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आख़िर, मेरा घर कौन सा है – शाहीन खान 

“कृतिका अब उठ भी जा बेटा..!! कितनी देर तक सोएगी, आज कॉलेज नहीं जाना क्या?? पता नहीं कितनी नींद आती है इस लड़की को, सुबह उठाओ ना तो उठे ही नहीं। हे भगवान..!! ससुराल में कैसे गुजारा होगा इस लड़की का? कृतिका के कमरे की खिड़कियों के पर्दे खींचकर बड़बड़ाती जा रही थीं कावेरी जी।”

आप भी ना मम्मी..!! कल बताया तो था कॉलेज थोड़ा लेट जाना है पर आपको तो मेरी नींद से ना जाने क्या दुश्मनी है? आपका बस चले तो संडे को भी मुझे सुबह-सुबह उठा कर बैठा दें।” कृतिका खीझते हुए बोली। 

“अरे बेटा! लड़कियों का ज्यादा देर तक सोना अच्छा नहीं होता। शुरू से ही आदत डाल लेगी तो ससुराल में ज्यादा परेशानी नहीं होगी।” समझाते हुए बोलीं कावेरी जी।”

लो आप फिर शुरू हो गयीं। बात कोई भी हो आप का ससुराल पुराण पहले शुरू हो जाता है।” 

वॉशरूम जाते हुए बोली कृतिका। 

कृतिका कावेरी जी और राघव जी की छोटी बेटी है जोकि एक कॉलेज में लेक्चरर है। घर में जितनी लापरवाह और मस्त मौला दिखाई देती है अपने स्टूडेंट के बीच में उतनी ही अच्छी टीचर है। बेटा राहुल कॉलेज में पढ़ रहा है। बड़ी बेटी श्वेता की शादी के बाद उसी शहर में रहती है।

 “कृतिका बेटा जरा मटर तो छील दे पोहे में डालनी है। मैं तब तक तेरे पापा का टिफिन तैयार कर देती हूँ।” कृतिका को मोबाइल लेकर बैठा देख बोलीं कावेरी जी।

“मैं आपको बैठी अच्छी नहीं लगती क्या? मुझे देखते ही आपको कोई ना कोई काम याद आ जाता है। राहुल को क्यों नहीं जगाया वह तो अभी तक सो रहा है।”

 मटर की टोकरी उसके सामने रखती हुई कावेरी जी से बोली कृतिका।”

“नाश्ता बन जाए तो उसे भी उठाती हूं। तुझे तो पता ही है कितनी रात तक पढ़ रहा था बेचारा।” 

बेटे का पक्ष लेते हुए बोलीं कावेरी जी।

 राघव जी के ऑफिस जाने के बाद कृतिका और राहुल भी अपने अपने कॉलेज चले गए। सबके जाने के बाद कावेरी जी बिखरा हुआ घर ठीक कर रही थी कि श्वेता का फोन आ गया। बताने लगीं कि घर के सारे लोग किसी शादी में गए हैं। छोटी ननद का कल  एग्जाम होने की वजह से वह उसके साथ घर पर रह गई है। उसे कॉलेज छोड़कर कल वह उनसे मिलने घर आ जाएगी।




बेटी के घर आने की बात सुनकर वह खुश हो गयी” 

“अरे वाह! बड़ी अच्छी खुशबू आ रही है क्या कुछ खास बना रही हो माँ?”  शाम को कॉलेज से आकर घर में घुसते ही रसोई में आकर बोली कृतिका।

 ” कल श्वेता आने के लिए बोल रही थी तो सोचा थोड़े शकरपारे और मठरी बना लेती हूँ, उसे बहुत पसंद हैं मेरे हाथ की। ज़रा चखकर तो बता कैसी बनी है?” कावेरी जी प्लेट उसकी तरफ बढ़ाती ही रह गयीं और वह एक मठरी मुंह में रख रसोई से बाहर आकर चहकते हुए बोली

 “अरे वाह! फ़िर तो कल बड़ा मज़ा आएगा। दीदी से खूब गप्पे मारूंगी। वैसे भी कल मेरी छुट्टी है। आप रुको मैं चेंज करके आती हूं फिर चाय के साथ आराम से खाऊंगी। आपको कुछ बताना भी है।” कहती हुई अपने कमरे की तरफ चली गई कृतिका।

“हां तो क्या बताने वाली थी तुम? 

चाय पीते हुए पूछ बैठीं कावेरी जी।

 “अरे वो मुझे आपको यह बताना था कि अगले हफ्ते मेरे कॉलेज की ट्रिप तीन-चार दिन के लिए मसूरी जा रही है, मुझे भी जाना है। पहले से बता दे रही हूं नहीं तो आप हमेशा की तरह मना करने लगो।”

“क्या….! घर से इतनी दूर अकेले….?? वह भी तीन-चार दिन के लिए….. ना ना ना ना…! हम नहीं भेज सकते तुम्हें इतनी दूर। आजकल वैसे भी जमाना कितना खराब चल रहा है। यह घूमना-फिरना शादी के बाद अपने घर जाकर करना।” 

