अनकही टीस – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

सौम्या की छोटी बेटी छुट्टियों में घर आई थी,अपनी सहेली की दीदी की शादी में।आकर उसने बड़े चाव से शादी में पहनने के कपड़े दिखाने जैसे ही शुरू किए ,सौम्या बेटे के साथ मिलकर मजाक उड़ाने लगी”अरे,ये लंहगा तो अच्छा नहीं लगेगा,कुछ और पहनना”ज्वेलरी में भी मीन-मेख निकालती रही सौम्या।बेटी पिछले बारह सालों से बाहर रह रही थी।

पहले पढ़ाई के लिए,फिर नौकरी लगने की वजह से।अपने पापा और दादाजी की लाड़ली स्निग्धा (बेटी) वैसा लाड़ शायद कभी मां से पा ही नहीं सकी।बचपन से उसने अपनी मां को नौकरी और ट्यूशन में व्यस्त ही पाया।सौम्या का बड़ा बेटा,दादी का लाड़ला था,तो वह अधिकांश समय दादी के साथ ही गुजारता था। स्निग्धा को हमेशा मां ही चाहिए होती थी,और मां उपलब्ध नहीं रहती थी।

पापा ने पर बेटी को रानी सा मान दिया था। दसवीं के बाद बाहर पढ़ाने का निर्णय भी सौम्या ने ही लिया था।बेटी की भलाई का जिम्मा ख़ुद को स्वत:ही सौंप रखा था उसने।सौम्या के पति कभी नहीं चाहते थे,पर पढ़ाई के नाम पर मान ही गए थे।

जब से स्निग्धा बाहर निकली,सब कुछ खुद ही करने की आदत सीख ली थी उसने।अपने पापा की चहेती तो थी,पर मां के लिए कुछ भी कर जाने का कलेजा था उसका।बाहर रहते-रहते उसका कमरा,उसके खिलौने,आलमारी कब उसके ना रहे पता ही नहीं चला।दूसरी तरफ बेटा पिता की बीमारी के चलते बाहर गया नहीं,तो घर पर उसका ही आधिपत्य स्थापित होने लगा।

पति की बीमारी के चलते अब सौम्या का बेटा(सौरभ) घर की सारी जिम्मेदारी उठाने लगा था।बड़ा भाई होने के कारण छोटी बहन के प्रति अत्यधिक सुरक्षात्मक रवैया था उसका।पति की लगातार बिगड़ती हुई शारीरिक अवस्था की वजह से सौम्या भी अब बेटे पर निर्भर रहने लगी। स्निग्धा जब भी घर आती,पापा की हालत देखकर चिंतित हो जाती।

पिता की जगह भाई को घर की बागडोर संभालते देखना शायद उसे अच्छा नहीं लगता था।औरतों की हमेशा से ही पुरुष के ऊपर निर्भरता रहती है,सो सौम्या भी खुशी-खुशी बेटे पर निर्भर रहने लगी। स्निग्धा की पढ़ाई पूरी होने वाली थी,गोल्ड मेडल मिलना था उसे यूनिवर्सिटी से।पापा को सबसे पहले खुशखबरी सुनाई थी उसने,तो पापा ने बड़े गर्व से कहा था सौम्या से”सौम्या देखा,मेरी बेटी ने हमारे खानदान का नाम रोशन किया है।

मेडल लेने चलेंगे हम।एक बनारसी साड़ी खरीदूंगा तुम्हारे लिए और अपने लिए सूट।बैंड बाजा लेकर चलेंगे हम यूनिवर्सिटी।मेरी बेटी तो लाखों में एक है।”विधाता को शायद यह मंजूर नहीं था।मेडल मिलने के पहले ही वो चल बसे।एक पत्नी ने अपना पति खोया था,एक बूढ़ी मां ने अपना इकलौता बेटा,बेटे ने अपना पिता खोया था।

सबसे ज्यादा क्षति जिसकी हुई थी,वह थी स्निग्धा।उसने कहा था “मम्मी,मैंने अपना वजूद खो दिया।एक राजकुमारी ने राजा को खोया है।मैं रोकर उन्हें तकलीफ नहीं दूंगी,मैं उन्हें हमेशा गौरवान्वित ही करूंगी।”

सच में स्निग्धा ने मां,भाई और दादी को पूरी तरह से संभाल लिया था।सारे अनुष्ठान उसने अपनी देखरेख में ही पूरे करवाए।अब वह बड़े भाई की बहन नहीं,बड़ी बहन बन चुकी थी।नौकरी लगने पर नए शहर में घर ढूंढ़ने से लेकर वहां ख़ुद को व्यवस्थित उसने अकेले ही किया था।सौम्या और बेटे की हर जरूरत पर दौड़ी आ जाती थी।

