हां..अल्हड़ ही सी थी वो जब वो ब्याह कर हमारे घर आई थी।मेरे साथ- साथ कितने ही रिश्तो में बंध गई थी वो।19 साल की छोटी सी उम्र में ब्याह कर ससुराल आते ही वह इधर-उधर टुकुर-टुकुर देख रही थी।कोई उसे चाची, कोई मामी और कोई भाभी बुला रहा था। इतने बड़े संयुक्त परिवार को देखते हुए शायद थोड़ी घबराहट थी उसके मन में और इसी घबराहट को भांपते हुए मैंने उसका हाथ पकड़ा और बोली,”चलो, आओ तुम्हारा कमरा तुम्हें दिखा देती हूं” और एक आज्ञाकारी बच्चे की तरह वह मेरे साथ-साथ चल पड़ी। उसे कमरे में बिठाते हुए मैं उससे बोली,” इस घर को अपना घर समझो.. यहां सारे बहुत ही प्यार करने वाले हैं।कुछ समय लगेगा पर धीरे-धीरे सब जान जाओगी” और उसने चुपचाप हां में सर हिला दिया।
अगले दिन उसकी पहली रसोई थी।मैं जानती थी कि उसे कुछ खास बनाना नहीं आता होगा तो खाना बनाने में उसकी मदद की और उसकी धन्यवाद कहती आंखें मैं आज तक भूल नहीं सकती।
बड़ी प्यारी थी वह..छोटी सी।उसके पिता मेरे चाचा ससुर के दोस्त थे और अपनी बीमारी के चलते अपनी बिन मां की इकलौती बेटी को अच्छे हाथों में देना चाहते थे। हमारा बड़ा संयुक्त परिवार था जिसमें दादी सास, सास ससुर के साथ चाचा ससुर, चाची सास उनके बच्चे,मैं, मेरे पति और बच्चे,मेरा देवर और ननद थी जो दूसरे शहर में ब्याही थी।इतने बड़े संयुक्त परिवार में वह कैसे निभा पाएगी इस बात की चिंता उसके पिता को भी थी पर चाचा ससुर के आश्वासन ने उन्हें बहुत दिलासा दिया था।
कुछ दिनों में वह सबसे हिल मिल गई थी।मेरे बच्चों और चाचा ससुर के बच्चों के साथ उसकी खूब पटती ।अक्सर शाम को उनके स्कूल कॉलेज से आने का वो इंतज़ार करती और फिर उनके साथ खूब हंसती खेलती।धीरे-धीरे उसने अपने व्यवहार से उसने दादी सास का मन मोह लिया था।उनके घुटनों की तेल मालिश करती.. उनको अपने शहर और अपनी मां के बारे में बातें बताती और अक्सर अपनी मां के बारे में बात करते-करते उसका गला रुंध जाता..जिसे देखकर दादी सास उसे गले लगा
उसे खूब प्यार करती।हां, मेरी सास थोड़ी कड़क स्वभाव की थी परंतु इतने बड़े संयुक्त परिवार को संभालने के लिए शायद थोड़ा कड़क होना भी ज़रूरी था।उनसे वह इतना खुलकर बात नहीं करती थी पर मुझे अपने दिल की हर बात बताती। कभी-कभी मेरी सहेलियों भी मुझे कहती कि कैसे निभाती है तू अपने इस अल्हड़ सी देवरानी से और मैं हंस कर कहती कि जैसे अपने बच्चों के साथ निभाती हूं।चाची सास भी हम दोनों बहुओं को खूब प्यार देती और मेरी ननंद जब भी अपने मायके आती दोनों भाभियों के साथ सहेलियों की तरह रहती।
एक दिन देवर जी ने उसे आगे पढ़ने के लिए कहा। हमारी सब की सहमति थी।बस फिर क्या था.. सबके साथ और प्रोत्साहन से उसने आगे पढ़ना शुरू किया। धीरे-धीरे वह पढ़ाई करती गई और कुछ सालों में उसने पहले ग्रेजुएशन फिर पोस्ट ग्रेजुएशन और बीएड कर लिया।अब वह एक बच्ची की मां भी बन चुकी थी और एक परिपक्व स्त्री भी जिसने कि अब घर के कामों को भी खूबी संभालना सीख लिया था।उसकी मेहनत रंग लाई और एक सरकारी स्कूल में उसे अध्यापन की नौकरी मिल गई।
अब वह एक समझदार स्त्री बन गई थी।नौकरी पर जाने से पहले घर के कुछ काम करती और स्कूल से आने के बाद मेरे बच्चों और अपनी बेटी की पढ़ाई का भी पूरा ध्यान देती।इन सालों में चाचा ससुर के दोनों बच्चे भी अपनी नौकरियों के चलते विदेश चले गए थे और वहीं पर उनकी शादी भी हो गई थी।फिर कुछ सालों में चाची सास और चाचा ससुर भी बच्चों के पास चले गए।
आज इतने सालों के बाद जब मैं उसे देखती हूं तो वह मेरी अल्हड़ सी देवरानी जो दीन -दुनिया के बारे में कुछ नहीं जानती थी…ना ही जिसे रिश्तों की समझ थी पर आज वह एक सरकारी स्कूल में उप प्रधानाचार्य के पद पर है और अपने रिश्तों को बखूबी निभाना सीख गई है।आज दादी सास हमारे बीच में नहीं है पर उनकी तस्वीर के आगे वह रोज़ दीया जलाना नहीं भूलती ।सास ससुर अब बुज़ुर्ग हो गए हैं।वह सास ससुर की दवा और सेहत का पूरा ध्यान रखती है। नौकरी के साथ-साथ घर में पूरा सामंजस्य बिठाना उसने बखूबी समझ लिया है।
मेरे बच्चों के लिए उनकी फेवरेट चाची है।अपनी बात वह मुझे चाहे बताएं या नहीं पर उससे दिल खोल कर बात करते हैं और अपनी पढ़ाई में भी उसकी सलाह लेते हैं।हां, उसकी बेटी ज़रूर मेरे आगे पीछे घूमती रहती है।आज जब भी कोई रिश्तेदारी में उसकी तारीफ करता है तो वह यही कहती है कि आज मैं जो कुछ भी हूं मेरे परिवार की वजह से ही हूं।अगर मेरा परिवार मेरा साथ ना देता तो ना ही मैं आगे बढ़ पाती और ना ही इस मुकाम पर पहुंच पाती जहां पर आज मैं हूं और वह यह बात कहते हुए आज भी एक बच्ची की तरह मेरे गले में बाहें डाल देती है और उसकी आंखें आज भी वैसे ही धन्यवाद करती नज़र आती हैं जैसे उसकी पहली रसोई के दौरान थी और मेरे मन से फिर से आवाज़ निकलती है’ मेरी प्यारी अल्हड़ सी देवरानी’।
दोस्तों,यह सच है कि संयुक्त परिवार अपने आप में ही एक बहुत बड़ी ताकत है। बाहरी दुनिया में अपने आप को साबित करने के लिए अगर आपके पास आपके अपनों की ताकत है तो आप सारी दुनिया से लड़ सकते हो और यह भी सच है कि दोनों तरफ से से सामंजस्य बिठाना भी ज़रूरी है।
#स्वरचित
#अप्रकाशित
गीतू महाजन,
नई दिल्ली।
#संयुक्त परिवार