मोहित के एक तरफा प्यार ओह नही इस मनोदशा को प्यार नही कह सकते, मोहित की एक तरफा सिमरन को पाने की इच्छा व सिमरन की ना ने इस हादसे को जन्म दिया। सिमरन एक बहुत ही खूबसूरत व मेधावी छात्रा थी। मोहित और सिमरन एक ही कोलेज में पढ़ते थे।
मोहित बार बार सिमरन का रास्ता रोक कर उससे दोस्ती करने की बात करता था लेकिन सिमरन बहुत ही नम्रता से ठुकरा देती थी, उसकी ना से मोहित के मन में इतना आक्रोश भर गया कि उसने एक दिन सुबह कोलेज आते हुये उसके चेहरे पर तेजाब फेंक दिया।
एक महीनें में जाकर सिमरन अस्पताल से अपने घर आ पायी और इस हादसे ने उसका कैरियर व उसकी जिंदगी दोनों ही बदल दी उसे उसकी ना की सजा में मिला उसका जला हुआ चेहरा, उसे देखकर लोगों के माथे की शिकन और एक बदहाल जिंदगी।
उसके माता पिता उसे मानसिक रुप से उबारने का पूरा प्रयास कर रहे थे पर सिमरन की दुनिया उसके कमरे तक सिमट कर रह गयी थी। उसे यदि बाहर जाना होता तो पूरा मुंह ढक कर जाती, अपनी पढ़ाई उसने प्राइवेट शुरू कर दी, कोलेज, बाजार,
सहेलियों से मिलना सब छोड़ दिया। एक चहकती सी चिड़िया पंख कटी चिड़िया में तब्दील हो गयी। एक दिन वो अपनी कुछ किताबें लेने बाजार आयी थी पूरा मुंह दुपट्टे से ढके हुये, तभी अचानक बारिश शुरु हो गयी, बारिश से बचने के लिए वो एक कोफी हाऊस में बैठ गयी।
उसने एक कप कोफी का आर्डर दिया ही था कि एक बच्चा जिसके सारे कपड़े भीगे हुये थे उससे कुछ खाने को मांगने लगा। सिमरन ने एक बर्गर खरीद कर उस बच्चें को दे दिया। बच्चे ने वहीं बैठ कर वो बर्गर खा लिया, सिमरन ने उसके गाल थपथपायें बच्चे ने बड़े प्यार से उसकी तरफ देखा और उसके माथे पर प्यार की एक मोहर लगा दी, इसी दौरान सिमरन के चेहरे से उसका दुपट्टा उतर गया आस-पास बैठे लोगों
ने बड़ी दया व घृणा की भावना से उसे देखा पर बच्चे की आँखों में उसे अभी भी अपने लिए प्यार व सम्मान ही नजर आ रहा था। बच्चे ने अब की बार उसके गाल पर एक प्यार की मोहर लगा दी। बच्चे के प्यार की मोहर ने जैसे सिमरन की जिंदगी व सोच ही बदल दी, उस भयानक हादसे के बाद उसके चेहरे पर पहली बार एक मोहक सी मुस्कान थी।
एक बच्चे की प्यार भरी नजरों की वो शुक्रगुजार थी जिसने उसमें आत्मविश्वास पैदा कर दिया था और वो शरीर से न सही मन से आज भी खूबसूरत है ये अहसास दिलाया था। सिमरन के होठ बुदबुदाया और उसकी अन्तरात्मा से कुछ पंक्तियां स्वत ही बाहर आ गयी……….
देखते देखते न जाने कब प्यार तेजाब बन गया,
चेहरे पर डालकर मेरे तेजाब उसके मन का आक्रोश दब गया…
जले हुये चेहरे के रूप में मुझे मेरी ना की सजा मिली,
मुरझा गयी एक कली जो अभी न खिली थी…
सिसकती हुयी जिदंगी बिन खता मैं जी रही थी,
देखकर मुझको जो लोगों के माथे की शिकन थी वो पी रही थी…
बदसूरती की मैं एक जिंदा मिसाल थी,
जिंदा थी पर जिंदगी मेरी बदहाल थी…
एक बच्चा जो कुछ खाने को मांग रहा था अचानक मेरे पास आया, और कुछ खाने को गिड़गिड़ाया,
मैंने प्यार से बैठा कर उसे कुछ खिलाया फिर प्यार से उसे थपथपाया…
उसने मेरी तरफ बड़े प्यार से देखा और प्यार की मोहर मेरे गालों पर लगा दी,
अचानक मुझे ख्याल आया तन से न सही मन से मैं आज भी बेमिसाल थी…
किसी की हमसफर न बन पाऊं तो क्या हुआ जिंदगी को भरपूर जी कर लाखों जले चेहरों की प्रेरणा की मशाल थी,
मैंने एक नये आगाज की तरफ अपना कदम बढ़ाया…
खुद को मजबूत और मजबूत बनाकर लोगों की खिदमत में
खुद को लगाया,
मैं अब हर तेजाब डालने वाले के आक्रोश का जवाब थी…
खुश थी, जज्बे से भरपूर थी, आत्मविश्वासी थी, लाजवाब थी,
एक छोटे से बच्चे की प्यार भरी नजरों की शुक्रगुजार थी….
जिसने मुझे मेरे मन की सुन्दरता का दीदार कराया था,
तन की बदसूरती से ही खत्म नही हो जाती जिंदगी ये अहसास कराया था।
कवयित्री मीनाक्षी चौधरी(मौलिक)
देहरादून