निरुपमा जैसे ही ससुराल की दहलीज पर पहुँची वहाँ के रंग रौनक और शान-ओ- शौकत देखकर दंग थी । उसकी उम्र यही कोई बाइस – तेईस के लगभग होगी । पहली शादी तो बीस वर्ष होते ही हो गयी थी , वहाँ भी धनी सम्पन्न परिवार ही था लेकिन पति के साथ निरुपमा की निभ नहीं पाई ज्यादा । उसके पति को शराब की बहुत बुरी लत थी, सबने बहुत समझाया रिश्ते की दुबारा शुरुआत के लिए लेकिन वो निरुपमा को छोड़ सकता था लेकिन शराब नहीं । उस दिन ऐसी ही ज्यादती हुई । नशे में पागल वह निरुपमा पर हाथ उठाया और खूब मारा । वह ज़ख्मी हो गयी और आखिर में अपने माता- पिता के घर आ गयी ।भय से दुबारा नहीं लौटने की कसम खाई और फिर कागजी कार्रवाई करके दोनो का तलाक करा दिया गया ।
तीन बहनों में निरूपमा सबसे बड़ी थी । रंग गोरा होने के साथ नैन – नक्श भी बड़े सजीले थे , शरीर मे भी अथाह फुर्ती । ट्यूशन और स्कूल में पढ़ाकर वह गुजारा करती थी । निरुपमा के पापा नारायण जी यूँ तो कस्बे में राशन की छोटी दुकान चलाते थे लेकिन चार सालों से लकवा रोग के शिकार हो गए थे । बहुत दवा उपचार के बाद वो ठीक हुए थे ।बड़ी होने के साथ – साथ निरुपमा जिम्मेदार भी थी । घर की बागडोर उसने तुरंत सम्भाल ली । ग्रेजुएशन के बाद वह कम्प्यूटर की डिग्री ले ली । कम्प्यूटर सिखाने के साथ साथ उसने ट्यूशन भी शुरू कर दिया ।
नारायण जी की तीनो बेटियाँ बहुत सुंदर थीं । निरुपमा का तलाक हुए अभी साल भर ही हुआ था कि एक खानदानी घर से सरकारी ऑफिसर सुयश का रिश्ता लेकर उसके चाचा मदन जी आ गए । निरुपमा की मम्मी अनिता जी बहुत खुश हुईं लड़के का व्यवहार, सम्पत्ति , नौकरी परिवार आदि सुनकर । लेकिन आखिरी में पता चला लड़के की भी ये दूसरी शादी है । तारीफ तो मदन जी ने बहुत किया था पर अब सब कुछ फीके पड़ रहे थे ।जैसे ही दूसरी शादी की बात हुई निरुपमा घबरा गई लड़के के बारे में सुनकर । उसे लगने लगा दूसरी शादी क्यों हो रही है, शायद ये भी मेरे पहले पति की तरह होगा । दिमाग में ये बातें चलते चलते वो दाँत से अपने नाखून काटने लगी ।फिर मदन जी ने समझाते हुए ये कहकर बोझ कम किया कि सुयश की पहली पत्नी बच्चा होते वक़्त मर गयी । डॉक्टर न बच्चे को बचा पाए न माँ को ।
अब थोड़ा राहत महसूस कर रही थी निरुपमा । वो भी सोचने लगी मेरे जाने से मम्मी पापा का दुःख कम हो जाएगा ।सुयश और निरुपमा ने एक दूसरे को देखा और पसन्द कर लिया । साथ ही साथ सुयश ने ये भी कह दिया कि निरूपमा के दोनों बहनों की पढ़ाई का वो जिम्मेदारी लेगा ।
निरुपमा दहलीज पर खड़ी ही थी कि निरुपमा की दादी सास ने आरती उतार कर उसका गृह प्रवेश कराया । ड्राइंग रूम में जैसे ही वह घुसी एक बड़ी सी मुस्कुराती हुई तस्वीर देखकर वो स्तब्ध हो गयी । दादी सास ने उसका परिचय कराते हुए कहा…”ये मिताली है, सुयश की पहली पत्नी । इसे प्रणाम करो और हर दिन सुबह उठकर नहाने धोने के बाद प्रणाम करोगी तभी दिनचर्या शुरू होगी । सिर हाँ में हिलाते हुए निरुपमा ने सहमति जताया ।
