समय की पुकार, पर्यावरण की संभाल-
“ सुरेखा, तुम्हें कितनी बार समझा चुकी हूं कि गीला और सूखा कूड़ा अलग अलग रखा करो , और कितना पानी बर्बाद कर देती हो बर्तन साफ करते समय, जब ना जरूरत हो तो नल बंद कर दिया करो, और देखो पोछां लगाते समय सारे घर के पंखे चला देती हो, और फिर बंद नहीं करती”।
आज से छः महीने पहले रशमी इस सरकारी क्वार्टर में शिफ्ट हुई थी, इससे पहले वो किराए के घर में रहते थे। लगभग पचास घर होंगे जिनमें विभिन्न महकमों में काम करने वाले लोग रहते थे। बहुत अच्छे नए घर ही बने थे। रशमी नौकरी नहीं करती थी परतुं अच्छी पढ़ी लिखी और सूझवान थी। दोनों बेटियां स्कूल और कालिज में पढ़ाई कर रही थी।
शुरू से ही रशमी का मन करता था कि वो समाज के लिए देश के लिए कुछ करे लेकिन कैसे, उसे ये समझ न आता। कभी सहेलियों से बात की तो सबने यही कहा, अपना घर बार संभाल लें, यही बहुत है।
लेकिन रशमी का मन था तो था। अब बच्चे भी बड़े हो चले थे।हर दिन पर्यावरण के बारे में अखबारों में आता रहता है। गर्मी अभी शुरू भी नहीं हुई और पारा कितना बढ़ने लग गया।
उसके मन में विचार आया कि क्यूं न इसी दिशा में ही कुछ किया जाए तो शुरूआत घर से ही हुई। वो स्वयं पानी, बिजली की बर्बादी के बहुत खिलाफ थी और बहुत ही सफाईपंसद थी। यहां वहां गलियों में कूड़ा बिखरा देख उसे बहुत दुःख होता, कई बार तो वो खुद ही मोटा मोटा कूड़ा उठा कर कूड़ेदान में डाल देती।
दोहरा चेहरा (हाथी के दाँत खाने के कुछ तो दिखाने के कुछ) – के कामेश्वरी
एक दिन वो और उसकी सहेली आराधना वहीं पास में ही पार्क में बैठी थी , सामने वाले बैंच पर दो लड़के बैठे बातें कर रहे और साथ में मूंगफली भी खा रहे थे। कुछ बातें उन्हें यूं सुनाई दी, पहला बोला, “ अरे यार , पिछले महीनें मेरा सिंगापुर जाना हुआ, क्या सफाई है वहां, बंदे की नज़रे भी फिसल जाएं”।
इसी क्रम में दूसरा बोला,” अरे मैं भी कुछ समय पहले दुबई गया, कूड़ा फेंकना तो दूर की बात, हर जगह खा भी नहीं सकते, कई बार तो चुपके से कुछ मुंह में डाल भी लिया तो रैपर जेब में ही रखने पड़ते”।
काफी देर वो दोनों बातें करते रहे और फिर संतरे भी खाए। सब छिलके वहीं पर फेंक कर जब वो उठने लगे तो रशमी से न रहा गया। वो खड़ी हो कर उन्के सामने जा कर बड़े प्यार से बोली,” अभी जो तुम विदेश की सफाई की बातें कर रहे थे, अगर वो सब यहां भी अपनाओ तो हमारे देश से भी सफाई की समस्या दूर होते देर नहीं लगेगी”
वो दोनों लड़के शर्मिदां से हो गए और कचरा उठाकर कूड़ेदान में डाल दिया। रशमी को जैसे रास्ता मिल गया और मकसद भी। आराधना ने भी उसका साथ देने का वायदा किया। जल्दी ही चार पांच औरते और भी जुड़ गई।
अगली बार जब किटी पार्टी हुई तो यहीं बात डिस्कस हुई और निर्णय लिया गया कि सब शुरूआत अपने ही घर से करें, तभी देश, समाज , मानवता का भला होगा और पर्यावरण की भी रक्षा होगी। जैसे बूंद बूंद से तालाब भरता है, वैसे ही एक कदम से दूसरा कदम आगे बढ़ता है।
सरकार की और से भी गर्मियों को देखते हुए सख्त आदेश थे कि किसी ने भी पानी व्यर्थ नहीं बहाना और पौधों को पानी देने और गाड़िया वगैरह धोने के भी घंटे निशचित थे। सूखा और गीला कूड़ा अलग रखने का, प्लास्टिक का कम से कम प्रयोग करने के लिए और भी कई कानून अक्सर जनहित में जारे होते रहते है, लेकिन बहुत से लोग इस और बिल्कुल ध्यान नहीं देते।
रशमी और आराधना के नेतृत्व में तैयार मंडली ने बीड़ा उठाया कि कम से कम अपने एरिया में तो इन बातों को लागू करने का प्रयास किया जाए। और उन्हें सफलता भी मिली लेकिन कुछ लोग अपनी हरकतों से बाज नहीं आते।
सरकार की और से पानी की बर्बादी या कूड़े के मसले पर पहले दो तीन बार नोटिस दिया जाता है। कुछ लोगों की तो आदत है कि जहां लिखा होगा” नो पार्किगं” वहीं गाड़ी पार्क करनी है और जहां “ कृपया यहां कूड़ा न फेकें या न थूके” वगैरह , वहीं तो वो सब करना है।
एक दिन पानी की बर्बादी पर और सूखा गीला कूड़ा अलग न रखने पर उसी एरिया के तीन घरों के चालान कट गए और फाईन पड़ गया। और वो कहते सुने गए” अब तो पड़ गई इन औरतों के कलेजे में ठंडक”। किसी को परेशान देखकर कलेजे में ठंडक भले ही न पड़े लेकिन जनहित के लिए कुछ सख्ती तो जरूरी है।
प्रिय पाठकों, आज हमारे देश में जरूरत है इन छोटी छोटी बातों को समझने की। सरकार अकेली क्या कर सकती है, अगर जनता सहयोग दे तो ऐसी छोटी छोटी समस्याएं तो वैसे ही हल हो जाएंगी।
विमला गुगलानी
चंडीगढ़
वाक्य- अब तो पड़ जाएगी न तुम्हारे कलेजे में ठंडक