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आत्मा के जख्म – अनुपमा

माला अपने मां बाप को बचपन में ही खो चुकी थी , मामा मामी ने उसे बड़ा किया ,मामी ने एक पल के लिए भी माला को भूलने नही दिया की वो अनाथ है और उन पर बोझ है , हर पल ,हर बात मैं , अकेले मैं ,आने जाने वाले लोगो के बीच कोई मौका नहीं छोड़ती माला की मामी ये जताने का की उन पर कितनी बड़ी जिम्मेदारी है माला जिसका वो निर्वाह कर रहे है ,खर्चा उठा रहे है ।

पूरी वसूली भी करती मामी माला से , सुबह पांच बजे से उठा कर और रात के सोने तक कुछ पल माला को नसीब हो जाए फुर्सत के ऐसा बमुश्किल ही होता होगा । 

मामी का भाई भी रहता है मामी के घर मैं ही ,भाई क्या है राजकुमार है वो , उसकी हर बात जो मुंह से निकले माला को दौड़ दौड़ कर सुननी है ,वरना मामी खाना नही देगी एक वक्त का और इसका खूब फायदा भी उठाया जाता है ,राजा बार बार माला को किसी न किसी काम के बहाने अपने पास बुलाता रहता है और उसके नवयौवन शरीर को ललचाई नजरों से देख कर अपनी आत्मा को तृप्त करता है , बहाने से बुलाने के अलावा और भी बहुत कुछ करता है राजा जो माला समझती तो खूब है पर पेट की भूख और मामी की मार के आगे उसका विरोध दब जाता है और वो होने देती है अपनी आत्मा की चीरफाड़ , जिसे वो खुद तो अनसुना करती ही है और बाकी कोई और भी उसे सुन नही पाता है ।

पंद्रह साल के जीवन मैं माला ने न जाने कितनी ही बार ये सब सहा है ,उसका कसूर उसका अनाथ होना था या लड़की होना , इस द्वंद मैं वो हमेशा फसी रही पर कभी किसी निष्कर्ष पर न पहुंची ।

माला जीवित तो थी पर जीवन से विमुख थी , और अब वो इतना थक चुकी थी की जीना भी नही चाहती थी पर कहीं एक आवाज आती उसके दिल से की आखिर वो क्यों और उसको ही क्यों सजा मिले सिर्फ ? 


दोषी वो है ,उसने क्या किया है फिर उसको ऐसा क्यों महसूस कराया जाता है की ये सब उसके साथ होता है उसकी दोषी वो खुद है ।

उस रात जब राजा उसके कमरे मैं आता है और अपनी भूख मिटा कर वही लेटा होता है , माला खुद को संभाल कर उठती है और पानी पीने के बहाने से ग्लास उठा कर राजा के निचले हिस्से पर डाल देती है कुछ छींटे माला के ऊपर भी आते है पर वो उन निशानों/जख्मों के आगे कुछ भी नही जो उसे इस जीवन मैं मिले थे , उधर राजा की चीखें पूरे घर मैं गूंजने लगती है और मामी मामा दौड़ कर वहां पहुंचते है देखते है की राजा बुरी तरह से तड़प रहा था और उसका निचला हिस्सा  मांस का लोथड़ा जैसा लटक रहा था ,पैरों का मांस भी चिपक गया था आपस मैं , मामी ये सब देख कर वही ढेर हो जाती है और मामा स्तब्ध , माला अपने जख्मों को धोने बाहर निकल जाती है ,शायद पानी के कुछ छीटों के साथ उसकी आत्मा पर पड़े जख्म भी धूल कर साफ हो जाए ।

( औरत और उसकी जीवन पर होने वाला एक छोटा सा वृतांत है ये जिससे हर औरत को रूबरू होना पड़ता है चाहे किसी भी रूप मैं हो , कहते है की औरतों के पास तीसरी आंख भी होती है भीड़ मैं भी कोई अगर उसे कोई देख रहा होता है तो वो महसूस कर सकती है उन आंखों को अपने बदन पर चुभते हुए और वो चुभन उसकी आत्मा तक को छलनी कर देती है की क्या है वो ? सिर्फ उपभोग की वस्तु ! उम्मीद करती हु की चित्र की भावना को मैं कहानी के माध्यम से प्रस्तुत कर पाई होगी )

 

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