आज फिर पीहू रोते रोते बड़ी मुशकिल से सोई। मानसी भी सोना चाहती थी, लेकिन नींद भी तो आए।
करवटें बदलते बदलते जब बदन दुखने लग गया तो उठ खड़ी हुई। रसोई में जाकर पानी पिया। समय देखा तो रात का
एक बज चुका था। हर तरफ़ सन्नाटा पसरा हुआ था, लेकिन मानसी के अंदर जो ख़ालीपन था,उसका क्या? बाहर का
सन्नाटा तो दिन चढ़ने से पहले ही खत्म हो जाएगा। बिल्डिंग में चहल पहल हो जाएगी, कोई सैर करने को निकलेगा
तो कोई जिम को जाएगा। कहीं से कारें साफ करने की आवाज़ें आएगी तो कहीं से झाड़ू लगाने की। हर किसी की
नियमबद दिनचर्या। हर कोई उपर से कितना सजा सँवरा लगता है, लेकिन मन के भीतर का शून्य , अंदर की हलचल
सिर्फ़ मुक्त भोगी ही जानता है।
मानसी का मन लेटने को हुआ, शायद नींद आ जाए , सुबह आफिस भी जाना है, पीहू
को स्कूल भी भेजना है, लेकिन नींद तो कोसों दूर थी। परदा हटा कर खिड़की के सामने खड़ी हो गई। चाँद पूरे यौवन
पर था, शायद चौदहवीं की रात थी। लेकिन जबसे उसके जीवन से पराग गया उसके लिए तो हर रात अमावस की रात
बन चुकी थी। जब तक पीहू छोटी थी तब मुशकिलें और तरह की थी, और अब जब वो दस साल की हो गई है तो
मुसीबते और भी बढ़ गई है। इतनी पढ़ी लिखी मानसी जो कि एक कारपोरेट आफिस में काफी उँचे ओहदे पर न जाने
कितने कर्मचारियों को संभालती थी, छोटी सी पीहू के सवालों के जवाब नहीं दे पाती थी। पहला सवाल तो यही होता
कि मेरे पापा कहाँ पर है, कब आऐगें , उनका फ़ोन क्यों नहीं आता, उनसे कहो न हमसे वीडियों कालिंग करे। इसी
प्रकार के ढेरों सवाल।
किसी प्रकार से मानसी उन सवालों से पीछा छुड़ाती तो पीहू और सवाल पूछती, मेरी दादी कहाँ है,
नानी को तो मैनें देखा ही नहीं है, सब बच्चों के घर उनकी मासी, भुआ , चाचा , मामा आते है, हमारे घर तो कोई
रिशतेदार आता ही नहीं। कल ही मेरी दोस्त कुहू बता रही थी कि इतवार को उसके मामा मामी अपने दो साल के
प्यारे से बेटे को लेकर आए और बहुत से तोहफे भी लेकर आए। दो दिन तक वो रहे, कितना मजा आया। मामा के
गोलमटोल बेटे रोहण के साथ वो ख़ूब खेली। ऐसे न जाने कितने सवाल पीहू उससे हर रात सोने से पहले जरूर पूछती।
छुट्टी वाले दिन तो मानसी उसे लेकर कहीं न कहीं घूमने चली जाती। माल में घूमना पीहू को बहुत पंसद था। सारे
आफिस में मानसी की ज्यादा दोस्ती सिर्फ़ रीता से थी, और वो अकेली रहती थी। उसकी अभी शादी नहीं हुई थी। कभी
कभी वो पीहू को लेकर उसके घर चली जाती , लेकिन वहाँ तो पीहू का दिल बिलकुल नहीं लगता था। थोड़ी देर टीवी
देखकर वो बोर हो जाती।
इन्हीं सवालों और परेशानियों के झंझावत में उलझी मानसी पीहू के पास जाकर लेट गई
और जल्द ही नींद के आग़ोश में चली गई। वक़्त और हालात कैसे बदल जाते है और किस तरह बदल जाते है, इन्सान
सोच भी नहीं आता। मानसी ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि इतने बड़े और अच्छे परिवार के होते वो यूँ
