आंसू बन गए मोती – सुनीता माथुर : Moral Stories in Hindi

आज सुबह से ही प्रियांशी का मन अनमना सा हो रहा था पता नहीं क्या बात है! डॉ प्रियांशी हॉस्पिटल से भी जल्दी आ जाती है पर घर आकर अकेले ही कमरे में बैठी होती है बेटी आयुषी जो फोर्थ क्लास में पढ़ती है शाम को ही स्कूल से आएगी प्रियांशी के पति अभिनव एक प्राइवेट कंपनी में मैनेजर हैं वह भी देर से ही आएंगे—— पता नहीं क्यों? मन नहीं लग रहा!——-क्या बात है क्या करूं? 

 डॉक्टर प्रियांशी साइकोलॉजिस्ट थी अपने कमरे में बैठे-बैठे सोचती है पता नहीं बहुत दिनों से ना तो मां का फोन आया ना छोटे भाई पारस का फोन आया ना छोटी भाभी मीनल का——चलो कोई बात नहीं मैं ही लगाती हूं! उसने अपने भाई पारस को फोन लगाया कोई उत्तर नहीं ——मीनल को फोन लगाया,

अरे—- अरे क्या बात है दोनों ही फोन नहीं उठा रहे चलो मां को लगाती हूं? थोड़ी देर घंटी बजती रहती है फिर एकदम मां की आवाज आती है हेलो— हेलो— अरे! प्रियांशी बहुत दिनों में तुमने फोन किया बेटा? मां मैं भी सोच रही थी आप लोगों ने भी तो कोई फोन नहीं किया! क्या बात है? बेटा क्या बताऊं मां फोन पर ही जोर-जोर से रोने लगीं अरे मां कुछ बोलो तो क्या हुआ है?

मां बोलीं बेटा प्रियांशी सुनो—— मीनल की बहुत दिनों से तबीयत खराब थी, उसका बुखार नहीं उतर रहा था, डॉक्टर ने कहा शायद ठंड लग गई है फिर सारे टेस्ट हुए तो पता चला लंग्स में इन्फेक्शन है और बाद में कैंसर के लक्षण दिखाई देने लगे! अब उसका कैंसर बढ़ता जा रहा है डॉक्टर इलाज तो कर रहे हैं

लेकिन—– कोई भी सही जवाब नहीं दे पा रहा? तुम्हारा छोटा भाई पारस बहुत दुखी रहने लगा, उसका काम में मन नहीं लगता, आज जब मीनल की तबीयत ज्यादा बिगड़ गई तो डॉक्टर के कहने पर अस्पताल में एडमिट कर दिया है, उसका इलाज चल रहा है पारस का बेटा मेरा पोता अंशुल अभी चार साल का ही तो है, वह अपनी मां के बिना रह भी नहीं पाएगा।

डॉ प्रियांशी बोली अरे—– मां आपने तो मुझे बिल्कुल पराया कर दिया! कुछ भी नहीं बताया?  मां बोलीं मैंने पारस से बोला था प्रियांशी को बताओ? लेकिन उसने कहा——- दीदी बहुत बिजी रहती हैं, और रात दिन मेहनत करती हैं वह परेशान हो जाएंगी बस यही सोचकर नहीं बताया! आज मैं तुम्हें फोन लगाने ही बाली थी

पर तुम्हारा फोन आ गया! प्रियांशी मां से बोली——अच्छा चलो मां घबराओ नहीं मैं छुट्टी लेकर आती हूं इस समय मीनल को मोरल सपोर्ट की जरूरत है, और पारस को भी बड़ों के सहारे की, मीनल की बिल पावर तेज होना चाहिए जिससे इलाज पॉजिटिव होगा।

डॉ प्रियांशी अपनी मां को बताती है मां भले ही में साइकोलॉजिस्ट हूं—— लेकिन मैंने ऐसे ऐसे मरीजों को ठीक किया जो हिम्मत हार चुके थे और जीने की उनकी कोई इच्छा नहीं थी! इलाज भी उनका सही नहीं लग रहा था? पर मैंने मैडिटेशन के द्वारा, अपने साइकोलॉजीकल ट्रीटमेंट के द्वारा, योग के द्वारा ,और उनकी बिल पावर स्ट्रोंग करके उन्हें ठीक किया आज अस्पताल में मेरा अच्छा नाम है मैं आ रही हूं ?

