तिरस्कार कब तक – गीता यादवेन्दु : Moral Stories in Hindi

“आज फ़िर तुमने ये गँवारों जैसे कपड़े पहन लिए हैं!आख़िर तुम्हें कब अक्ल आएगी या फ़िर तुम ओरतों की अक्ल होती ही घुटनों में है!”

विनीत हमेशा की तरह मीता को उलाहना दे रहा था । 

विनीत मीता की किसी भी बात की प्रशंसा न करता और ऊपर से उसके हर काम में कमी निकालता और ख़ुद को बड़ा होशियार साबित करने की कोशिश करता । 

दोनों बच्चे भी बड़े हो रहे थे और हमेशा पिता को माँ का अपमान करते देखते तो उनकी नज़रों में भी मीता का कोई आदर-सम्मान नहीं रहा था और वे भी मीता से पिता के लहजे में ही बात करने लगे थे ।

“तुमसे तो ढंग का खाना भी नहीं बनाया जाता है मम्मी । रोज-रोज वही लौकी-तोरई बना के रख देती हो । इससे तो अच्छा है मैं ऑर्डर दे कर ही मँगा कर खा लूँगा ।” बेटा राहुल भी अक्सर मीता से अपमानजनक रवैये में बात करता ।

एक दिन सब लोग बैठे थे ।पढ़ाई पर बात हो रही थी । मीता ने अर्थशास्त्र से एम.ए.प्रथम श्रेणी में पास किया था किंतु अपनी साइंस और इंजीनियरिंग की पढ़ाई के घमंड में विनीत मीता को बेवकूफ और आर्ट साइड वाली कहता और राहुल भी उसका समर्थन करता ।

प्रेम – अंजू खरबंदा  

“कितने परसेंट न. आए थे? 60 पर्सेंट!”कह कर तीनों मीता की हँसी उड़ाने लगे । उस समय 60 प्रतिशत प्रथम श्रेणी लाना भी कितनी बड़ी बात होती थी यह राहुल और सुरभि दोनों नहीं जानते थे लेकिन माँ की हँसी उड़ाने में पिता का पूरा-पूरा साथ देते थे । अपमान के एहसास से मीता की आँखें भर आतीं और वह ख़ून का घूँट पी कर रह जाती । पर अक्सर सोचती कि ‘इस तरह अपनों का ही तिरस्कार कब तक सहती रहेगी और इन लोगों की मानसिकता आख़िर कैसे और कब बदलेगी!’

मीता की सास एक तेज तर्रार महिला थीं और स्कूल में शिक्षिका रही थीं । रिटायरमेंट के बाद वे   कुछ समय के लिए विनीत और मीता के पास ही रहने आ गईं थीं । 

“मीता बहू अब तो मैं तुम्हारे पास ही रहूँगी तुम्हारा काम बढ़ाने के लिए आ गई हूँ ।” उन्होंने हँसी-हँसी में कहा । 

“नहीं मम्मी जी !इसमें काम बड़ने की क्या बात है । मुझे तो आपके साथ रह कर अच्छा ही लगेगा ।” मीता क्या बताती कि यहाँ तो अपनों के साथ भी वह अकेली ही है ।

“अरे मम्मी इसे काम ही क्या है । दिन भर घर में ही तो रहती है । आप के साथ रहेगी तो कुछ सीख भी लेगी । पढ़ी-लिखी गँवार है यह !”

विनीत बोला ।

उर्मिला जी ने ज़ल्द ही महसूस कर लिया कि विनीत मीता को सम्मान नहीं देता और उसकी देखा-देखी राहुल और सुरभि भी माँ से ढंग से बात नहीं करते जबकि मीता खाने-पीने से लेकर घर की साज-सँवार और व्यवस्था तक प्रत्येक ज़िम्मेदारी देखती है । उन्होंने अक्सर उसे चुपचाप कोने में जाकर आँसू पोंछते हुए भी देखा । उनका दिल मीता के प्रति सहानुभूति से भर आया ।

आज इतवार था ।विनीत,राहुल और सुरभि ख़ूब देर में सोकर उठे । 

“आज क्या नाश्ता बना है?भूख लगी है ज़ल्दी दो मम्मी ।” राहुल और सुरभि दोनों ने फ़रमाइश की ।