अकेली हो जाएगी। वो तो ये भी नहीं जानती कि इन सब के लिए जिममेदार कौन है, वो ख़ुद, हालात , पराग या
उसकी अपनी कमज़ोरी। घर भर की लाड़ली मानसी के दो भाई और एक छोटी बहन थी। पिताजी की बहुत अच्छी
नौकरी, पर उनकी ट्रासंफर बहुत जल्दी हो जाती थी, इसलिए सारा परिवार एक छोटे से क़सबे में ही रहता। काफी बड़ा
पुश्तैनी घर और बहुत से रिशतेदार भी आसपास ही रहते थे।
मानसी का परिवार बहुत ज्यादा रूढ़िवादी तो नहीं था, लेकिन बहुत ज्यादा आधुनिक विचारधारा के भी नहीं
थे। अगर लडकियों पर ज़्यादा पाबंदियाँ नहीं थी, तो ज्यादा छूट भी नहीं थी। लेकिन हां , मानसी की स्थिति अपनी
बाकी कज़नस से ज्यादा अच्छी थी। बाकी सब ने तो वहीं पर रह कर इंटर या ग्रेजुएशन किया, लेकिन मानसी को
शहर में होस्टल में रह कर पढ़ाई करने की छूट मिली। एम. बी. ए. के बाद हैदराबाद में नौकरी मिल गई, बल्कि
पहले ही मिल गई थी। मानसी की माँ तो नहीं चाहती थी कि वो नौकरी करे, लेकिन पिताजी की सपोर्ट थी। हर माँ की
तरह मानसी की माँ को भी उसके रहने खाने की चिंता थी, लेकिन मानसी को किसी होस्टल में जगह मिल गई थी।
पहले कुछ दिन तो कंम्पनी की तरफ़ से ही इंतज़ाम होता है।
मानसी हँसमुख और मिलनसार थी, लेकिन बहुत ज्यादा माडर्न नहीं थी। उसके
संस्कार , पहनावा मर्यादित था। जीन्स वग़ैरह पहनती थी, लेकिन शार्टस नहीं। अपने पुरूष सहकर्मीयों से काम की बात
ही करती,और लड़कियों की तरह लड़कों के साथ घूमना फिरना मूवीज़ देखना उसके संस्कारों में नहीं था। जब भी मौका
लगता छुट्टियों में वो घर जाना पंसद करती। कंपनी में काफी माडर्न लडकियां थी। कईयों ने तो उसका नाम ' बहन
जी भी रखा हुआ । लेकिन मानसी को कोई फ़रक नहीं पड़ता था । उसके जैसे विचारों वाली लडकियों का भी गरूप
था। जिंदगी मज़े से चल रही थी, लेकिन तूफ़ान भी कहाँ पूछ कर आते है। आफिस के बास के बेटे के जन्मदिन की
पार्टी में सब के साथ मानसी भी गई। आफिस के कर्मचारियों के इलावा कुछ और लोग भी थे।
नाच गाना, हसीं खुशी का माहौल था। मानसी ने प्लेन साड़ी के साथ प्रिंटिड गोटे किनारी
वाला कांटरास्ट सुंदर ब्लाउज़ पहना हुआ था। मैचिंग ज्यूलरी , सैंडिल और हल्का मेकअप। लंबी और सुंदर वो थी
ही,लंबे खुले बाल सचमुच ग़ज़ब ढा रहे थे।और भी लडकियां सुंदर लग रही थी, लेकिन मानसी में कुछ तो ख़ास था।
चारों तरफ़ मौज मस्ती चल रही थी। जाम भी छलक रहे थे, आदमी तो पी ही रहे थे, कुछ औरतो भी आधुनिकता के
नाम पर गिलास थामे हुई थी। मानसी से भी पूछा गया लेकिन उसने शालीनता से मना कर दिया। उसे तो सिर्फ़ नींबू
पानी ही पंसद था। तभी बास ने एनाउंस किया कि उसका कज़न पराग गाना गाएगा। थोड़ी ना नुकर के बाद पराग
गाने के लिए राजी हो गया। सचमुच ही उसकी आवाज़ में जादू था। उसने किसी पुरानी फ़िल्म का गाना मेरे महबूब
क़यामत होगी, आज रुसवा तेरी गलियों में मुहब्बत होगी गाया।
