तिरस्कार अब और नही – संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

” तुम होती कौन हो मुझे रोकने वाली मुझे जो करना है वही करूंगा !” पांच साल के आदित्य के मुंह से ये शब्द सुन सकते मे आ गई निशा।

” क्या बोल रहे हो ये मम्मा से ऐसे बात करते है क्या ? कहाँ से सीखे हो ये सब ?” निशा बेटे को डांटते हुए बोली।

” क्यो डांट रही हो उसे , तुम्हारे काम ही ऐसे है तो कोई क्या करे !” तभी वहाँ पति रवि लड़खड़ाता हुआ आया और बोला।

” तुम फिर पीकर आ गये , शर्म नही आती तुम्हे , मेरा नही तो बच्चे का तो सोचो कम से कम !” हर बार की तरह निशा बोली।

” तू होती कौन हो मुझे रोकने वाली , मेरा जो मन करेगा मैं करूंगा समझी । मुझे ज्यादा बकवास सुनना पसंद नही !” ये बोल रवि गिरता पड़ता कमरे मे गया और बेड पर ढेर हो गया। आदित्य पिता को नशे मे देख डर सा गया और निशा के पीछे छिप गया। 

निशा समझ गई आदित्य ये सब अपने पिता से सीख रहा है । आज आदित्य ने रवि के कुछ शब्दों को।अपनाया है । कल को उसकी आदतें भी अपना ली तो । छः साल हो गये रवि का तिरस्कार सहते पर कब तक और कल को आदित्य ने भी ऐसे ही तिरस्कार किया तो ? कल को आदित्य की शादी होगी उसकी बीवी को भी मेरी तरह सहना होगा ? पर क्यो हमेशा औरत को ही सहना पड़ता है । यही सब सोचते हुए उसने आदित्य को अपने अंक मे समेंट लिया। 

” बेटा ऐसे बोलना गंदी बात होती है मम्मा आपको आपके भले के लिए ही समझाती है ना , क्या आपको गुड बॉय नही बनना ?” निशा उसे समझाने लगी।

” सॉरी मम्मा !” आदित्य कान पकड़ते हुए बोला और माँ की गोद मे दुबक गया । थोड़ी देर बाद उसे नींद आ गई तो निशा उसे ले बैठक मे ही रखे बेड पर आ गई और आराम से सुला दिया फिर लाइट बंद कर वो भी उसके साथ लेट गई। जहाँ एक तरफ रवि और आदित्य गहरी नींद सोये थे वही निशा की आँखों से नींद गायब थी।

 छह साल हो गये रवि का तिरस्कार सहते सहते । रोज का सा है ये कि रवि पीकर आता है और निशा को अपशब्द बोलता है उसने शुरु मे रवि को समझाने की कितनी कोशिश कि किन्तु वो दिन मे शराब ना पीने का वादा करता और रात को फिर पीकर आता । आदित्य के होने के बाद तो उसने झूठा वादा करना भी छोड़ दिया उल्टा जब निशा उसे रोकती तो उससे बत्तमीजी से बात करता , कभी कभी हाथ भी उठा देता था। मायके की माली हालत और दो छोटी बहनों की सोच उसने अपने मायके भी कभी इस बात का जिक्र नही किया उसकी बहनें उम्र मे उससे बहुत छोटी थी तो कभी उनसे भी मन की बात नही कर सकी वो । किन्तु अब उसे लग रहा था उसने शायद बहुत बड़ी गलती कर दी अपने मायके मे इसका जिक्र ना करके और रवि का तिरस्कार सहकर । आज आदित्य भी रवि की जुबान बोलने लगा है ।

क्या भविष्य का एक और रवि पैदा होने लगा है उसने मन ही मन सोचा ” नही नही मैं ऐसा नही होने दूंगी , मैं आदित्य को रवि नही बनने दूंगी ! पर कैसे ?” उसने खुद से ही कहा। 