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“आज कोई नाश्ता नहीं बना है और मैं और मम्मी किटी पार्टी में जा रहे हैं ।आज हम दोनों सास-बहू इंजॉय करेंगे । तुम दोनों अपने पापा के साथ मिलकर नाश्ता-खाना बनाना और खाना । अब हम दोनों तो जा रहे हैं । उर्मिला जी ने कहा । विनीत भी उठ कर आ गया था और पत्नी के लिए अपनी माँ की शह देखकर चुप रह गया उस समय कुछ बोला नहीं ।

मीता ने उर्मिला जी के कहने पर ख़ूब स्मार्ट सी ड्रेस पहनी थी और वह बहुत अच्छी लग रही थी । तीनों विनीत,राहुल और सुरभि देखते ही रह गए । उर्मिला जी और मीता उन तीनों को बाय-बाय कह कर निकल आए ।

“देखो बहू मैं तुम्हारी सास हूँ पर तुम्हें बता रही हूँ कि अपमान और तिरस्कार जितना सहोगी उतना ही ज़्यादा और अपमानित की जाओगी ।इसलिए प्रतिरोध करना सीखो ।” उर्मिला जी ने मीता को समझाया ।

“लेकिन मम्मी जी आप तो सर्विस करती थीं लेकिन मैं तो घर में ही रहती हूँ ।क्या कर सकती हूँ सुनने के सिवा !” मीता बोली ।

“घर में रहने का अर्थ यह नहीं है कि तुम्हारे बच्चे और पति तुम्हारा बात-बात पर अपमान करें ! और तुम भी पढ़ी-लिखी हो । अपनी शिक्षा को क्यों ज़ाया कर रही हो । छोटा ही सही कोई काम करो और अपने को साबित करो ।” उर्मिला जी ने कहा । 

मीता का सर अपनी सास के प्रति सम्मान से झुक गया । इतनी आत्मीयता तो उसे अपने पति और बच्चों से भी नहीं मिली थी ।

दोनों सास-बहू ने मूवी देखी,रेस्टोरेंट में खाना खाया और घूम-फ़िर कर घर आ गईं । घर पर तीनों उनका इंतज़ार कर रहे थे । कुछ भी बनाया नहीं था और चाय-ब्रेड खाकर बैठे थे ।मीता और माँ को घूम फ़िर कर घर आया देख विनीत चिढ़ गया और उर्मिला जी से बोला, “माँ तुम इसे ज़्यादा सर मत चढ़ाओ वरना ये आपको भी नहीं पूछेगी कल को ।” विनीत बोला ।

अपनी पत्नी के लिए बेटे को ऐसी भाषा बोलते देख उर्मिला जी को बड़ा दुःख हुआ ।

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“अपनी पत्नी और अपने बच्चों की माँ के लिए ऐसे ओछे विचार रखते हुए तुझे शर्म नहीं आती विनीत । तुझे ऐसी शिक्षा तो मैंने कभी नहीं दी । और जिन बच्चों से तू उनकी माँ का अपमान करवाता है वो कल को तुझे भी ऐसे ही पूछेंगे ।” उर्मिला जी ने डपट दिया तो विनीत अपना सा मुँह लेकर रह गया । 

उर्मिला जी के साथ से मीता में भी आत्मविश्वास आ गया था और उसने विनीत और बच्चों की ग़लत बातों का विरोध करना शुरू कर दिया । मीता ने घर पर ही ट्यूशंस लेनी भी शुरू कर दीं जिससे उसको पैसे भी मिलने लगे और आत्मविश्वास भी बड़ा ।

कुछ दिनों में ही राहुल,सुरभि और विनीत तीनों के रवैये में सुधार आने लगा था ।

“चलो आज सब लोग घूमने चलते हैं ।” विनीत बोला ।

मीता कुछ न बोली तो सुरभि मम्मी से बोली “हाँ मम्मी चलो !आज मौसम भी कितना अच्छा है ।”

“तो दादी को भी तो तैयार करो । उनको अकेले छोड़ कर तो नहीं जाएँगे ।” मीता ने कहा । 

दोनों दादी को मनाने चले गए । 

मीता को उसकी सास ने अपने आत्मसम्मान की रक्षा करने का पाठ पढ़ाया था । रिश्तों में आदर-सम्मान का होना और तिरस्कार का ज़वाब स्वाभिमान से देना मीता ने उर्मिला जी से ही सीखा था ।

                  गीता यादवेन्दु,आगरा

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