प्रेम तेरे कितने रूप…. – शाहीन खान

आज ऑफिस में निशा से जब अनु ने पूछा

 “और सुनाओ, इस बार गर्मियों में कहां घूमने जा रही हो? भई! तुम और सलिल तो अभी आज़ाद पंछी हो, जो मर्जी करो हमें तो बच्चों को देख कर चलना पड़ता है|” वह हंसकर टाल गई पर उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया है|

2 साल हो गए उसकी और सलिल की शादी को सलिल एक अच्छी कंपनी में जॉब करते हैं खुद निशा एक कॉलेज में लेक्चरर है| अब उसे लगता है पता नहीं कैसे उन दोनों की शादी हो गई ? दोनों में कुछ भी तो एक जैसा नहीं है जहां वह खुद शुरू से ही सजने संवरने, खाने-पीने और घूमने-फिरने की शौकीन, इसके बिल्कुल उलट सलिल को ना ज्यादा खाने पीने का शौक है, ना ही घूमने फिरने का| फैशन से तो उनका दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है जो भी सब्जी बना दो बिना ना नुकर के खा लेते हैं| इन 2 सालों में आज तक वह उनकी पसंद नापसंद ठीक से नहीं जान पाई है|

हर महीने एक निश्चित रकम बैंक में जमा कर देते हैं| बाहर घूमना फिरना और खाना खाना उन्हें फिजूलखर्ची नजर आता है| उसने अपने जीवनसाथी के रूप में एक ऐसे इंसान की कल्पना की थी जो कभी-कभी  सरप्राइज़ गिफ्ट देकर उसे चौंका दे, कभी अचानक से कहीं बाहर घूमने का प्रोग्राम बना ले… और कुछ नहीं तो कम से कम किसी दिन ऑफिस से आ कर यही कह दे कि चलो आज कहीं अच्छे रेस्टोरेंट में डिनर करने चलते हैं पर वह सोचती ही रह गई ऐसा मौका कभी नहीं आया|

ऐसा नहीं है कि सलिल एक अच्छे इंसान नहीं हैं वह बहुत अच्छे इंसान हैं, दूसरों की मदद करते हैं अपने खुद के घर वालों का बहुत ध्यान रखते हैं| पर जिंदगी की जो छोटी-छोटी खुशियां होती हैं उनकी कमी वह अपने जीवन में महसूस करती है|

उसे याद है सलिल के पिछले जन्मदिन पर उसने कुछ दोस्तों को बुला लिया था| खाना भी बाहर से ऑर्डर कर लिया था| अपनी पसंद से एक अच्छी सी शर्ट भी सलिल के लिए ले आई थी| इस पर खुश होने की बजाय सब के जाने के बाद सलिल ने कहा था|

 “इतना सब करने की क्या जरूरत थी…? कितना बेकार खाना था, इससे अच्छा खाना तो तुम घर में ही बना लेतीं|” उसका सारा उत्साह झाग की तरह बैठ गया था|

अपनी सहेलियों की बातें सुन सुनकर उसे अपनी जिंदगी नीरस लगने लगी थी| कई बार उसके दिल में ख्याल आता कि सलिल उसे प्यार भी करते हैं, या नहीं…? 

वह ना जाने कब तक अपने ख्यालों में खोई रहती कि अचानक नजर घड़ी की तरफ पड़े तो याद आया  सलिल के आने का टाइम हो रहा है फटाफट रसोई में जाकर खाना बनाने लगी| 

सलिल ऑफिस से आने के बाद हमेशा की तरह कपड़े बदल कर टीवी देखने लगे|

खाना खाते हुए उसे लगा आज तो सब्जी में मिर्च कुछ ज्यादा ही हो गई है वह बार-बार पानी पीते जा रही थी जब उसने सलिल से कहा

 “आपको मिर्च नहीं लग रही मेरा तो मुँह जला रहा है?”

