यादो का पन्ना – श्रेया त्रिवेदी 

 

मेरे प्यारे पापा 

     जन्मदिन की शुभकामनाएं आपको कैसे दू? क्या लिखू क्या नहीं? लिखते हुए भी आँखों से गिरती धारा अक्षरों को मिटा देती है।  मेरे पिताजी एक सरकारी अफसर थे। घर के सामने एक सरकारी गाडी और दो सहायक 24*7 साथ रहते थे। हम बच्चो का जीवन कैसे बीता यह सिर्फ चंद शब्दों में लिखा नहीं जा सकता। आपकी ईमानदारी और कर्मठता के चर्चे हर जगह है। हम चारो भाई बहन बहुत खूबसूरत हुआ करते थे ऐसा बचपन से सुनते सुनते बड़े हुए है। हम चार भाई बहनो में मै सबसे बड़ी हूँ।

 माँ के यह शब्द हमेशा कानो में गूंजते है की “भगवान बेटियाँ सब को दे” और माँ का यह विश्वास कैसे जीता पता नहीं। जब वह कहती थी “तुम बेटी नहीं बेटा हो मेरे लिए” कुछ ख़ास तो करती  नहीं थी, बस उनकी बातो को ध्यान से सुनकर और समझकर जितना संभव होता करती रहती। कोई मैं अकेली बेटी नहीं हर बेटी ऐसा ही करती है, करती होगी। पापा जी बहुत  कम बोलते है। आपकी आँखों से ही हम समझ जाते की आप क्या कहना चाहते है।  कक्षा पांचवी में जब मैं पढ़ती थी उस रात जब आप लौटे, मुझे माँ ने दवाई देकर सुला दिया था। दूसरे दिन गणित का पेपर था। 

आप आते ही मुझे सोते हुए देखकर नाराज़ हो गए और माँ से कहा “उठाओ उसे अभी और पढ़ना है। उस रात आपने नींद से उठाकर मुझे पढ़ाया और मैं अपनी कक्षा में प्रथम आयी थी। उसके बाद हम बच्चे पढ़ते रहे कौन सी क्लास में है क्या पढ़ रहे है कभी याद नहीं आता आपने पूछा हो। आपको भरोसा था कि माँ तो है जो सब संभाल लेती है। आप अपने कार्यो में वयस्त रहते। माँ हमें बढ़ते देने में पढ़ने में मदद करती। हर मार्कशीट पर माँ अपने ही हस्ताक्षर कर देती। आपको अपने ही बच्चो से बेफिक्र कर देती। लेकिन समझ सकती हूँ यह जीवन कितने मुश्किल और कठिन दौर से गुज़रता है। 




लेकिन हिम्मत और सच के साथ लड़ाई कैसी भी हो जीती जाती है। मुझे बचपन में खेलने का बहुत जूनून था जब मात्र चार या पांच साल की थी। हम कॉलोनी के बच्चे मेरे साथ मेरा छोटा भाई हर जगह बच्चे खेल में शामिल होते। मेरी बचपन में चप्पल छोड़ने की गलत आदत थी। माँ मेरी इस आदत से बहुत परेशान रहती। आए दिन जहाँ जाऊ चप्पल छोड़ देती। माँ  से ही सुना था बचपन में माँ ने मुझे चप्पल छोड़ने की आदत को छुड़ाने के लिए चप्पल से मेरी खूब पूजा की थी। 

उसके बाद मुझे अपनी इस आदत को छोड़ना पड़ा था। उसके निशान माँ की आँखों में हमेशा देखती थी। जब वह कहती “बेटा उस दिन तुझे मारकर मैं बहुत रोई थी” पर माँ मुझे तो कुछ भी याद नहीं। उसके बाद के दिन से मैंने अपनी माँ के हाथ से मार खायी हो याद नहीं। पापा जी ने तो कभी डाँटा भी नहीं। जब बहुत छोटी थी अपने पापा से चिपककर सोती थी। वह भर-भरकर टॉफ़ी चॉकलेट के डब्बे लाते। अकेले ही सब चट कर जाती। माँ के पास सोने के लिए तो हम भाई बहन झगड़ा करते लेकिन बड़ी होने का भरपूर फायदा भी लेती अपने से छोटो पर रौब झाड़ना अच्छा लगता लेकिन उनकी किसी तकलीफ पर खुद ही आंसू बहा डालती। चूँकि पापा जी सरकारी नौकरी में थे  तो ट्रांसफर हर तीसरे साल निश्चित था।




 बीच में पढाई का कितना नुकसान होता और सामान की टूटफूट भी होती। लेकिन आज भी उन यादों के साथ ज़िन्दगी बहुत रंगीन लगती है। जिसमे माता पिता और हम सबने अपने रंग भरे। बचपन में इतनी किताबे घर पर आती थी कि जल्दी अपनी किताब पढ़कर भाई बहनो से झगड़ कर किताबो की खींच तान कर उन्हें फाड़ना अब मूर्खतापूर्ण लगता है। सबसे रोचक लगता था गलतियां ढूंढ़ना कहानियाँ सुनना। एक एक गरम रोटी के लिए दौड़ कर किचन तक जाना और किसने कितनी रोटी खायी इसकी गिनती करना। मैं और मेरा छोटा भाई हर  बात पर लड़ते आज भी जब हम मिलते है तो किन किन बातों पर लड़ते थे यह सोचकर खूब हॅसते है। बाल मन भी कितना भोला और मासूम होता है। 

स्कूल से आते ही बस्ता फेंक माँ के हाथ की चाय नाश्ता कर घंटो पागलपन की हद्द तक खेलना हमारा काम था। लेकिन इस पागलपन में बहुत से ख़िताब जीते। “मेरे पापा जी के पास मेरे कई सर्टिफिकेट और इनाम संजो कर रखे है”। वह हमेशा कहते है बेटी ले जा इसे लेकिन मुझे मालुम है यही उनकी धरोहर है। पापा जी जब भी खुश और गर्वित होते है मेरे सिर पर और पीठ पर थपथपा देते है। “मेरे लिए और किसी इनाम की ज़रूरत नहीं है”। पापा जी, माँ के जाने के बाद आपको इतना कमज़ोर असहाय कभी नहीं देखा। अभी कुछ दिन पहले ही तो आप कह रहे थे न तुम्हारी माँ मेरा कितना ख्याल करती थी। एक खाँसी होने पर ही कितनी चिंतित और  परेशान हो जाती थी। दैनिक जीवन  में आपको घड़ी के कांटे से कदम मिलाते देखा है। जैसे ही आपका खाना ख़त्म होता माँ आपके लिए दूध का गिलास भर कर रख देती।

 आज आपकी बेटी असहाय और अपने आप को मज़बूर समझ रही है। हमेशा आप हमारे आदर्श पिता है, और रहेंगे। आपको क्या ही दे सकती हूँ सिर्फ एक और कागज़ का टुकड़ा जो सर्टिफिकेट मुझे मिला है वो सब आपके और माँ के लेश मात्र अंश से ही पाया है। एक ही दुआ करती  हूँ  यदि बेटी का जन्म मिले तो आँगन आपका ही हो माँ पापा जहाँ चहक सकूँ महक सकूँ। 

आपकी बेटी 

श्रेया त्रिवेदी 

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