फिर तो गानों का दौर ही चल पड़ा। तीन गाने तो पराग ने ही गाए। डिनर करते करते रात के दो बज गए।
सब लोग चले गए। पराग भी जाने ही वाला था। मानसी के कई बार कोशिश करने पर भी कैब बुक नहीं हुई, तो बास
ने पराग को मानसी को ड्रोप करने के लिए कह दिया। पराग का घर भी लगभग उसी तरफ़ था, जिधर मानसी का
हास्टल थे। वैसे तो होस्टलों में इतनी देर तक बाहर नहीं रहने दिया जाता , लेकिन वो हास्टल स्पैशल तौर पर वर्किग
वुमन के लिए था, इसलिए ज्यादा पूछताछ नहीं होती थी। मानसी थोड़ा झिझक तो रही थी, लेकिन और कोई चारा भी
तो नहीं था। बास की बीवी ने तो रात को रूक जाने की पेशकश रखी थी, लेकिन मानसी जाना चाहती थी। आगे शनि
इतवार की छुट्टी थी। देर तक सोकर आराम से उठने का सुख भी तो हफ़्ते बाद नसीब होता है।
गुड नाईट बोल कर दोनों चल पड़े। पार्टी में तो दोनों में कोई बात भी नहीं हुई थी। बास उनहें
बक़ायदा कार तक छोडने आया। मानसी को थोड़ा अजीब तो लग रहा था, क्योंकि इतनी रात को किसी अजनबी के
साथ बैठने का उसका पहला मौका था। वो तो रात के आठ नौ बजे या उससे भी पहले ही अपने कमरे में आ जाती
थी। मूवीज़ वग़ैरह भी छुट्टी वाले दिन ही देख लेती थी।लेकिन वो इतनी डरपोक भी नहीं थी और पराग बास का
कज़न भी तो था। रास्ते में काफी देर दोनों पहले तो चुप रहे लेकिन फिर पराग ने थोड़ी बहुत बात शुरू की। उसने
बताया कि वो भी एक कम्पनी में उच्च ओहदे पर कार्यरत है और कंपनी की तरफ़ से मिले फ़्लैट में अकेला रहता है।
उसका परिवार काफी दूर एक गाँव में है। दो चार बातें मानसी ने भी अपने और अपने परिवार के बारे में बताई। दोनों
ने एक दूसरे के फ़ोन नं भी ले लिए। हास्टल के आगे छोड़कर पराग चला गया।
अगला दिन तो आराम में निकल गया। आफिस में मानसी के साथ तीन चार लडकियों का गरूप
था । अकसर वो सभी इतवार को मिलकर मस्ती करती थी। इत्तफ़ाक़ कि इस बार दो तो घर चली गई और एक की
तबियत कुछ ठीक नहीं थी। दो दिन से कमरे में बोर हो रहा मानसी ने सोचा कि चलो माल से कुछ शापिंग की जाए
क्योकिं अगले महीने उसे भी घर जाना था। जब भी वो घर जाती , सबके लिए कुछ न कुछ जरूर लेकर जाती, ख़ास
तौर पर अपनी छोटी बहन वृंदा के लिए। मानसी माल में अपनी बहन के लिए कोई सुंदर सी ड्रेस की तलाश में एक
ब्रैंडिंड शोरूम में घुसी। वो ड्रेसेज़ चूज करने में बिजी थी, तभी उसे साथ वाले काऊंटर से जानी पहचानी आवाज़ सुनाई
दी। देखा तो पराग भी लेडीज़ कपड़े देख रहा था। दोनों ने एक साथ ही हैलो बोली। थोडी बातचीत के बाद पराग बोला ,
अच्छा हुआ आप यहाँ मिल गई, मुझे अपनी कज़न सिस्टर के लिए ड्रेस ख़रीदनी है, लेकिन मुझे लेडीज़ कपड़ो की
कोई नालेज नहीं। प्लीज़ आप मेरी मदद करे।
जिस काऊंटर पर मानसी खड़ी थी, वहाँ पर तो माडर्न ड्रैसिज थी। वैसे भी मानसी तो ड्रैस चूज कर चुकी
थी। उसने पराग से भी वही पर ड्रैस चूज करने के लिए बोला , लेकिन उसने कहा कि उसे तो अपनी बहन के लिए
