अनमोल रिश्ते – अभिलाषा कक्कड़

जीवन में सब रिश्ते होते हैं ख़ास माता पिता भाई बहन पति पत्नी और अपने बच्चे, बहुत लगाव और प्रेम से भरे हैं ये रिश्ते.. हो गया है कुछ समय इस बात को बेटे का फ़ोन आया और उसने बताया कि उसने नौकरी बदल ली है और ये नई नौकरी में उसे घर से ही काम करना है । इसलिए वो अब घर वापिस आ रहा है । हम दोनों की तो ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं रहा, सात साल से वो हमसे दूर था । पहले पढ़ाई फिर नौकरी बस फ़ोन पर ही बात होती थी या कभी कभार जब वो आता था । 

बहुत जल्दी ही जैसे समय बीता और वो दिन भी आ गया जब वो घर आ गया.. बहुत दिनों के बाद उसके साथ रहना हुआ .. थोड़ा बदल भी गया था । कम बात थोड़ा संजीदा समझदार और नख़रा तो बिलकुल भी नहीं । घर के छोटे बड़े काम में भी मदद कर देता था । अचानक एक दिन रात को मुझे लगा कि मेरी तबियत ठीक नहीं है । हल्का सा बुख़ार लग रहा था .. रसोई में काम कर रही थी तो कहने लगा कि मैं बाहर से खाना लेकर आ रहा हूँ और अपनी  बॉस  को फ़ोन कर दो की कल तुम नहीं आ रही । मैंने कहा मुझे कुछ नहीं है दवाई ले लूँगी ठीक हो जाऊँगी.. वैसे भी वो मुझे देगी भी नहीं क्योंकि मंगलवार को बहुत ज़्यादा काम होता है । लेकिन वो नहीं माना और ज़बरदस्ती मुझसे मैसेज भिजवाया । 

मेरी बात सही निकली उसका तुरंत जवाब आया कि वो छुट्टी नहीं दे सकती वो पहले से ही कम स्टाफ़ की दिक़्क़त में है । मैंने कहा मैं कह रही थी वो नहीं मानेंगी । मेरे बेटे को बहुत बुरा लगा और मुझसे कहने लगा कि तुम नौकरी छोड़ दो , अब मैं आ गया हूँ , मैं और पापा मिलकर घर चलायेंगे । उसकी बात सुनकर में हैरान रह गई और मन में ख़ुशी भी हुई कि बेटा को हमारा ख़्याल है । मैंने कहा छोटी सी बात पर कोई नौकरी नहीं छोड़ता पर आज लग रहा है तू सच में बड़ा हो गया । मेरे पति दूर बैठे हम दोनों की बातें सुनकर हँस रहे थे । जैसे ही वो अपने कमरे में गया मेरे पति ने मज़ाक़ में मेरी चुटकी लेते हुए कहा.. वाह बड़ी ख़ुश हो रही है तेरे बेटे ने तो तुझे बैठें बिठाये धनी बना दिया. मैंने कहा आपने सही कहा धनी तो मैं सच में हो गई । आज धन विचारणीय नहीं है बेटा विचारों से धनी है यह विचारणीय हैं । यह ख़ास है ,हमारे दिये हुए संस्कार धनी हो गये ।

स्वरचित रचना

अभिलाषा कक्कड़

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