सारी रात गुजर गई यही सब सोचते सोचते । सुबह की पहली किरण के साथ वो उठी मुंह हाथ दो आदित्य को उठाया और स्कूल के लिए तैयार किया । इस वक़्त उसके चेहरे पर दुख नही अपितु दृढ़ता थी मानो वो कोई फैसला कर चुकी थी । वैसे भी कोई औरत जब तक पत्नी होती है वो कमजोर होती है लेकिन अपनी संतान की भलाई के लिए उसमे खुद ब खुद ताकत आ ही जाती है । 

आदित्य के स्कूल जाने के बाद रवि भी उठ गया । निशा ने उससे कोई बात नही की चुपचाप उसे नाश्ता खाना दिया और वो चला गया। उसके जाने के बाद निशा ने अपने पिता को फोन कर सब बात बताई। 

” बेटा तूने अब तक हमें कुछ बताया ही नही तो हमें कैसे पता लगता !” उन्होंने लाचारी से कहा।

” पापा अभी तक बात सिर्फ एक पत्नी की थी तो सहन करती रही पर अब जब मेरा बेटा भी रवि भी राह चलने लगा है मैं कैसे सहन कर लूं । वो अभी गीली मिट्टी है जैसे ढलेंगे ढल जायेगा पर बाद मे बहुत देर हो जाएगी !” रोते हुए निशा बोली। 

” मैं जानता हूँ बेटा तूने सहने की हद तक सहा होगा पर  अब क्या फैसला किया है तूने ? ” लाचार पिता इससे ज्यादा नही बोल सका।

” पापा मुझे आप लोगो का साथ चाहिए , मैं बोझ नही बनूंगी आप पर लेकिन मुझे किसी का तो साथ चाहिए इस दलदल से निकलने के लिए !” निशा बोली।

” पर तू करेगी क्या ?” उसकी बात सुन पिता आश्चर्य से बोले। 

” पापा मुझे अपने पैरो पर खड़ा होना है अपने आत्मसम्मान के लिए और अपने बेटे के लिए !” निशा बोली।

” पर क्या ये इतना आसान होगा ?” पिता ने पूछा।

” पापा आसान तो नही पर एक औरत जब माँ बनती है वो बहुत मजबूत हो जाती है !” उसने जवाब दिया।

पिता से बात कर निशा ने अपने और आदित्य के कपड़े लगाए , अपने जेवर रखे और आदित्य के आने के बाद रवि को फोन पर सूचना दी कि वो अपने मायके जा रही है जब शराब छोड़ दे रवि तब उसे लेने आ जाये । रवि ने उसे अपशब्द कहे उसके पिता की गरीबी का मजाक उड़ाते हुए कहा कुछ दिन मे वो खुद वापिस आ जाएगी । 

निशा अपने मायके आ गई । अब वो लाचार नही थी।। सबसे पहले उसने अपने जेवर बेचे और जो पैसे आये उनको बैंक मे जमा करवा दिया ये पांच लाख रुपए इस वक्त उसके लिए बहुत बड़ी रकम थी । बाहरवीं तक उसने पढ़ाई की ही थी आगे के लिए उसने फॉर्म भर दिया । साथ साथ छोटे छोटे बच्चो को कम पैसों मे ट्यूशन देना शुरु कर दिया जिससे थोड़ी बहुत कमाई होने लगी । आदित्य की जिम्मेदारी अपनी माँ बहनो को सौंप वो जुट गई अपनी पढ़ाई मे । 

