आईना – डॉक्टर संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

कितने जिद्दी बच्चे हैं ये,तौबा!सारी गलती इनकी मां की है जिन्होंने इन्हें बिल्कुल मैनर्स नहीं सिखाए…

श्वेता अपनी जेठानी की बेटियों रानी,पायल को जिद करते देख बोली।

दरअसल उसके जेठ दीपेश उन बच्चियों को बिस्किट देते ,वो नहीं खाती,चॉकलेट देते ,उसे मना कर

देती,उनकी जिद थी कि मां के पास चलना है जो इस वक्त हॉस्पिटलाइज थीं अपने ट्यूमर के ऑपरेशन के

लिए और वो बेचारे अपने छोटे भाई रोहन के घर थे कुछ समय के लिए,आखिरकार हार मान कर उन्होंने उन

बच्चियों को उनकी चॉइस की आइसक्रीम दिलवा ही दी,बच्चियां छोटी थीं और सर्दी बहुत थी लेकिन वो या

तो मां के पास जाने की जिद कर रही थीं या आईस क्रीम खाने की।

श्वेता के मुंह से निकला…ऊंह..ज्यादा सिर पर चढ़ा रखा है,मारते दो थप्पड़ मुंह पर,अभी सीधी हो जाती,जब मेरे

बच्चे होंगे तब सिखाऊंगी बच्चे पालना किसे कहते हैं?

दीपेश ने श्वेता की बात सुन ली थी भले ही वो धीरे से बड़बड़ाई थी, पर इस समय वो चुप रहा और सोचने

लगा,इसकी आंखों पर बहुत चर्बी चढ़ी है,ये सब रोहन की ढील का नतीजा है,खैर…समय रहते सब उतर जाएगी

खुद ही।

आज बीस वर्ष बाद,एक बार दृश्य बदला,श्वेता अपने बीमार लड़कों को लेकर अपने जेठ जेठानी के यहां

है,उसकी जेठानी होम्योपैथिक की अच्छी डॉक्टर है और उसके इलाज से असाध्य बीमारियां भी सही हो

जाती हैं।

हुआ क्या कि श्वेता के बेटे अपने मां बाप के लाड प्यार से पहले पहल खूब जंक फूड खाते हैं,खाने की जगह

मैगी,मोमोज,पास्ता और पिज्जा खाकर वो फुटबॉल की तरह काउच पोटेटो जैसे बन गए और बचपन में ही

तरह तरह की बीमारियों के शिकार हो गए।तमाम एलोपैथिक दवाइयों के बाबजूद भी वो ठीक न हुए और

अब अपनी उन्हीं की ताई जी के इलाज के लिए आए हैं जिन्होंने उनकी मां को कभी व्यंग किया था कि उन्हें

अपने बच्चे पालने की तमीज नहीं है।अपनी बारी आई तो वो सब भूल गई,उनके बच्चों को सही से पालने के

सारे दावे हवा हो गई क्या?v

प्रिय पाठकों!इस कहानी के माध्यम से सिर्फ ये बताने की कोशिश की है कि व्यक्ति को बड़बोला नहीं होना

चाहिए,कई बार आंखों पर घमंड की पट्टी चढ़ाए हम दूसरों पर व्यंग करते हैं जो बहुत अशोभनीय होता है।

डॉक्टर संगीता अग्रवाल

वैशाली,गाजियाबाद

#आंखों की चर्बी

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