डोरवेल बजी तो प्राची ने दरवाजा खोला सामने अंकिता खड़ी थी । झटके से प्राची के गले लग गई भाभी भाभी,,,,,,,,,,,।इस अप्रत्याशित घटना से प्राची थोड़ा अचकचा गई क्योंकि अंकिता कभी प्राची को भाभी नहीं कहती थी। हमेशा नाम लेकर बुलाती थी और ताने देती रहती थी और तीखे शब्दों में ही प्राची से बात करती थी।
क्या हुआ दीदी सब ठीक तो है न प्राची ने पूछा,आप रोइए नहीं चलिए अंदर चलिए।कौन है प्राची तू किससे बात कर रही है अंदर से प्राची की सांस सरस्वती जी की आवाज आई। अंकिता आई है , अंकिता आई है अरे अभी कल ही तो मिलकर गई है और आज फिर क्या बात है अंकिता। मां , मां उन लोगों ने मुझे घर से निकाल दिया ।
अच्छा ऐसा किया उन लोगों ने आने दे सोमेश को फिर मैं देखती हूं ।लो दीदी पानी पियो मैं आपके लिए चाय बनाकर ले आती हूं ।आप रोना बंद करिए फिर इत्मीनान से बैठकर बात करते हैं।
सरस्वती और अखिलेश जी के दो बच्चे थे अंकिता और सोमेश । अखिलेश जी बैंक की नौकरी करते थे और अब रिटायर थे।और अभी एक साल पहले हृदयाघात से उनकी मृत्यु हो गई थी।और सरस्वती जी घुटनों के दर्द से बहुत परेशान थी चल फिर नहीं पाती थी।वाकर के सहारे से चलती थी । घुटनों का आपरेशन होना था सोच ही रहे थे
कराने की कि तभी अखिलेश जी का देहांत हो गया और फिर बात टल गई तो फिर टल ही गई।बेटी अंकिता बहुत लाडली थी पापा की इस वजह से थोड़ी जिद्दी और मुंहफट हो गई थी। अंकिता की शादी अखिलेश जी के सामने ही हो गई थी। बेटे सोमेश की शादी भी तय थी लेकिन अखिलेश जी के अचानक चले जाने से रूक गई थी।
फिर छै महीने बाद छोटे से समारोह में शादी कर दी गई थी क्योंकि घर को संभालने वाला चाहिए था सरस्वती जी तो कर न पाती थी । अखिलेश जी थे तो उनको घर के कामों में थोड़ी रूचि थी तो वो नौकर के साथ काम करवा लेते थे ।और सरस्वती जी को भी देख लेते थे ।अब अखिलेश जी के न रहने पर बहुत समस्या आ रही थी ।इस लिए छोटे से फंक्शन में सोमेश और प्राची की शादी हो गई थी।
सोमेश किसी प्राइवेट कंपनी में इंजीनियर था और प्राची ने भी एम बीए किया हुआ था ।उसको भी नौकरी करने की बहुत इच्छा थी लेकिन घर की परिस्थितियां इस तरह की थी कि नौकरी करना संभव नहीं लग रहा था । क्योंकि घर में और कोई था नहीं और सरस्वती जी की भी हालत दिनों दिन खराब होती जा रही थी ।
जब घर में प्राची नहीं थी तो किसी तरह नौकरों के भरोसे काम होता था लेकिन अब तो बहू घर में आ गई है तो सरस्वती जी की इच्छा है कि वो घर को संभालने में ही अपना मन लगाए ।
सरस्वती जी अपना दैनिक काम ही कर लेती थी वहीं बहुत था । फिर नौकर रखा भी तो काम कराने के लिए उसको भी तो देखना पड़ेगा ।आ रही है तो दरवाजा खोलो जा रही है तो दरवाजा बंद करो उसे देखो कैसे काम कर रही है तमाम तरह के झंझट।
फिर भी उसने सोमेश से कहा सोमेश मैं भी नौकरी करना चाहती हूं । तो सोमेश ने कहा यदि घर की परिस्थितियां इजाजत दे रही हो तो बेशक करो लेकिन मां को कौन देखेगा ।
लेकिन मेरे आने से पहले भी तो मां अकेले ही करती देखती थी न ।वो मजबूरी थी मां कि किसी तरह करतीं थीं लेकिन अब तुम्हारे रहते भी उनको ये परेशानी उठानी पड़े तो तुम्हारे रहने का क्या फायदा । फिर भी तुम्हारी इच्छा है तो मां से एक बार पूछ लो सोमेश बोला।
