जोगिनी – कल्पना मिश्रा
- Betiyan Team
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- on Dec 21, 2022
न जाने कितनी देर से वह अपनी अलमारी खोलकर एकटक निहारे जा रही थी। हैंगर पर करीने से लटकी हुई एक से बढ़कर एक सुंदर और कीमती साड़ियां भी आज उसे लालायित नही कर पा रही थीं। लाल,पीली, नारंगी, गुलाबी ,,,ज़्यादातर साड़ियां रवि की ही पसंद की तो थीं क्योंकि उनको यही सब रंग भाते थे।
अचानक उसकी नज़र ड्रेसिंग टेबल पर रखी साड़ी पर पड़ी। जीजी ने सुबह ही उसे साड़ी दी थी कि ” सुमित्रा,आज यही साड़ी पहरियो” काले रंग के बॉर्डर के साथ हल्के मटमैले रंग की साड़ी देखकर उसके मन में कसक सी हुई ” ये कैसा अजीब सा रंग है,, बिल्कुल गधे के रंग जैसा” उसे रवि की याद आ गई जब वह ऐसे रंग देखकर कहते थे ” सुमि,ऐसे कलर्स कौन पहनता होगा? फिर तो बिल्कुल गधे के जैसा लगता होगा” कहकर वो ठहाका मारकर हंस पड़ते। तब सुमित्रा को हंस आती और कभी गुस्सा भी आता। वह बड़बड़ाती ” ऐसे क्यों कहते हो? सबकी अपनी-अपनी पसंद होती है तभी सभी रंग तो बिकते हैं” लेकिन वह ना कभी ऐसे रंग पहनते और न ही उसे पहनने देते। धीरे-धीरे कब रवि की पसंद उसकी अपनी पसंद बन गई,पता ही नही चला।
“क्या करे वह?” मन उहापोह में था। उसने अलमारी में टंगी साड़ियों पर फिर से नज़र दौड़ाई।हठात एक साड़ी पर उसकी नज़र अटक गई। क्रीम कलर के साथ जोगिया रंग के ज़री के चौड़े बॉर्डर की चंदेरी साड़ी,,,पूरी साड़ी में ज़री के डॉट्स,,
ये साड़ी तो बिटिया दामाद ने दीपावली पर दिया था। तब वह कहां पहन पाई थी,, हां बच्चों के मनुहार पर कि “मम्मी एक बार पहनकर तो दिखाओ ,कैसी लग रही है ” उसने पहना तो नही पर अपने कंधे पर फैला कर दिखा दिया था।
“ओ हो,,,” तभी पीछे से आकर रवि बोले थे “ये कलर तुम पर बहुत सुंदर लग रहा है,,, पता है सुमि? बिल्कुल जोगिनी लग रही हो तुम ,, जोगिनी”
फिर कुछ ही दिनों बाद रवि ऐसे बीमार पड़े कि घर से अस्पताल और अस्पताल से घर की भागदौड़ में उसे साड़ी पहनने का मौका ही नही मिल पाया वरना हमेशा जब भी कोई भी नया सूट या साड़ी लेती, पहनकर चल देती थी।
“हां यही साड़ी अच्छी रहेगी,,रवि को भी तो यही लाल, पीले, गुलाबी रंग पसंद हैं,,और ये साड़ी तो उन्हें ज़्यादा ही पसंद थी” बेख़्याली में उसने साड़ी निकाली ही थी कि पीछे से जिठानी की आवाज़ आई ” अरे सुमित्रा ,अब तक तैयार नही हुई?और इतनी भारी, चमक दमक वाली साड़ी किसलिये,,? जो हमने दी थी,वो साड़ी कहां है? वही पहनना। आज तेरहवीं है और अपने यहां की रीति है कि तेरहवीं के दिन नये कपड़े पहने जाते हैं,, तुम्हें तो पता ही होगा?” एक साथ इतने सवाल सुनकर वह हड़बड़ा गई,,”हां जीजी, ये भी नयी ही है और रवि को पसंद भी थी,,उनको मेरे ऊपर ऐसे ही रंग अच्छे लगते थे इसीलिए मैंने सोचा”,,, कहते हुए उसका गला रुंध गया।
“माना कि नयी है लेकिन ये भी सोचो, जिसको तुम्हारे ऊपर ये रंग अच्छे लगते थे वो तो इस दुनिया से चला गया न? और लोग क्या कहेंगे कि विधवा हो गई फिर भी लाल, नारंगी,,,,,” कहते कहते वो रुक गईं। सामने भतीजी सुनयना खड़ी आग्नेय नज़रों से देख रही थी “क्या हुआ ताई जी,,आप मम्मी से ऐसे क्यों बोल रही हैं? पापा के जाने से बेचारी वैसे ही दुखी हैं उस पर आप,,, कहते हुए सुकन्या का स्वर तल्ख़ हो गया।
“तू चुप कर बेटा” माहौल ख़राब ना हो,इस डर से सुमित्रा ने सुकन्या को चुप रहने का इशारा किया ” सही तो कह रही हैं जीजी। जिसके लिए मैं लाल पीले रंग पहनती थी वो तो अब सब रंग लेकर चले गये हैं,,,मेरी ज़िन्दगी को रंगहीन करके,,तो,,,” सुमित्रा सिसक पड़ी।
“नही मम्मी। पापा कहीं नही गये हैं।वो हमारे साथ हैं,,हम सबके दिल में। और ताई जी, ऐसे लोगों की परवाह ही क्यों करना जो हमारी तकलीफ़ ना समझकर पीठ पीछे बुराई करें, कमियां निकाले?” वह ताई जी की ओर मुखातिब हुई “इन रीतिरिवाज़ों को भगवान ने नही,हम इंसानों ने ही बनाया है,,,है ना?
और पापा चले गए हैं तो क्या रंग भी अपने साथ ले गए? नही ताई,,,उनको तो मम्मा के ऊपर लाल पीले और चटख रंग ही अच्छे लगते थे ऐसे मटमैले रंग नहीं,,, इसीलिए प्लीज़ ताई जी, मम्मी को जो पहनना है, पहनने दीजिए, मेरे पापा भी खुश होंगे ” हाथ जोड़ते हुए सुकन्या फफक पड़ी।
ताई जी चुपचाप सुनती रहीं। एक शब्द ना बोलीं मानों मौन स्वीकृति दे रही हों। फिर दोनों ने सुमित्रा को तैयार करके पूजास्थल पर ले जाकर बैठा दिया। फूलों की माला से सजी रवि की मुस्कुराती फ़ोटो देखते ही सुमित्रा के आंसू बह निकले। ऐसा लगा मानों वह कह रहे हों “रोती क्यों हो सुमि? मैं कहीं नही गया, तुम्हारे पास ही तो हूं,,,,और हां आज तुम बहुत सुंदर लग रही हो बिल्कुल जोगिनी जैसी,,,,”
कल्पना मिश्रा
कानपुर