आंखों पर चर्बी चढ़ना – डा. शुभ्रा वार्ष्णेय : Moral Stories in Hindi

अर्पित मल्होत्रा एक बड़े कॉर्पोरेट कंपनी का सीईओ था। उसने अपनी मेहनत और कुशलता से कंपनी को नए आयाम दिए थे। लोग उसकी सफलता की कहानियाँ सुनते नहीं थकते थे। लेकिन सफलता के साथ-साथ अर्पित में एक बदलाव आया। उसकी आँखों पर चर्बी चढ़ गई थी। वह अब दूसरों की परेशानियों को समझने या उनकी राय को महत्व देने के लिए तैयार नहीं था।

कुछ साल पहले, अर्पित एक साधारण कर्मचारी था। उसने अपनी नौकरी की शुरुआत एक जूनियर एक्जीक्यूटिव के तौर पर की थी। दिन-रात की मेहनत और नये-नये आइडियाज के कारण वह जल्द ही कंपनी में लोकप्रिय हो गया।

“अर्पित, तुम्हारे सुझावों ने हमारी सेल्स बढ़ा दीं!” उसके बॉस अक्सर उसकी तारीफ करते।

लेकिन उस समय का अर्पित विनम्र था। वह सभी को अपनी सफलता का श्रेय देता और हर किसी की राय को सुनता।

समय बीता और अर्पित को प्रमोशन मिलते गए। आखिरकार, वह कंपनी का सीईओ बन गया। ऊंचाई पर पहुँचने के बाद, उसके अंदर धीरे-धीरे बदलाव आने लगा।

“मुझे किसी की राय की ज़रूरत नहीं है। मैं जानता हूँ कि क्या सही है,” वह अक्सर मीटिंग्स में कहता।

कर्मचारी उसकी बातों पर सिर हिलाते, लेकिन अंदर से नाराज़ होते।

एक दिन, एक जूनियर कर्मचारी, सोनाली, ने सुझाव दिया, “सर, अगर हम छोटे शहरों में भी अपनी मार्केटिंग करें, तो हमारे प्रोडक्ट्स की डिमांड और बढ़ सकती है।”

अर्पित ने हँसते हुए जवाब दिया, “तुम्हें क्या लगता है कि मैं इतना अनाड़ी हूँ कि ये नहीं समझ सकता? मुझे ये छोटी-छोटी सलाह मत दो।”

सोनाली शर्मिंदा होकर चुप हो गई। धीरे-धीरे, अर्पित की यह आदत सबको खटकने लगी।

अर्पित की आँखों पर चर्बी चढ़ चुकी थी। वह किसी की भी बात सुनने को तैयार नहीं था।

“मुझे सब पता है। मुझे किसी के सुझाव की ज़रूरत नहीं,” वह बार-बार कहता।

एक दिन, कंपनी की एक बड़ी मीटिंग थी। सभी सीनियर अधिकारी चिंतित थे, क्योंकि कंपनी का एक नया प्रोडक्ट बाजार में फेल हो गया था।

“सर, हमने जो प्रोडक्ट लॉन्च किया, वह ग्राहकों की ज़रूरतों को पूरा नहीं कर पा रहा है। हमें इसे सुधारने की ज़रूरत है,” मार्केटिंग हेड ने कहा।

अर्पित ने गुस्से में जवाब दिया, “तुम सबको काम करना नहीं आता। मुझे मत सिखाओ। यह प्रोडक्ट सफल होगा, और मैं यह साबित कर दूँगा।”

अधिकारी खामोश हो गए। किसी ने कुछ नहीं कहा, लेकिन भीतर ही भीतर सब निराश थे।

कुछ महीनों बाद, कंपनी को भारी नुकसान हुआ। जो प्रोडक्ट अर्पित ने सफलता की गारंटी के साथ लॉन्च किया था, वह पूरी तरह फ्लॉप हो गया। मार्केटिंग टीम ने बार-बार चेताया था कि प्रोडक्ट ग्राहकों की जरूरतों के मुताबिक नहीं है, लेकिन अर्पित ने उनकी बातों को नज़रअंदाज़ कर दिया था।

एक दिन, कंपनी के मालिक, मिस्टर चोपड़ा, अर्पित से मिलने आए।

“अर्पित, मुझे तुमसे उम्मीद थी कि तुम कंपनी को नई ऊँचाइयों तक ले जाओगे। लेकिन तुमने अपनी सफलता के नशे में दूसरों की राय को अनदेखा कर दिया। यही तुम्हारी सबसे बड़ी गलती थी।”

अर्पित चुप था। उसे महसूस हो रहा था कि उसकी आँखों पर चर्बी चढ़ चुकी थी। उसने दूसरों की राय को महत्व देना बंद कर दिया था।

उस रात अर्पित ने घर पर बैठकर अपनी पुरानी डायरी खोली। यह वही डायरी थी, जिसमें उसने अपने संघर्ष के दिनों में सपने लिखे थे।

“मैं कभी अहंकारी नहीं बनूँगा। मैं हमेशा दूसरों की राय सुनूँगा,” उसने एक जगह लिखा था।

लेकिन आज वह यह सब भूल चुका था।

अगले दिन, अर्पित ने अपने कर्मचारियों की एक मीटिंग बुलाई।

“मुझे माफ करना। मैंने आप सबकी बातों को महत्व नहीं दिया। यह मेरी गलती थी। आज से, मैं हर किसी की राय को ध्यान से सुनूँगा। आपकी मेहनत और सुझाव हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण हैं।”

कर्मचारी पहले हैरान हुए, लेकिन फिर उनकी आँखों में खुशी थी।

अर्पित ने धीरे-धीरे बदलाव करना शुरू किया। उसने हर प्रोजेक्ट पर अपनी टीम से सलाह लेनी शुरू की। वह फिर से विनम्र बन गया।

“सर, आपने हमें जो सम्मान दिया, वह हमें और मेहनत करने के लिए प्रेरित करता है,” सोनाली ने एक दिन कहा।

अर्पित मुस्कुराया और कहा, “मैंने समझ लिया है कि सफलता अकेले की नहीं होती। यह एक टीम की मेहनत का नतीजा है।”

अर्पित की कहानी यह सिखाती है कि अहंकार हमारी सफलता को नष्ट कर सकता है। “आँखों पर चर्बी चढ़ना” केवल दूसरों को अनदेखा करना नहीं है, बल्कि यह खुद की सीमाओं को भी न पहचानने का संकेत है। जब अर्पित ने दूसरों की बात सुननी शुरू की, तो उसकी कंपनी ने फिर से सफलता के शिखर को छुआ।

 प्रस्तुतकर्ता

डा. शुभ्रा वार्ष्णेय

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