आज प्राची ने सरस्वती से पूछा मां मैं भी नौकरी करना चाहती हूं , अपनी पढ़ाई का सदुपयोग करना चाहती हूं । क्या कह रही हो प्राची नौकरी करना चाहती हो सरस्वती जी तेज आवाज में बोली, फिर घर कौन देखेगा। तूझे इस लिए ब्याह कर नहीं लाई कि तू दिनभर घर से बाहर रहे और घर नौकरों के सहारे रहे ।
और फिर सोमेश तो अच्छा कमाता है और तेरे ससुर जी की भी पेंशन आती है क्या कमी है जो तू भी नौकरी करेगी। नौकरी का ख्याल मन से निकाल दे । मां नौकरी हमेशा इस लिए ही नहीं की जाती कि कुछ कमी है पढ़ाई-लिखाई का सदुपयोग भी तो है ।प्राची मन मसोस कर रह गई ।आज अंकिता घर आई हुई थी तो मां ने उससे शिकायत की देख जरा प्राची नौकरी करना चाहती है।
आपने डांटा नहीं अंकिता बोली डाटा था बेटा । इतने में प्राची अंकिता के लिए पानी लेकर आ गई। क्या सुन रही हूं मैं प्राची तुम नौकरी करना चाहती हो फिर इस घर को और मां को कौन देखेगा।और फिर मैं भी तो आती हूं मेरा ख्याल कौन रखेगा। क्या मैं मायके आकर अपने हाथ से खाना पीना करूंगी क्या ।वो दीदी,,,,,,,,,।
क्या दीदी कुछ नहीं घर संभालो समझी कोई नहीं है घर देखने वाला। महारानी की तरह तो यह रही हो अब बाहर मैडम मौज मस्ती करने जाएगी । कोई नौकरी वौकरी नहीं करनी समझीं ।प्राची अपना सा मुंह लेकर कमरे में लौट आई ।
एक ही शहर में अंकिता की ससुराल और मायका था।तो अंकिता जब चाहे जब मायके आ जाती थी और मां बेटी दोनों मिलकर खूब ताने दिया करती थी प्राची को। ऐसे ही एक दिन अंकिता घर में दोपहर में आ गई ।प्राची दोपहर का खाना बना चुकी थी । सोमेश अपना टिफिन लेकर आफिस चला गया था।
अचानक से अंकिता को देखकर प्राची बोल पड़ी दीदी आप इस समय,तो क्या मैं अपने घर भी तुमसे पूछकर आऊंगी क्या। मां मां देखो तो आपकी बहू प्राची क्या कह रही है ,कह रही है इस समय ।अरे कुछ नहीं दोपहर के दो बज रहे हैं मन किया मेरा तो आ गई। अरे दीदी कोई बात नहीं मैंने तो ऐसे ही पूछ लिया था कोई बात नहीं आ गई तो ठीक है ।
लेकिन सरस्वती जी की कड़कती आवाज आई कि तूने मेरी बेटी से ऐसे पूछा क्यों उसके माता-पिता का घर है जब मर्जी होगी तब आएगी ।और हां सुन अंकिता के लिए कुछ अच्छा सा खाना बना , खाना तो बन गया मम्मी जी प्राची ने कहा इस समय सबलोग वहीं खा लेंगे शाम को
मैं दीदी के पसंद का बना दूंगी। क्या कहा तूने मेरी बात को मना करेंगी हिम्मत कैसे हुई तेरी जा पनीर की सब्जी बना अंकिता के लिए।बस यही मां बेटी का रोज का चलता रहता था । सोमेश भी कुछ नहीं बोलता था वो भी बहन और मां के हां में हां मिलाता रहता था।
अंकिता के शादी के तीन साल हो गए थे वो अभी तक मां नहीं बन पाई थी।उसको अपनी ससुराल में सास-ससुर के ताने मिलने लगे थे कि अभी तक एक औलाद न दे पाई।इस बात को लेकर घर में अक्सर कोई न कोई बात हो जाती थी । अंकिता की जेठानी को दूसरी बार बच्चा होने वाला था और अंकिता अभी तक मां नहीं बन पाई थी ।
डाक्टरों ने तो कोई कमी नहीं बताई थी बस इंतजार करने को कहा था। लेकिन सास थी कि हर वक्त ताने मारती थी और बेटे को भड़काती थी कि इसे तलाक दे दे ।
अंकिता रोज रोज तो सुनती रहती थी पर आज उसे बर्दाश्त नहीं हुआ और कमरे से बाहर आकर पति वीरेंद्र और सांस से झगड़ा करने लगी। क्या मुझे तलाक दोगे आप यदि मैं नहीं मां बन पाई तो इसमें तुम्हारे अंदर भी तो कोई कमी हो सकती है
