अपने – माता प्रसाद दुबे : Short Story In Hindi

शाम के सात बज रहे थे, अविनाश आफिस से अपने किराए के घर पर वापस आ चुका था। महीने के कुछ दिन ही वह यहां पर रहता था..बाकी दिन वह अपने परिवार के साथ बिताता था..तभी घर से बड़े भाई प्रकाश का फोन आने लगा..अविनाश फोन पर प्रकाश से बात करते हुए घबराने लगा..उसका शरीर थर-थर कांपने लगा..चेहरे पर भय और चिंता की लकीरें स्पष्ट नचर आ रही थी..वह बिना देर किए बदहवास अवस्था में जल्दी -जल्दी कमरा बंद करके अपने गांव की ओर निकल पड़ा।

अविनाश अपने गांव से दो सौ किलोमीटर दूर शहर में नौकरी करता था..उसका परिवार संयुक्त परिवार था..उसके बड़े भाई भाभी उनके बच्चे,उसकी पत्नी रजनी बेटी विभा,बेटा रवि,सभी लोग एक साथ रहते थे..गांव में आलीशान घर काफी जमीन थी उनके परिवार के पास,अविनाश के परिवार की गिनती गांव के प्रतिष्ठित धनी लोगों में होती थी..

अभी दो दिन पहले ही अविनाश गांव से शहर आया था सब कुछ ठीक था कि अचानक रजनी को हार्ट अटैक आने की खबर सुनकर अविनाश को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें वह ईश्वर से रजनी की सलामती की प्रार्थना करता हुआ अपने गांव पहुंच चुका था।

घर के पास मोहले के लोगों रिश्तेदारों की भीड़ देखकर अविनाश का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा घर के अंदर से विभा और रवि और उसकी भाभी गौरी की रोने की आवाज बाहर तक सुनाई दे रही थी..कुह कहने समझने की जरूरत नहीं थी सब कुछ अविनाश की आंखों के सामने था..रजनी की मृत्यु हो चुकी थी..विभा,रवि, के सिर से मां का साया सदा के लिए लुप्त हो चुका था..

अविनाश की खुशियां उससे छिन चुकी थी..विभा हाई स्कूल पास कर चुकी थी..रवि कक्षा आठ में पढ़ता था.. दोनों बच्चों और खेत जमीन का लाखों का हिसाब किताब सब कुछ रजनी ही करती थी..अविनाश हर महीने पांच छह-सात दिन ही घर में रहता था..अविनाश रजनी की असमय मृत्यु से टूट चुका था.. सरकारी नौकरी,दोनों बच्चों,व खेतों का हिसाब किताब वह एक साथ नहीं कर सकता था..वह जीवन में अनगिनत समस्याओं से पूरी तरह घिर चुका था।

लगभग एक महीने बीत चुके थे, अविनाश को शहर अपने काम पर जाना था..काफी सोच विचार कर उसने विभा और रवि को अपने साथ शहर ले जाने का फैसला किया अविनाश की भाभी गौरी को जब यह बात पता चली तो वह अविनाश के ऊपर गुस्साते हुए उससे बोली “अविनाश! तुम विभा, और रवि,को शहर लें जा रही है क्यूं?? अविनाश अपनी भाभी देखकर चुप हो गया वह कुछ नहीं बोला।

“क्या यहां पर तुम्हारे अपने नहीं है?जो तुम अपने साथ ले जा रहे हों बच्चों को?”गौरी अविनाश से सवाल करते हुए बोली।”नहीं भाभी!ऐसी कोई बात नहीं है,अब रजनी तो नहीं है हमारे साथ,जो मैं हर काम से मुक्त हो जाऊ, वहां भी मैं अकेला ही रहता हूं,जब आऊंगा तो यह लोग भी आ जाएंगे”अविनाश अपनी भाभी गौरी से अपनी चिंता बताते हुए बोला।