दिन भर की रस्मों के दौरान सब उसका नाम नहीं लेकर मिताली ही बुला रहे थे । रस्मों के बाद जब रात में वो सोने के लिए बिस्तर पर आई , ऐसा लग रहा था मानो बिस्तर में कांटे लगे हों इस कदर चुभ रहे थे । आधी रात को सुयश ने उसकी बेचैनी देखकर पूछा..”क्या हुआ म..मित…मिताली .? अब निरूपमा की आँखों से अविरल अश्रु बहने लगे । उसने दो टूक जवाब दिया “कुछ नहीं ” …बस ! और वो मुँह घुमाकर चुपचाप सो गई । सुयश ने सोचा शायद मायके की याद आ रही होगी इसलिए दुखी होगी और वो भी सो गया । अभी भी निरूपमा की आँखों मे बेचैनी से नींद गायब थी ।
ऐसे ही एक सप्ताह गुजर गए ।वो जैसे मिताली को महसूस कर रही हो । चारों तरफ उसका चेहरा, उसकी तस्वीर और सबके ज़ेहन में उसकी बातें उसे बहुत दुःखी कर रही थीं । सबसे ज्यादा तो उसे अंदर से तोड़ रहा था वो था सुयश के मुँह पर भी मिताली का नाम आ जाना । शादी के अगली सुबह ही उसकी सास ने कहा था हम निरूपमा को प्यार से मिताली ही बुलाएँगे । और ऐसा ही हुआ, सबको वही आदत थी पर उसे लगने लगा था जैसे उसकी पहचान गुम सी हो रही हो । एक दिन निरूपमा की मम्मी का फोन आया विदाई कराने के लिए । निरूपमा की सास और दादी सास ने सख्ती से मना कर दिया कि वो अभी नहीं जाएगी । आपने कहा था लड़की बहुत सीधी शांत है लेकिन वह तो हमारे परिवार में ही ढलने को तैयार नहीं, थोड़ी उसकी गृहस्थी बसने दीजिए, सबको अपनाने दीजिए तभी यहाँ से विदाई होगी । कितने तरह के पकवान उसे खाने को मिलते हैं , काम और खाना बनाने के लिए भी सहायिका है पर जाने उसे क्या चाहिए ?सुयश को भी उसने दिल से नहीं स्वीकारा अभी तक ।
एक महीने होने को आए थे पर इतने दिनों में ही उसे लगने लगा था वो मानसिक प्रताड़ना का शिकार हो रही है । बोलने की आदत नहीं थी और वो अंदर ही अंदर घुट रही थी । फिर भी उसने एक दिन हिम्मत जुटाकर कहा..”आपलोग मेरे नाम से ही बुलाइये न ! मुझे अंदर से अच्छा नहीं लगता वो नाम सुनकर ।पर सबने मुँह टेढ़ा कर खुद में बुदबुदाया और फिर वही दोहराने लगे ।
समझ नहीं आ रहा था अनिता जी को कुछ दिनों से।अचानक निरूपमा इतनी बदल कैसे गयी । उसी दिन अनिता जी अपने पति नारायण जी जी के साथ बिन बताए ही निरूपमा के ससुराल पहुँच गईं । उन दोनों को घर आया देखकर निरूपमा के सास ससुर दंग रह गए और आश्चर्य भाव लिए पूछा…”आप अचानक..? हाथ जोड़ते हुए अनिता जी ने कहा…”फोन पर निरूपमा से बात नहीं होती थी दिल बहुत घबरा रहा था तो सोचे मिलकर उसे साथ लेते आएँ , थोड़ा अच्छा लगेगा हमें । तब तक निरूपमा आकर मम्मी – पापा के पैर छूकर गले लग गयी । उसके आंखों से आँसुओं का शैलाब उमड़ पड़ा लेकिन लंबी साँस खींचकर उसने आँसुओं को खुद में समाहित कर लिया ।
निरूपमा की सास और दादी सास ने मिलकर चार बैग पैक किये जिसमे बहुत तरह के खाने की चीजें, कपड़े, गहने आदि से लाद दिया । अनिता जी खुश हो रही थीं सब देखकर । अनेक व्यंजन खाने के बाद हाथ जोड़ा और अनुमति ली । पर गाड़ी में बिठाते बिठाते ही दादी सास ने बोल दिया…”वैसे तो अभी विदाई नहीं करते लेकिन आप आ गए थे तो खाली हाथ नहीं लौटाना था । इसे सिखा कर भेजिएगा अगली बार ।ससुराल में सबकी बातें सुनते हैं मनमर्जी से नहीं चलते । तीन- चार दिन में सुयश जाकर ले आएगा । “जी कहकर सिर हिला दिया अनिता जी ने और असमंजस से घिरी हुई वो निरूपमा के साथ गाड़ी में बैठ गईं ।
