इतवार को घर में सब देर से उठते है तो निशा भी कुछ देर बिस्तर पर पड़ी रही, परंतु नींद तो उसे आ नहीं रही थी, उठ कर बैठ गई।
पतिदेव मानव एक्सियन के पद पर थे, किसी बात की कमी नहीं थी। इकलौता बेटा आर्यन मां बाप की आंखों का तारा, पढ़ रहा था। उसे पता था कि मानव तो अभी उठेगें नहीं, मेड को चाय के लिए कहकर बाहर लान में चली गई।
बाहर देखा तो एक कार नहीं खड़ी थी। उनके पास दो कारें थी, एक सरकारी और एक अपनी काफी मंहगी गाड़ी थी। आर्यन अभी सतारह वर्ष का था, लेकिन कई बार कार ले जाता। निशा ने कई बार समझाया कि अभी उसकी उम्र नहीं हुई। लाईसेंस भी नहीं, घर में ड्राईवर है, वही उसे ले जा सकता है, लेकिन आर्यन कहां मानता।
अक्सर कहा जाता है कि माएं बेटों को बिगाड़ती हैं, ज्यादा लाड प्यार देती हैं, लेकिन यहां मामला उल्ट था। मानव ही बेटे की हर नाजायज मांग पूरी करते। स्कूल में जब भी लड़ झगड़ कर आता, किसी की मार पिटाई कर देता, उसकी गल्ती होने पर भी मानव स्कूल जा कर टीचर तो टीचर प्रिसिंपल को भी धमका आते।
असल में उनकी पहुंच बहुत उपर तक थी । अपने पद के घंमड में रहते। इसी बात का वो नाजायज फायदा उठाते। टीचर भी आर्यन को कुछ नहीं कहते थे, होम वर्क कर लिया तो ठीक , नहीं किया तो भी ठीक। कौन फालतू में उसके बाप से पंगा ले, यही कारण था कि दिमाग तेज होते हुए भी वो पढ़ाई में खास नहीं था।
निशा ने कई बार पढ़ाई की और ध्यान देने के लिए कहा, इजियनिरिंग करनी है तो अच्छे मार्कस लाने पड़ेगे, लेकिन मानव कहते, “ कोई बात नहीं, पैसों से सब काम होते है, डोनेशन दे देगें” और निशा के पास चुप रहने के इलावा कोई चारा नहीं था।घर में भी टयूटर पढाने आते, वहां भी आर्यन का मन होता तो बैठता न होता तो घर से किसी बहाने से निकल जाता। कई बार तो टयूटर उसकी इतंजार में ही बैठा रहता।
निशा कुछ कहती तो मानव का एक ही जवाब होता, “ एक ही तो बेटा है हमारा, बड़ा हो कर सब ठीक हो जाएगा। यही तो दिन है ऐश करने के, घर गृहस्थी में पड़ कर तो मेरी तरह चकरघिन्नी बन घूमता रहेगा”। और ठहाका लगा कर हँस पड़ते। पैसों की कमी तो थी नहीं। बाप का ए़टी़एम. कार्ड हमेशा जेब में रहता। पार्टियां और दोस्तों की महफिल।
अब तो कभी कभी पीने भी लगा था, निशा ने टोका तो मानव उसे समझाने की बजाए उसका पक्ष लेते हुए बोले, अरे कोई बात नहीं, कंपनी में थोड़ा चख लिया तो क्या हो गया।
बेचारी निशा को कुछ समझ न आता कि क्या करे, कैसे समझाऐ बाप बेटे को। सबसे ज्यादा डर उसे तब लगता जब वो गाड़ी लेकर चला जाता। साल भर से वो चुपके से गाड़ी लेकर निकल पड़ता। वो तो कब से बाईक की मांग कर रहा था, लेकिन निशा ने सख्ती से मना कर दिया। मानव तो ले देने को तैयार था, वो तो निशा की जिद्द के कारण चुप थे।