दुपट्टा सूट लेना है, क्योकिं गाँव में वैसे कपड़े नहीं चलते। मानसी ने उसे बहुत ही सुंदर सूट चुनकर दिया, क्योंकि
उसके घरों में भी काफी हद तक सूट साड़ियाँ ही चलती थी। दोनों अपने अपने पैकेट उठाकर चल दिए। क्या आप
मूवी देखना पंसद करेगी अचानक ही पराग ने पूछा। मन तो मानसी का भी था , तो उसने झट से हाँ में सिर
हिलाया। अभी मूवी में थोड़ा टाईम था, तो दोनों ने कुछ खाया पिया। मूवी देखने के बाद पराग ने उसे होस्टल तक
छोड़ दिया। जल्दी जल्दी में मानसी अपना सामान गाड़ी से निकालना भूल गई। अगले दिन पराग ने उसे फ़ोन किया
तो सामान लेने के बहाने फिर मिलना हो गया।
अब तो ये मुलाक़ातों का सिलसिला शुरू हो चुका था। दोनों की दोस्ती कब प्यार में बदल गई
पता ही नहीं चला। कई बार तो मानसी रात को पराग के फ़्लैट पर भी रूक जाती। सारी दूरियां खत्म हो चुकी थी।दोनों
का घर जाना भी कम हो गया। मानसी की माँ अकसर शिकायत करती लेकिन मानसी काम का बहाना बना कर टाल
देती। समय अपनी गति से चल रहा था कि अचानक पराग को गाँव जाना पड़ गया। जल्दी आने का वादा करके वो
चला गया। मानसी से फ़ोन पर बात हो जाती थी। लेकिन कुछ दिनों बाद फ़ोन अाना भी बंद हो गया। मानसी की
परेशानी बढ़ती जा रही थी। दोनों प्यार में इतना डूब चुके थे कि एक दूसरे की पारिवारिक जानकारी नाममात्र की ही
थी। दोनो की जातबिरादरी अलग थी लेकिन आजकल ये चीजे बच्चों के लिए कोई मायने नहीं रखती। जल्दी ही दोनों
शादी की बात घर वालों से करने ही वाले थे कि पराग ही ग़ायब हो गया।
किसी को भी मानसी पराग के प्रेम प्रसंग के बारे में पता नहीं था, सिवाय मानसी की
एक अंतरंग सखी रचना के। मानसी आख़िर पूछे भी तो किससे।मानसी को तो उसके गाँव का नाम भी पता नहीं था।
वो बास का कज़न था लेकिन बास भी वहाँ से जा चुके थे। जल्द ही उसे अहसास हो गया कि वो माँ बनने वाली है।
एक दो बार चुपके से उसके आफिस जाकर पता करने की कोशिश की लेकिन कुछ पता नहीं चला। दिन निकलते जा
रहे थे। मानसी को लग रहा था कि वो पागल हो जाएगी। घर भी किस मुँह जाए। पराग के प्रेम की निशानी को मिटाने
की हिम्मत भी उसमें नहीं थी। सिर्फ़ रचना ही थी जो उसका सहारा बनी हुई थी और उसे हौसला दे रही थी। चार
महीने बीत गए। उसने घर पर फ़ोन करना लगभग बंद ही कर दिया था। किसी का फ़ोन आता तो बस हूँ हाँ में जवाब
देती। कोई न कोई बहाना बना कर फ़ोन काट देती। आख़िर एक दिन उसके ममी पापा बिना बताए आ पहुँचे।
मानसी को देखकर उन्हें लगा कि शायद वो बीमार है। उसकी ममी की नज़रों से सच छुपा न
रह सका। मानसी फूट फूट कर रो रही थी। ममी उसे डाक्टर के पास ले जाना चाहती थी, लेकिन मानसी कहाँ तैयार
थी। वैसे भी समय काफी हो चुका था। अपने दिल का सारा ग़ुबार निकालकर वो दोनो चले गए। माँ ने तो यहाँ तक
कह दिया कि अब अपनी काली शक्ल दिखाने की ज़रूरत नहीं। आज से वो उनके लिए मर गई। पता नहीं वापिस जा