“कोई बात नहीं है देवर जी,उनकी बड़ी मम्मी तों है न उनके पास,वो बच्चे भी मेरे अपने हैं कोई पराए तो नहीं,फिर यह कैसे सोच लिया तुमने?”गौरी अविनाश से शिकायत जताते हुए बोली।”क्या हुआ क्या बात हो गई,कौन जा रहा है?” प्रकाश गौरी और अविनाश के पास आते हुए बोले।

गौरी ने बिना रूके एक सांस में विभा और रवि को अपने साथ शहर ले जाने के अविनाश के फैसले पर अप्पति जताते हुए प्रकाश को सारी बात बताई, प्रकाश ने भी अविनाश के फैसले को ग़लत बताया, अविनाश ने अपनी भूल मानते हुए अपनी भाभी गौरी और बड़े भाई प्रकाश से क्षमा मांगी और विभा और रवि व खेत जमीन की चिंताओं से कुछ हद तक मुक्त होकर पहले की ही तरह शहर जाकर रहने लगा और महीने में छह सात दिन वह गांव में अपने घर पर रहता था।

दो साल बीत चुके थे अविनाश अपने काम की जिम्मेदारियों के कारण महीने में एक दो दिन ही गांव आता था.. कभी -कभी वह विभा और रवि को भी अपने साथ ले जाता था..पैसे की कोई कमी नहीं थी विभा और रवि के पास धीरे -धीरे गांव की जमीनों से आने वाला लाखों रूपया जिसका हिसाब किताब रजनी के पास रहता था..

उस पर पूरी तरह गौरी का कब्जा हो चुका था.. गौरी का व्यवहार विभा और रवि के प्रति नकरात्मक होने लगा..विभा और रवि दोनों समझदार थे,वे अपनी बड़ी मम्मी और बड़े पापा के व्यवहार को पूरी तरह समझ चुकें थे, जिन्होंने ने सिर्फ अपना स्वार्थ सिद्ध करने व गांवों की करोड़ों की सम्पत्ति पर अपना कब्जा करने के लिए ही अविनाश के आगे अपने होने की दुहाई देकर सोचा समझा नाटक किया था..

मगर यह सब बातें उन्होंने अविनाश को नहीं बताई,जो अपने बड़े भाई और भाभी का काफी सम्मान करते थे.. उनसे यह बताकर वह उन्हें परेशान नहीं करना चाहते थे।

चैत्र के महीने का अंत हो रहा था गेहूं की कटान चल रही थी.. अविनाश के मन रजनी का ख्याल आ रहा था..जो हर साल लाखों रुपए अपने खेत की फ़सल कटने के बाद बैंक में जमा करती थी..विभा बेटी! अपनी फ़सल का पैसा तुम अपने और रवि के खाते में जमा कर दिया करों,अब तुम्हारी मम्मी तो हैं नहीं?”

अविनाश उदास होते हुए विभा से बोला। विभा अविनाश की बात सुनकर चुप हो गई वह कुछ नहीं बोली।”क्या हुआ बेटी! तुमने जवाब नहीं दिया,तुम तो अपनी मम्मी के साथ रहतीं थीं, तुम्हें तो सब कुछ पता हैं” अविनाश विभा को दुलारते हुए बोला। विभा कुछ देर तक विकास की ओर देखती रही,उसकी आंखों में आसूं छलकने लगे वह अविनाश से लिपटकर रोने लगी।”

अरे क्या हुआ बेटी!तुम रो क्यों रही हो क्या बात है मुझे बताओं” अविनाश विभा को चुप कराते हुए बोला।”पापा! बड़ी मम्मी बिल्कुल भी मम्मी की तरह नहीं है, उन्होंने दो साल से हमें एक भी रुपया हमारे हिस्से की फ़सल का नहीं दिया है, मम्मी की हर चीज पर उन्होंने कब्जा कर लिया है,

