3 महीने कोमा में रहने के बाद अम्मा का अनकहा इंतजार खत्म हुआ और उनकी आत्मा को को आखिर इस देह और स्वार्थी संसार से मुक्ति मिल ही गई। संसार तो वो तभी त्याग चुकी थी जब वह धीरे-धीरे कोमा में आई थी। लेकिन सांसों की माला के आखिरी मोती गिरने तक कोई भी प्राणी इस संसार से नहीं जा सकता ।यह शगुन ने अपनी दादी सास के जीवन के कुछ अंतिम समय में ही देखा और सीखा।
आज शगुन के ससुर जी रो रहे थे जो अम्मा को न जाने कब का छोड़कर अपनी पत्नी के साथ और छोटे बेटे के साथ एक पाँश कालोनी में अलग मकान में रहने जा चुके थे।
अम्मा के दो पोतो में से अम्मा भी अपने बड़े पोते सोनू को यानी शगुन के पति को बहुत प्रेम करती थी। जब शगुन के ससुर जी को घर छोड़कर जाना था तो वह यह कहकर और समाज को दिखा कर चले गए की अम्मा का सोनू में ज्यादा मन है तो इसलिए सोनू अम्मा के साथ ही रहेगा।
सोनू बेचारा सीधा साधा, कुछ ना बोला,ना जाने कौन जन्मों के प्रतापो का फल हर उस रिश्ते को सोनू के रुप में मिला था, जो किसी न किसी रूप में सोनू से बंधा था।
शगुन अभी तक अपने ससुर जी को अच्छे से समझ नहीं पा रही थी,वो सोचती क्या ससुर जी सच में ऐसे ही है या वो खुद गलत समझ रही है।धीरे-धीरे शगुन के विवाह को 12 वर्ष हो गए और ये बारह वर्षों में दादी सास के साथ उनके प्यार और ममता की छांव में कैसे निकल गए उसे पता ही नहीं चला , हालांकि शगुन के दोनों छोटे बच्चे थे पर वो एक पैर पर नाच कर पूरे परिवार को संभालती।
वह निस्वार्थ अपने पति के साथ अपनी दादी सास की सेवा करती, और दादी सास भी उसे लाड़ लड़ाकर अपना स्नेह दिखातीं। जब तक दादी सास सही थीं, ससुर जी भी रोज उनके पास आते रहे, अम्मा भी अपने बेटे को बहुत प्रेम करती बस अम्मा की अपनी बहू से यानि शगुन की सास से कभी ना जमी, क्योंकि उनकी बहू यानि शगुन की सास कुछ अलग ही मिजाज की थी।
कभी-कभी शगुन को लगता कि ससुर जी भी कुछ गेम खेल रहे हैं, सभी बातें सासू मां के कंधे पर रखकर गोली चला देते और अपनी जिम्मेदारियां से साफ बचकर निकल जाते । शायद अम्मा भी अपने बेटे को अच्छे से जान रही थी पर एक मां कैसे अपने ही कोख जने की बुराई समाज में कर सकती थी। वह भी बस अपनी बहू में खोट निकाल कर दिल की भड़ास निकाल लेती।
स्वार्थी संसार के असली चेहरे ,रिश्तो के असली धागे तो अम्मा अब पहचान पा रहीं थीं, अंतिम समय में ही अम्मा ने इस जग के रिश्तो को अच्छे से पहचाना, असली मोहरा तो इस सब में शगुन और उसके पति सोनू को बनाया गया। अम्मा का बुढ़ापे का शरीर था,
धीरे-धीरे थकना ही था। रात में जब तब चम्मच कटोरी बजाकर अम्मा अपने पोते सोनू और शगुन को अपने पास बुला लेती, कभी-कभी शगुन सोचती शायद उनके नसीब ज्यादा अच्छे हैं जो ईश्वर ने अम्मा की सेवा के लिए उन्हें चुना है ।
अब जो घर में अम्मा के पास रहेगा तो वही तो उनकी आवाज सुनेगा ना। अम्मा बीमार होती तो अगले दिन सारा घर इकट्ठा हो जाता, उनसे आशीर्वाद लेने उनको झूठी ममता दिखाने । अम्मा भी स्वार्थी रिश्तों को समझ रही थी शायद उनकी एफडी पर उनके साइन लेने के लिए या उनके गहने लेने के लिए सब तिकड़म लड़ाते रहते थे,
धीरे-धीरे अम्मा के पास से लगभग सब कुछ खत्म हो चला था । एक दिन शगुन जब अपने मायके अपने भाई की शादी में अपने पति के साथ गई थी तो एक सेवक अम्मा की देखभाल के लिए छोड़ कर गए थे, पर फिर भी समय खराब हो तो कोई नहीं रोक सकता। उस रात अम्मा ना जाने कैसे कम्बल में पैर अटकने के कारण जमीन पर गिर पड़ी और पूरी रात ठंड के मौसम में जमीन पर गिरी पड़ी रही,
