आधी रात को सुरेश जी की तबियत बिगड़ी,सीने में दर्द,घबराहट,बेचैनी,रुकती सासें! उन्होंने बहुत कोशिश कर पास लेटी सुधा को बड़ी मुश्किल सेआवाज दी !
जब तक सुधा समझती कि आखिर हुआ क्या?सुरेश जी उसे और अपने दस साल के बेटे मयंक और आठ साल की बेटी नैना को बेसहारा छोड़कर इस दुनिया से चले गए!
बदहवासी सी सुधा कभी सुरेश जी की नब्ज टटोलती कभी उनके सीने पर कान लगाकर धड़कनों को सुनने का व्यर्थ प्रयास कर उन्हें झिंझोडकर उठो,सुनो चिल्लाई!
सुधा के चिल्लाने की आवाज सुन कर दोनों मासूम हक्के बक्के से कभी मां को तो कभी आँखे बंद कर लेटे पिता को देखते !
सुधा ने जल्दी से मयंक को सामने वाले फ्लैट के गुप्ता जी को बुलाने भेजा! वे फौरन चले आए पर तबतक देर हो चुकी थी!
दोनों बच्चों को छाती से लगा सुधा फफक कर रो पड़ी!
उसकी समझ नहीं आ रहा था बिना सुरेश जी के उसका और बच्चों का क्या होगा!उसकी जिन्दगी का दायरा तो चूल्हा चौका ,घर,पति और दोनों बच्चों में ही सिमट कर रह गया था!
सोलह बरस की थी जब ब्याह कर सुरेश जी के घर दुल्हन बन कर आई थी!
सुरेश जी सरकारी दफ्तर में सुपरवाइजर का काम करते थे!
दो कमरे के फ्लैट में किराए पर रहे थे!
मायके के नाम पर बूढ़े पिता महेन्द्र जी ,भाई महेश और
तेज तर्रार भाभी शन्नो!
शहर से कुछ ही दूर पर उनका गांव था जिसमें दो चार बीघा जमीन पर खेती बाडी करके घर के खाने भर का साल भर का अनाज निकल आता!
जमीन महेंद्र जी के नाम थी!उन्होंने जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा सुधा के लिए रखा था जिसपर धीरे धीरे एक छोटा सा कमरा गुसलखाना बनवा दिया था!
उनका सोचना था कि भगवान ना करे कभी बेटी के ऊपर कोई विपत्ति आऐ तो उसके सर पर कम से कम छत तो हो!
शन्नो को यह बात फूटी आंख ना सुहाती वह जब-तब महेंद्र जी को ताना देना ना चूकती कि बेटी का ब्याह कर दिया अब यहां के जमीन जायदाद से उसका क्या लेना देना?शन्नो ने उस कमरे पर कब्जा जमा रखा था! महेंद्र जी ज्यादा कुछ बोल नहीं पाते थे क्योंकि वे जानते थे कि कुछ कहेंगे तो शन्नो उनका खाना पीना बंद कर देगी!
बुढ़ापे में क्या करेंगे,कहाँ जाऐंगे!
बेचारे लाचार से बहू की ज्यादतियां चुपचाप बर्दाश्त करते!
सुधा अपनी छोटी सी गृहस्थी में खुश थी कभी-कभार ही गांव जाती!
सुरेश जी के गुजर जाने पर सुधा पर जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा !
सुरेश जी की तनख़्वाह के हिसाब से उसे दस हज़ार रूपये पेंशन मिलने लगी!
उससे बच्चों की पढ़ाई,घर का खर्च,किराया,बिजली पानी!
महेंद्र जी चाहते थे सुधा गाँव आकर वहीं बच्चों को पढ़ा ले पर सुरेश जी की हमेशा से इच्छा थी कि मयंक पढ़लिख कर इंजीनीयर बने नैना भी खूब पढ़े!
सुधा ने घर पर ही सिलाई का काम शुरू कर लिया!वह खाना भी अच्छा बनाती थी !टाइम निकाल कर जहां जरूरत होती खाना बनाने चली जाती!कभी कभी तो उसने लोगों के घरों में बर्तन तक साफ किये पर हिम्मत नहीं हारी!
उसकी जिन्दगी का एक ही मकसद था किसी तरह मयंक को पढ़ालिखा कर इंजीनीयर बना दे!
वह दिनरात मेहनत करती!
महेंद्र जी ने सुधा के हिस्से की जमीन बेचकर उसे शहर में अपना घर खरीदने का सुझाव दिया पर शन्नो और महेश ने साफ मना कर दिया!यह कहकर कि सुधा को रहना हो तो भले यहां आकर रह ले पर वे लोग जमीन के टुकड़े का एक इंच भी बिकने नहीं देंगे !
वो जानते थे सुधा कभी भी गांव आकर रहने को राजी नहीं होगी!
महेंद्र जी बेटे बहू के आगे बेबस थे!
सुधा ने जैसे तैसे अपनी मेहनत के बल बूते पर बच्चों को पढ़ाया लिखाया!मां की हिम्मत और हौसला देख कर मयंक भी सुधा की उम्मीदों पर खरा उतरा!उसने मां को निराश नहीं किया!
