा,जिसको वो अपनी पसंद से चुन कर लाई थी। शादी के बाद दोनों यूएस चले गए थे जहां वो एक प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे। शादी के दो साल के बाद ऋचा मां बनने वाली थी,वीजा ना मिलने का कारण सुमित्रा जी वहां नहीं जा पाई थी।

पर ऋचा ने ऑनलाइन वीडियो कॉल के द्वारा सुमित्रा जी और अपनी मां की सभी सलाहों को ठीक से पालन किया था।पूरे नौ महीने के बाद उसने प्यारे से बेटे ध्रुव को जन्म दिया था। ऋचा और अमन ने सोच लिया था कि ध्रुव के छः महीने का होने पर वो लंबी छुट्टी लेकर भारत जायेंगे।

पोते के स्वागत में आतुर सुमित्रा जी की खुशी देखते ना बनती थी। अभी उनके भारत वापस आने में दो-तीन ही शेष बचे थे कि एक ऐसी अनहोनी घट गई जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी।आने के दो तीन दिन पहले ऋचा बाज़ार से कुछ खरीदारी करके आ रही थी पर पता नहीं कैसे उसकी गाड़ी सड़क के दूसरी और लगे एक खंबे से टकरा गई। उसका सिर कार के आगे वाले हिस्से से तेज़ी से टकराया।जब तक उसे इलाज़ मिल पाता तब तक सिर पर लगी अंदरूनी चोट से उसकी मृत्यु हो गई।

इस दुखद घटना को जिसने सुना उसका ही दिल भर आया। कहां तो खुशी-खुशी अमन और ऋचा नन्हें ध्रुव को अपने देश ले जाकर सबसे मिलवाना चाहते थे वहीं आज ऋचा की मृत्यु की सारी औपचारिकताएं निभाकर अमन ध्रुव को किसी तरह अकेले संभाले हुए वापस लौट रहा था। 

बड़े बेटे और पोते के घर आने पर सुमित्रा जी और उनके पति अनिल जी किसी तरह हिम्मत बांधे हुए थे। वैसे भी जाने वाला तो चला गया था पर छोटे बच्चे को तो पालना ही था। ध्रुव के लिए तो ये वातावरण भी नया था साथ-साथ मां की गोद भी नहीं थी। सुमित्रा जी को समझ नहीं आ रहा था कि कैसे छोटे बच्चे को पाला जायेगा क्योंकि कोई आया या काम वाली मां की जगह नहीं ले सकती। दूसरी तरफ सुमित्रा जी भी अब बूढ़ी हो रही थी और अमन की भी नौकरी थी।

वो तो गनीमत थी कि अमन की कंपनी ने उसके हालातों को देखकर उसको गुड़गांव वाली शाखा में स्थानांतरित कर दिया था। ध्रुव कई बार बहुत रोता था। कई रिश्तेदारों ने सुमित्रा जी को अमन की दूसरी शादी के लिए बोला। सुमित्रा जी को भी ये बात उचित लगी उन्होंने एक दिन बातों-बातों में अमन से दूसरी शादी का जिक्र किया।

सुमित्रा जी ने ये भी कहा कि ध्रुव अभी बहुत छोटा है मां के बिना नहीं रह सकता। अमन उनकी बात से सहमत था पर उसने साथ-साथ ये भी कहा कि वो दूसरी शादी अगर करेगा भी तो किसी विधवा या तलाकशुदा लड़की से ही करेगा क्योंकि वो शादी किसी काम वासना की पूर्ति के लिए नहीं ध्रुव को मां की गोद देने के लिए करना चाहता है। उसकी किसी विधवा या तलाकशुदा से शादी की बात सुमित्रा जी के गले नहीं उतरी। ख़ैर उन्होंने अमन के लिए लड़की देखनी शुरू कर दी। एक-दो रिश्ते भी आए पर अमन अपनी बात पर अटल था।