जब-जब सौम्या को कहीं जाना होता,तो वह आकर घर और दादी को संभालती थी।सौम्या बेटे के साथ अपने सामाजिक शिष्टाचार उसी की वजह से निभा पाती थी।समय बीतने के साथ कब सौम्या ने बेटी को पराया मान लिया पता ही नहीं चला।उसका सारा सामान अब एक बॉक्स में रख दिया गया था।

दादी के साथ शुरू से सौरभ होता था तो कुछ नया नहीं हुआ उसके लिए,पर सौम्या का कमरा भी बदल गया या बदल दिया गया।सौम्या और सौरभ यह मानकर ही खुश होते रहें कि बोनू (स्निग्धा) तो सब कर लेती है अच्छे से।यहां तक कि वही दिन में दो बार फोन करती थी भाई और मां को।उसके फोन आने पर अपनी राम कहानी ही सुनाते मां -बेटा उसे।

सौम्या ने शायद कभी यह सोचा ही नहीं कि दूसरे शहर में उसे भी बहुत सारी दिक्कतें होती होंगीं।जब भी वह आती,या तो सौम्या व्यस्त रहती अपने स्कूल में या तो वह अपने ऑफिस के काम में।

कई बार दूर रहने से हम सिर्फ औपचारिकता ही निभाने लगते हैं बच्चों से।घर में अधिकांश मामलों में निर्णय लेने के बाद ही सौम्या बेटी को बताती। धीरे-धीरे उसने भी अपने आप को इसी परिवर्तन में ढाल लिया था।अपनी मां के मुंह से हमेशा बेटे की तारीफ सुन-सुनकर उसे अब अपनी प्रशंसा की अपेक्षा भी नहीं रह गई थी मां से।इस बार आई तो सौम्या के साथ ही सोना पड़ा था

उसे,ए सी बिगड़े होने के कारण।रात को जब सौम्या सोने जाती तब,बेटी को ऑफिस का काम करते देखकर चिढ़कर पूछती”कब खत्म होगा रे तेरा काम?दिन -रात लैपटॉप में लगी रहती है।रात में तो कम से समय निकाला कर अपनी मां से बात करने का।अब बहुत एटीट्यूड आ गया है तुझ में।

पैसे कमाने लगी है ना!भाई से तक बात करने का समय नहीं है तेरे पास।”अब उसने शिकायत भी नहीं करी पहले की तरह।हंसकर लैपटॉप बंद कर गले में बाहें लपेट कर चिपक गई।बात करते-करते सौम्या खुद ही सो गई जाने कब।

सहेली की दीदी की शादी में सौम्या और सौरभ भी गए,जहां स्निग्धा पहले से ही थी। स्निग्धा को देखकर सौम्या चिर परिचित अंदाज में वही सिर्फ मुस्कुरा दी,प्रशंसा तो कभी की नहीं थी उसने।उसी के सामने उसकी सहेली की जोरदार तारीफ की उसके पोशाक की। स्निग्धा की आंखों में तैरती हुई बूंदें ऐसा नहीं कि सौम्या को दिखी नहीं,पर उसने गंभीरता से नहीं लिया।

अगले दिन घर आकर जब वह शांत रही तो सौरभ भी बोलने लगा”कितना एटीट्यूड हो गया है तुझे बोनू।बात तक नहीं करती आजकल।सौम्या ने तब भी बेटे को नहीं टोका हमेशा की तरह।कब कहां जाना है,किसको क्या देना है?यह सब सौरभ ही निर्णय लेने लगा था आजकल।अचानक एक दिन सौरभ की अनुपस्थिति में स्निग्धा से सौम्या की किसी बात पर बहस चलने लगी भाई को लेकर।

सौम्या ने जोर से बेटी को ही डांटकर चुप करा दिया” बड़ा भाई होकर वह तेरा कितना ख्याल रखता है।अब बाहर रहकर तुझे असल में घर अच्छा नहीं लगता। रिश्तेदार नहीं सुहाते।किसी फंक्शन में जाना नहीं अच्छा लगता,क्यों?तूने तो खुद को अभी से पराया कर लिया अपने घर से।तेरा क्या कोई नहीं यहां अपना?पैसे खर्च करती है,तभी इतना बात सुनाती है ना।

मत किया कर कुछ हम लोगों के लिए।दादा को भी जब तब उपहार देने की जरूरत नहीं।तू यहां आती तो है,पर यहां की रहती नहीं।बाहर जाकर रहना ही पसंद आने लगता है अब तुम लोगों को।भाई को हर बात में क्यों टोकती है?तेरी भलाई के लिए ही तो कहता है सब कुछ।”सौम्या गुस्से से तिलमिलाई हुई थी ,तो आंखें भी बरसने लगी।