कर उन्होने लोगो को क्या कहा होगा लेकिन तब से आज तक लगभग दस साल हो गए, मानसी को किसी के बारे में
कुछ पता नहीं। नौकरी छोड़ कर रचना की मदद से वो मुंबई चली आई। वहाँ पर रचना की ही किसी जानकार के पास
रहकर पीहू को जन्म दिया। मुंबई जैसे शहर में कोई किसी की और ध्यान नहीं देता। समय अपनी गति से चलता रहा।
और नौकरी भी मिल गई। पीहू के पापा के बारे में उसने यही बताया कि वो विदेश गए हुए है। वैसे वो किसी से कम
ही मिक्स अप होती थी।
पीहू के सवालों से बचने के लिए इतवार को मानसी माल में आई हुई थी। चिल्डरन ज़ोन में
खेलना पीहू को बहुत पंसद था। उसको वहां छोड़कर मानसी पास में ही काफी पीने बैठ गई। वहाँ खेलते खेलते पीहू
की दोस्ती मानव नाम के लड़के से हो गई जो कि अपने पापा के साथ आया हुआ था। उसके पापा वही पास में ही बैठे
हुए थे। मानसी जब पीहू को लेने आई तो दोनों ख़ूब मस्ती कह रहे थे। मानव और पीहू एक दूसरे को छोड़ने के लिए
तैयार नहीं थे, लेकिन जाना तो था ही। तभी दूर से अपने पापा को देख मानव उनकी तरफ़ भागा ताकि पीहू और
उसकी ममी को पापा से मिलवा सके। मानसी ने उस और देखा तो मानो उसे चक्कर ही आ गया। वो गिरते गिरते
बची। पास पड़ी कुर्सी का सहारा न लेती तो गिर ही जाती। मानव का पापा और कोई नहीं यक़ीनन पराग ही था। दस
सालों में इतना भी अंतर नहीं आया था कि मानसी उसे पहचान न सके। बाल कुछ कम और थोड़े सफेद हो गए थे।
थोड़ा शरीर भर गया था।
पराग ने भी मानसी को देख लिया था। दोनो बच्चों ने जब बड़े उत्साह से अपने माँ बाप का परिचय
दिया और अपने नए दोस्त से मिलाया तो दोनों को हैलो बोलना पड़ा। मानसी अपलक पराग को निहार रही थी। बात
करने का कोई सिरा हाथ नहीं आ रहा था। पर अब तक वो सँभल चुकी थी। बच्चों ने आईसक्रीम खाने की फ़रमाइश
की तो पराग ने दोनों को उनकी पंसद की आईसक्रीम दिलवा दी। दोनों आईसक्रीम खाने में मस्त हो गए। जब बात
करने का कोई सिरा हाथ न लगा तो पराग ने पूछा कैसी हो
ठीक हूँ , जी रही हूँ
तुम कैसे हो, मज़े में लग रहे हो, मानव की ममी साथ नहीं आई
पराग के जवाब देने से पहले दोनों बच्चे आईसक्रीम खत्म करके उनके पास आ गए। मानसी जाने के लिए उठ खड़ी
हुई। पराग ने पूछा कि क्या हम कल मिल सकते है। पहले तो मानसी चुप रही लेकिन फिर उसने हाँ में सिर हिलाया
और अपना फोन नं दे दिया।
ठीक है, फ़ोन पर बात करेगें, घर पर तुम्हारा इंतजार हो रहा होगा
घर पर कोई नहीं है पीहू तपाक से बोली।पराग ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया।
मानसी और पीहू अपनी गाड़ी की और चल दी , पराग टैक्सी बुक करने लगा। पीहू का बस चलता तो
दोनों को अपनी गाड़ी में ही बिठा लेती लेकिन ममी का उखड़ा मूड देखकर चुप रही।बाद में पराग का फ़ोन आया तो
मानसी ने सिर्फ़ इतना कहा क्या मिलना जरूरी है, रिशते तो तुमने कब के खत्म कर दिए
सिर्फ़ एक बार
