1983 एक प्रेम कहानी ( हास्य रचना)-पायल माहेश्वरी

रूद्र बाबू व गौरी जैसे एक-दूजे के लिए बने थे आज इनकी शादी को चालीस साल बीत गए थे और दोनों ने एक खुशहाल विवाहित जीवन का लम्बा सफर तय कर लिया था।

आज वर्ष 2023 चल रहा हैं और रूद्र बाबू व गौरी का प्रेम विवाह आज से चालीस साल पहले साल 1983 में हुआ था यह वो दौर था जब फिल्मी प्रेम कहानियां व गीत-संगीत हमारे मनोरंजन का हिस्सा हुआ करते थे और सूचना व प्रसारण का एकमात्र माध्यम टेलीफोन होता था ऐसे में यह प्रेम विवाह बहुत दिलचस्प था।

आज जब चालीसवीं वैवाहिक वर्षगाँठ पर रूद्र बाबू अपनी शादी की तस्वीरो वाली एल्बम देख रहे थे अचानक उन्हें मंगतराम नाई की तस्वीर दिखाई दी और वो हंसने लगे।

” किस बात पर आप इतना हंस रहे हैं रूद्र?” गौरी ने उत्सुक होकर प्रश्न किया।

” आज शादी के एल्बम में मंगतराम नाई की तस्वीर दिखाई दी और कुछ पुरानी यादें ताजा हो गयी” रूद्र बाबू हंसते हुए बोले।

गौरी भी खिलखिला कर हँस पड़ी।

” मम्मी!!आपकी हंसी का राज क्या हैं जरा हमें भी बताईये?” उनकी पुत्रवधु बोली।

” हमारी शादी बड़ी मजेदार और अनोखी थी और मंगतराम नाई इसकी वजह बना था” गौरी मुस्कुराती हुई बोली। 

गौरी व रूद्र बाबू अतीत की मजेदार  यादों में खो गए।

चालीस साल पहले जब प्रेम‌-विवाह अपराध माना जाता था तब रूद्र बाबू व गौरी का प्रेमविवाह हुआ था हालांकि इसमें दोनों के परिवारों की आपसी सहमति शामिल थी और उनका विवाह भी धूमधाम के साथ बंसत पंचमी के शुभ अवसर पर सम्पन्न हुआ था।

रूद्र बाबू व गौरी दोनों अलग-अलग शहरों के रहने वाले थे गौरी की सहेली का विवाह रूद्र बाबू के अभिन्न मित्र से हुआ था और उसी विवाह समारोह में वो दोनों पहली बार मिले थे, पहली ही मुलाकात में रूद्र बाबू गौरी पर अपना दिल हार बैठे थे व दोनों का प्रेम परवान चढ़ने लगा था।




गौरी के परिवार वाले आधुनिक विचारधारा के थे उन्हें रूद्र बाबू व गौरी की शादी से कोई आपत्ति नहीं थी,वही रूद्र बाबू के माता-पिता इस विवाह के लिए थोड़ी कठिनाई से राजी हुए थे पर जब उन्होंने गौरी को देखा तो उन्हें वह एक योग्य बहू नजर आयी।

आमतौर पर माता-पिता प्रेम विवाह में खलनायक बनते हैं ,पर यहा मंगतराम नाई खलनायक बना था।

मंगतराम नाई गौरी के शहर में रहता था, एक परम्परा के अनुसार मंगतराम ने गौरी के परिवार में सभी के विवाह के लिए रिश्ते सुझाए थे और उसकी बात को मान्यता भी मिलती थी,मंगतराम गौरी के प्रेम विवाह से नाराज था और उसने बदला लेने ठानी।

बंसत पंचमी के शुभ मुहूर्त पर रूद्र बाबू की बारात बड़े धूमधाम से निकली सब खुब मस्ती कर रहे थे।

बारात नियत समय पर गौरी के शहर में अपने जनवासे पर पहुंच गई सभी बाराती बनठन कर शादी में सम्मिलित होने के लिए चल पड़े विवाहस्थल जनवासे से कुछ दूरी पर था तो मंगतराम नाई को बारात का मार्गदर्शन करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।

वो जमाना मोबाइल युग नहीं था हमारा मंगतराम नाई बारात के लिए  चलता-फिरता गूगल मैप बना।

मंगतराम नाई ने बदला लेने की ठानी व बारात को लम्बे रास्ते से घुमाने लगा।

” आज मेरे यार की शादी हैं …..” रूद्र बाबू के मित्र खुब मस्ती में जोर लगाकर नाचे बारात आगे बढ़ी और मंगतराम नाई रास्ता बताकर जानबूझ कर पीछे चलने लगा।

एक विवाहस्थल पर बारात रूकी उत्साहित मित्रों व भाई-बहनों ने जम कर नृत्य किया फिर पता चला की वह विवाहस्थल रूद्र व गौरी का नहीं था।

मंगतराम उन्हें और आगे ले गया अब गाना बजा” मेरा यार बना हैं दूल्हा और फूल खिले हैं दिल के …..”

