आईना ! – किरण केशरे 

डाकतराईन ने क्या बोला ? लल्ला ! 

घर में घुसते ही अम्मा ने घेर लिया था भैरव को ! कुछ नही, लड़की है,, भैरव का उखड़ा हुआ स्वर सुनकर अम्मा बिफर ही पड़ी थी,,,,

“कब से आस लगाकर बैठी थी अब दूसरी बार तो बेटा जनेगी करमजली” 

पोते की चाह ने अम्मा को विकल कर दिया था। 

दुर्गा अपनी भाभी की स्थिति समझ रही थी,, की इसमें उसका कोई दोष नही है,, अशिक्षित अम्मा इस बात को नही जानती थी,, इसलिए सारा दोष बहू पर ही मढ़ रही थी। 

तु इसे जल्दी से जल्दी हस्पताल लेकर जा और इस मुसीबत को दूर कर के आ! अम्मा की कठोर आवाज गूंजी थी । 

सुगना कोने में खड़ी थर थर काँप रही थी,, वह अपने बच्चे को नही खोना चाहती थी,, भैरव और अम्मा के सामने उसके बोल नही फूटते थे,, पर हिम्मत जुटा कर बोली थी मैं हस्पताल नही जाऊँगी , मुझे अपना बच्चा नही खोना है,,,चाहे अब मेरा आपरेशन ही करा देना! 




क्या  ? ओर मेरी पोते की आस का क्या होगा, नासपीटी? 

तेरी इत्ती हिम्मत ! की मेरे सामने जुबान खोले ,अम्मा चीखी थी, इसको अब्बी के अब्बी इसके बाप के घर छोड़ के आ! तेरा दूसरा बियाह कराऊंगी…अम्मा का पारा चढ़ गया था । 

अब तक दुर्गा चुपचाप सबकुछ देख रही थी, अपनी भाभी सुगना से बहुत लगाव था,उसकी बेबसी देखी नही गई दुर्गा से,,,,उसने अम्मा को कहा की इसमें भाभी का कोई दोष नही,, तो क्यों उसपर ही सारा आरोप लगा रहे हो ? 

तू चुप रह,, बड़ी आई भाभी की वकालत करने ! अम्मा ने दुर्गा को झिड़क ही दिया था,, 

भैरव इसको अब्बी लेकर जा, अम्मा कुछ सुनने को तैयार न थी,, 

सुगना का चेहरा डर से पीला पड़ गया, वह रोने लगी थी। 

अब दुर्गा की सहनशक्ति जवाब दे गई , वह भैरव के सामने जाकर खड़ी हो गई  बोली , भाई सा ! मेरी भी शादी होने वाली है,, कल को मेरी भी बेटियाँ ही हुई और मेरे ससुराल वालों ने मुझे घर से निकाल दिया तो क्या तुम मुझे शरण दे दोगे  ? बोलो अम्मा ! मैं तुम्हारी बातों का विरोध नही करूँगी , अगर तुम मुझे ऐसा भरोसा दो ! 

अचानक! गरमाते माहौल में चुप्पी सी छा गई,,,, भैरव दाएँ- बाएँ बगले झाँकने लगा  और अम्मा भूनभुनाते हुए दालान में बिछी चारपाई पर जा बैठी ! उन दोनों को दुर्गा ने आईने में उनका अक्स  दिखा दिया था !! 

 

    किरण केशरे 

 

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