बैरंग लिफाफा:Short Story In Hindi

 जबसे  समर की माँ की मृत्यु हो गई  थी ,तब से उसकी हँसती खेलती जिन्दगी को मानो ग्रहण लग गया था। उनका शहजादा प्यार के एक बोल, एक झप्पी  के लिए तरस के रह गया ।पहले पिता कुछ केयर करते भी थी उसकी लेकिन नई माँ  के आने के और उनके गर्भवती होने के बाद तो वे उसके मायावी सम्मोहन में  ही गिरफ्तार हो के रह गए हैं ।

 उसकी नई माँ पहले तो फिर भी कभी हँस बोल लेती थी लेकिन उम्मीद  से होने के बाद तो अब उन्हें  उसका वजूद भी गवारा न होता था ।अगर पिता कभी घड़ी दो घड़ी उसके पास बैठते तो पत्नी  के  कलेजे पर साँप लोटने लगते।

उनके मन में समर  के लिए वितृष्णा  पैदा करने  को वह शाम को उनके खेत से आते से ही उसकी उद्दंडता और जिदों की शिकायत करने लगती  फिर पिता उसे बुलाकर डाँटते तो उसके मन को ठंडक पड़ती । धीरे धीरे पिता भी अब तो उससे कभी औपचारिकता  वश उसकी पढ़ाई लिखाई या खाने पीने को पूछ लेते ।

वह माँ  के वियोग में खुद ही रोता ,खुद ही अपने  आँसू पोंछ लेता । मन में  सोचता कि बस एक बार किसी तरह से उसकी माँ  वापिस आ जाए तो वह उन्हें जाने नहीं  देगा या उनके साथ ही चला जाएगा।

उसने सोचा कि वो पत्र लिखकर अपनी माँ  को एक बार बस एक बार बुला लेगा ,पत्र पढ़कर वो जरूर  मिलने आएँगी  लेकिन माँ  का  पता  !! वो तो उसे मालूम नहीं  कैसे भेजेगा वो लैटर ? उसने सबसे सुना था कि तुम्हारी माँ भगवान के पास गई  है

 और भगवान तो मंदिर  में  होते हैं, यह सोचकर उसने एक बैरंग लिफाफे में  चिट्ठी लिखकर मंदिर में  भगवान के पास रख दी ।

वह चिट्ठी पुजारी ने पढ़ी। वहाँ  गाँव  में  एक ही मंदिर था बहुत  चढ़ावा आता था इसलिए पुजारी जी भी आर्थिक दृष्टि  से बहुत  सम्पन्न  थे। संयोग से पुजारी जी निसंतान थे और बहुत  दिनों  से किसी बच्चे  को गोद लेने का विचार कर रहे थे ।

अब जैसे भगवान  ने खुद ही उनकी झोली  भर दी हो यह  सोचकर उन्होंने उसके पिता से उसे गोद लेने का प्रस्ताव रखा एवज में  उनको अच्छी खासी  रकम भी दी ,पिता तो पहले ही उससे पीछा छुड़ाना चाह रहे थे ,सहर्ष  स्वीकार कर लिया ।

फिर पुजारी ने बच्चे को उसकी माँ  के नाम से  पत्र लिखा कि ”  प्यारे समर ,मुझे भगवान ने किसी जरूरी काम से यहाँ  रोक के रखा है इसलिये  मैं  अब तुम्हारे  लिए नए माता पिता को भेज रही हूँ ।अब ये ही तुम्हारे माता पिता हैं ।ये मेरी तरह प्यार देंगे तुम्हें और तुम भी अच्छे  बच्चे  की तरह इनका कहना मानना।” समर ने यह पढ़कर उनको माता पिता के रूप में  स्वीकार कर लिया इस तरह  उन दोनों की  जिन्दगी में  रंग भर  गए।

अब वह अच्छे  कपड़े पहनकर  अच्छे स्कूल जाता ,अच्छा  खाता पीता  ,मंहगी साईकिल लिए गाँव में घूमता फिरता।

अब उसकी इतनी  बेहतरीन  स्थिति देखकर सौतेली माँ  के कलेजे पर रोज ही साँप लोटते लेकिन अब वो किसी के आगे फुफकार नहीं  पाती क्यों कि इसकी जिम्मेदार  वो स्वयं थी ।

#छाती पर साँप लोटना  

पूनम अरोड़ा

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