मित्रों ने फिर नृत्य कला को एक अन्य विवाहस्थल के सामने आजमाया।

मंगतराम नाई उनके भरपूर नृत्य करने के बाद पुनः अवतरित हुआ और बड़ी बेशर्मी से बोला।

” समधि जी यह भी हमारा विवाहस्थल नहीं हैं।”




बाराती फिर शांत हो कर आगे बढ़ने लगे इस बार गाना बजा ” ये देश हैं वीर जवानों का ……” देशभक्ति व जोश से ओतप्रोत इस गाने पर बाराती जमकर नाचे और विवाहस्थल भी आ गया था तभी मंगतराम नाई रंग में भंग डालने के लिए प्रकट हुआ।

चूंकि बंसतपंचमी एक अनबूझ मुहूर्त होता हैं तो शहर में विवाह भरपूर थे।

” समधि जी यहाँ मत नाचिए यह हमारा विवाहस्थल नहीं हैं ” मंगतराम नाई बड़ी कुटिलता से बोला।

बारात अब थोड़े थके कदमों के साथ धीरे-धीरे आगे बढ़ी दो किलोमीटर और चलने के बाद एक और विवाहस्थल दिखाई दिया, पर इस बार रूद्र बाबू के पिताजी ने बारात को नाचने से मना करते हुए मंगतराम नाई को खोजा।

मंगतराम नाई तो ऐसा गायब हुआ जैसे गधे के सर से सींग गायब होते हैं।

बाराती अंसमजस में थे की यह उनका विवाहस्थल हैं या किसी और का विवाहस्थल हैं?

” स्वागतम समधि जी !! बारात ने आने में बड़ी देर कर दी ” तभी गौरी के पिताजी विवाहस्थल से हाथ जोड़कर स्वागत करने आए।

” देर….!! अरे समधि जी पहले तो आपने जनवासे व विवाहस्थल के बीच छह किलोमीटर की दूरी रख दी और सोने पर सुहागा रास्ता सुझाने के लिए मंगतराम नाई ही आपको मिला, चलकर व नाच-नाच कर बारातियों के पैर थक गए” रूद्र के पिताजी खीज कर बोले।

“छह किलोमीटर !! समधि जी जनवासा यहाँ से एक किलोमीटर दूर दो गली छोड़कर स्थित हैं और मंगतराम नाई यह रास्ता भी जानता हैं ” गौरी के पिताजी आश्चर्यचकित थे।

सबको अब मंगतराम नाई की खुराफाती कारस्तानी  समझ में आयी।

शुभ मुहूर्त बीता जा रहा था द्वाराचार की रस्में शुरू हुई, रूद्र बाबू का सरबाला बना बच्चा घोड़ी पर सो गया था,घोड़ी ने दो कदम आगे बढ़ने से भी इन्कार कर दिया था,बड़ी मुश्किल से घोड़ी को चने की मान-मनुहार कर मनाया गया।




बैण्ड वालो ने अपने फेफडों की बची हुई ताकत इस्तेमाल करते हुए गाना बजाया” बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया हैं ……” पर कोई मित्र व भाई इस गाने पर नहीं नाचा।

रूद्र बाबू तो सच में रूद्रावतार बन गये थे और दुष्ट मंगतराम नाई को मन ही मन कोस रहे थे।

‘अन्त भला तो सब भला ‘ रूद्र बाबू व गौरी का प्रेम आखिर विवाह की मंजिल पा गया।

तभी कुछ युवा लड़के मंगतराम नाई को पकड़ कर लाए।

” मंगतराम !! तुमने जानबूझकर बारात को भ्रमित क्यों किया?” गौरी के पिताजी गरजे।

” महाशय!! मैं तो होने वाले समधि जी से मजाक कर रहा था, क्यों दामाद जी मेरी मजाक कैसी लगी?” मंगतराम खींसे निपोरता हुआ बोला।

रूद्र बाबू का मन हुआ की मंगतराम नाई का उसी के उस्तरे से गला काट दे पर ऐसा करना संभव नहीं था।

इस तरह रूद्र बाबू व गौरी की शादी अविस्मरणीय हो गयी और आज रूद्र बाबू अपने बेटे, बेटी, दामाद व बहू को यह घटना सुना रहें थे व सभी पेट पकड़कर हंस रहे थे।

 मैं और आप भी मंगतराम नाई की कल्पना करके थोड़ा हंस लेते हैं ।

आपकी प्रतिक्रिया के इंतजार में

पायल माहेश्वरी

यह रचना स्वरचित और मौलिक हैं

धन्यवाद।

# प्रेम 

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