बड़े पापा!के साथ मिलकर वह हमारी हर चीज हमसे छीनते जा रहें हैं,वे हमारे साथ भी ग़लत व्यवहार करते हैं, आपसे सिर्फ अपने होने का झूठा दिखावा करते हैं, अपने मतलब के लिए,वे हमें कोई महत्व नहीं देते बल्कि भैया लोग (गौरी के बेटे) भी हमसे सही से बोलते तक भी नहीं है”

कहकर विभा फूट-फूट कर रोने लगी। “बेटी! तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया?”अविनाश परेशान होता हुआ बोला।”पापा यह सब बताकर हम आपका दिल नहीं दुखाना चाहते थे, वैसे भी मम्मी के जाने से आप दुखी रहते हैं,हम आपको यह सब बताकर और दुख नहीं पहुंचाना चाहते थे ”

विभा सुबकते हुए बोली।”ठीक किया बेटी! मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा है कि भैया और भाभी सिर्फ़ अपने मतलब के लिए ही अपनेपन का झूठा ढोंग कर रहे थे “कहकर अविनाश खामोश हो गया। वह मन ही मन कुछ सोचकर दूसरे दिन विभा और रवि को लेकर शहर चला गया।

एक महीने बाद अविनाश विभा और रवि को शहर में छोड़कर अपने एक मित्र वकील के साथ गांव वाले घर पहुंच गया। अविनाश के साथ एक वकील को देखकर प्रकाश और गौरी के मन में सवाल उठने लगे कि आखिर किस काम के लिए अविनाश वकील को साथ लेकर घर आया हैं,

अरे क्या हुआ देवर जी, वकील साहब किस लिए आए हैं?” गौरी अविनाश से सवाल करते हुए बोली।”भाभी मैंने अपने हिस्से का सारा खेत बेंच दिया हैं ” अविनाश मुस्कुराते हुए बोला।” अरे देवरजी हमसे बिना सलाह मशवरा किए बगैर आपने पुरखों की सम्पत्ति को कैसे बेच दिया है?”गौरी झुंझलाते हुए बोली।

“भाभी! मैंने अपनी सम्पत्ति बेची है आपकी नहीं?” अविनाश शांत लहजे से बोला।”बिना अपनों की सलाह लिए ऐसा कोई करता है जो तुमने किया है अविनाश “प्रकाश तेज आवाज में अविनाश और वकील से बोला।”भैया अपने तो हम जब तक थे,जब अम्मा और पिताजी मौजूद थे,

उसके बाद मेरा जो अपना था, उसे ईश्वर ने छीन लिया,अब हमारे रिश्तों में वह अपनापन है ही नहीं,खून के रिश्ते भी अपनी स्वार्थ सिद्धि की बली चढ़कर बिल्कुल खोखले हो चुकें हैं,उन खोखले रिश्तों में विश्वास नहीं किया जा सकता “कहकर अविनाश शांत हो गया।”खेत तों तुमने बेच दिया घर भी बेच दो?”

गौरी अविनाश के ऊपर बड़बड़ाते हुए बोली।”घर तो नहीं बेचूंगा भाभी!हा उसे अलग करने के कागज़ बनाने ही तो वकील साहब आए हैं,अब विभा रवि भी शहर में ही रहेंगे हम कभी -कभी यहां अपने घर पर भी आकर रहेंगे, जिसे मेरी रजनी  हमेशा सजाकर रखती थी, मैं उसे भला कैसे बेच सकता हूं?”

अविनाश व्यंग्यात्मक लहजे में गौरी से बोला। अविनाश की बात सुनकर कुछ देर तक गौरी और प्रकाश वही खड़े रहें, फिर वह चुपचाप अविनाश के कमरे से झुंझलाते हुए बाहर जाने लगे,अविनाश दुखी मन से अपने बनकर अपने ही छोटे भाई व बिन मां के बच्चों से अपने स्वार्थ के लिए खून के रिश्तों को झुठलाने वाले अपने भाई भाभी को दुखी मन से जाते हुए देख रहा था।

खोखले रिश्ते,

माता प्रसाद दुबे

मौलिक स्वरचित अप्रकाशित कहानी लखनऊ

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