कावेरी जी ने साफ मना कर दिया।

 “माँ! कौन से जमाने में रह रही हैं आप…?? आजकल लड़कियां अकेले विदेश तक चली जाती हैं और फिर मैं कोई अकेली नहीं जा रही हूं, सारी टीचर्स साथ में होंगी। राहुल जब फुटबॉल मैच खेलने बाहर जाता है तब तो आप सबको बड़ी खुशी से बताती हो। खैर..! आपसे तो बात करना ही बेकार है। मैं पापा से बात कर लूंगी।” गुस्से से पैर पकड़ते हुए अंदर चली गई कृतिका।




अगले दिन श्वेता के घर आने पर भी कृतिका का मूड उखड़ा हुआ था। श्वेता को समझते देर नहीं लगी कि ज़रूर कोई बात है। वह कावेरी जी से पूछ बैठी,

 “माँ।! कृतिका को क्या हुआ?? बड़ी चुपचाप सी है ज़्यादा बात भी नहीं कर रही…. वैसे तो इसकी बातें ही खत्म होने का नाम नहीं लेती हैं। कुछ हुआ है क्या?”

 “अरे अब मैं तुझे क्या बताऊं? आजकल लड़कियों को अगर ज़रा सी छूट दे दो तो अपनी मनमानी करने लगती है…तू भी तो थी जो हम कह देते थे मान लेती थी लेकिन इसकी तो बात ही निराली है। अगर जिद्द पूरी न हो तो मुंह फुला लेती है। कह रही थी कि कॉलेज की ट्रिप पर मसूरी जाना है। मैंने कह दिया कि यह घूमना-फिरना शादी के बाद अपने घर जाकर करना बस तब से मुंह फुला कर बैठी है।

“क्या मां आप भी….! कृतिका कोई छोटी बच्ची नहीं है। एक कॉलेज में लेक्चरर है। इतने सारे बच्चों को संभालती है, क्या अपना ख़्याल नहीं रख सकती? और फिर वो आपसे ज़िद नहीं करेगी तो किससे करेगी। शादी के बाद क्या पता उसे कैसी ससुराल मिले?

 शादी से पहले मैंने भी कभी जब अपनी सहेलियों की तरह फैशनेबल कपड़े पहनने चाहे या बाल कलर करवाने चाहे आपने हमेशा मुझे भी यह कहकर समझा दिया कि शादी के बाद अपने घर जाकर खूब फैशन करना। आपको याद है एक बार मेरी सहेली टीना की बहन की शादी थी सभी रात में वहीं पर रुके थे पर आपने मुझे उस शादी में जाने भी नहीं दिया था। हर जगह आप राहुल को मेरा बॉडीगार्ड बना कर भेज देती थीं…..




मैं भी यही सोचती थी कि शादी के बाद ससुराल जाकर अपने सारे अरमान पूरे करूंगी और शादी के बाद पता चला कि असलियत कुछ और ही है। हनीमून पर जाने का टाइम आया तो पापा जी की तबीयत खराब हो गई। उसके पास 2 साल हो गए कभी कोई जिम्मेदारी, कभी कोई काम निकल आया आज तक कहीं अकेले हम दोनों बाहर घूमने नहीं जा पाए। 

बाल कटवाने चाहे तो मम्मी जी ने नहीं कटवाने दिए। उन्हें बहुओं के बाल खोलकर रखना पसंद नहीं है। एक बार समीर के साथ बाहर जा रही थी तो जींस पहन ली मम्मी जी ने इतनी बातें सुनायीं। उन्होंने कहा कि यह तुम्हारा घर नहीं ससुराल है। हमारे यहां की बहुएं ऐसे कपड़े नहीं पहनतीं। उसके बाद आज तक जींस को हाथ तक नहीं लगाया….

मायके में कह दिया जाता है ससुराल में जाकर अपने शौक पूरा करना। ससुराल मैं अपनी मर्जी चलाने की कोशिश करो तो सुनने को मिलता है कि यह तुम्हारा मायका नहीं है। मुझे तो समझ में नहीं आता कि आखिर हमारा घर कौन सा है….??

क्या कोई ऐसी जगह है जहां हम अपनी मर्जी से रह सकें, अपनी मर्जी के कपड़े पहन सकें, घूम-फिर सकें….?? आप ही बताइए माँ! अगर माँ-बाप ही बेटी पर विश्वास नहीं करेंगे, उसे अपने सपने पूरे करने की आज़ादी नहीं देंगे तो ससुराल वालों से उम्मीद भी क्या कर सकते हैं।”

 “तू बिल्कुल सही कह रही है बेटा! इस तरह तो मैंने कभी सोचा ही नहीं। मैं तो हमेशा से जो देखती सुनती आई थी वही कर रही थी। मुझे माफ कर दे। तेरे साथ जो किया सो किया अब कृतिका के साथ ऐसा नहीं करुंगी। वह जितने दिन भी मेरे पास है अपनी मर्जी से जिएगी क्योंकि ये उसका अपने मां-बाप का घर है। तू जाकर बता उसे कि वह भी मसूरी जा रही है तब तक मैं तेरे लिए खाने को कुछ लाती हूँ। रसोई की तरफ़ जाते हुए बोलीं कावेरी जी।”

शाहीन खान 

स्वरचित एवं मौलिक

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