मैं मां का तिरस्कार नहीं सहूंगी….. -अर्चना खण्डेलवाल  : Moral Stories in Hindi

परिधि…….आलोक ने तेजी से आवाज लगाई, तो परिधि अंदर तक हिल गई, और दौड़कर कमरे में पहुंचीं… ये क्या हैं?  तुमने मेरी शर्ट को प्रेस नहीं किया और मुझे आज यही शर्ट पहनकर जाने का मन है।

लेकिन आप तो हर शुक्रवार को ऑफिस टी-शर्ट पहनकर जाते हो, इसलिए मैंने सोचा कि कल प्रेस कर लूंगी। तभी शोभा जी उधर से गुजरती है, मेरे बेटे से जितनी देर तूने जुबान लड़ाई है, उतनी देर में तू प्रेस ही कर देती… अब मन किया तो शर्ट पहन लेगा, जब तू अपनी मनपसंद साड़ी पहनती हैं तो ये तो तुझे कभी मना नहीं करता है। 

परिधि ने चुप रहने में ही भलाई समझी और प्रेस करने लगी, इतने में उसे ध्यान आया कि वो दूध तो गैस पर ही रख आई है, दौड़कर रसोई में पहुंची तब तक दूध उबलकर गैस को भिगो गया था।

उसने तेज हाथों को चलाकर साफ करना चाहा, पर आती हुई सास की नजर उस पर पड़ ही गई, तुझे तो कितना भी समझा लो पर तू तो गलतियों का पुतला है, तुझे तो कोई भी काम ढंग से नहीं करना आता है, ना मेरे बेटे का ख्याल रखती है, ना ही रसोई की चीजों का ध्यान रखती है, पता नहीं घर में करती क्या हैं??

शोभा जी गुस्सा किये जा रही थी, परिधि उसे भी सुन रही थी और तेज गति से नाश्ता भी बना रही थी, वरना आलोक गुस्से में नाश्ता छोड़कर चले जायेंगे।

तभी ससुर जी गिरिराज जी आते हैं और गुस्से में अखबार फेंक देते हैं, ये क्या तरीका है!! घर में सबसे पहले कौन उठता है? परिधि ही उठती है, शोभा जी ने कहा। अच्छा, तो ये अखबार बाहर क्यूं रखा था? परिधि ने इसे उठाया ही नहीं, पूरा बिखर गया था।

अपने पापा की आवाज में आलोक हां में हां मिलाता है, सही है सब परिधि की गलती है, ये कोई भी काम ढंग से नहीं करती है।  अब फटाफट नाश्ता लगा दे…  उसे नाश्ता परोसने में दो मिनट की देरी क्या हो जाती है तो शोभा जी चिल्लाकर बोलती है।  मेरा बेटा ऐसे तो भूखा ही चला जायेगा, तेरे भरोसे तो शाम हो जायेगी, कोई भी काम फुर्ती से नहीं करती है, ऐसे ही करेगी तो इसकी जरूरी मीटिंग छूट जायेगी।

परिधि फटाफट से नाश्ता लगा देती है और आलोक ऑफिस चला जाता है, आधे घंटे बाद आलोक का गुस्से में भनभनाते हुए फोन आता है।  मम्मी परिधि की गलती की वजह से आज मै ऑफिस जरूरी फाइल ले जाना भुल गया और मुझे बॉस की सुननी पड़ी, सुबह-सुबह घर का माहौल खराब कर देती है और उसकी वजह से मै अपने जरूरी काम भुल जाता हूं।

ये सुनते ही शोभा जी का पारा चढ़ जाता है और वो परिधि की फिर से डांट लगाती है।  हे भगवान!!! कैसी बहू पल्ले पड़ी है, मेरे बेटे के जीवन में शांति ही नहीं रहती है।  इसकी गलतियों की वजह से उसका दिन खराब चला गया, तूने उसे याद क्यों नहीं दिलाया कि वो फाइल लेकर जानी है।

मम्मी जी, उन्होंने तो मुझे किसी फाइल के बारे में कुछ नहीं बताया था, तो मै उन्हें क्या याद दिलाती? अब तू बेकार की सफाई मत दें, तेरी गलती की वजह से आज उसकी मीटिंग छूट गई।

परिधि यही सोचकर परेशान थी कि जब उसने कोई गलती की ही नहीं है तो उसे बेवजह डांट क्यों पड़ रही है? घर में किसी का भी काम बिगड़े, उसे ही जिम्मेदार मानकर तिरस्कृत किया जाता है, इस घर की बहू हूं, आलोक की पत्नी हूं, कोई नौकरानी तो नहीं हूं।

