मां…… मां…. ! मैं आ गई। कहते हुए वामिका पसीने से लथपथ घर में घुसी।
मां दौड़ते हुए दरवाजे की तरफ भागी।अरे बेटा कहां थी?मैं तो बहुत चिंतित हो रही थी। वामिका ने कहा टैक्सी नहीं मिल रही थी। इसीलिए आने में देर हो गई।
मां बोली…चल जल्दी अंदर चल और पानी पी ले।
वामिका एक पच्चीस वर्ष की महत्वाकांक्षी लड़की जिसे पढ़ने में बहुत रुचि थी।वह दिल्ली यूनिवर्सिटी से अपनी मास्टर्स की पढ़ाई कर रही थी। उसे पढ़ाई के साथ आर्ट, पेंटिंग, फोटोग्राफी, साहित्य, डांस आदि में काफी रुचि थी।वह बढ़ चढ़कर कॉलेज के हर कांपटीशन में भाग लेती।
कभी-कभी दिल्ली जैसे शहर में रहकर उसे अपने घर की बहुत याद आती।
उसके घर में मम्मी-पापा, दादा-दादी, भाई-बहन चाचा-चाची, छोटे भाई-बहन आदि का भरा पूरा परिवार था जो दिल्ली से करीब पांच सौ किलोमीटर दूर था इसलिए वह छुट्टियों में ही घर जा पाती थी।
जब भी वो गांव जाती वहां के खेतों में घूमना, झूले झूलना,आम तोड़ना,पुरानी सहेलियों से मिलना उसे काफी अच्छा लगता।
वह घर जाती तो पुरानी सहेलियों से खूब गपशप करती।उसके घर में भी काफी चहल-पहल रहती।
पापा का जनरल स्टोर था और मां हाऊसवाइफ थीं। चाचा का भी अपना कपड़ों का व्यवसाय था।
वामिका सब भाई बहनों में सबसे बड़ी थी।घर में दादा-दादी भी उसे बहुत प्रेम करते पर घर में बड़ा होने के कारण सब चाहते थे कि उसकी शादी हो जाए।
आज भी कई घरों में बड़े होने के कारण कई बच्चों को शादी के बंधन में जल्दी बंध जाना पड़ता है परंतु वामिका का मन ऐसा करने का नहीं थी।वो मास्टर्स करके अच्छी जॉब करना चाहती थी। वह अपने पैरों पर खड़े होना चाहती थी इसलिए वह जी-जान लगाकर मेहनत कर रही थी।
एंट्रेंस एग्जाम में अच्छी रैंक लाने के कारण उसका चयन दिल्ली यूनिवर्सिटी में हो गया था।
दादी-नानियों की शादियां पुराने जमाने में पन्द्रह-सोलह साल में ही हो जाया करती थी तो उनको लगता था कि पच्चीस साल की उम्र एक लड़की की शादी के लिए बहुत है। और उसके वाटिका के घर में दादी-दादा की बात पत्थर की लकीर थी।दादी भी चाहती थी कि उनके और दादा जी के रहते सब नाती-पोतों की शादी हो जाए। दादा-दादी को लगा यह मौका भी अच्छा है जब
वामिका गांव आई थी। दादा-दादी ने एक लड़का भी देख रखा था जो पास की रिश्तेदारी में अच्छा व्यवसाय कर रहा था। खानदान पैसे वाला था। लड़का वहीं के सरकारी कॉलेज से ग्रेजुएशन पूरा कर चुका था। दादा-दादी ने चुपचाप लड़के वालों को बुला लिया,पर वामिका को तब पता चल गया जब उसे पार्लर जाने के लिए बोला गया।वामिका के मां-पापा की भी दादी-दादा के सामने एक ना चलती थी।
छुट्टियों के बाद ही वामिका के फाइनल एग्जाम्स होने थे। वह अच्छे से उनकी तैयारी करना चाहती थी पर यहां तो उसकी शादी की बातें चल रही थी। और उसे भनक तक न थी।
वह जानती थी कि जरूरी नहीं शादी के बाद दूसरा परिवार उसकी पढ़ाई में साथ दे। क्या पता परिवार कैसा मिले? क्या पता पति कैसा हो?क्या पता आगे नौकरी करने दे या ना करने दे। इसलिए वह परेशान थी।वह शादी से पहले ही अपने पैरों पर खड़े हो जाना चाहती थी। पर उसे दुख तो इस बात का था की मां ने भी उससे यह बात छिपाई।
इस बात से परेशान होकर वह मां के पास गई और साफ-साफ बोली *अब तो पड़ जाएगी ना आपके कलेजे को ठंडक?* क्या मुझे लड़के वाले देखने आने वाले हैं मां?