तो वह बड़ी शांति से बोले बोले हो जाता है कभी-कभी इतनी ज्यादा भी नहीं है”|



और वह हैरान रह गई, कितने अजीब इंसान हैं? जरा भी तेज मिर्च पसंद नहीं करते हैं और आज जब मिर्च इतनी ज्यादा है तो चुपचाप खाना खाए जा रहे हैं| वह जल्दी से रसोई में जाकर मिठाई का डब्बा उठा लाई| 

रात में अच्छी भली सोई थी कि अचानक तेज पेट दर्द की वजह से उसकी आंख खुल गई पूरा शरीर पसीने से तरबतर था पानी पीने के लिए उठी तो खड़ी नहीं हो पा रही थी उसकी कराहने की आवाज सुनकर सलिल उठ कर बैठ गए| फ्रिज से लाकर ठंडा पानी पिलाया|

 

निशा से दर्द बर्दाश्त नहीं हो रहा था| उसकी हालत देखकर देकर सलिल बड़े प्यार से उसके सिर पर हाथ फेर कर बोले

 

 “तुम कपड़े बदल लो मैं गाड़ी निकालता हूं, हॉस्पिटल चलते हैं”|

“अब इतनी रात में कहां चलेंगे, मैं दर्द की दवाई खा लेती हूं, सुबह चलते हैं|” निशा कराहते हुए बोली|

“तुम क्या रात भर ऐसे ही तड़पती रहोगी? चलो अभी हॉस्पिटल चलते हैं|” 

कहकर सलिल ने अलमारी में से उसके कपड़े निकाले और उसे सहारा देकर गाड़ी में बिठाया|

जांच करने पर पता चला कि उसके पित्ते में पथरी थी, जिसे ऑपरेशन करके निकालना था| 

ऑपरेशन के नाम से ही वह घबरा गई| पर सलिल ने उसे प्यार से समझाया कि यह शहर का सबसे बड़ा अस्पताल है, यहां के डॉक्टर बहुत अच्छे हैं| और फिर मैं हूं ना! तुम्हे कुछ नहीं होने दूंगा|”



इन तीन चार दिनों में उसने सलिल का एक नया ही रूप देखा….जब तक वह अस्पताल मैं रही सलिल ने ऑफिस से छुट्टी ले ली| नर्स होने के बावजूद सलिल उसका सारा काम खुद करते| उसे प्यार से सहारा देकर बिठाते, सूप पिलाते, मुंह साफ करते| वह कहती यहां पर तो नर्स है आप घर में जाकर आराम कर लो पर वह उसे छोड़कर जाने के लिए तैयार नहीं होते|

उसके बिस्तर के पास पड़ी बेंच पर ही बैठे-बैठे सोते रहते, उसकी एक आवाज पर उठ कर बैठ जाते| निशा ने एक दिन कहा….

“इतने बड़े हॉस्पिटल में लाने की क्या जरूरत थी…..?मेरे ऑपरेशन पर कितने सारे पैसे खर्च हो गए|”

“पैसे तुम से बढ़कर हैं क्या? आगे से कभी ऐसी बात सोचना भी मत… तुम हो तो मैं हूं, तुम्हारे बिना मैं अधूरा हूं|” कहते हुए सलिल की आंखों में आंसू आ गए उसने कभी सोचा भी नहीं था सलिल उससे इतना प्यार करती हैं|

घर आने के बाद भी सलिल उसका पूरा ध्यान रख रहे थे उसके मना करने पर भी जिद करके अपने हाथों से फल खिलाते, उसे उठाकर सैर करवाते| एक दिन वह बोली 

“मुझे पता होता आप मेरा इतना ख्याल रखने वाले हो तो मैं पहले ही बीमार पड़ जाती”|

“आगे से बीमार पड़ने वाली बात सोचना भी मत,तुम्हें पता है तुम्हें दर्द में तड़पते देख मेरा क्या हाल हो रहा था…अब जल्दी से ठीक हो जाओ, पूरी कीमत वसूल कर लूंगा|” सलिल ने शरारत से निशा की और देखते हुए कहा|

अपनी बीमारी के बहाने निशा को प्रेम के एक नए रूप के दर्शन हुए थे| आज तक उसने सलिल को कितना गलत समझा था पर अब उसे  समझ में आ गया था कि महंगे, महंगे तोहफे देना बाहर घुमाने ले जाना दूसरों के सामने प्यार का दिखावा करना ही सिर्फ प्रेम नहीं होता है न ही हर बार बोलकर प्यार जताना जरूरी है| कुछ चीजें महसूस भी की जाती हैं| एक सच्चा जीवनसाथी वह होता है जो दुख तकलीफ में दूसरे का ध्यान रखता है, परवाह करता है, हर रूप में साथ निभाता है..और सही मायने में यही प्रेम है और अपने हर रूप में अनमोल है|

#प्रेम 

शाहीन खान

स्वरचित एवं मौलिक

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