तीन बजे कैफ़े में मिलने का समय निशचित हुआ। मानसी को आफिस से छुट्टी लेकर आना था। पीहू तो वैसे भी
शाम छ: बजे तक स्कूल के डे केयर में रहती थी। वहीं पर कभी डाँस और कभी जिमनास्टिक क्लास चलती थी।
मानसी जब वहाँ पर पहुँची तो पराग पहले से ही बैठा हुआ था। थोड़ी देर चुप्पी छाई रही तो पराग ने ही बात शुरू की।
' मैं तुम्हारा गुनहगार हूँ मानसी, लेकिन मैं बहुत मजबूर था। तुमसे आख़री बार विदा लेकर जब गाँव
पहुँचा तो मेरी चाची की तबियत बहुत खराब थी। मैनें तुम्हें बताया था कि मेरा संयुक्त परिवार है। पापा और मेरे दो
चाचा , हम सभी ईकटठे रहते है। तब दादाजी भी ज़िंदा थे। हम दो सगे भाई है, बड़े चाचा का एक बेटा बेटी है और
छोटे चाचा के भी दो बेटे है। मैं सबसे बड़ा हूँ। सरू हम सब भाईयों की इकलौती लाडली बहन है। वहाँ जाकर मुझे पता
चला कि वो किसी लड़के से प्यार करती है, और जवानी में बहुत बड़ी भूल कर बैठी है। लड़के वाले शादी करने को तो
तैयार थे, लेकिन उनकी शर्त थी कि मुझे उनकी लड़की से शादी करनी पड़ेगी, जो कि बहुत मोटी और सिर्फ़ आठवीं
पास थी
मैने टालने की बहुत कोशिश की,मगर कोई चारा नहीं था। चाची मेरे आगे गिड़गिड़ा रही थी,
उसकी तबियत दिन बदिन बिगड़ती जा रही थी, चाचा भी गुमसुम। सोचने विचारने का समय नहीं था। मजबूरन मुझे
शादी करनी पड़ी। एक हफ़्ते में ही सब कुछ हो गया। मैनें फ़ोन का सिम निकालकर फेंक दिया। किस मुँह से तुमसे
बात करता। सोचा धीरे धीरे तुम्हारे ज़ख़्म भर जाऐगें । मैं माफ़ी के क़ाबिल तो नहीं लेकिन हो सके तो मुझे माफ कर
देना। तुम पीहू और अपने पति के साथ खुश रहो, कह कर पराग तेज़ी से बाहर निकल गया'। मानसी उसको जाता
देखती रही।और सोच रही थी ,एक बार भी मेरे बारे में नहीं पूछा। भारी मन से वो उठ कर चली आई। शायद नियति
को यही मजूंर था।
अगले दिन उसने फ़ोन पर रचना से बात की, उसे सब बताया। रचना ने उससे पराग
का नं लिया। मानसी ने नं तो दे दिया लेकिन उससे कहा कि पराग से बात मत करे। अब उसकी अपनी गृहस्थी है।
रचना कहा मानने वाली थी। रचना अब भी हैदराबाद में ही थी। उसकी शादी वहीं पर हो गई थी। उसका पति भी वहीं
पर किसी अच्छी कम्पनी में था। रचना ने अगले ही दिन पराग को फ़ोन लगाया। उसके बारे में पूछा तो पता
चला कि वो भी हैदराबाद में ही है। जब उसने अपनी कम्पनी का नाम बताया तो रचना को हैरानी हुई क्योकिं उसके
पति की भी वही कंम्पनी थी।उसके पति कबीर को भी मानसी के बारे में सब पता था, लेकिन उसे क्या मालूम कि
उसके साथ काम करने वाला पराग ही वही लड़का है।
सिर्फ़ इतना ही नहीं पराग से उसकी अच्छी जानकारी थी। बहुत ज्यादा दोस्ती तो नहीं थी, लेकिन
पराग का एक दोस्त राहुल उसका भी अच्छा दोस्त था। अगले दिन वैसे ही कबीर ने राहुल से पराग की बात छेड़ दी
तो राहुल ने बताया कि पराग बहुत अच्छा लड़का है, लेकिन किस्मत के आगे किसी का बस नहीं चलता। एक आठ
