“हाय राम! मेरी तो तकदीर ही फूट गई जो ऐसी बहू आई!” – सरला देवी ने चौखट पर बैठते हुए चूल्हे के पास आँचल से माथा पोंछा।
गुड्डी भागकर आई, “क्या हुआ अम्मा? कविता बहू ने फिर कुछ कह दिया?”
सरला ने व्यथित स्वर में कहा, “कह दिया? अब पूछ! दाल में हींग कम थी तो बोली — ‘मम्मीजी, स्वास्थ्य के लिए ज़्यादा नमक ठीक नहीं होता।’ अब बता, हम तो बचपन से दाल में दो चुटकी डालते आए हैं… हमें क्या अब सीख देगी!”
गुड्डी मुस्कराई पर कुछ बोली नहीं। इतने में बबीता काकी आ पहुँचीं। उन्होंने सुनते ही ठहाका लगाया, “हाय सरला! तू तो आजकल ग़ुलाम हो गई इस वर्षा के राज में! जो बोले, सुन ले… ना बोले, तब भी सुन ले!”
बीच की कथा:
राहुल ने प्रेम-विवाह किया था वर्षा से। वह एक कॉलेज में अतिथि व्याख्याता रह चुकी थी। वह सब करती थी — रोटी भी बनाती, सरला की दवाइयाँ भी लाती, पर सरला की शिकायत रहती कि “बहू घूँघट नहीं करती… पूजा से पहले मोबाइल देखती है… और सबसे बड़ी बात – उसे टेलीविजन पर बहू-बेटी के धारावाहिक नहीं पसंद!”
राहुल कई बार समझाता, “माँ, वह पढ़ी-लिखी है, कुछ बातें अलग होंगी… पर दिल से बुरी नहीं।”
सरला कहती, “दिल का क्या भरोसा! सब मुस्कराते हैं बहू बनकर, असली रंग तो साल भर में दिखता है।”
संवेदनशील मोड़:
एक दिन सरला अचानक बेहोश हो गई। वर्षा ने न केवल डॉक्टर बुलाया, दवाइयाँ दीं, बल्कि रात भर उनके सिरहाने बैठकर रामचरितमानस की चौपाइयाँ भी पढ़ीं – जो उसने सरला को सुनते देखा था कभी।
सुबह डॉक्टर ने कहा, “आपकी बहू ने समय रहते जो सेवा की, तभी इनका ब्लड प्रेशर कंट्रोल में रहा।”
सरला की आँखें खुलीं, देखा – वर्षा आँसू पोछ रही है, और पास बैठी गुड्डी कह रही थी, “अम्मा! बहू तो देवी निकली – पढ़ी भी, और पूजा में भी आगे!”
परिवर्तन की घड़ी:
सरला ने वर्षा का हाथ पकड़ा और भर्राए स्वर में कहा —
“बेटी… हाय राम! मेरी तो तकदीर ही फूट गई – ये कहती थी…
अब समझ में आया – तकदीर तो तब फूटती, अगर तू न आती!”
वर्षा मुस्कराई, “माँजी… अब मेरी तकदीर भी जुड़ गई, जो आपका दिल जुड़ा।”
कहानी का सार:
समझ और पीढ़ियों के बीच जो खाई है, वह प्रेम और सेवा से पाटी जा सकती है।
“सास-बहू” तब संघर्ष नहीं करतीं, जब दोनों एक-दूसरे को इंसान समझें – किरदार नहीं।
@सुरेश कुमार गौरव,सिमली सहादरा रामधनी रोड,
(मां तारा केबल नेटवर्क के पास) मालसलामी, पटना सिटी, पटना- 800008 (बिहार)