शाम को जब बेटी आयुषी को स्कूल से लेकर अभिनव घर आते हैं तो देखते हैं——- प्रियांशी बहुत गहरी चिंता में पड़ी हुई थी? और बहुत उदास थी!अरे—– क्या हुआ है तुम्हें तबीयत तो ठीक है प्रियांशी की आंखों में आंसू आ जाते हैं—- अरेऽऽऽ बताओ तो सही—- बताती हूं! आज मैं घर पर मायके में फोन लगाया तो जब किसी ने फोन नहीं उठाया—– तो मैंने मां को फोन लगाया फिर जो मां ने कहा था

सब रो- रो के उसने अभिनव को बता दिया अभिनव भी चिंता में डूब गया! चलो तुम डॉक्टर हो अपने छोटे भाई और भाभी की मदद करो! प्रियांशी बोली हां मैंने भी यही सोचा है—– मैं छुट्टी लेकर आयुषी को अपने साथ लेकर जाती हूं क्योंकि वह छोटी है और खाने वाली मेड को आपके खाने के बारे में सब बता कर जाऊंगी वह टाइम पर खाना बना देगी—- हां ठीक है!

दूसरे दिन प्रियांशी फ्लाइट बुक कर लेती है और सुबह ही फ्लाइट से अपनी बेटी आयुषी को लेकर अपने मायके हैदराबाद पहुंच जाती है प्रियांशी को देखकर उसका भाई पारस दीदी से चिपटकर होने लगता है और बोलता है—- दीदी मेरी मीनल को बचाओ—— आयुषी को मां के पास छोड़कर प्रियांशी पारस के साथ हॉस्पिटल पहुंचती है मीनल उदास नजरों से खिड़की की तरफ देख रही थी। प्रियांशी बोलती है—— मिनल—- में– आ गई! मीनल दीदी को देखकर एकदम से खुश हो जाती है अरे दीदी आप! देखो मेरी क्या हालत हो गई! कोई बात नहीं तुम—- ठीक हो जाओगी तुम्हें कुछ नहीं हुआ?

इधर डॉक्टर का इलाज चलता है उधर डॉक्टर प्रियांशी अपने साइकोलॉजिकल ट्रीटमेंट के द्वारा मीनल के दिमाग में यह भर्ती है कि मैं “बिल्कुल ठीक हूं”—— ऐसा—– बार-बार बोलो मैं—– “शक्तिशाली आत्मा हूं”—– “मुझे कुछ नहीं हुआ है”मीनल प्रियांशी के वाक्यों को दोहराती और अपने अंदर एक ऊर्जा को महसूस करती! 

प्रियांशी मीनल को मेडिटेशन भी करवाती, योगा भी करवाती , और ध्यान के द्वारा संकल्प करवाती, क्योंकि संकल्प से सिद्धि मिलती है अच्छी-अच्छी बातें कर मीनल को खूब हंसाती। समय-समय पर उसको फलों का जूस देना और उसकी डाइट का ध्यान रखते हुए उसकी पूरी सेवा भी करती , इधर साइकोलॉजीकल ट्रीटमेंट के द्वारा मीनल को शक्ति आने लगती है और वह धीरे-धीरे ठीक होने लगती है

उसके मुंह पर एक तेज आने लगता है!और जो भी इलाज डॉक्टर विशाल कर रहे थे ——–आश्चर्य से देखते हैं, मीनल की सहन शक्ति भी बढ़ती जा रही थी! यह देखकर डॉक्टर खुश हो जाते हैं अरे–ऽऽऽ डॉक्टर प्रियांशी आप तो हमारे और मरीजों को भी कुछ अपना साइकोलॉजीकल ट्रीटमेंट दीजिए यह तो बहुत चमत्कार होता जा रहा है?

हमने तो मीनल को जवाब दे दिया था? लेकिन यह तो काफी ठीक हो गईं और आशा है महीने भर में तो यह बिल्कुल स्वस्थ दिखाई देंगी——– यह सुनकर डॉक्टर प्रियांशी कहती है हां—– मैं आपके हॉस्पिटल के मरीजों की भी——- सहायता जरूर—- जरूर साइकोलॉजिकल ट्रीटमेंट के द्वारा करूंगी!

आज बहुत खुशी का दिन था आज घर के सभी लोगों की आंखों में “खुशी के आंसू” थे गम पूरी तरह से जा चुका था! आखिर “आंसू बन गए मोती”——- सभी की आंखों में से खुशी के “आंसू मोती बनकर” टपक रहे थे महीने भर बाद इलाज के बाद मीनल बिल्कुल ठीक होकर अपने घर आ गई मां ने उसकी आरती उतारी और साथ में अपनी बेटी डॉक्टर प्रियांशी की भी आरती उतारी बेटा—– आज तुम्हारे कारण ही मेरी बहू बच गई सच में अगर बिल पावर तेज हो, और भगवान पर विश्वास हो तो साइकोलॉजिकल ट्रीटमेंट भी बहुत काम आता है, डॉक्टर अपना इलाज करता है, और साइकोलॉजिस्ट मरीज के मन को स्ट्रांग करके उसको ठीक कर देता है!

 जब आत्मा प्रसन्न होगी तो परमात्मा अपने आप ही प्रसन्न होता है यही भगवान का चमत्कार है।

 सुनीता माथुर 

 मौलिक, अप्रकाशित रचना

 पुणे महाराष्ट्र

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