स्निग्धा ने आकर सौम्या के आंसू पोंछें और रोते हुए कहा”मम्मी,पापा के जाने के बाद अब मेरा भाई पापा क्यों बनने की कोशिश करने लगा है?क्यों आप सभी के पास अपना दुखड़ा सुनाने लगतीं हैं आजकल कि पहले बहन की शादी करेगा,तभी तो सौरभ कर पाएगा शादी।मैंने पापा के अलावा कभी किसी से कुछ नहीं मांगा,आपसे भी नहीं।

आप दादा के ऊपर सारे घर की जिम्मेदारी देकर खुद मुक्त हो गई हैं।इस बात का असर दादा के व्यवहार में भी दिखने लगा है आजकल।मेरा भाई है ना ,तो भाई ही बना रहने दीजिए।क्यों उसे पिता बनाने पर तुली हुई हैं।घर के सारे छोटे बड़े फैसले उसके ऊपर छोड़ने की जो गलती की है आपने,इसका मुआवजा आपको ही भरना पड़ेगा।मैं छोटी हूं तो,हुकुम चलाता रहता है,तुमसे भी झल्लाकर बात करने लगा है।कभी सोचा है आपने,इसका जिम्मेदार आप हैं सिर्फ आप।

आपकी वजह से हम भाई-बहन के बीच दूरियां बढ़ रहीं हैं।क्यों मेरी शादी के बाद ही उसे करनी है शादी?लोग तो यही सोचते हैं कि दादा के ऊपर ही मेरी शादी की जिम्मेदारी है।ऐसा नहीं है ना मम्मी।पापा रख गएं हैं ना मेरी शादी के पैसे।मुझे बार-बार यह अहसास क्यों दिलाते हो आप दोनों,कि मेरा बोझ है तुम सब पर।अरे दादा करें ना अपनी शादी पहले।

या तो दोनों की आप साथ में करवा दो।आप दोनों कभी इस बात की जरूरत ही नहीं समझते कि मेरी राय पूछें।मेरा एक भी सामान आज मिलता नहीं मुझे।मेरी आलमारी ने आपने बाकी कपड़े रख लिएं हैं ठूंसकर।इस घर में मेरी चर्चा सिर्फ जरूरत के समय होती है।कभी आप लोग अपने से फोन करके नहीं पूछते कि मैं कैसी हूं,मुझे कोई परेशानी तो नहीं?

आप लोगों को क्या लगता है?बाहर लड़की का रहना और नौकरी करना इतना आसान है?हजारों मुसीबतें आती हैं। हर दूसरे-तीसरे दिन बिल्डिंग में पानी नहीं आता।वहां कोई बाई नहीं मिलती।आप लोगों ने तो मान ही लिया है कि मैं सारी परिस्थितियों में जी लूंगी।मुझे सब संभालना आता है।

मम्मी,कभी आपने मुझे संभालने की बात सोची।दादा को कभी कहा आपने कि नई जगह रहती हूं तो देख आए?? मम्मी मैं आपको बात-बात पर जो टोकती हूं ना,वह सिर्फ इसलिए कि आपकी यह बदली हुई आदत भाभी के आने पर कलह का कारण बनेगी।हमेशा मेरा बेटा बहुत अच्छा है कि रट जो लगाए रहतीं हैं ना आप उसके सामने।अब उसे सभी से यही सुनने की आदत हो गई है।घर के काम उससे क्यों नहीं करवाए आपने,या सिखा ही दिया होता।शादी के बाद क्या उसकी बीवी सारा दिन घर समेटती रहेगी।

बड़े भाई का रुतबा आपने ही सिखाया है उसे।अब उसे अपने मतलब के लिए,इस ट्रंप कार्ड का इस्तेमाल करना आ गया है।सोचिए जरा ,यह आदत कल को किसी दूसरी लड़की के लिए अच्छी लगेगी।आप मां हो तो बच्चों को परिवार में मिलकर काम करवाना सिखाना चाहिए था ना।मेरा क्या है,पराया तो आप लोगों ने बहुत पहले ही कर दिया है।कुछ दिनों बाद आप बोलोगी ,”मम्मू,दादा पसंद किया है लड़का।अच्छा ही होगा।एक बार देख ले मिल लें।

बाद में अगर पसंद ना हो तो मना कर देना”।आपका यह पैंतरा मुझे मना करने की गुंजाइश भी नहीं देगा। मम्मी शादी हो जाएगी,पर उससे पहले ही आप लोगों ने मुझे पराया कर दिया।जब तकलीफ का समय होता है,तब सब एक हो जातें हैं,लेकिन जब खुशियां आतीं हैं,मैं नहीं रहती तुम लोगों के संग ,ऐसे इंद्रधनुषी रंगों में मेरे हिस्से सिर्फ खबर ही मिलती है।

