मां को टोकना और रोकना नहीं….. – भाविनी केतन उपाध्याय 

” राशि, ये सब क्या है ? पिछले चार पांच महीने से देख रहा हूं कि तुम कुछ ज्यादा ही राशन लेने लगी है….. और दूसरे खर्च भी तुम्हारे बढ़ गए हैं,भई अपना रसोई का बजट तुम से नहीं संभलता तो मुझे और मां को दे दो” कहते हुए संदीप ने राशन से भरी ट्राली को बाहर ले आया।

 

” ऐसी कुछ बात नहीं है…” राशि ने बात को खत्म करना चाहा।

 

” ऐसी ही कुछ बात है जो तुम मुझे बताना नहीं चाहती…. देखो जो भी हो कह दो तो उसका हम कुछ उपाय कर सकें …” संदीप का स्वभाव बिल्कुल उसके पापा रजनीकांत जी जैसा था जो बात को भांप लेते और उसकी तह तक जाकर उपाय करते और घर की औरतों की इज्जत और सम्मान बनाए रखते।

 

संदीप ने कार एक रेस्टोरेंट के पास खड़ी कर दी और राशि को कहा,” चलो आज कॉफी और समोसा का लुत्फ उठाते हुए थोड़ी देर बैठ कर गपशप करते हैं।”

 

राशि को भी शादी के इतने सालों में पता चल गया था कि जब भी कोई गंभीर बात पर बात करना होता है पापा जी और संदीप का यह तरीका होता है। आप पब्लिक प्लेस में बैठे होते हैं इसलिए ज्यादा तेज़ आवाज़ में बात नहीं कर सकते और अपनी बात भी सही और शांति से कह देते।

 

कॉफी और समोसा का ऑर्डर देकर संदीप ने कहा,” हां बताओ अब कि हमारी रसोई का बजट बिगड़ा क्यों है ?”



 

” देखिए, आप मुझे ग़लत मत समझना और ऐसा मत मानना कि मैं मम्मी जी की बुराई कर रही हूं। आप को तो पता ही है कि मम्मी जी को थाली में एक सब्जी पसंद नहीं तो मैं आप की, मेरी और बच्चों की थोड़ी नमक मिर्च और तेल कम वाली बनाती हूं जो उन्हें पसंद नहीं तो वो अपने लिए अपने हिसाब से ज्यादा तेल मिर्च नमक वाली सब्जी बना लेते हैं।

 

जबतक पापा जी थे वो दोनों सब्जियां खाकर खत्म कर देते थे पर मैं वो दोनों सब्जियां खा नहीं पाती और बासी खाती हूं तो मेरे पेट में गड़बड़ी हो जाती है और मम्मी जी एक बार की बनाई हुई सब्जी दूसरी बार लेते नहीं …. तो उस हिसाब से ज्यादा सब्जी खर्च होती है।

 

दूसरा मम्मी जी को बना हुआ खाना पसंद नहीं आता तो वो दूसरा भी बना लेते हैं इसलिए आज कल राशन में कुछ ज्यादा ही लग रहा है क्योंकि पापा जी थे तो वो आए दिन जब भी मम्मी जी का मन करता बाहर से लाकर खिला देते और मुझे भी कुछ ना कुछ पैसे थमाते थे क्योंकि उन्हें भी पता था मम्मी जी का स्वभाव… वैसे पापा जी मम्मी जी को हाथों में रखते थे उनके चेहरे से भांप लेते थे। साथ में कई बार लाइट बिल तो कभी फ्रुट्स तो कभी गैस का बिल भी भर दिया करते थे और जब मैं उन्हें रोकती तो कहते मेरे साथ आप लोग हो तो मुझे अनावश्यक पैसे की क्या जरूरत है और बेटा बहू परेशानी में रहें और मैं बैंक में पैसा जमा करता रहूं वो कहां अच्छा लगता है भला…!!



 

सच कहूं पापा जी के जाने के बाद मुझे लगता है सचमुच में मेरे सिर से पापा का हाथ चला गया ऐसा महसूस करती हूं मैं तो मम्मी जी का तो क्या ही हाल होगा ? मम्मी जी, कमरे में जाती है लाइट,एसी, पंखा चालू कर पांच मिनट बैठते हैं और फिर सब कुछ खुला छोड़कर वापस हॉल में आकर बैठकर कमरे की ओर ताकते रहते हैं जिससे मेरी भी हिम्मत नहीं होती सबकुछ जाकर बंद करने की इसलिए लाइट बिल भी बढ़ गया है…. मम्मी जी को मैं कुछ कह भी नहीं सकती नहीं तो वो बुरा मान जाएगी कि पापा जी के जाते ही मैंने उन्हें टोकना शुरू कर दिया और सच कहूं मैं यह चाहती हूॅं कि वे जैसे पापा जी के साथ रहें ऐसे ही आगे भी रहें….समझ में ही नहीं आता कि पापा जी के बगैर में अपना रसोई का बजट कैसे संभालूगीं ? वो मेरी घर की खिचड़ी में नमक और घी का काम करते थे…” कहते हुए राशि की आंखें छलछला उठी ‌

 

” राशि, मुझे माफ़ कर दो…. मुझे नहीं पता था कि पापा घर में इतना बड़ा सहारा और सहयोग देते हैं। मैं तो यह मानता था कि घर मेरे दे हुए पैसे से चलता है परन्तु सच में तो घर पापा ही चला रहे थे…. मैं तो बस दंभ भरता था पर आज मुझे सच्चाई का पता चल गया है। तुम परेशान मत हो, मैं अब से राशन,लाइट बिल,गैस बिल खुद लाकर रख दूंगा और तुम्हें जो पैसा देता था वो भी दिया करुंगा जिससे तुम्हारे बाकी के खर्चे निकल सकें और कम पड़ जाए तो मांग लेना पर मां को टोकना और रोकना नहीं…. वो जैसे पहले रहते थी आगे भी ऐसे ही रहेगी…” संदीप ने राशि को समोसा खिलाते हुए कहा।

 

राशि के मुखमंडल पर खुशी की झलक तैर गई जो पिछले कई दिनों से गायब थी।

 

स्वरचित और मौलिक रचना ©®

 

धन्यवाद,

आप की सखी भाविनी केतन उपाध्याय 

 

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