“सर जी! मैं ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं हूँ..कोई काम मिलेगा क्या आपके पास”
मैंने गौर से देखा उसे। लगभग 14 साल का होगा। थका हारा पर आँखों में उम्मीद और शायद परिवार की जिम्मेदारी दोनों थी। अपना बचपन याद आ गया जब माँ बाप गुजर गए थे और मनोहर भी छोटा था। तब पुजारी बाबा ने हमारी मदद की थी
“कहाँ तक पढ़ाई की है”
“आठवीं में हूँ पर अब पढ़ाई नहीं करनी” बात चीत से लड़का बड़ा भोला लगा
“क्यूँ क्या हो गया….?
कुछ देर एकदम से चुप रहा फिर
“अंकल! माँ ने किसी दोस्त के साथ मिलकर पापा को मार डाला। अब वो जेल में है और घर में मुझसे छोटा एक भाई और एक बहन भी है।आसपास वालों ने हमसे दूरी बना ली है। कहते हैं कि पता नहीं कब पुलिस आ जाये “
सुनकर मन करुणा और गुस्से से भर गया। कैसे होते हैं ऐसे माँ बाप जो इस तरह का कदम उठा लेते हैं और छोड़ जाते हैं अपने पीछे अपनी ही औलाद को अंधेरी दुनिया में। मेरा हाथ उसके माथे पर चला गया
“बेटे तुमने शायद इस ट्रांसपोर्ट कंपनी के आगे लिखे बोर्ड पर नहीं देखा। यहाँ अठारह बरस से कम लोगों को काम नहीं दिया जाता।और तुम तो अभी बहुत छोटे हो”
मेरी बात सुन वो गहरे मायूसी में वापस लौट आया था।शायद इसने काम माँगने की बहुत कोशिश की थी। मैं असमंजस में था। एक तो इसकी उम्र और दूसरा मेरा छोटा सा ट्रांसपोर्ट कंपनी है जिसमें पहले से ही मैंने पर्याप्त लोगों को काम पर रखा हुआ है। लड़का बार बार गेट की तरफ देख रहा था। मैंने उधर देखा तो लगभग दस साल का एक लड़का और पाँच साल की एक छोटी सी लड़की सहमे हुए खड़े थे।समझते देर ना लगी कि वो इसके भाई बहन हैं। मैंने इशारे से इधर बुलाया तो वो सकपकाते हुए चले आये। भूखे लग रहे थे। मैंने अपना लंच बॉक्स उन्हें दे दिया। मन को बहुत तसल्ली मिली। मैंने डरते हुए पत्नी को फ़ोन लगाया और एक साँस में अपनी बात कह दी
“वसुधा! तीन बच्चे हैं बिचारे, अचानक अनाथ हो गये हैं। जैसे मैं हो गया था बचपन में। तब पुजारी बाबा थे और जमाना भी इतना बुरा नहीं था।किसी तरह खुद को संभाल लिया था मैंने। तुम समझ रही हो ना..इनके साथ एक छोटी लड़की भी है.. ये कैसे रहेगी ..तुम आये दिन न्यूज़ तो सुनती हो ना” वाणी मूक हो गई ये कहते कहते।वसुधा का कोई जवाब नहीं आया। मैं कुछ देर खामोश बैठा रहा। बच्चे जाने को हुए ही थे कि वसुधा चली आई
“सूनो बच्चों! तुम ज्यादा बदमाशी तो नहीं करते ना? वसुधा ने लड़की को गोद में लेते हुए पूछा
उन्होंने ना में सर हिलाया। मेरी आँखें भर आईं
“फिर ठीक है, पढ़ाई भी करना और घर में मेरा हाथ भी बटाना। तुम्हारे भाई लोग अब बाहर पढ़ाई करने चले गए हैं ना तो मैं भी अकेली ही रहती हूँ” वो उन्हें अपने साथ लेकर जा रही थी। जाते जाते उसने हँस कर मेरी तरफ देखा। उसे देख लगा कि जबतक पुजारी बाबा और वसुधा जैसे लोग हैं
हम बिना माँ बाप के बच्चे अनाथ नहीं होते..!
विनय कुमार मिश्रा