घर में घुसते ही निरूपमा बहनों पर नज़र पड़ते ही उनसे चिपक गयी । और दहाड़ें मार कर रोने लगी ।उसकी छोटी बहन ढेर सारे सामान देखकर खुश होने लगी । निरूपमा की आवाज़ से वह घबरा कर उसके पास गई और वह भी जोर – जोर से रोने लगी । नारायण जी ने गले लगाते हुए पूछा…”क्या हुआ बेटा , सब ठीक तो है ? क्या हालत कर ली हो अपना । इतने कम दिन में तुम तो बिल्कुल दुबली हो गयी हो । चेहरा भी तुम्हारा बीमारों जैसा हो गया है । कुछ नहीं बताओगी तो कैसे समझेंगे ? अनिता जी ने भी सिसकते हुए कहा…”इतने सारे सामान भर भर के उन्होंने अपना स्नेह लुटाया है , हर किसी के लिए इतना भेजा है , इतने बड़े घर की तुम बहु हो, अब और क्या चाहती हो खुल के कहो ।
तब तक निरूपमा के ससुराल वालों ने फोन कर दिया । जैसे ही फोन उठाने गईं अनिता जी नारायण जी ने रोक दिया ये कहते हुए कि अपनी बेटी की पूरी बात हम पहले सुनेंगे । निरूपमा के आँसूं पोछते हुए बिस्तर पर बिठाते हुए नारायण जी ने कहा…”बोलो न बेटा ! हम सब तुम्हारे साथ हैं ।
निरूपमा की आँखें रोते – रोते सूज चुकी थीं ।उसने कहना शुरू किया..”पापा ..,,मम्मी ! मैं कैसे रहूँगी वहाँ । क्या मेरी कोई पहचान नहीं वहाँ ? मेरा कोई अस्तित्व नहीं ? सब मुझे मिताली के नाम से बुलाते हैं । स्वीकार करना है तो मुझे मेरे नाम, मेरे पहचान से करें । निरूपमा की छोटी बहन ने धीरे से कहा..”तो क्या हो गया दीदी ? ,वो उन्हें बहुत चाहते थे , उनकी मौत बर्दाश्त नहीं कर पा रहे । इसमें क्यों इतना परेशान हो रही हो ? ऐसे गुस्सा मत हो दीदी । ये भी तो सोचो जीजा जी ने वादा किया था हमे पढ़ाने का , तुम नाराज रहोगी तो हमारा क्या होगा ? छुटकी ने भी सोचा था वो कोई कोर्स करेगी ।
“बस करो तुमलोग ! ये तुम्हें छोटी बात लग रही है । जब इतनी फिक्र थी पहचान और मान की तो धनी घर की लड़की को ब्याह कर ले जाना था । इस तरह से तिरस्कार करेंगे तो कैसे झेल पाएँगे । # तिरस्कार कब तक झेलेगी ,? ऐसे तो वो आदत ही बना लेंगे मनमर्जी थोपने की ।गरीब है तो क्या लड़की को ऐसे ही नहीं फेंक देंगे ।अब फोन करें बताती हूँ । “दामाद जी मना नहीं करते ? मुँह पर पानी का छींटा डालकर वापस आयी निरूपमा और बोली ..”सब एक जैसे हैं मम्मी ! ये भी बोलते हैं समय लगेगा भूलने में, भुला नहीं पा रहे । नाम मे क्या रखा है , अपनापन और प्यार में कमी हो तो बताना । मैं क्या करूँ । मुझे अपने बहनों की चिंता होती है । बस इसीलिए चुप रहती हूँ कि मेरी बहने पढ़ जाएँ ।
“छि ! ये तू क्या बोल रही है बेटा ! एक बेटी की खुशियों पर दूसरे बेटी की बलि नहीं चढ़ाना मुझे । तुम सब अपनी जगह कीमती हो । चलो हाथ – मुँह धो लो खाना खाओ । ये बातें बाद में होंगी । थोड़े दिन दिमाग शांत रखो ।
