ड्राॅइंग रूम के सोफ़े पर बैठकर श्रुति टेलीविज़न पर कार्टून शो देख रही थी।फिर वो रिमोट से चैनल बदलकर न्यूज़ देखने लगी।एक रिपोर्टर बोल रही थी,” आतंकवादियों ने धर्म पूछकर हिन्दू पर्यटकों पर गोलियाँ बरसा दीं..।उसने तुरन्त टीवी बंद कर दिया और पास बैठे अपने पिता से बोली,” पापा..कल स्कूल में मेरी एक सहेली कह रही थी कि मुसलमान लोग खराब होते हैं..।आप उस्मान चाचा की छुट्टी कर दीजिये..।”
सुनकर उसके पिता मुस्कुराये और बोले,” बेटी..कोई भी धर्म खराब नहीं होता..इंसान का कर्म बुरा होता है।तुमने पूरी खबर नहीं देखी, उन बुरे लोगों में कुछ अच्छे लोग भी थे जो आतंकवादियों से पर्यटकों की रक्षा कर रहें थें..उन्हें अपनी पीठ पर लादकर सुरक्षित स्थान पर पहुॅंचा रहें थें।बचपन में तुम उस्मान चाचा के कंधों पर चढ़ कर कितना घूमती थी..बस स्टाॅप से घर तक भी तुम उन्हीं के साथ आती थी तो फिर आज उनके व्यवहार पर शंका क्यों? जो घटना घटी है, उसका तो उद्देश्य ही देशवासियों में फूट डालना है।
दुश्मन तो यही चाहता है कि हमारे देश में अशांति फैले लेकिन इस वक्त हमें समझदारी से काम लेना है।हमारी सेना तो दुश्मनों को मुँह तोड़ जवाब देगी ही..हमें भी आपस में मिलकर रहना है और देश की एकता-अखंडता को बनाये रखना है।तुम्हें याद है ना..मेरे ऑफ़िस के कुछ लोग मेरे और सतीश की मित्रता से ईर्ष्या करते थे।उन्होंने कई बार मुझसे सतीश की शिकायत की और सतीश से मेरी…लेकिन क्या हमने उनकी बातों पर कान दिया? नहीं ना..वैसे ही तुम भी लोगों की बातों पर ध्यान मत दो..बस अपने मन की सुनो।
देश से प्यार जितना तुम्हें-हमें है उतना ही उस्मान चाचा और उनके बंधुओं को भी है।इसलिये अब घड़ी देखो..चार बज रहें हैं..तुम्हारी मम्मी तो चंदन(घर का नौकर) को लेकर मार्केट गई है..तो तुम्हीं जाकर दो कप चाय बना दो प्लीज़..एक कप मुझे देना और दूसरा कप उस्मान चाचा को…वो तो कभी कुछ कहते नहीं लेकिन गार्डन में काम करके तो वो भी थक गये होंगे..है ना..।”
” जी पापा..अभी लाई…।कहकर श्रुति रसोई में चली गई और दरवाज़े के बाहर खड़े पचपन वर्षीय उस्मान चाचा की आँखें नम हो गई।वो साहब से कहने आ रहे थे कि लोग आपको परेशान करेंगे, इसलिये मैं कल से काम पर नहीं आऊँगा..लेकिन अपने साहब की बातें सुनकर वो कुछ नहीं कह पाये और वापस गार्डन में जाकर पौधों को पानी देने लगे।
विभा गुप्ता
स्वरचित,बैंगलुरु