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शिव समा रहे हैं मुझमें और मैं शून्य हो रहा हूँ – कमलेश राणा

 

जीवन में एक वक्त ऐसा भी था जब मैं रात दिन दो रोटी की जुगाड़ के लिए संघर्षरत था तब हर कोई मेरा हमदर्द था, सहानुभूति के बोल मेरे लिए लोगों के मुख से सुनना जीवन की दिनचर्या का हिस्सा बन चुके थे। न जाने सच में यह मेरे लिए उनके दिल में उपजी करुणा ही थी या मुझे बेचारा साबित करके उनके दिल को मिलने वाला सुकून था जो शब्दों के रास्ते दिल की बात मेरे दिमाग तक पहुंचाने का एकमात्र जरिया था। खैर जो भी हो ये बातें मुझे इस स्थिति से बाहर निकलने और कठिन मेहनत करके जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा भी देती थी। 

 

आखिर मेरी मेहनत रंग लाई। मैंने एक छोटा सा कारोबार शुरू किया। दो पुराने ऑटो खरीदे और एक को किराये पर दे दिया, दूसरा मैं खुद चलाता था। जिंदगी पहले से बेहतर होने लगी फिर लोन लेकर मेटाडोर खरीदी और इस तरह कदम दर कदम बढ़ते हुए आज मैं आठ बसों का मालिक हूँ। मेरी गिनती शहर के गणमान्य लोगों में होती है हर सामाजिक कार्य में मेरा अच्छा खासा योगदान होता है । यह शायद मेरे सुकर्मों का ही फल होगा जो शोभा मेरी जीवन संगिनी बनी। जैसी जीवन साथी का ख्वाब लोग देखते हैं वह बिल्कुल वैसी ही थी उसको देखकर दिल में बार बार एक ही ख्याल आता और मेरे होंठ गुनगुना उठते-

 

चाँद सी महबूबा हो मेरी कब ऐसा मैंने सोचा था

हाँ ,तुम बिल्कुल वैसी हो जैसा मैंने सोचा था। 




 

वह मेरे जीवन में शीतल छांव की तरह थी जहाँ आकर सारे दिन की भागदौड़ और थकान के बाद तन मन दोनों को राहत मिलती । जब प्यारे प्यारे बच्चे” पापा आ गये ” कहकर लिपट जाते तो मैं अपने आप को दुनियाँ का सबसे खुशनसीब इंसान समझता। शोभा धार्मिक स्वभाव की महिला थी वह हमेशा ईश्वर से प्रार्थना करती.. हे भगवान!!! मेरी खुशियों को किसी की नज़र न लगे। 

 

अब जिंदगी का एक नया दौर शुरू हुआ जिसमें मुझसे जलने वालों की संख्या बढ़ने लगी। प्रतिद्वंदियों की संख्या न केवल कार्यक्षेत्र में बढ़ रही थी बल्कि मेरे आस पास भी नकारात्मक लोगों की संख्या में इजाफा हो रहा था जो हर वक्त मुझे चोट पहुंचाने की जुगाड़ में रहते। जो लोग एक समय मेरे लिए दिल में सहानुभूति का समंदर लिए फिरते थे वही आज कहते,, न जाने किन काले कारनामों से दौलत इकट्ठा की है देखना जिस दिन पाप का घडा़ फूटेगा उस दिन जेल की हवा खायेगा। सहानुभूति अब जहर बनकर मेरे जीवन को कलुषित करने के लिए जी तोड़ प्रयास में थी। 

 

पर कहते हैं न कि हर चीज के दो पहलू होते हैं.. कुछ दिनों तक ये बातें मुझे बहुत परेशान करती थी पर धीरे धीरे मैं इन सबका अभ्यस्त हो गया अब ये बातें मेरे जीवन का अंग बन गई हैं ठीक उसी तरह जिस तरह खाना सोना जीवन का अभिन्न हिस्सा है। एक बात और भी महसूस की लोग आपको तब तक ही चोट पहुंचाने का प्रयास करते हैं जब तक आप उनसे प्रभावित होते हैं चोटिल होते हैं और जब उनको लगता है कि आप पर उनका कोई असर नहीं हो रहा है वे भी शांत हो जाते हैं। 

 

अब मैंने पूरी तरह से ऐसे लोगों को अपने जीवन से निष्कासित कर दिया है जो मेरे दिल को ठेस पहुंचाए अब कोई जहर काम नहीं करता मेरे मन पर। अब जीवन में शांति और संतोष है और है सुख अपरंपार… अब शिव समा रहे हैं मुझमें और मैं शून्य हो रहा हूँ। अब किसी की कोई बात विचलित नहीं करती मुझे। 

 

कमलेश राणा

ग्वालियर

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