साल का बेटा है जो कि गाँव में अपनी दादी के पास रहता है। पत्नी की एक कार एक्सीडेंट में पाँच साल पहले मृत्यु
हो गई थी। पराग भी साथ ही था वो बच तो गया लेकिन एक टाँग कट गई। देखने में पता नहीं चलता लेकिन एक
टाँग लकड़ी की है। अब कबीर को ध्यान आया कि अकसर उसने उसे अपनी सीट पर बैठे ही देखा है। चलते फिरते कम
ही देखा है।
कबीर ने सारी बात रचना को बताई। अगले ही दिन रचना और कबीर पराग से मिले। पराग के बारे में
जानकर रचना को बहुत दुख हुआ। पराग ने रचना से विनती की कि वो मानसी को पराग के बारे में कुछ न बताए।अब
मानसी असंमज में थी कि वो उसे मानसी के बारे में बताए या नहीं। पराग तो यही समझ रहा था कि मानसी की
शादी हो गई है। आपस मे कबीर और रचना विचार करने लगे कि अब क्या किया जाए। पराग की वास्तविक स्थिति
को जानकर क्या मानसी उसे माफ कर देगी और अपना लेगी। उन्होनें ये विचार किया कि इन दोनों को एक बार फिर
से मिलाया जाए। कुछ दिनों बाद ही रचना की बेटी माही का जन्मदिन था तो उसने मानसी से आने का आग्रह किया।
वैसे भी पीहू और माही में अच्छी दोस्ती थी।
घर पर ही छोटी सी पार्टी रखी गई थी। मानसी और पराग का आमना सामना हुआ। दोनों में हैलो
हाए ही हुई। रात को जब रचना ने मानसी को पराग के बारे में बताया तो वो तड़फ उठी। रचना ने पूछा कि क्या वो
पराग से अब भी प्यार करती है। मानसी का बस चलता तो भागकर पराग के पास पहुँच जाती लेकिन सुबह का
इंतजार तो करना ही था। अगर मानसी ने इतने साल रो रो कर गुज़ारे तो पराग भी कहाँ सुखी रहा। अगले दिन कबीर
ने पराग को होटल में बुलाया। मानसी, कबीर और रचना भी वहां पहुँच गए। पीहू घर पर माही और उसकी दादी के
साथ मज़े से रह गई। बात रचना ने शुरू की। धीरे धीरे सारे गिले शिकवे दूर हो गए। मानसी ने पराग को माफ तो
पहले ही कर दिया था।वैसे भी मजबूरियों के आगे किसी का वश नहीं चलता। थोड़ी देर के लिए कबीर और रचना वहाँ
से जानबूझकर कर उठ कर चले गए ताकि वो अकेले बात कर ले।
क्या तुम सचमुच मेरे साथ शादी करने को तैयार हो, ये जानते हुए कि मेरा एक बेटा
है, जिससे तुम मिल चुकी हो, और मेरी एक टाँग लकड़ी की है। पराग ने पूछा।
गाँव में शादी करना तुम्हारी मजबूरी थी, और एक्सीडेंट किसी के साथ भी हो सकता है
अभी एक और बात बतानी बाकी है, अब मैं बाप भी नहीं बन सकता
उसकी ज़रूरत भी नहीं, पीहू तुम्हारी ही बेटी है, हमारा परिवार तो पहले ही पूरा है , एक बेटा और एक बेटी
क्या ,पीहू मेरी बेटी है पराग ने खुशी और हैरानी से पूछा।
चाहो तो डी.एन. ए. टैस्ट करवा लो मानसी ने छेड़ते हुए कहा।
इतने में रचना और कबीर आ गए। पूरी बात जानकर सबके चेहरे खुशी से चमकने लगे। दुख के बादल छँट चुके
थे। सारी मजबूरियाँ खत्म हो गई थी। बस अब किसी तरह मानसी को अपने परिवार से मिलना बाकी था। लेकिन वो
जानती थी कि वो उनको मना लेगी। क्योंकि माँ बाप तो बच्चों की खुशी में खुश रहते है।
विमला गुगलानी