पढ़ाई से थोड़ा समय निकाल कर वह सुबह सुबह अखबार बेचता,शाम को दो तीन घंटे एक दुकान पर काम करता!
कभी-कभार जब वे तीनों गांव जाते शन्नो अपने तीखे व्यंग बाणों से सुधा का दिल छलनी किये बिना ना रहती!महेंद्र जी अगर थोड़ा-बहुत अनाज पानी भी सुधा को देना चाहते तो वह उनकी इज्ज़त उतारने में भी पीछे न हटती!
महेंद्र जी बेटे बहू से छुपाकर कुछ पैसे जमाकर रखते ताकि बेटी को मायके से खाली हाथ ना भेजना पड़े! उन्हें हर वक्त डर लगा रहता कहीं शन्नो को पता चल गया तो घर में महाभारत मचा कर रख देगी!
शन्नो के बेवजह के क्लेश के कारण सुधा ने गांव जाना ना के बराबर कर दिया था!उससे अपने सामने महेंद्र जी का अपमान होते हुए नहीं देखा जाता था!
खैर किसी तरह साल-दिन-महीने बीतते रहे!
मयंक अपनी मेहनत के बल पर पढ़ाई में अव्वल आता रहा!
इंजीनियरिंग की परीक्षा के समय सुधा भी मयंक के साथ रात रात भर जागती!कभी उसे चाय बनाकर देती कभी ठंडे पानी से मुंह धुलवाती! पास बैठकर कभी बुनाई करती तो कभी गीता रामायण पढ़ती!
फिर भगवान ने सुधा की सुन ली मयंक का एडमिशन देश के बड़े इंजीनियरिंग कॉलेज में हो गया!
अपनी मेहनत के बल पर पढ़ाई पूरी करते ही मयंक का कैम्पस इंटरव्यू से ही एक अमरीकन कंपनी से जाॅब का ऑफर आ गया!बहुत बड़ा पे पैकेज था!
सुधा खुश तो बहुत थी पर बेटे को सात समुन्दर पार भेजने के डर से अंदर ही अंदर घबरा रही थी!
मयंक सुधा की परेशानी समझ रहा था!
उसने सुधा से वायदा लिया कि वह अमरीका तभी जाएगा जब सुधा और नैना उसके साथ जाऐंगे!वह उन दोनों को अकेला छोड़कर हरगिज नहीं जाएगा!
कुछ ही महीनों में मयंक ने अमरीका जाकर रहने का बंदोबस्त कर लिया और सुधा और नैना को लेने आ गया!
जाने से पहले वे लोग महेंद्र जी से मिलने गांव गऐ!
सुधा के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब गाँव जाकर देखा कि हमेशा से मुंह बनाकर जली कटी सुनाने वाली शन्नो मुंह में चाशनी घोलकर उनकी आवभगत में लगी थी!
जो शन्नो सुधा के गांव आने पर दो वक्त की रूखी सूखी रोटी भी चार बातें सुनाकर खाने को देती थी वही शन्नो आज छत्तीस तरह के पकवान बनाकर बैठी थी!
पूरे मोहल्ले में ननद और मयंक के गुणगान करती नहीं थक रही थी!
अपने बच्चों को जो पहले सुधा और उसके बच्चों के पास नहीं फटकने देती थी!आज बार-बार कह रही थी जाओ भैया को कहो हमें भी जल्दी अमरीका बुला लें!
अरे! हमारा इकलौता भांजा है मामा मामी को अमरीका नहीं घुमाऐगा तो क्या गैरों को बुलाएगा!
महेंद्र जी शन्नो के इस दोरंगे नाटक को देखकर अंदर ही अंदर गुस्साए हुए थे!
जब उनसे बर्दाश्त नहीं हुआ तो उन्होंने शन्नो से कह ही दिया “मेरी बेटी जब तक यहाँ रही तुम्हें फूटी आंख नही सुहाती थी !तुमने मेरे जीते जी उसके बाप के होते हुए भी उसका मायका छुड़वा दिया था!मेरे ही घर में मुझे ही मजबूर बना दिया था! तुमने रिश्तों का भी लिहाज नहीं किया!मैं किस तरह खून के आँसू पीकर रहा मैं जानता हूँ!
अब जब वो सदा के लिए जा रही है अब घड़ियाली आँसू बहा रही हो!अरे! अब तो पड़ गई ना तुम्हारे कलेजे में ठंडक !अब इस जमीन जायदाद पर एकछत्र तुम्हारा राज है चैन से रहो!”
कहकर महेंद्र जी दहाड़ मार कर रो उठे! बरसों से दबा गुब़ार जैसे एक बारगी ही निकल गया हो!
शन्नो शर्म से गड़ गई!
वह सुधा और महेंद्र जी से अपने किये की माफी मांगने लगी!
सुधा ने जाते जाते शन्नो के हाथ पकड़कर बस इतना कहा”भाभी
!मैने जमीन का हिस्सा आप लोगों को दिया!मुझे अब आप लोगों से कुछ नहीं चाहिए! हो सके तो आगे से पापा को दुख मत देना”!
कुमुद मोहन
स्वरचित-मौलिक