ये लोग तो ऐसे व्यवहार करते हैं जैसे, सारी दुनिया सही है और एक मै ही गलत हूं।  परिधि की आंखें भीग जाती है, परिधि को कुछ समझ नहीं आता है, आखिर वो क्या करें। आखिर हर बात में कब तक तिरस्कार सहती रहेगी।

उसे याद है जब वो छोटी थी तो अपने मम्मी-पापा के साथ कितने सुख से रहती थी, एक बार कार मे वो मम्मी -पापा के साथ जा रही थी,  गलत दिशा में सामने से आते हुए  ट्रक ने टक्कर दी, और उनकी कार के परखच्चे उड़ गये, मम्मी -पापा की मौके पर ही मौत हो गई और वो उछलकर दूर जा गिरी थी। उसे उसकी दादी ने ही पाला था पर वो भी अपने दूसरे बेटे बहू पर ही निर्भर थी, चाचा-चाची ने उसे ज्यादा पढ़ाया लिखाया नहीं, वो पढ़ने में बड़ी तेज थी, इंजीनियरिंग करना चाहती थी, पर उनको लगा था कि बेकार में पढ़ाई पर पैसा लगाने से बेहतर है इसकी शादी करके इसके बोझ से मुक्ति पा ली जाएं।

दादी ने समझाया भी की अभी वो अठारह साल की है, और उसे घर गृहस्थी के काम भी नहीं आते हैं, इतनी जल्दी शादी मत करो, उसे आगे पढ लेने दो…  पर चाचा-चाची ने उनकी बात नहीं मानी, उसकी शादी के लिए एक ही घर देखा, कुछ छानबीन नहीं की और शादी कर दी।

शादी के एक साल बाद दादी की मृत्यु हो गई, और चाचा-चाची उसे घर भी कम बुलाते हैं, परिधि को लगता है कि वो अब दुनिया में किसके पास जाकर अपने दर्द कहें, कोई उसकी सुनने वाला भी नहीं है, इसलिए वो अकेले मे ही रोकर दिल हल्का कर लेती है।

रोते-रोते कब उसकी आंख लग गई उसे पता ही नहीं चला, बाहर शोर शराबे से उसकी नींद टूटी, शोभा जी चिल्लाकर बोल रही थी, अरे! इसने मोटर  बंद नहीं की सारी टंकियां भर गई और पानी से छत भर गई है, कितना पानी फैल गया है और मोटर का कितना बिल आयेगा, इसके मां-बाप तो लाइट का बिल नहीं भरने आयेंगे, पैसा तो मेरे बेटे की जेब से ही जायेगा, इसका क्या बिगड़ेगा, ये तो मजे से दोनों समय मुफ्त का खाना खाती है।  मां -बाप तो मर ही गये है, चाचा-चाची ने फ़ूहड़ लडकी हमारे मत्थे मढ़ दी।

परिधि ने देखा तो छत से पानी टपक कर नीचे सीढ़ियों से बह रहा था, पर उसे याद नहीं आ रहा था कि उसने मोटर को पानी भरने के लिए चालू किया हो, हां तभी उसे याद आया कि वो तो रसोई में काम कर रही थी, पानी खत्म हो गया था तो मोटर मम्मी जी ने चालू की थी ,  वो खुद चलाकर भुल गई थी और सारा दोष उसे दे रही थी। लेकिन परिधि को सब सुनना पड़ता था।कुछ समय बाद परिधि ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया, भूमि के आने से उसका मन बहुत खुश हो गया था, अपनी नन्ही गुड़िया को बांहों में लेकर वो सारे दर्द भुल जाती थी, वो ससुराल वाले के तानें सुनकर भी अपनी बेटी की परवरिश में लग गई थी, आलोक और शोभा जी भूमि से बड़ा प्यार करते थे। उसका बहुत ख्याल रखते थे।

भूमि के दूध और नाशते में देरी हो जाये तो परिधि को ही सब सुनना पड़ता था, भूमि एक दिन खेलते-खेलते पार्क में गिर गई, उसे बहुत चोट आई तो सबने मिलकर परिधि को डांट दिया, सब तेरी गलती है, तू मेरी पोती का ध्यान नहीं रख सकती है, जाने कौनसे काम में लगी रहती है।  परिधि को उस दिन भी बहुत दुख हुआ, घरवाले भूमि से प्यार करते हैं, ये बहुत अच्छा है पर पार्क तो मम्मी जी अपनी सहेलियों के साथ गई थी, वो तो घर पर थी। हर बार उसे ही कूसुरवार क्यों ठहराया जाता है?

