अन्याय –  उमा वर्मा 

तुम्हारे जाने की खबर मिलते तो मैं दौड़ती गई थी ।न कपड़े का होश था न सामान का।किसी तरह फ्लाइट का टिकट मिला था ।जल्दी में और कुछ उपाय भी तो नहीं था ।पहुँची तो होश खो बैठी थी ।तुम्हे  जमीन पर लिटा दिया गया था ।तुम तो चिर निद्रा में लीन थी।यह मै क्या देख रही थी और कैसे देख रही थी ।ईश्वर ने तुम्हे मुझसे अलग करके कैसा अन्याय किया था ।

रो रो कर हम सब एक दम चुप हो गये ।एक दम शान्त और समझदार तो तुम शुरू से थी अब और शान्त हो कर जमीन पर पड़ी थी ।हम और तुम कितनी कहानी लिखते और एक दूसरे की सलाह लेते थे ।मेरी बेटी, तुम तो मेरी सबसे अच्छी दोस्त और बहुत करीबी थी।माँ को क्यों अकेले छोड़ दिया? तुम्हारे हाथ छू कर देख रही हूँ कितना ठंढा ।और चारों तरफ बर्फ की पट्टी भी लगाई गई है, शायद गरमी के कारण ।हर समय मेरा कितना खयाल रखती थी तुम ।

छोटी सी उम्र में ही बहुत होशियार हो गई थी ।पढ़ाई के साथ घर में भी मदद करती थी तुम ।कभी कोई जिद भी तो करती, पर नहीं  जो ला दिया उसी में खुश ।एक बार पापा की तस्वीर फ्रेम में लगाने की बात पर कितना रोने लगी थी कि पापा अब हमारे बीच नहीं रहे ।दीवार पर टंग गये।और अब तुम को भी कहीँ लगा दिया जायेगा ।मेरा मन बहुत बेचैन हो रहा है ।घर में बहुत सारे लोग जुटे हुए हैं ।तुम्हारे अंतिम विदाई की तैयारी होने लगी ।कभी-कभी लोगों से सुना था ” बेटियां मायके से डोली पर जाती हैं और ससुराल से अर्थी पर विदा होती हैं ।

तुम अर्थी पर सोयी कितनी शान्त और प्यारी लग रही हो ।कहते हैं कि मनुष्य को अपने कर्मो का फल भोगना पड़ता है, अच्छा या बुरा ।मैंने भी शायद कुछ गलत कर्म किये होगें तभी तो ईश्वर ने मोहलत ही नहीं दिया तुम को अपने पास बुला कर मेरे साथ बहुत बड़ा अन्याय किया ।मै बार बार तुम्हे  छू रही हूँ ।काश, तुम उठ जाती।एक माँ की तड़प तो समझ पाती मेरी बच्ची ।तुम एक समझदार बेटी थी ।मै बीमार होती तो तुम एक नर्स की तरह मेरी देख भाल करती थी ।



अब कहाँ से लाऊं तुम्हे ।मायके में तो सब संभाला ही ससुराल में भी हमेशा पूरे परिवार को जोड़ने में लगी रही ।पर्व त्योहार पर दौड़ दौड़ कर सारे रिश्ते निभाते निभाते दुनिया से मुक्त हो गई ।तुम्हारे जाने के बाद मेरी नींद और भूख शायद खत्म हो जायेगी ।लेकिन जीवन तो चलता ही रहता है चलता ही रहेगा ।मै तुम्हे दीवार पर नहीं देख सकती।लेकिन इस मन का पागलपन देखो।तुम नहीं हो, यह मानने को तैयार नहीं है ।लेकिन सच्चाई तो झुठलाना नामुमकिन है ।

ईश्वर से एक प्रार्थना है कि वह तुम्हे शान्ति प्रदान करें, तुम जहाँ कहीं भी रहो,तुम्हे सुख मिले।मै अपने मन को समझाने की कोशिश करूंगी ।मैंने तो सिर्फ तुम को खो दिया है ।लेकिन तुम ने तो सब कुछ खोया ।अपना घर, परिवार, अपनी संतान ।रोज ईश्वर से प्रार्थना करूँगी मेरे मन को शांति प्रदान करें ।सब लोग तुम्हे अपने काँधे पर उठा रहे हैं ।

अंतिम विदाई का समय है ।अब कभी नहीं दिखाई दोगी तुम ।फिर तेरह दिन तुम्हारे क्रिया कर्म होता रहेगा ।लोग आयेंगे ।तरह तरह के पकवान पंडित जी को, और सारे लोग को परोसा जायेगा ।यह सब क्या हो रहा है? मै कैसे संतोष करूँ? कितना गलत लगता है कि बेटी के खत्म होने की भोजन करें ।नहीं मै शायद नहीं जाऊंगी ।यह सब तुम भी तो पसंद नहीं करती थी ।हमेशा कहती थी मृत्यु भोज कितना गलत लगता है माँ ।और आज एक बार फिर वही सब हो रहा है ।

मेरे आँसू थम ही नहीं रहे ।दो दिन के बाद तुम्हारा जन्मदिन है ।तुम को बहुत दिन जीने का आशीर्वाद भी नहीं दे सकती, तुम ने तो इस लायक मुझे छोड़ा ही नहीं ।इस बार सोचा था अपने घर में तुम्हारे जन्म दिन की खुशी मना लेंगे ।मौका ही नहीं दिया तुम ने ।यह मेरे साथ अन्याय नहीं तो और क्या है? मेरे जीवन में, मेरे पास हर जगह तुम्हारी मौजूदगी का अहसास होता रहेगा ।

यह बात भला तुम्हारी माँ से अधिक कौन महसूस कर सकता है ।बहुत समय बीत रहा है ।लोग लौट आए हैं तुम को छोड़ कर ।सिर मुंड़ाए सफेद वस्त्र पहने तुम्हारा बेटा अजीब सा लग रहा है ।शायद यही रीत है ।तुम्हारा दिया हुआ स्वेटर, शाल जब इस्तेमाल करूँगी तो तुम को ही महसूस कर लिया करूंगी ।शायद यही मेरी नियति है ।मै अपने घर की राह पर चलने लगीथी कि लगा तुम ने मुझे आवाज़ दी है ।मुड़ कर देखा तो सिर्फ सन्नाटा था ।मैने अपने मन में रख लिया है तुम को ।मै कैसे विदा कर सकती हूँ ।माँ हूँ तुमहारी।जाओ बेटा अगले जन्म में खूब सारी खुशियाँ मिले यही ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ ।ओम,शांति ।शान्ति ।”

 उमा वर्मा “

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