उधर ध्रुव कभी-कभी बहुत रोता था और किसी की संभाले नहीं संभलता था। तभी एक दिन सुमित्रा जी के पास उनकी सहेली संध्या जी का फोन आया। सुमित्रा जी का दुख सुनकर संध्या जी ने बताया कि उनकी बेटी प्राची जो कि फुलवारी नाम से छोटे बच्चों का एक डेकेयर केंद्र चलाती है। वहां वो तीन महीने से सात साल के बच्चे तक रखती है। तुम थोड़े समय के लिए ध्रुव को वहां छोड़ना शुरू करो क्या पता इसका मन बहल जाए।

सुमित्रा जी भी प्राची से भलीभांति परिचित थी। अपनी सहेली की बात सुनकर सुमित्रा जी ध्रुव को दिन में कुछ समय के लिए प्राची के पास उसके फुलवारी केंद्र में ले जाने लगी। ये प्राची के ममता भरे हाथों का स्पर्श था,या दूसरे बच्चों का साथ ध्रुव वहां बहुत आराम से रहने लगा। अब तो अमन खुद भी ऑफिस जाते हुए ध्रुव को वहां छोड़कर जाने लगा। फिर तीन-चार घंटे बाद सुमित्रा जी उसको वापस ले आती। अब प्राची को भी ध्रुव का इंतज़ार रहता।

एक दिन ध्रुव नहीं आया,प्राची ने फोन किया तो अमन ने बताया कि उसको तेज़ बुखार है। प्राची से रहा नहीं गया, किसी तरह शाम को बाकी बच्चों के जाने के बाद वो अपनी चार साल की बेटी रिया के साथ सुमित्रा जी के घर पहुंच गई। ध्रुव उसको देखकर तुरंत उसकी गोदी में आ गया। रिया से भी वो बहुत हिलमिल गया था।वो अभी भी ज्वर में तप रहा था। प्राची ने पूरी रात उसकी देखभाल की। अगले दिन ध्रुव की हालत में सुधार था। अमन भी प्राची से बहुत प्रभावित था। उसने अपनी मां के सामने प्राची से शादी का प्रस्ताव रखा। 

उसके इस प्रस्ताव को सुमित्रा जी ने नकार दिया क्योंकि प्राची के स्वयं के भी चार साल की बेटी थी और एक दुर्घटना में वो भी आज से दो साल पहले अपने पति को खो चुकी थी। उसके सास ससुर और देवर ने उसको ही अपशगुनी कहकर ससुराल से निकाल दिया था। यहां तक की उसकी बेटी से भी कोई वास्ता नहीं रखा था।

अमन का इस तरह की बातों में कोई विश्वास नहीं था। उसने सुमित्रा जी को बोला अगर प्राची अपशगुनी है तो फिर तो वो और उसका बेटा ध्रुव भी हैं क्योंकि वो तो जिंदा है और पत्नी तो उसने भी खोई है। ऐसे ही ध्रुव के जन्म के छः महीने के अंदर ऋचा चल बसी। 

अमन की इन बातों ने सुमित्रा जी को निरुत्तर कर दिया था पर उन्होंने फिर भी यही कहा कि वो खुली आंखों से देखते हुए मक्खी नहीं निगल सकती। वो इस तरह के ग्रहों वाली लड़की जो कि खुद भी एक लड़की की मां है, उससे अपने बेटे अमन की शादी नहीं कर सकती।

उनका ये भी मानना था कि अगर उसके खुद के कोई बच्चा ना होता तब भी वो कुछ सोचती पर उसका खुद का बच्चा वो भी लड़की,जिसकी सारी ज़िम्मेदारी भी उन लोगों को उठानी पड़ेगी कभी अपनी बहू नहीं कर पाएंगी। अमन ने फिर भी कहा कि मां आप एक औरत होकर दूसरी औरत का दर्द नहीं समझ रही पर सुमित्रा जी ने उसकी कोई बात नहीं सुनी। अमन ने सुमित्रा जी के इस पुरातनपंथी सोच का पुरजोर विरोध किया। 

सुमित्रा जी ने ध्रुव को फुलवारी भेजना भी बंद कर दिया। प्राची ने फोन करके पूछा तो उसको भी बड़े रूखे शब्दों में बोल दिया कि उसका ध्यान वो रख सकती हैं अब यहां फोन करने की जरूरत नहीं है। उधर ध्रुव कुछ कह तो पाता नहीं था पर प्राची को याद करता था।

