सुमन एक मध्यवर्गीय परिवार की लड़की थी। पिता किसानी करते थे एक छोटा भाई था। जब वो ग्यारह साल की थी तो उसकी मां बीमारी के कारण च बसी उस बक्त उसका भाई चार साल का था ।सुमन पढ़ने में शुरू से ही बहुत होशियार थी हमेशा क्लास में फर्स्ट आती थी।
पढ़ाई के प्रति उसकी लग्न देखकर उसके पिता ने बारहवीं के बाद उसका दाखिला कॉलेज में करवा दिया जो कि उसके घर से सात आठ किलोमीटर की दूरी पर था। लगभग चार किलोमीटर पैदल जाने के बाद आगे बस से वो कॉलेज जाती थी । सुबह घर का सारा काम करके कॉलेज जाना
फिर शाम को सारा काम निपटाने के बाद वो देर रात तक पढ़ाई करती। इसी बीच उसकी मुलाकात नवीन से हुई नवीन भी एक गरीब परिवार का होनहार लड़का था वो भी पढाई में बहुत होशियार था दोनो की बातचीत पढ़ाई के विषयों को लेकर ही शुरू हुई और वे दोनों अच्छे दोएत बन गए।
धीरे धीरे कब ये दोस्ती प्यार में बदल गई कुछ पता ही नही चला। दोनो की मुलाकात कॉलेज के खाली समय मे होने लगी और दोनों एक दूसरे के साथ जीने मरने की कसमें खाकर हर पल एक दूसरे के साथ ही रहते। कॉलेज खत्म होने के बाद सुमन और नवीन उनकी कॉमन दोस्त नेहा जो कि सुमन के गांव की थी उसके फ़ोन से कभी कभी बात कर लेते।
लेकिन अब दोनों का एक दूसरे के बिना रहना आसान नही था। एक दिन नवीन ने सुमन को फ़ोन करके शादी का प्रस्ताव रखा तो सुमन भी खुशी खशी मान गई । सुमन ने नवीन को कहा की वो अपने घरवालों को रिश्ता लेकर भेज दे। सारी बात हो जाने के बाद सुमन ने अपने पापा से बात की तो पापा ने भी हामी भर दी और कहा कि मुझे तुमपर पूरा भरोसा है
अगर तुमने फैंसला लिया है तो ठीक ही होगा। हफ्ते भर में नवीन अपने माता पिता को लेकर उनके घर आया दोनो परिवार एक दूसरे से मिलकर बहुत प्रसन्न थे।
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पंडित से कुंडली मिलाकर पांच महीने बाद का समय शादी के लिए तय किया गया। हालांकि दाज दहेज के बारे में सुमन के पिता ने पहले ही साफ कर दिया कि बो बेटी के अलावा कुछ नही दे सकते इसपर नवीन के माता पिता ने भी दाज दहेज के खिलाफ होने की बात कहकर मानो सुमन के पिता के दिल का बोझ खत्म कर दिया था।
रिश्ता तय हुए अभी एक महीना ही गुजरा था कि नवीन की रेलवे में सरकारी नौकरी लग गई। कुछदिन तक सुमन और नवीन की बात फ़ोन पे होती रही मगर धीरे धीरे बात होना कम हो गया। सरकारी नौकरी लगने के बाद नवीन की नीयत बदलने लगी क्योंकि उसे एक से बढ़कर एक अमीर घरों के रिश्ते आने लगे।
देखते ही देखते चार महीने गुजर गए सुमन के पिता ने शादी की सारी तैयारियां कर ली रिश्तेदारों को निमंत्रण भेज दिए उधर नवीन टालमटोल करने लगा। शादी के एक दिन पहले नवीन ने सुमन को फोन करके कहा कि मेरे घरवाले किसी इकलौती अमीर लड़की से उसका रिश्ता करवा रहे हैं जो दहेज में गाड़ी पैसा घर जमीन सब देने को तैयार हैं
उसने कहा कि बो घरवालो को मनाने की कोशिश कर रहा है। अगले दिन सुमन के घरवाले बारात का इंतज़ार कर रहे थे मगर बारात की जगह नवीन का फोन आ गया और उसने कहा कि मैंने बहुत कोशिश की मगर घरवाले नही मने वो दहेज में कम से कम गाड़ी की मांग कर रहे हैं।
सुमन के पिता ने भी गिड़गिड़ाकर नवीन से कुछ दिन की मोहलत मांगी उसने कहा कि वो शादी न तोड़े। शादी के बाद वो अपनी जमीन बेचकर कैसे भी गाड़ी का प्रवन्ध कर देगा। नवीन ने उसके पिता को कहा कि ठीक है मैं घर मे बात करके देखता हूँ जो भी होगा बता दूंगा। मगर नवीन का फोन नही आया
फिर भी सुमन के घरवाले इस उम्मीद में थे कि सब ठीक हो जाएगा और तय समय पर कल बार आ जाएगी। सुमन के पिता खुद टूट चुके थे मगर बो सुमन को होंसला दे रहे थे कि भगवान पे भरोसा रखो जो होगा अच्छे के लिए ही होगा। मगर सुमन को भी पता था कि ये बाते सिर्फ कहने सुनने में अच्छी है मगर पिता के अंदर के दर्द को बो अछि तरह महसूस कर रही थी।
सुमन के घर सारे रिश्तेदार आए हुए थे ओमान भी शादी के जोड़े में थी मगर देर रात तक न बारात आई और न नवीन का फ़ोन लगा सुमन को ऐसा लग रहा था कि जमीन फट जाए और वो उसमे समा जाए बाप की अपमान से झुकी गर्दन को देखकर वो अंदर ही अंदर मरने का सोचने लगी उसने कल्पना भी नही की थी
कि उसकी बजह से उसके पिता का ऐसा अपमान होगा। सारे रिश्तेदार बापिस चले गए । अपने भाई और पिता को देखकर सुमन मरने का इरादा न कर पाई और इस अपमान का घूंट पीकर चुपचाप रह गई।
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उस दिन के बाद सुमन ने सिर झुकाकर जीने की बजाए कुछ करने की ठानी और घर से ही पढ़ाई करने का सोचा जैसे कैसे उसने किताबें खरीदी और अपने लक्ष्य में जुट गई। उसने घर से ही यूपीएससी की तैयारी शुरू की और उसकी मेहनत रंग लाई । उसका चयन यूपीएससी में हो गया
और बो आईएएस अफसर बन गई। उसकी हिम्मत ने लाखों लड़कियों को सिर झुकाकर जीने की बजाए हालातों का डटकर मुकाबला करने अपमान को बरदान बनाने की प्रेरणा दी थी।
अमित रत्ता
अम्ब ऊना हिमाचल प्रदेश