उधर रवि ने उससे कोई बात नही की ना फोन किया ना लेने आया । अब तो वो और ज्यादा शराब के नशे मे धुत रहने लगा। निशा ने भी इन सबको सोच समय खराब नही किया और अपने लक्ष्य मे जुटी रही। वक्त बीता और निशा ने अपनी स्नातक की डिग्री हांसिल कर ली और एक छोटे से विद्यालय मे आठ हजार की नौकरी पकड़ ली इससे उसे ये फायदा हुआ कि अब ट्यूशन अच्छे मिलने लगे । वो अब अपनी बहनो को भी पढ़ा रही थी जिससे कल को उन्हे वो ना झेलना पड़े जो उसने झेला । हालाँकि इन सबमे उसका बैंक मे रखा पैसा भी खत्म होता जा रहा था पर उसे इसकी फिक्र नही थी । अब उसने नर्स के कोर्स का फॉर्म भर दिया और संध्या की कक्षा लेने लगी । अब तक आदित्य भी थोड़ा समझदार हो गया था । 

अब वो नर्स बन गई थी साथ साथ उससे छोटी बहन की बैंक मे नौकरी लग गई । सबसे छोटी वाली अब बी एड की तैयारी कर रही थी । उसके माता पिता आज अपनी बच्चियों की सफलता देख खुश थे । आदित्य भी अब छठी कक्षा मे आ गया था और अब वो सबका चहेता बन गया था क्योकि बुरी संगत से दूर हो उसमे भी बस अच्छी आदते ही रह गई थी। 

आज निशा की नौकरी का पहला दिन है वो तैयार हो अस्पताल आई । वो डॉक्टर के साथ अस्पताल के जनरल वार्ड मे आई । एक एक मरीज के पास से गुजरते हुए उसे एक जाना पहचाना चेहरा नज़र आया । 

” ये तो रवि है !” उसने मानो खुद से कहा पर उसकी आवाज़ साथ चलती डॉक्टर और दूसरी नर्स ने भी सुन ली।

” हां ये रवि है , अत्यधिक शराब के सेवन से इसके दोनो गुर्दे पूरी तरह खराब हो चुके है और सबसे बड़ी बात ये बिल्कुल अकेला है । किसी पड़ोसी ने इसे यहाँ भरती कर दिया अब ये अपनी जिंदगी के अंतिम दिन काट रहा है , वैसे तुम कैसे जानती हो इसे तुम तो आज पहली बार आई हो ?” दूसरी नर्स रवि के बारे मे बताते बताते उसी से सवाल करने लगी ।

” वो …कभी मैं भी इनके पड़ोस मे रहती थी !” निशा ने जल्दी से कहा। 

” ओह अच्छा !” नर्स इतना बोली । फिर डॉक्टर उन दोनो को जरूरी हिदायत दे आगे बढ़ी । निशा रवि को इस हाल मे देख बेचैन सी हो गई । भले रवि का घर छोड़ने के बाद निशा ने उससे कोई संबंध नही रखा पर थी तो वो भारतीय नारी ही । रवि कभी उसका सुहाग था , उसके बच्चे का पिता था। 

” निशा तुम यहाँ इस तरह !” दो तीन दिन बाद निशा अकेले जनरल वार्ड मे सबको दवाइयाँ दे रही थी तब रवि जगा हुआ था वो निशा को देख हैरान हो गया।

” हां मैं यहाँ नौकरी करती हूँ , पर तुम्हारी ये हालत ?” निशा ने धीरे से सवाल किया ।

” मेरे कर्मो का ही फल है । खैर तुम्हे ऐसे देख अच्छा लगा , आदित्य कैसा है ? मुझे याद करता है ?” रवि ने फीकी सी हंसी हँसते हुए कहा। 

” देखो यहाँ किसी को हमारा रिश्ता नही पता इसलिए मैं अभी तुमसे ज्यादा बात नही कर सकती पहले मैं अपना काम निपटा लूं फिर आती हूँ !” निशा जल्दी से ये बोल आगे निकल गई। 

आज निशा की रात की ड्यूटी थी । जब सब सो रहे थे वो वार्ड मे चक्कर लगाने आई। 

” निशा बताओ ना आदित्य मुझे याद करता है ?” जब निशा रवि के पास आई तो उसने फिर पूछा। पर निशा क्या जवाब देती उसे ।।