भूमि अब स्कूल जाने लगी थी, परिधि बारहवीं तक पढ़ी थी, लेकिन वो हिंदी मीडियम से पढ़ी थी, शुरूआती कक्षा में तो परिधि ने उसे अच्छे से पढ़ा दिया था। लेकिन अब भूमि पांचवीं कक्षा में आ गई थी और अंग्रेजी मीडियम स्कूल में वो पढ़ती थी, अब परिधि उसे पढ़ा नहीं पाती थी। भूमि के नंबर कम आने लगे थे तो उसका जिम्मेदार भी परिधि को ही ठहराया जाता था, आखिर वो क्यों अपनी बेटी का ध्यान नहीं रखती है?

आलोक मै इतनी पढ़ी-लिखी नहीं हूं तो आप भूमि के लिए ट्यूशन लगवा दीजिए, आपको तो वैसे भी समय नहीं मिलता है। हमारी बेटी पढ़ाई में पीछे नहीं रह जायें, परिधि ने कहा।

अपनी सलाह अपने पास ही रख, तेरे मां -बाप ने तुझे पढ़ाया होता तो मुझे बेटी के ट्यूशन के लिए पैसे खर्च नहीं करने पड़ते, तेरे चाचा-चाची तुझे पढ़ाने चाहते होंगे, पर तू ही पढ़ती नहीं होगी तभी तो हर काम में पीछे रह गई। आजकल की पत्नियों को देखा है, बराबर कमाती है, पति का साथ देती है और एक तू है बस दोनों वक्त मुफ्त की रोटियां तोड़ती है।  ये सुनकर परिधि की आंखें भर आई। हमेशा आलोक उसे फूहड़पन और मुफ्त की रोटियों का ताना देते थे, आखिर उसकी क्या गलती थी?

ऐसे ही सालों निकल गये परिधि घर की बहू थी, आलोक की पत्नी थी, पर उसे कभी मान सम्मान और प्यार नहीं मिला, उसे तो बस गलतियों के लिए दोषी ठहराया गया था, वो कभी इन सबके खिलाफ ज्यादा कुछ बोल नहीं पाई बस सहती ही रही।

ऐसे ही सालो निकल गये और अब भूमि कॉलेज में आ गई थी, वो अपनी मम्मी परिधि से बहुत प्यार करती थी, बचपन से देख रही थी उसके दादा-दादी और पापा उसकी मम्मी के साथ कितना बुरा व्यवहार करते थे , पर छोटी होने के कारण वो कभी कुछ बोलती नहीं थी, अब वो समझदार हो गई थी, अच्छा -बुरा सब समझती थी।

अपनी परीक्षाओं की तैयारियां कर रही भूमि एक रात को सो जाती है और उसके कुछ प्रश्न छूट जाते हैं, सुबह वो अपने पापा से बोलती है कि, पापा कुछ प्रश्न रह गये है।

ये सुनते ही आलोक का पारा चढ़ जाता है, ये सब गलती तेरी मम्मी की है, उसे भी तेरे साथ में जागना चाहिए था, तेरा ध्यान रखना चाहिए था।

परिधि…. परिधि….आलोक चिल्लाकर बोलता है, जरा सी भी अक्ल नहीं है क्या तुझमें… बेटी की परीक्षाएं चल रही है और तू मजे से सोती है, आज तेरी गलती की वजह से इसके कुछ प्रश्न रह गये है, तू रात भर साथ में जागती तो भूमि परीक्षा की अच्छे से तैयारियां कर लेती।

भूमि के दादी दादा भी सारा दोष उस पर मढ़ देते हैं, परिधि बरसों से ये सब सहन कर रही थी, तो उसे अब अहसास होना बंद हो गया था पर आज भूमि चुप ना रह सकी।

आप लोग बस कीजिए……मै आप लोगो के आगे हाथ जोड़ती हूं, ये सब अब तो बंद कर दीजिए, मै बचपन से ये सब देख रही हूं।

पापा, आप क्यों अपनी पत्नी का इतना तिरस्कार करते हैं, गलती चाहें किसी ने भी की हो पर उसके लिए दोषी सिर्फ मम्मी को ही क्यों ठहराया जाता है? मम्मी कोई पंचिंग बैग है जो जब आया एक मुक्का मारता चला गया, और मम्मी सब सहन करती चली गई।