ध्रुव की हालत और सुमित्रा जी की ज़िद को देखते हुए अमन बिना किसी से कुछ कहे प्राची से कोर्ट में विवाह कर उसे और उसकी बेटी को अपने घर ले आया। सुमित्रा जी के पति ने तो उन लोगों को खुशी-खुशी आर्शीवाद दे दिया पर सुमित्रा जी ने प्राची को नहीं स्वीकारा। वो जब देखो तब उस पर ताने की बौछार करती रहती। उसके हाथ से बना खाना नहीं खाती। इन सबके बाबजूद प्राची बिना कुछ कहे अपने काम में लगी रहती।

एक दिन सुमित्रा जी का व्रत था, प्राची की बेटी जो कि सिर्फ चार साल की मासूम थी उसने उनके खाने की थाली में से फल का एक टुकड़ा उठाकर खा लिया था। अब ये देखकर तो उनका पारा ही चढ़ गया। उन्होंने खूब हंगामा किया और अपने छोटे बेटे बहू के पास जाने का निर्णय ले लिया। 

अमन ने उन्हें बहुत समझाने की कोशिश की और प्राची ने भी अपनी छोटी सी बच्ची की तरफ से काफी माफ़ी मांगी पर सुमित्रा जी टस से मस ना हुई। सबको पता था कि छोटी बहू बहुत तेज़तर्रार है पर उस समय तो सुमित्रा जी को सबसे बड़ी दुश्मन सिर्फ प्राची और उसकी बेटी नज़र आ रही थी।

तब अनिल जी ने धीरे से अमन और प्राची को अपने पास बुलाकर धैर्य रखने की सलाह दी और कहा वक्त सब ठीक कर देगा। आज सुमित्रा जी को प्राची का सभी को अपना मानने वाला स्वभाव और सेवा भाव याद आ रहा था। सुमित्रा जी के पति भी उनकी मनोदशा समझ रहे थे। उन्होंने बड़े बेटे अमन और प्राची को उनको लेकर जाने के लिए फोन भी कर दिया था जिसका अभी सुमित्रा जी को पता नहीं था। अतीत की इन बातों को सोचते-सोचते कब सुमित्रा जी की आंख लग गई उन्हें पता ही ना चला।

सुबह उनको लगा कि कोई बहुत प्यार से उनके पैर सहला रहा है तो देखा कि प्राची बैठी हुई है। सुमित्रा जी को लगा कि वो सपना देख रही हैं पर जैसे ही उन्हें अमन और अपने पति की आवाज़ सुनाई दी तो उन्होंने प्राची से माफ़ी मांगते हुए उसे गले से लगा लिया। बड़े बेटे-बहू,साथ में पोते ध्रुव और प्यारी सी रिया को देखकर सुमित्रा जी के आंसू बहने लगे। उन्होंने रिया को मेरी प्यारी सी गुड़िया कहते हुए गले से लगा लिया।

प्राची ने उनके आंसू पोंछते हुए कहा कि मां आप रोते हुए नहीं डांटते हुए ही अच्छी लगती हैं। हम आपको और पापा की लेने आए हैं आज शाम की ही हमारी फ्लाइट है। आपका घर आपका इंतजार कर रहा है। आज सुमित्रा जी की आंखों से अंधविश्वास की पट्टी पूरी तरह हट गई थी। अब वो बेसब्री से अपने घर लौटना चाहती थी।

दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी?अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। कई बार हम किसी स्त्री के पति की मृत्यु होने पर उसको तो अपशगुनी बोल देते हैं पर जब किसी पुरुष की पत्नी कालगलवित होती है तो उसको कोई कुछ नहीं बोलता। वैसे भी जन्म और मृत्यु तो परमात्मा के हाथों में है फिर हम किसी इंसान को इसके लिए ज़िम्मेदार कैसे ठहरा सकते हैं?कब तक हम इन रुढ़ीवादी बेड़ियों से बंधे रहेंगे।अब समय आ गया है कि हम इन बेड़ियों को काट डालें और इन सब बातों से ऊपर उठ जाएं तभी हम आने वाली पीढ़ी से लिंगभेद की समस्या को दूर कर सकते हैं।

डॉ. पारुल अग्रवाल,

नोएडा

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