मां हिचकिचाई…बोली!
किसने कहा ये सब तुझे?
मां मुझे पार्लर क्यों भेज रहे हैं? दादी ने मुझसे कहा कि जा बेटी पार्लर हो आ।इसके पहले भी एक बार ऐसा हो चुका है।कि दादी ने मेरे पार्लर जाने के बाद लड़के वालों को बुला लिया था।
मां बोलीं …मैं भी नहीं चाहती थी पर क्या करूं तेरे दादा- दादी? उनके आगे मैं मजबूर हूं बेटा।
वामिका बोली…पूरी जिंदगी बस आप इस घर की नौकरानी बनकर रह गईं।
आप भी टीचर बनना चाहती थी लेकिन शादी के बाद इस घर की जिम्मेदारियों के सामने आपको नौकरी नहीं करने दी गई और दादी-दादा की ज़िद के सामने आप कभी कुछ बोल भी ना पाईं।
अब ज़माना बदल गया है मां…। लड़कियों को अपने पैरों पर खड़े होना व आत्मनिर्भर होना बहुत ज़रूरी है ताकि अगर कल को परिवार अच्छा ना मिले तो उसे अपने ज्ञान से बुरे समय में लड़ने की ताकत मिल सके।
बेटी की इस समझदारी वाली बातों को सुनकर मां की आंखों से आंसू निकल रहे थे।
वे दोनों एक दूसरे के गले से लिपट गए व बहुत रोए।
मां ने कहा बेटा! मैने जिस तरह अपना मन मारा अब मैं तेरे साथ वैसा नहीं होने दूंगी।
मैं जानती हूं कि पढ़ लिखकर भी मैं इस घर में एक नौकरानी की तरह हूं। काश मैं उस समय लड़ी होती तो आज मेरी भी जाब होती तो एक-एक पैसा बचा कर तुझे ऐसे न पढ़ाना पड़ता। तेरी यह मेहनत बेकार नहीं जाने दूंगी बेटा।
मां के चेहरे पर एक अलग ही दृढ़ता थी।
मां ने दादी से बात की और उन्हें समझाया वो दादी-दादा के सामने अडिग खड़ी रहीं कि मेरी बेटी अभी शादी नहीं करेगी।
उसे समय देने का वादा लेकर आज उन्हें लगा कि वो अपनी ही जिंदगी से दोबारा रूबरू हो रही हैं। वे वह जिंदगी जी रहीं हैं जो वे कभी नहीं जी पाईं।
वे वह गलती नहीं दोहराना चाहती थीं जो उनके माता-पिता ने बीस साल की उम्र में उनकी शादी करके की। वो भी कुछ करना चाहती थीं, पर हालात के आगे मजबूर थीं।
आज अपनी प्यारी सी बेटी के लिए एक सफल निर्णय लेने पर उन्हें गर्व सा प्रतीत हुआ।
उनके मुंह से गाने के कुछ शब्द निकल गए….
आज फिर जीने की तमन्ना है…. !
डॉ प्रिया गुप्ता।
अयोध्या।
#वाक्य-अब तो पड़ जाएगी ना तुम्हारे कलेजे में ठंडक।