घर में गाड़ी न देखकर निशा ने आर्यन को फोन लगाया तो उधर से जवाब आया, डियर मोम, डोंट वरी, मैं अब कल सुबह ही आऊंगा। दोस्तों के साथ घूमने गया हूं। डैड को पता है। निशा का दिल धक से रह गया। मानव से कुछ कहना बेकार था। सारा दिन उसका मन बैचेन रहा, कुछ भी खाने पीने को मन न किया। रात हो गई, एक बार फोन पर जरा सी बात हुई तो उसे चैन पड़ा।
अभी उसकी आँख लगी ही थी कि मानव का मोबाईल बजा। मानव ने फोन पर बात की तो घबरा कर उठा और नाईट गाऊन उतार फेंका और जल्दी जल्दी कपड़े पहनने लगा। निशा ने देखा तो नींद में ही बोली” क्या हुआ, कहां जा रहे हो”। “ वो अभी पुलिस स्टेशन से फोन आया, मेरी कार का हाईवे पर एक्सीडैंट हो गया , आर्यन और उसके साथी कार में थे, “। यह सुनते ही निशा घबरा कर उठ बैठी और बोली मैं भी साथ चलती हूं, आसूं थे कि थमने का नाम नहीं ले रहे थे।
“ हौंसला रखो, सब ठीक होगा”, निशा को हौंसला दे रहे थे, लेकिन अंदर से मानव का मन भी कांप रहा था, आर्यन ठीक हो”, क्योंकि फोन पर कुछ नहीं बताया गया था।किसी तरह वो पुलिस स्टेशन पहुंचे, सामने आर्यन को सही सलामत देखकर दोनों की जान में जान आई। आर्यन और उसके दो साथी पुलिस की हिरास्त में थे। आर्यन गाडी चला रहा था, जो उसके साथ वाली सीट पर बैठा था विशाल , उसके सर पर गहरी चोट आई थी और सामने से आ रहा बाईक स्वार भी एडमिट था। उसका पांव बुरी तरह जख्मी हुआ और बाकी अभी रिपोर्टस आने पर पता चलना था।
“देखिए सर, हमें आर्यन को अरेस्ट करना होगा”, वो तो मानव को वहां सब जानते थे , नहीं तो इतनी बात कौन करता।
प्लीज इंसपैक्टर, मैं सारा खर्च उठाऊंगा, मेरे बेटे को छोड़ दें, लेकिन ये संभव नहीं था। “ ये फैसला तो अब कोर्ट ही करेगा” और आर्यन को हथकड़ी पहना दी गई।
“ इतने पढ़े लिखे होने और इतने बड़े ओहदे पर होने पर आपको कानून का साथ देना चाहिए। आप जैसे लोगों को तो जनता के सामने एक मिसाल पेश करनी चाहिए। नाबालिग बेटे के हाथों ड्राईविंग सीट दे दी, लाईसेंस भी नहीं और उपर से शराब पी रखी है। दो लोग घायल पड़े है, पता नहीं किसे कितनी चोट आई है।”। तब तक सबके घर वाले वहां पहुंच चुके थे।
मानव ने लाख मिन्नते की, पैर पकड़े, नाक रगड़ी लेकिन आर्यन को रिहाई नहीं मिली । मानव और निशा की जान सूखी जा रही थी कि आर्यन का भविष्य क्या होगा।
अब मानव को समझ आ गया था कि बच्चों के लाड प्यार की भी एक सीमा होती है और हर जगह रूतबा काम नहीं आता। बच्चें तो बच्चें होते है लेकिन बड़ों को समझना चाहिए। अब जितनी भी पहुंच हो, लाख पैरों पर नाक रगड़ो, फैसला जब होगा तब होगा।
प्रिय पाठकों, उम्मीद है आपको ये कहानी पंसद आएगी। लाड प्यार की एक सीमा होती
है और कानून का पालन करने में ही हम सबकी भलाई है।
विमला गुगलानी
चंडीगढ़
मुहावरा- पैरों पर नाक रगड़ना