” तुम अपनी सेहत का ध्यान रखो इन सब बातो को मत सोचो !” निशा केवल इतना बोली। 

” मतलब नही याद करता …करेगा भी क्यो मैने कौन सा पति या पिता के फर्ज निभाए है !” रवि दुखी हो बोला।

” मैं चलती हूँ तुम सो जाओ वरना बाकी मरीजों को परेशानी होगी !” निशा वहाँ से जाते हुए बोली।

” निशा मैं एक बार आदित्य से मिलना चाहता हूँ , मेरी जिंदगी का कुछ नही पता पर एक बार अपने बेटे का चेहरा देख लूंगा तो सुकून से मर सकूँगा !” जाती निशा रवि की ये बात सुन रुक गई । रवि आँखों मे आँसू लिए हाथ जोड़ विनती कर रहा था। 

रवि से आदित्य को मिलाने का मतलब था अस्पताल मे सबको पता लग जाना कि वो रवि की पत्नी है । उसके मन मे यही उथल पुथल मचती रही  पर एक मरते हुए इंसान की अंतिम इच्छा के लिए ये कीमत शायद निशा को चुकानी थी 

” रवि देखो कौन आया है !” तीसरे दिन वो अपनी ड्यूटी खत्म होने के बाद अस्पताल आई और सोते रवि को जगाया। 

” ये …ये आदित्य है मेरा बेटा … निशा तुमने मेरी अंतिम इच्छा का मान रखा मुझ जैसे बुरे इंसान के लिए ये सब किया !” रवि की आँखों मे आदित्य को देख चमक थी । आदित्य हालांकि पिता को भूल सा गया था पर निशा उसे सब समझा कर लाई थी । 

” पापा कैसे है आप ?” आदित्य ने पूछा । बेटे के मुंह से पापा शब्द सुन रवि खुशी के आँसू रो दिया और आदित्य की तरफ बाहें फैला दी । आदित्य शायद इसके लिए तैयार नही था उसने माँ की तरफ देखा तो निशा ने आँख के इशारे से उसे पिता के गले लगने को कहा। 

आदित्य धीरे धीरे चलकर रवि की बाहों मे सिमट गया । रवि ने उसे कस कर भींच लिया और लगातार रोने लगा । रोते रोते अचानक उसे तेज की खांसी आई जो रुकने का नाम नही ले रही थी । निशा ने घबराते हुए आदित्य को वहाँ से दूर भेजा और डॉक्टर को बुलाया डॉक्टर के आते ही रवि ने खून की उलटी की और शांत लेट गया । डॉक्टर ने उसकी नब्ज़ टटोली पर वहाँ कुछ नही था । रवि जा चुका था ऐसी यात्रा पर जहाँ से कोई वापिस नही आता । निशा की आँख से आंसुओ की धार निकल पड़ी । अस्पताल मे सबको निशा के बारे मे पता लग गया और उसका साहस देख सबकी नज़र मे उसकी इज्जत बढ़ गई । 

बाद मे निशा ने रवि के अंतिम संस्कार का इंतज़ाम किया । हालाँकि वो सुहाग की सब निशानियां तो पहले ही उतार चुकी थी पर आज उसे रवि को अंतिम विदाई देनी थी । आदित्य के द्वारा रवि को अग्नि दी गई । अंतिम समय मे रवि ने जो पश्चाताप किया उसकी वजह से उसे मरने के बाद सदगति मिल गई पर काश वो ये पश्चाताप जीतेजी कर लेता तो आज उसका एक खुशहाल परिवार होता । 

रवि की अंतिम क्रिया करके निशा वापिस अपने फर्ज निभाने मे जुट गई । धीरे धीरे उसने दोनो बहनो के विवाह अच्छे घरो मे कर दिये और खुद को ताउम्र के लिए समर्पित कर दिया माता पिता, बेटे और अपने मरीजों को । उसके माता पिता ने उसके भी दूसरे विवाह को जोर दिया किन्तु उसने मना कर दिया।

लेखिका : संगीता अग्रवाल

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