तीन दिन बाद निरूपमा छत पर कपड़े डाल रही थी तो बड़ी गाड़ी आकर रुकी । उसने सुयश को ढेरों फल और सामान के साथ उतरते देखा और वो हड़बड़ा कर नीचे आ गयी और अपने कमरे में घुस गई ।
अच्छे से आदर सत्कार किया नारायण जी और अनिता जी ने सुयश का ।सुयश ने बैठते हुए पूछा..”निरूपमा नहीं दिख रही, फोन किया तो फोन भी कोई नहीं उठा रहा ।दादी मम्मी – पापा किसी का जी नहीं लग रहा था तो सोचा ले आऊं निरूपमा को ।
सख्ती दिखाते हुए नारायण जी ने कहा…”आपके घर निरूपमा आपके साथ गयी है तो इज्ज़त और मान देना आपका कर्तव्य है । सुयश बात को समझ गया था ।हाथ जोड़ते हुए सुयश ने अनभिज्ञ बनते हुए कहा..”आपकी बात नहीं समझ पा रहा हूँ । अनिता जी ने पास वाली कुर्सी पर बैठते हुए कहा…”मेरी बेटी और तिरस्कार झेलने नहीं जाएगी वहाँ । अगर आप इसे मान नहीं दे सकते तो क्यों ले गए थे । इसकी पहचान , इसका नाम सब खो रहा है इसलिए हमें आगे बढ़ना पड़ रहा है । कितना घुट रही है वो, आपने देखा है उसे । “जी ! मैंने तो कहा था निरूपमा के वहाँ जाने से आपकी सभी बेटियाँ शिक्षित हो जाएंगी । दरअसल दिमाग से नहीं निकाल पा रहा हूँ, अभी एक ही साल हुए हैं मिताली को गए हुए ।
अब नारायण जी ने धीमे स्वर में कहा..”आपको आपकी मरी हुई पत्नी प्यारी है , सोचिए मेरी बेटी मुझे कितनी प्यारी होगी । इसकी खुशी का ध्यान न रख के क्या जीते जी मौत के मुँह में धकेल दूँ ? जब आप और आपके घरवाले दिल दिमाग से नहीं निकाल पा रहे तो कुछ साल और रुक जाते । #तिरस्कार कब तक उसे झेलते रहने बोलूँ, क्या दोष है उसका ?बातें आपके और दुनिया वालों के लिए भले ही छोटी हों पर जिस पर बीत रही उसका दर्द कितना बड़ा है । विदाई तभी होगी जब उसके नाम और सम्मान के साथ आप उसे ले जाएँगे , वरना हम विदा नहीं करेंगे । इससे अच्छा तो हम अपनी बेटी को अनपढ़ रखें या खेत बेच कर पढा लें । अगर आपने ऐसी शर्त रखी होती तो हम आगे बढ़ते ही नहीं । शायद हम भी लोभ में आकर जाल में फंस गए ।
सुयश चुपचाप बैठा दरवाजे और दीवार को एकटक देखता रहा फिर निरूपमा को ढूँढता हुआ उसके कमरे में गया और बहुत सारी बातें की ।बाहर आते ही बोला…”मैं निरूपमा को उसकी पहचान के साथ ले जाने को तैयार हूँ, दूसरी विदाई की तैयारी करिए । सुयश ने अपने घर फोन किया । माँ को सारी बातें बताई और हिदायतें भी दिया ।
इधर निरूपमा चुपचाप सी तैयार होकर गाड़ी में बैठने लगी ।मम्मी – पापा और बहने सब भावुक होकर विदा करने के लिए खड़े थे । सुयश ने सास ससुर को आश्वासन दिलाते हुए पैर छुए और सालियों को बेफिक्र रहने को कहते हुए गाड़ी स्टार्ट कर दिया ।
ससुराल में अब सब कुछ उसे अलग सा लग रहा था पर मन में एक डर सा था । फोटो हट चुकी थी , वो अंदर अंदर देख ही रही थी कि उसकी सास और दादी सास ने “आओ निरूपमा ! तुम्हारा ही घर है बेटा बोलते हुए स्वागत किया ।अब मानो उसके अंदर खुशियाँ वापस आ रही थी, अपना सा घर लग रहा था ।
#तिरस्कार कब तक
मौलिक, स्वरचित
अर्चना सिंह