मम्मी मेरे लिए ना सही अपनी होने वाली बहू के लायक बनाओ पहले अपने बेटे को और अपने को।मैं अब से कुछ नहीं कहूंगी,चाहे कोई भी आपसे गलत करें।दादा को भी नहीं बोलूंगी या टोकूंगी,जब वो आपसे गंदी तरह से बात करे।”अपने आंसुओं के साथ-साथ स्निग्धा सौम्या के आंसू भी पोंछ रही थी।

“मुझे माफ़ कर दीजिए मम्मी,मैंने आपका या दादा का दिल दुखाया है उसके लिए।अब मैं आप दोनों को कुछ भी नहीं बोलूंगी।आप मां हो हमारी।पापा के जाने के बाद अकेली मुखिया आप हो।आपने अपने होते हुए दादा को अपनी जगह क्यों दे दी?आप डांटती क्यों नहीं‌ अब मुझे या दादा को कुछ गलती करने पर।

आपका आत्मविश्वास धीरे-धीरे बहुत कमजोर होता जा रहा है आजकल।किस बात की नकारात्मकता आ गई है अब आपमें?सारे निर्णय पापा के रहते हुए भी आप लेतीं थीं।हमारी पढ़ाई, कॉलेज,जाने का,सारे बोल्ड निर्णय आप ने अकेले लिया था मम्मी बिना पापा के हां या ना सुने।और आजकल हर काम में बिचारी बनकर या तो दादा से पूछती हो या मुझसे।

क्यों? मम्मी तो आप हैं ना।इस बड़े घर में हमेशा बड़ी बनकर आप अपना निर्णय सुनाया करती थीं,सब मानते थे।और अब छोटी से छोटी बात दादा से या मुझसे पूछकर करती हो,क्यों?तुम्हारा रुतबा क्यों कम हो गया।आज भी पापा की पेंशन मिलती है यहां।दादा का पैसा थोड़ी खर्च करती हो तुम।फिर यह नकारात्मकता कब से कहां से भर रही है तुम्हारे अंदर।मुझे तो इस घर का कुछ दिन का मेहमान मान ही बैठी हो।तुम्हें भी अब मेरे बिना रहने आदत पड़ गई है मम्मी।अब मेरा ज्यादा दिन रहना नहीं भाता आप लोगों को।

दादा तो हंसकर कह देता है,सामान पैक कर लें जल्दी,जा अपने पुणे।तुम बस कह नहीं पाती मम्मी।इस घर में अब मेरा कुछ भी नहीं ,कोई भी नहीं।आप रहो अपने बेटे की हां में हां मिलाकर।मैं दादा को अपने पिता की जगह कभी नहीं दे सकती। प्लीज़ मम्मी हम भाई-बहनों के बीच में दरार मत डालिए आप।

नहीं चाहोगे आप लोग तो नहीं आऊंगी मैं।बेटे की हर बात में हां मिलाते रहने से वो अब किसी की ना सुनना ही नहीं चाहता”स्निग्धा पहली बार इतना सब बोली।उसके मन की अनकही पीड़ा आंसू बन कर निकल रहे थे।सौम्या को आज खुद से ही शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा।सौ फीसदी सच कहा था बेटी ने।रोते हुए बेटी को जोर से अपनी ओर खींच लिया सौम्या ने।

दोनों मां बेटी जार-जार रोए जा रहे थे।मां को लग रहा था कि, बेटी दूर हो रही है उससे।आज बेटी ने प्रमाणित कर दी सौम्या की ग़लती।सौम्या ने मां होकर बेटी की पीड़ा नहीं समझी।कितनी आहत हुई होगी अंदर से।दोनों लिपटकर रोते हुए कह भी रहे थे,”खुश रहा करो ना।पापा को आंसू पसंद नहीं थे ना।रोना बंद करो ।

आज मानो तीस साल के बाद कोई भूकंप आया, सौम्या के जीवन में सच और झूठ उलट पलट कर दिखा दिया।हम खुद ही अपनी जरूरतों के हिसाब से बच्चों के साथ व्यवहार करते हैं।जब जिसकी ज्यादा जरूरत,बस उसकी तारीफ कर दो।चढ़ा दो उसे चने के झाड़ पर।काम भी हो जाते हैं,बेटा भी खुश।सौम्या ने बेटी का हांथ पकड़ कर माफी मांगी अपने किए की। जानबूझकर हो या अनजाने में,मां बेटों की तरफदारी में ये भूल जातीं हैं कि बेटियां भी अपना अस्तित्व रखती हैं घर में और खूब रखती हैं।

आज आंखों से बहती धारा के साथ सौम्या और स्निग्धा के मन की गांठ गल गई थी।अब ऐसी नौबत कभी आने नहीं देगी सौम्या,घर की मालकिन वहीं तो है। जिम्मेदारी भी उसी की है,बेटा सिर्फ मदद करेगा,अहसान नहीं।

शुभ्रा बैनर्जी

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