कौन सा प्रायश्चित? – रोनिता कुंडु  : Moral Stories in Hindi

 

बेटा..! अगले महीने सिम्मी की शादी है, बुआ जी का फोन आया था। उन्होंने मुझे एक हफ्ते पहले ही बुलाया है। कहती है अब भैया तो रहे नहीं उनकी ज़िम्मेदारी आप ही कर दो। गोमती जी ने अपने बेटे लोकेश से कहा 

लोकेश:  ठीक है मम्मी! मैं आपको और रूपा को एक हफ्ते पहले ही छोड़ आऊंगा और मैं शादी वाले दिन सुबह-सुबह ही पहुंच जाऊंगा। 

गोमती जी: अरे नहीं नहीं, एक हफ्ते पहले रूपा जाकर क्या करेगी? फिर तुम्हारे खाने-पीने की दिक्कत हो जाएगी। तुम दोनों ही शादी वाले दिन ही आना। 

लोकेश:  अरे मम्मी, एक हफ्ते की ही तो बात है मैं ऑफिस के कैंटीन में खा लूंगा। आप दोनों चली जाना। वैसे भी आपसे कौन सा काम होगा? घर पर ही घुटनो के दर्द से बेहाल रहती हो, रूपा जाएगी तो बुआ जी की भी मदद हो जाएगी। 

गोमती जी:  कहा ना मैं अकेले ही जाऊंगी, मैं नहीं चाहती वहां हम शादी घर के मज़े ले और तू यहां बाहर का खाना खाकर बीमार पड़े, मैं अकेले ही जाऊंगी बस! 

लोकेश:  अच्छा ठीक है जैसा आप कहो! यह कहकर लोकेश कमरे में गया, जहां रूपा उदास बैठी थी, उसे यूं देखकर लोकेश उससे पूछता है क्या हुआ? 

रूपा:  मम्मी ने आपको कहा कि वह अकेली क्यों नहीं जाना चाहती और अपने मान भी लिया? पर मैं जानती हूं उसकी असली वजह, हमारी शादी को 7 साल हो गए बच्चा अब तक नहीं हुआ, ऐसे में कोई भी शुभ काम में मुझे कोई क्यों ले जाएगा? दुनिया वाले तो ताना देते ही हैं, पर जब परिवार के सदस्य यह जताते हैं, सच कहूं, मन मर जाने को करता है 

लोकेश:  ओफ ओह रूपा! तुम खामखा यह सब सोच कर परेशान होती रहती हो, मम्मी ने मेरे लिए ही तुम्हें जाने से रोका है, अरे मैं खुद 8 साल के बाद हुआ हूं, ज़रा सोचो फिर मेरी मम्मी तुम्हारे बारे में ऐसा क्यों सोचेगी? 

रूपा:   इसी बात का तो दुख है कि एक औरत ही औरत का दुख नहीं समझती! छोड़िए इन सारी बातों को और मुझे कृपया शादी पर चलने को भी मत कहिएगा! मैं नहीं जा पाऊंगी। आप अकेले ही चले जाना। उस बात को काफी समय हो गया, फिर एक दिन गोमती जी कहती है, बेटा मैं तेरी मासी के घर जा रही हूं, तुझे तो पता ही है तेरे रमेश भैया को दूसरा बच्चा आने वाला है और भाभी को कल ही अस्पताल में दाखिल करवा रहे हैं, ऐसे में तेरी मासी, भैया सभी अस्पताल में होंगे, मौसा जी भी बीमार बिस्तर पर है तो मोलू और मौसा जी के देखभाल के लिए तेरी मासी ने मुझे वहां बुलाया है। एक बार जच्चा और बच्चा घर आ जाए, मैं भी आ जाऊंगी 

लोकेश:   मम्मी! आप तो खुद ही इधर-उधर गिरती पड़ती रहती है, ऐसे में आप एक बीमार, और एक बच्चे को कैसे संभालेंगी? मैं तो कहता हूं रूपा को भी साथ ले जाइए, मोलू इसे काफी पसंद भी करता है। इधर मैं सब संभाल लूंगा, आखिर परिवार ही तो परिवार के काम आता है। 

गोमती जी:  यह तू क्या हर बात पर रूपा को ले जाइए, रूपा को ले जाइए करता रहता है? अगर उसे ले ही जाना होता तो तेरे मशवरे का इंतजार नहीं करती, जितना कहा है बस उतना ही सुन, यह सब दूर खड़ी रूपी भी सुन लेती है, जो लोकेश भी देख लेता है।

लोकेश:  मम्मी! आप क्या समझती हो आप जो रूपा को हर जगह ले जाने से मना करती हो, इसका मतलब हमें समझ नहीं आता? पहले जब मुझे रूपा कहती थी कि आप उसे शुभ कामो में नहीं ले जाना चाहती, तो मैं उसे कहता था मैं खुद 8 साल बाद हुआ हूं तो मेरी मम्मी ऐसा सोच रख ही नहीं सकती, पर अब लगता है कि रूपा सही थी, मम्मी बच्चा पति-पत्नी दोनों से होता है तो फिर बच्चा ना होने पर पूरा दोष सिर्फ पत्नी पर ही क्यों? मम्मी, कम से कम आप तो रूपा की तकलीफ समझ सकती थी ना? 

गोमती जी:   तकलीफ समझती हूं तभी तो उसे समाज के सामने ले जाने से डरती हूं, जो तकलीफ इसे अभी हो रही है ना, तू विश्वास कर उस तकलीफ से कई गुना कम है जो उसके समाज के बीच में जाने से होगा 

लोकेश और रूपा हैरानी से गोमती जी को देखते हैं और लोकेश गोमती जी से पूछता है, और वह कैसे मम्मी? 