मुझे ही क्यों दोषी ठहराया जाता है। मेरे बेटे में नहीं तुझमें कमी है अंकिता की सांस बोली। अपने बेटे का बिना टेस्ट करवाएं ये कैसे बोल सकती है आप।और मुझे तलाक़ दिलवाएंगी तो मैं आज खुद ही चली जाती हूं अपने घर ।आप लोग क्या निकालेंगे मुझे।और अंकिता रोती हुई घर आ गई।
अंकिता को ससुराल से आए हुए एक हफ्ता ही हुआ था कि सबेरे सबेरे अंकिता को उल्टियां लगने लगी ।प्राची ने पूछा क्या हुआ दीदी , पता नहीं क्यों उल्टियां आ रही है ।अरे तुमने कल छोले भटूरे का लिए थे न गर्मी है तो बदहजमी हो गई होगी सरस्वती जी बोली। लेकिन दिन में भी खाना खाने से मना कर दिया अंकिता ने ।
फिर शाम को प्राची ने कहा चलो दीदी डाक्टर को दिखा देते हैं।अरे नहीं ठीक हो जाएगा पुदीन हरा ले लिया है । लेकिन जब शाम को अंकिता ने खाना खाने से मना किया तो सोमेश और प्राची अंकिता को जनरल फिजिशियन के पास ले गए तो डाक्टर ने कहा इन्हें किसी महिला डाक्टर के पास ले जाएं । वहां ले जाने पर डाक्टर ने जब टेस्ट किया तो बोली आप प्रेगनेंट हैं
क्या सुनते ही सब उछल पड़े ।ये कैसा चमत्कार हो गया सबकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा । भाभी कहकर अंकिता प्राचीके गले लग गई। अंकिता का व्यवहार देखकर एक तरफ प्राची ख़ुश भी थी और सोंच रही थी कहीं ये सब कुछ देर के लिए ही तो नहीं है।
घर आकर प्राची ने सरस्वती जी को बताया।प्राची ने कहा मांजी क्यों न अंकिता के ससुराल में वीरेंद्र जी को खुश खबरी दी जाए ।जब वीरेंद्र को खुश खबरी दी तो उसको तो जैसे विश्वास ही नहीं हो रहा था अच्छा भाभी मैं कल आता हूं घर अंकिता को लेने ।
दूसरे दिन जब वीरेंद्र घर आया तो अंकिता को बधाई दी और बोला चलो घर चलें । लेकिन सरस्वती जी ने कहा अभी शुरू के दिन है तो थोडा देखरेख की जरूरत होती है । हां जीजा जी आप कुछ समय के लिए अंकिता को यही पर रहने दें हम लोग देखरेख कर लेंगे थोड़ा समय बीत जाने दे फिर ले जाइएगा । वीरेंद्र भी मान गया और अपने घर वापस चला गया । यहां प्राची ने अंकिता का बहुत ख्याल रखा इस समय कुछ अलग चीजों को खाने का मन करता प्राची जब अंकिता का जो मन करता बना कर देती रहती बहुत अच्छे से ख्याल रख रही थी ।अब अंकिता के मुंह से भी भाभी भाभी ही निकलता प्राची कहना तो वो भूल ही गई थी ।आज अंकिता सबका दिल जीतने में कामयाब हो गई थी । सरस्वती जी के भी व्यवहार में परिवर्तन दिखाई दे रहा था ।
करीब एक महीना अंकिता रही घर पर । फिर आज वीरेन्द्र घर आया और अंकिता को ले जाने तो खुशी खुशी तैयार हो रही थी अंकिता। खाने पीने कि ध्यान रखना अंकिता और ये दवा लेनी है समय पर देना और बहुत खुश रखिएगा जीजा जी दीदी को । जाते जाते अंकिता प्राचीके गले लग कर कहने लगी तुम बहुत अच्छी है भाभी मुझसे जो गलती हुई है माफ़ कर देना। आपने भाभी बनकर मेरा बहुत ख्याल रखा। सरस्वती जी बोली हां ऐसी बहू पाकर मैं धन्य हो गई ।मैं तो बहुत देर में समझ पाई प्राची को ।प्राची भी मन में सोचने लगी आज मैं सही मायने में बहू और भाभी बन पाई हूं ।लाख लाख धन्यवाद है ईश्वर।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
13 मई