आखिर मायके का मान फूहड़ भाभी ने ही दिया – सुल्ताना खातून

“बड़ी भाभी डॉक्टर ने मुझे बेड रेस्ट बता दिया है, जबकि डिलीवरी में अभी दो महीने बाकी हैं आप तो जानती हैं यहाँ बेड रेस्ट कर पाना कितना मुश्किल है” – सिया ने फोन पर बात करते हुए बड़ी भाभी तनुजा से कहा।

हाँ तो क्या हुआ सिया भगवान ने इतने वर्षों बाद तुम्हें यह खुशी दिया है तुम मेरे यहाँ आ जाओ, लेकिन देख लो पहले अपनी लाडली भाभी से पूछ लो शायद तुम्हें मेरा फूहड़ पन पसंद ना भाये।

तनुजा के कहने पर  सिया मन ही मन सोचने लगी की शशि भाभी को तो उसने पहले ही बोला था, लेकिन शशि भाभी के सफ़ाई पसन्द तबीयत को यह पसन्द नहीं आया।

वह पहले ही बहाने बनाने लगीं- सिया तुम तो जानती हो घर में कितना काम होता है और फिर तुम्हारा बच्चा होगा मुझे आदत नहीं है इतने सारे कामों की, और मैं काम वाली रख नहीं सकती, क्यूंकि उनके सफ़ाई पर मुझे विश्वास नहीं होता, और मेरे बच्चे भी परेशान हो जाते हैं, मुझे तो माफ़ करो—  शशि भाभी का टका सा ज़वाब सुनकर ही उसने  तनुजा भाभी के पास कॉल लगाया था और उनके मान जाते ही

वह शर्मिंदगी से घिर गई और अपने किए पर पछतावा होने लगा।

कितना गलत समझते थे वह सब तनुजा भाभी को फोन रखकर वह यादों के गलियारों में खो गई….

उस से बड़े दोनों भाइयों की शादी साथ ही हुई थी छोटी भाभी बहुत ही सलीके वाली थीं, साफ़ सफाई का बहुत ख्याल रखती, कपड़े धोना, कपड़े आयरन करना और बाथरूम  चमकाना उनके पसंदीदा काम थे।

रहन सहन में भी बहुत अच्छी थीं, हँसमुख,  सबसे बोलते रहतीं थीं।




जबकि बड़ी भाभी कम बोलने वाली, दिन भर किचन में घुसी रहने वाली, किसी से ज्यादा बात भी नहीं करती और जब बोलती तो कड़वी।

सिया मम्मी के साथ मिलकर उन्हें कितने ताने देती थी, सफ़ाई से नहीं रहने के ताने, कम बोलने के ताने, मिलजुलकर  नहीं रहने के ताने।

वह तो बाद में पता चला जब तनुजा भाभी ने सबके सामने बोल दिया…

माँ जी आपकी फेवरेट बहू है ना, जो आप लोगों को अपनी चिकनी चुपड़ी बातों में उलझाए रखती है दिन भर अपने बच्चों में लगी रहती है, उन्हें नहलाना, साफ़ करना, उनके कपड़े धोना, और फिर साथ में आपके कपड़े भी धो देती है, बाथरूम भी चमका देती है, अपने और आपके कपड़े प्रेस करते दिन भर व्यस्त दिखने के बहाने बनाती है, कभी किचन में आकर देखिए कौन काम करता है अधिकतर बर्तन मैं धोती हूँ, खाना मैं बनाती हूँ, अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से मुझे किचन में उलझाए रखती है, एक दो काम करके हाथ उठा लेती है, मैं जब चाय बना देती हूं और कप में डाल देती हूं तब झट से ट्रे उठाकर आप लोगों के सामने ले जाकर रख देती है आप ख़ुश हो जाते हैं इससे, अब मैं जले कटे ना रहूँ तो क्या करूँ?

तनुजा का सब के सामने यूँ बोलना किसी को भी अच्छा नहीं लगा और सब ने उसे फूहड़ का नाम दे दिया, पर अब वह भी सबके सामने सच बात बोलने से नहीं डरती भले कोई फूहड़ कहे उसे कोई फर्क़ नहीं पड़ता था।

फिर सिया की भी शादी हो गई लेकिन सिया को बड़े जतन के बाद भी सन्तान का सुख प्राप्त नहीं हुआ, और फ़िर एक एक्सीडेंट में माँ और पिताजी भी नहीं रहे। उनके इस दुनिया से जाते ही दोनों भाईयों ने अपना चूल्हा चौका अलग कर लिया था।

और अब चौदह साल बाद सिया को भगवान ने सन्तान की खुशी दी। लेकिन डॉक्टर ने लास्ट टाईम में उसे पूरी तरह से बेड रेस्ट बोल दिया, सिया को बहुत दुख हुआ था जिस भाभी को हमेशा अच्छा समझते रही उसने इस समय में अपना पल्ला झाड़ लिया और जिस भाभी को फूहड़ कहती रही उसी भाभी ने जिंदगी के कभी धूप तो कभी छांव के सफर में उनका साथ दिया।

#कभी धूप तो कभी छांव

मौलिक एवं स्वरचित

सुल्ताना खातून

सखियों मेरी कहानी आपको कैसी लगी जरूर बताएं, धन्यवाद

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