गोमती जी:   पता है रूपा की जगह कभी मैं थी। एक औरत जब मां नहीं बन पाती तो, वह हर दिन अंदर ही अंदर घुटती है और उसके उस अंदरूनी घाव को नासूर यह दुनिया वाले बना देते हैं। हर वक्त उसे हर कोई या तो यह कहता कि कोई व्रत करो, या यह करो वह करो। या तो तरह-तरह के डॉक्टर और नुस्खे का पता बताता, थोड़ी बहुत कसर बांझ बोलकर पूरी कर देता। पर कोई शुभ मुहूर्त में उसका होना तो और भी गुनाह माना जाता है, एक बार हमारे पड़ोस के शर्मा जी की बहन आशा की गोद भराई थी। मोहल्ले के सभी औरतों को बुलाया गया सिवाय मेरे, पर उसी शाम को मुझे आशा आंगन में दिया जलाते हुए दिख गई, तो मैंने भी दूर से ही उसका हाल-चाल पूछ लिया। उसकी अगली सुबह आशा के पैर उसके ही आंगन में फिसल गए और वह पेट के बल गिर पड़ी, बच्चा नहीं रहा। इसमें सारा दोष मुझ पर आ गया कि मेरी शक्ल देखी थी इसलिए यह अनहोनी हुई। यकीन मान तू एक बार के लिए बांझ शब्द सुन भी लेगा पर किसी के तेरी वजह से जाने का इल्जाम बर्दाश्त तो क्या सुना भी दर्दनाक होता है। मैंने उस दिन से खुद को घर में कैद कर लिया और बस भगवान को कोसती थी कि किस बात के सजा दे रहे हो आप मुझे? उसके बाद बहारी दुनिया से मैंने लगभग संपर्क छोड़ ही दिया, बस अपने घर के कामों में व्यस्त रहती और पूजा पाठ में लगी रहती। उसके बाद तेरे आने की खबर मिली। शायद भगवान भी समझ चुके थे कि अब इसे जो बच्चा ना दिया तो इसका बचना मुश्किल होगा। बस मैं यही रूपा के लिए भी सोचती थी कि उसे भी मेरी तरह कभी किसी भी अशुभ घटना का ज़िम्मेदार न ठहराया जाए।

रूपा के आंखों से झर झर आंसुओं की धारा बह रही थी। आज उसे सही मायने में उसकी पीड़ा समझने वाली मिल गई थी। वह दौड़कर गोमती जी के गले लगकर फूट फूट कर रोने लगती है। गोमती जी उसे चुप कराते हुए कहती है, बेटा! इतना मन छोटा ना कर, इलाज तो चल ही रहा है और जितना समाज और उनकी बातों को अपने दिल से लगाएगी, उतना ही तू मातृत्व के सुख से दूर होती जाएगी। क्योंकि दवाइयां का असर भी तब ही होता है जब हम तनाव मुक्त रहते हैं। ठाकुर जी ने जब मेरी उस वक्त सुन ली तो क्या अब नहीं सुनेंगे? और अब तो विज्ञान भी कितनी तरक्की कर चुका है। इलाज के कितने तरीके भी हैं। कुछ ना कुछ तो ज़रूर होगा, बस तू खुश रहा कर, लोगों की बातों को एक कान से घुसा कर दूसरे से निकाल दे। देखना तेरी भी गोद जल्द ही भर जाएगी। 

रूपा:  मुझे माफ कर दीजिए मम्मी! आप मेरे बारे में ऐसी सोच रखती थी और मैं आपके बारे में कितना गलत सोची थी। पर अब से मैं अपनी सेहत और इलाज पर ध्यान दूंगी और आपकी हर बात मानूंगी। 

गोमती जी:  बेटा! हमारी जिसमें गलती ही नहीं, उसके लिए हमें दोषी ठहराया जाता है और कहा जाता है, की यह किसी जन्म का पाप है जिसका प्रायश्चित करना चाहिए। पर मैं मानती हूं जब ठाकुर जी देखते हैं कि अब हमारे जीवन में बच्चा लाने का सही समय है वह तभी देते हैं, तो उनके बनाए तिथि पर विश्वास रखो, क्योंकि उनके घर में देर तो है, पर अंधेर नहीं। अगर हमसे कोई पाप हुआ है तो ठाकुर जी ही उसका प्रायश्चित भी करवाएंगे और हमें सहारा भी देंगे। ऐसे अकेले तो नहीं छोड़ेंगे हमें। इस घटना के 1 साल बाद ही रूपा को मां बनने की खबर लगती हैं और अगले 9 महीनो बाद एक गुड़िया उसकी गोद में होती है। 

दोस्तों, जब एक औरत मां नहीं बन पाती, काफी इलाजों के बाद भी असफलता ही हाथ लगती है, तब उसका एक प्रमुख कारण उस पर हुए ताने और कटाक्ष ही होता है। वह इतनी मानसिक तनाव से गुज़रती है कि कोई भी दवाई असर नहीं कर पाती। जहां बाहर वालों के साथ-साथ घर वाले भी होते हैं। यहां तो गोमती जी भी इसी पीड़ा से गुज़री थी कभी, तो शायद इसलिए रूपा का दर्द उन्हें समझ आ गया, पर असल में सास के तानों से बहू हर दिन मरती है, हर दिन उसे उस पाप का प्रायश्चित करने के लिए पता नहीं उससे क्या-क्या करवाया जाता है, जो पाप उसने कभी किया ही नहीं और इन सब में औरते ही सबसे ज्यादा कठोर बनती नज़र आती है। आप लोग कितने सहमत है मेरे इस विचार से? कमेंट में ज़रूर बताएं🙏🏻 

धन्यवाद 

रोनिता कुंडु 

#प्रायश्चित

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