हाय राम, मेरी तो तकदीर ही फूट गई जो ऐसी बहू आई। – मधु वशिष्ठ : Moral Stories in Hindi

पाखी बेटा, परसों जमाई जी तुझे लेने आ रहे हैं। बेटा बिट्टू के और अपने जो कपड़े सिलवाए थे वह ले आना। तेरे भाई को कहकर थोड़े लड्डू भी मंगवा दूंगी जाने के बाद ससुराल में सबको बांटने जो होंगे। अपनी बहन रानी और मालती के साथ आराम से मूंगफली खाती हुई पाखी का मूंह ही उतर गया। ओ मां, कितनी जल्दी दिन बीत गए। ऐसा क्यों कहती है? तेरे ससुराल में कोई कमी है क्या?  मन झिड़कते हुए पूछा?

     कमी! इससे तो जेल ही अच्छी। सारा दिन सासू मां बोलती रहती है,हाय राम, मेरी तो तकदीर ही फूट गई जो ऐसी बहू आई। खुद तो पूरा दिन घर की सफाई में लगी रहती है और उम्मीद करती है हम भी ऐसे ही करें। जैसे यहां बैठकर हम सब मूंगफली खा रहे हैं ना वहां तो यह सपना है। एक चीज भी इधर से उधर हुई और सासू जी का चिल्लाना शुरू। मेरे ससुर और पतिदेव भी कभी घर में कोई चीज नहीं फैलाते।  मैं खुद इतनी सफाई करती रहती हूं

फिर भी सासू मां मुझे यही सुनाती रहती है देख सामने वाले घर की गीता, उसकी आंखों में मैल होगा पर मजाल उसके घर में जरा सा भी गंदा दिख जाए। सारा दिन डर के मारे बिट्टू को ही लैट्रिन बाथरूम करवाती रहती हूं कि कहीं भी कचछी में या घर में कर गया तो बस मेरी सासू मां तो पागल ही हो जाएगी। 

      अरे सफाई रखनी तो अच्छी बात होती है उठो अब जमाई बाबू ने आना है तुम लोग भी अपने घर को साफ कर लो वह भी देखेंगे तो कहेंगे कैसा गंदा घर है। खैर तब से पाखी का तो ससुराल जाने के नाम से ही मन घबरा गया। ऐसा नहीं की पाखी घर को गंदा रखती थी परंतु सफाई की सनक कहां तक ठीक है? यहां बिट्टू अपने सारे ब्लॉग्स से ए,बी,सी, और नंबर फैलाता भी है पढ़ना सीखता भी है, वहां तो बिट्टू के खिलौने भी शोकेस में सज जाएंगे। उन खिलौनों से क्या वह बड़े होने के बाद खेलेगा? पाखी के चेहरे पर गुस्से और फिक्र के मिश्रित भाव आ रहे थे। 

“वक्त वक्त की बात है  तभी तो हम साथ साथ हैं” – सुधा जैन

       तीसरे दिन जमाई बाबू आए और बुझे मन से पाखी ने घर में प्रवेश किया। तभी सामने वाले घर से गीता भी प्रसाद लेकर आई। पाखी का तो मन और भी बुझ गया कि अभी सासू मां तुलना करते हुए उसकी सफाई की प्रशंसा करेगी और बिना वजह ही उसे दो-चार बातें सुननी होगी परंतु पाखी यह देखकर हैरान हो गई कि सासू मां ने प्रशंसा और तुलना करने की बजाए गीता के जाने के बाद बोला, आई बड़ी सफाई और पूजा पाठ करने वाली? हुंह।

इससे पहले कि पाखी हैरान होकर कुछ भी सोच सासू मां ने बिट्टू को गोद में लिया और बिट्टू के चूं चूं करते जूते देख कर उसे यूं ही जमीन पर चलने दिया। बिट्टू के जूते गंदे हो रहे थे पाखी ने घबराकर वह उतारने चाहे तो सासु मां ने कहा अरे रहने दे, कोई बात नहीं अभी खेलने दे उसे? 

     यह जादू क्या हो गया? इतना ही नहीं बिट्टू के बैग में से ब्लॉग्स भी निकाल कर वह उससे नंबर और एबीसी पूछने लगी। बिट्टू के साथ में खुद ही खेल रही थी।पाखी ने उन ब्लॉग्स को जमीन पर से उठाना चाहा तो सासु मां ने फिर वही कहा अरे खेलने दे उसे? तुम दोनों कुछ खा पी लो। पाखी ने डरते डरते कहा मम्मी यह बिट्टू कुछ फैला देगा तो सासु मां ने भाव-विह्वल  होते हुए कहा पाखी तुम सही कहती थी कि सफाई से भी ज्यादा जरूरी है सबकी खुशी। सफाई तो फिर हो जाएगी परंतु किसी का दिल दुखा कर क्या पाएंगे? 

         सासू मां ने पाखी को बताया कि वह पाखी के जाने के बाद गीता की सासू मां मालती  जी से मिलने उनके घर गई थी क्योंकि बहुत दिनों से मालती जी बाहर दिख ही नहीं रही थी। सासू मां ने सोचा शायद उनकी तबीयत खराब ना हो, उन्होंने बताया जब मैं उनके घर गई तो गीता ने पूरे घर को बहुत सजाया हुआ था और अब मालती जी और उनके पति का कमरा गीता ने बिल्कुल पीछे वाला कर दिया क्योंकि घर के बीच वाले कमरे से गीता के ससुर जब अपना

चलने के लिए वॉकर लेकर निकलते थे और मालती जी भी दीवार को पकड़ कर या लाठी लेकर चलती थी तो गीता को यही लगता था कि घर गंदा हो जाएगा या कि दीवार गंदी हो जाएगी। इसलिए  गीता ना चिल्लाए इसलिए वह बीमारी में अधिकतर अपने पीछे वाले कमरे में ही रहते थे। मालती जी तो पाखी की सासू मां से कह रही थी कि अच्छा है तुम्हारी बहू को सफाई का रोग नहीं कम से कम उससे घर में सब सुखी तो होंगे यहां तो दम घुटता है। 

        ऐसा कहते हुए सासू मां तो एकदम भाव-विह्वल हो गई और बोली मैं भी अब अपने पोते को खेलने से कभी नहीं रोकूंगी और बहुरानी भले ही घर गंदा रहने देना पर सबके सुख का बहुत ख्याल रखना। पाखी मुस्कुरा उठी और बोली नहीं मम्मी हम संतुलन बनाकर रखेंगे। ऐसा कहकर पाखी ने मायके से लाया हुआ खाने का सामान सासू मां के सामने रखा और छोटी सी प्लेट में बिट्टू के सामने ही खाने के लिए रख दिया ।

मधु वशिष्ठ फरीदाबाद हरियाणा।

#हाय राम, मेरी तो तकदीर ही फूट गई जो ऐसी बहू आई।

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