ना जाने उस सेवक ने भी उनकी कोई आवाज कैसे ना सुनी, बस उस दिन का दिन था और तब से अम्मा बिस्तर पर थी , बिस्तर पर ही उनके सब काम होते ।सब उनसे मिलने आते पर कोई उन्हें या उनके काम में हाथ ना लगाता ।अम्मा की दो बेटियों में से एक बेटी जो बहुत ही प्रेम अम्मा से करती थी, वह अम्मा की हालत देखकर बहुत रोती, दो-चार दिन सेवा भी करती पर आखिर में थक-हारकर बेटी को तो अपने घर
जाना ही होता है। तो वह शगुन के पति और शगुन से कहती तुम दोनों को देखना अम्मा के ढेरों आशीर्वाद मिलेंगे, क्योंकि तुम दोनों मन से अम्मा की बहुत सेवा कर रहे हो, इतना कहकर और अपने भी आशीवादों से उन दोनों की झोली भरकर चली जाती थीं।
बाकी सब तो सिर्फ अम्मा से आशीर्वाद लेते, बच्चों के सिर पर जबरदस्ती उनका हाथ रखवाते, उनके हाथों से रुपए दिलवाते पर अम्मा की पीड़ा कोई ना समझता, धीरे-धीरे अम्मा ने बिस्तर से भी उठना बंद कर दिया उनकी कमर में बेडसोल हो गये, एक दिन उनकी कमर पर गहरा घाव और उनकी तकलीफ देखकर शगुन को चक्कर आ गया,
ह्रदय पीड़ा से भर गया, असल में तो शगुन किसी का भी दुख बर्दाश्त नहीं कर सकती थी। शगुन ने अपने ससुर जी को फोन करके कहा कि अम्मा का जल्द से जल्द किसी डॉक्टर से इलाज कराया जाये, इस पर भी उसके ससुर जी कह रहे थे कि बेटा फिक्र की कोई बात नहीं है इस उम्र में लेटे-लेटे ऐसा हो ही जाता है, पर शगुन भी ना जाने कहां से हिम्मत आ गई थी,
जैसे द्रढं संकल्प लेकर खड़ी हुई थी, आज मानवता और पोत बहू होने के दायित्व निभाने का। उससे किसी का दुख नहीं देखा जाता था ,वो आज थोड़ा सख्त हो गई अब ससुर जी मजबूरन एक डॉक्टर को लेकर घर आये। अम्मा अपने बेटे को 15 दिन से याद कर रही थी आज अपने बेटे को देखकर थोड़ी चिंता मुक्त हुई।रोने लगी पर कह कुछ ना सकी।
लेकिन डॉक्टर ने अम्मा को अस्पताल में भर्ती करने के लिए बोल दिया ,उसी दिन अम्मा को अस्पताल में एडमिट कराने के लिए ले जाने लगे, जाते समय अम्मा निरिह नजरों से शगुन और सोनू को देख रही थी ।उन्हें अस्पताल नहीं जाना था पर अब उन्हें अस्पताल में भर्ती कर दिया गया । अब शगुन जब भी अस्पताल में अम्मा से मिलने जाती हैं तो नर्स बताती की रात में या दिन में अम्मा कभी भी चीखने लगती है, कहती हैं मेरे सोनू को बुला दो ,मेरी बहू को बुला दो …
सोनू तो वैसे भी ईश्वर का ही रूप था,जो जैसै कहता , वो करता जाता और ठगा जाता रहा। यूं करते-करते ढाई तीन महीना निकल गए। जिस दिन अम्मा ने प्राण त्यागे उस दिन भी आखिरी नजर अम्मा की अपने पोते सोनू से ही मिली थी, शायद यह उनका आशीर्वाद था जो अपने पोते को देना चाहती थी ।
और आज जब अम्मा आंगन में निर्जीव पड़ी है संसार के सारे स्वार्थी रिश्ते रोने का ढोंग कर रहे हैं। शगुन को महसूस होता है जैसे सारे गिरगिट अपने ही आंगन में एक साथ खड़े हैं ।अपनी अंतिम यात्रा पर अम्मा तो निकल ही पड़ी थी, और उन्हें मुक्ति मिल गई,पर आज ठीक 12 वर्षों बाद शगुन के ससुर जी भी ठीक उसी तरह बिस्तर पर है और एक अनकहे प्रायश्चित के साथ इंतजार कर रहे है अपने किसी का,….और फिर वही दुनिया और उसके स्वार्थी रिश्ते वही कहानी दोहरा रहे हैं।
ऋतु गुप्ता
खुर्जा बुलन्दशहर
उत्तर प्रदेश
#प्रायश्चित