पापा, आपने अपनी पत्नी का ख्याल नहीं रखा, ये आपकी सबसे बड़ी गलती है।  आपको अपनी मां का दर्द नजर आया, आपको अपनी बेटी की पीड़ा महसूस हुई लेकिन अपनी पत्नी की परेशानी को कभी भी नहीं समझा।

पापा, मम्मी के मम्मी-पापा बचपन में उन्हें छोड़कर चले गये तो इसमें मम्मी की क्या गलती है?  उनके चाचा-चाची ने उन्हें पढ़ाया नहीं जल्दी शादी कर दी, तो इनकी क्या गलती है? इन्होंने हिंदी मीडियम में पढाई की है तो इनकी क्या गलती है?

आपने हमेशा अपनी पत्नी को दबाकर रखा, इनके सम्मान की धज्जियां उड़ाते रहें, आप हमेशा से मम्मी को डांटते रहें, मम्मी ने कभी पलटकर जवाब नहीं दिया, मम्मी से सबसे बड़ी गलती यही हुई हैं कि इन्होंने अन्याय सहा है, कभी आप लोगों के खिलाफ आवाज नहीं उठाई, ये अपने पति और सास द्वारा किया गया तिरस्कार सहती रही, लेकिन कब तक और सहेगी?

हर इंसान अपने जीवन में गलतियां करता है, पर उसे उसका अहसास नहीं होता है पर पत्नी या बहू गलती करें, तो उसका ढिंढोरा पीटा जाता है।  गलती ना भी करें तो उसे ही दोषी बनाया जाता है, आखिर पत्नी ही तो हर बार कूसुरवार नहीं होती है, पर ये पुरूष प्रधान समाज है, यहां पत्नियों और बहूओं की गलतियों को कभी माफ नहीं किया जाता है।

पापा, आज तो मै यहां पर हूं, कल को मेरी पढ़ाई पूरी हो जायेगी, मै भी किसी की पत्नी बनूंगी, तब मुझे भी हर बात के लिए दोषी ठहराया जायेगा तो आपको कितना दुख होगा ? मै अपने ससुराल से रोते हुए आपको फोन करूंगी तो आपको कितना दर्द होगा ? पर यहां तो मम्मी को ये भी सहारा नहीं मिला, वो रोती होगी पर उनका दुख दर्द सुनने के लिए उनके मम्मी-पापा नहीं है, अपनी बेटी को दुख में देखकर उनकी आत्मा कितनी तड़पती होगी, उन्हें कितना दुख पहुंचता होगा?

भूमि की बात सुनकर सभी के चेहरे पर चुप्पी छा गई, कोई कुछ नहीं बोल रहा था, सब अपने गलत व्यवहार के लिए शर्मिन्दा हो रहे थे।

पापा, सच्चे मन से बताओ कि मम्मी ने क्या हमेशा बस गलती ही की है ? इस घर, परिवार, आपके लिए, हमारे लिए कभी कुछ अच्छा नहीं किया, फिर हर बार बस उनकी उन गलतियों को गिनाया गया जो उन्होंने की ही नहीं… मै तो बचपन से यही सब देख रही हूं, पर अब बड़ी हो गई हूं।  मुझमें भी समझ आ गई है। पापा क्या आपने दादाजी और दादीजी ने कभी कोई गलती ही नहीं की? शायद आप लोगों के अहम ने उसे स्वीकारा ही नहीं ? उसका दोषी मम्मी को बताकर आप लोग मुक्त हो गये।

अब बहुत हो गया अब मैं मां का तिरस्कार नहीं सहूंगी।

भूमि की बात का किसी के पास कोई जवाब नहीं था, सब खामोश खड़े थे, पर आज परिधि की आंखों से बरसों का दर्द आंसू बनकर बह रहा था, आज उसे अपनी बेटी में अपनी मम्मी नजर आ रही थी, जिसने उसके दर्द को महसूस किया॥ वो भूमि से लिपटकर रोने लगी और रोती ही रही जब तक उसका मन हल्का नहीं हो गया।

आज भूमि को अपनी मां का तिरस्कार मंजूर नहीं हुआ, वो बड़ी होने के बाद अपनी मां के लिए ढाल बन गई।

धन्यवाद 

लेखिका 

अर्चना खण्डेलवाल 

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